बाप की चलती तो 'अली-अली' वाले नुसरत फतेह अली खान सुई लेकर घूमते!
नुसरत का सबसे अच्छा फैसला, अपने बाप की बात न मानकर अपने पैशन के पीछे भागना रहा.
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नुसरत फतेह अली खान के परिवार की, संगीत के क्षेत्र में 600 साल से भी अधिक पुरानी लिगेसी रही है.
साल 1997 में 16 अगस्त के दिन जब नुसरत साहब ने अंतिम सांस ली थी. तब दुनिया उन्हें ‘किंग ऑफ़ किंग्स ऑफ़ कव्वाली’ के नाम से जाना करती थी. उनके पिता 'फतेह अली खान' भी अपने समय के मशहूर गायक हुआ करते थे. लेकिन वह नहीं चाहते थे कि उनका बेटा कव्वाली के क्षेत्र में आए. बात ये है कि उस समय संगीत को लेकर पाकिस्तान में उतना सम्मान नहीं था, ऊपर से पैसे भी अधिक नहीं मिलते थे. इसके अलावा उनके पिता 'फ़तेह अली खान' ने ये ऑब्जर्व किया कि उनका बेटा 'नुसरत' कव्वाली गाने में उतना फिट नहीं है, नुसरत के भारी शरीर के कारण भी उन्हें डाउट था, चूंकि कव्वाली गाने के लिए इधर-उधर जाना पड़ता है, तो कैसे ही नुसरत इतनी भाग दौड़ कर पाएगा. नुसरत के पिता ने बचपन में ही तय कर लिया कि बेटे को डॉक्टर बनाएंगे, इसलिए फतेह अपने बेटे पर पढ़ाई का जोर डालने लगे. चूंकि घर में संगीत का ही माहौल था, इसलिए संगीत उनके डीएनए में ही था. अपने पिता के जाने के बाद, नुसरत हारमोनियम बजाना सीखा करते थे. एक दिन ऐसे ही पिता के पीछे से नुसरत हार्मोनियम बजा रहे थे, उन्हें पता ही नहीं चला कि उनके पिता उन्हें पीछे खड़े होकर देख रहे हैं. अपने बेटे को हार्मोनियम बजाते देख, नुसरत के पिता मुस्कुराए और हार्मोनियम बजाने की अनुमति दे दी, लेकिन इस चेतावनी के साथ कि इससे उनकी पढ़ाई डिस्टर्ब नहीं होनी चाहिए. बाकी पिता अब भी चाहते थे कि बेटे को डॉक्टर ही बनाएंगे, बहुत छोटी उम्र में ही नुसरत ने तबला और हार्मोनियम बजाना सीख लिया, लेकिन एक ऐसी घटना घटती है कि उनके पिता फतेह अली खान को अपना मूड बदलना पड़ा, और आखिर में अपने बेटे नुसरत को कव्वाली गाने के लिए सहमति देनी ही पड़ी.

नुसरत फतेह अली खान के भतीजे 'राहत फतेह अली खान' भी संगीत के क्षेत्र में अपने पुरखों की 600 साल पुरानी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं.
वो कौन सी घटना थी जिसने नुसरत के पिता का मूड ही बदल दिया?
उस समय भारत में 'मुनावर अली ख़ान' नाम के एक गायक हुआ करते थे. मुनावर, 'बड़े गुलाम अली' साहब के बेटे थे. एक बार मुनावर साहब का पाकिस्तान जाना हुआ. नुसरत के पिता फतेह से उनकी पहले से ही दोस्ती थी. उन्होंने फ़तेह से कहा कि वह पाकिस्तान में आकर बहुत निराश हुए हैं, जिसके कारण उन्हें भारत वापस जाना पड़ेगा, क्योंकि उन्हें साथ में गाने के लिए एक अच्छा तबला वादक नहीं मिल रहा है, जिस कारण वह पाकिस्तान के दर्शकों को खुश नहीं कर पा रहे हैं. फतेह ने नुसरत की तरफ इशारा करते हुए दिखाया कि ये आपकी मदद कर सकता है. नुसरत की छोटी उम्र को देखकर 'मुनावर' ने मूंह सुकोड़ लिया, उनके चेहरे के एक्स्प्रेशन्स को देखकर फतेह ने मुनावर से कहा कि ‘भले ही ये मोटा दिखाई पड़ता हो लेकिन इसका दिमाग काफी तेज चलता है’ फिर क्या था! उसी वक्त नुसरत का ट्रायल शुरू हो गया. नुसरत जानते थे कि आज ही चांस है जिसे भुना लिया गया, तो उन्हें पढ़ाई से छुटकारा मिल जाएगा, और उन्हें भी पिