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लिंग भंग से होकर गुज़रती है नागा बनने की प्रक्रिया; कहीं ‘बर्फानी’ तो कहीं ‘खूनी’ कहलाते हैं ये साधु

हरिद्वार में हज़ार नए नागा साधुओं को दीक्षा मिलने वाली है.

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हरिद्वार कुंभ में कुल तीन हज़ार साधुओं ने नागा की दीक्षा लेने की इच्छा जताई थी. इनमें से एक हज़ार का नाम तय किया गया है. (फाइल फोटो- PTI)
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अभिषेक त्रिपाठी
1 अप्रैल 2021 (Updated: 1 अप्रैल 2021, 01:19 PM IST)
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महाकुंभ (Mahakumbh 2021) का अपना एक अलग आकर्षण होता है. कुंभ में स्नान करने, वहां प्रवास करने का अपना धार्मिक महत्व तो है ही. साथ ही कुंभ में साधुओं का जिस बड़े स्तर पर जमावड़ा होता है, उसको लेकर भी अलग कौतूहल रहता है. और कौतूहल रहता है नागा साधुओं को लेकर. नागा साधुओं की दीक्षा, एक नागा के तैयार होने की प्रक्रिया से लेकर, उनकी दुनिया तक का रोमांच. हम इसी पर आज बात करेंगे. क्यों करेंगे? क्योंकि हरिद्वार में बीते 11 मार्च शिवरात्रि के दिन से महाकुंभ चल रहा है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक शिवरात्रि के दिन होने वाले पहले शाही स्नान से कुंभ की शुरुआत हो जाती है. लेकिन राज्य सरकार के अनुसार कुंभ मेला 2 अप्रैल से 28 अप्रैल तक चलेगा. आने वाली 5 अप्रैल को यहां एक हज़ार साधु, नागा साधु बनने की दीक्षा लेने वाले हैं. वे अपने वस्त्रों का त्याग कर देंगे. डंडी और कमंडल लेकर दुनियावी बातों से परे हो लेंगे.
ये जानकारी देते हुए 31 मार्च को जूना अखाड़ा के इंटरनेशनल सेक्रेटरी महेश पुरी ने बताया कि कुल तीन हज़ार साधुओं ने नागा की दीक्षा लेने की इच्छा जताई थी. इनमें से एक हज़ार का नाम तय किया गया है. जिन तीन हज़ार साधुओं ने नागा की दीक्षा लेने की इच्छा जताई थी, वे सभी जूना अखाड़ा के थे. जूना अखाड़ा
को सबसे पुराना संन्यासी अखाड़ा माना जाता है. गुजराती में ‘जूना’ का मतलब पुराना होता है. बर्फानी नागा, खूनी नागा कुंभ का आयोजन चार शहरों में होता है- हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज. इन्हीं कुंभनगरियों में नागाओं को दीक्षा दी जाती है. साधुओं की ये इच्छा होती है कि उन्हें इलाहाबाद (प्रयागराज) में दीक्षा दी जाए. अखाड़ों के बीच मान्यता है कि संगम नगरी के कुंभ में नागा बनने वाले संन्यासियों को राजयोग मिलता है. इसीलिए प्रयाग में दीक्षा पाने वाले नागाओं को ‘राजराजेश्वर नागा’ कहा जाता है. उज्जैन के कुंभ में जो नागा बनते हैं, उन्हें ‘खूनी नागा’ कहा जाता है. कहा जाता है कि महाकाल की नगरी और यहां होने वाली गर्मी के कारण उज्जैन के नागाओं का स्वभाग गुस्सैल होता है.
हरिद्वार में दीक्षा लेने वाले नागाओं को ‘बर्फानी नागा’ कहा जाता है, क्योंकि हरिद्वार शहर का मिजाज ठंडा माना जाता है. इसी तरह नासिक में दीक्षा लेने वालों को ‘खिचड़ी नागा’ कहा जाता है.
Naga Sadhu (1) नागाओं को हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में दीक्षा दी जाती है. (फाइल फोटो- PTI)
कौन होते हैं नागा साधु? प्रकृति के साथ एकसार. नग्न. युद्ध कला में माहिर. माना जाता है कि पुराने समय में नागा साधुओं को अखाड़ों की रक्षा के लिए तैयार किया जाता था. नागाओं को गुस्सैल प्रकृति का माना जाता है. हालांकि ऐसा ज़रूरी भी नहीं है. कुंभ मेले में जाएं, तो तमाम नागा साधु मिलते हैं, जो भक्तों से अच्छे से बात करते हैं, उन्हें परंपरा और धर्म-कर्म की जानकारी भी देते हैं. नागा साधु, भगवान शिव के उपासक होते हैं. जिनका जीवन कठोर अनुशासन वाला होता है. नागाओं के तैयार होने की प्रक्रियाAstrology Rays
नाम की वेबसाइट और पत्रकार धीरेंद्र के झा की किताब ऐसेटिक गेम्स के मुताबिक किसी भी नागा साधु के तैयार होने की प्रक्रिया इन चरणों से गुज़रती है –
1. मठ में दाख़िला और तहकीकात – ये पहला चरण है. जब कोई व्यक्ति साधु बनने के लिए किसी अखाड़े के पास जाता है. अखाड़ा अपने स्तर पर पहले उस व्यक्ति के बारे में पड़ताल करता है. पड़ताल इस बात की कि आखिर वो संन्यास क्यों लेना चाह रहा है? परिवार वगैरह के बारे में पता किया जाता है. सब स्तर पर संतुष्ट होने के बाद उस व्यक्ति को अखाड़े में दाख़िला दिया जाता है. इसके बाद उसे ब्रह्मचर्य पालन की शिक्षा दी जाती है. ब्रह्मचर्य व्रत सीखने में 12 साल तक का समय लग सकता है.
2. महापुरुष – ब्रह्मचर्य की परीक्षा पास करने के बाद उस व्यक्ति को महापुरुष बनाया जाता है. वह शिव, विष्णु, गणेश, शक्ति और सूर्य को गुरु मानकर भस्म, लंगोटी, जनेऊ और रुद्राक्ष धारण करता है. ये महापुरुष के आभूषण माने जाते हैं. इसके बाद नागा साधु बनने के इच्छुक व्यक्ति के सर पर जो चोटी है, वह भी हटा दी जाती है. अब गुरु उसके कान में तीन बार मंत्र फुसफुसाते हैं. इसके बाद भावी नागा साधु को नया नाम दिया जाता है. इस नए नाम के साथ वो महापुरुष कहलाता है.
3. अवधूत – यहां महापुरुष से संन्यासी बनने की प्रक्रिया शुरू होती है. बाल कटवाने होते हैं. ख़ुद का तर्पण, पिंडदान करना होता है. यानी इसके बाद संसार और परिवार के लिए वह व्यक्ति मृत हो जाता है. उसका अब एक ही उद्देश्य रहता है- धर्म की रक्षा.
महापुरुष को कपड़े उतार कर कुछ कदम उत्तर दिशा की ओर चलने को कहा जाता है. फिर गुरु वापस बुला लेते हैं. ये सांकेतिक कदम हिमालय की यात्रा को दर्शाते हैं. सूरज ढलने के बाद महापुरुष अखाड़े में लौटता है. यहां चार कोनों में चार चिताएं जल रही होती हैं. इन्हीं चिताओं की आग में मुख्य यज्ञ शुरू होता है. इस समय ऋग्वेद के पुरुष-सूक्त का उच्चारण किया जाता है. संत के मुताबिक इस सूक्त को हिंदुओं के अंतिम संस्कार के समय गाया जाता है. क्योंकि माना जाता है कि महापुरुष ने खुद का अंतिम संस्कार कर लिया है. अब वो दुनिया के लिए मर चुका है. यानी अब वो सन्यासी बनने के लिए तैयार है.
4. लिंग भंग – नागा साधु बनने का आख़िरी और सबसे मुश्किल चरण. कीर्ति-स्तंभ अखाड़े के बीचों बीच एक लंबा खंबा होता है. संन्यासी चार श्रीमहंतों के साथ कीर्ति-स्तंभ के सामने पहुंचता है. यहां एक आचार्य जल का लोटा लिए खड़े रहते हैं. आचार्य सन्यासी के ऊपर जल डाल चढ़ाते हैं. और फिर पूरी ताकत से उसका लिंग खींचते हैं. ऐसा तीन बार किया जाता है.
इस संस्कार को टांग तोड़ भी कहते हैं. ऐसा माना जाता है कि टांग तोड़ में संन्यासी के लिंग के नीचे की खाल (झिल्ली) को तोड़ दिया जाता है. इसके बाद लिंग कभी उत्तेजित अवस्था में नहीं आता. वह काम, वासना के पार चला जाता है. इससे मुक्त हो जाता है. लिंग भंग के बाद नागा साधु बनने की प्रक्रिया पूरी हो जाती है.

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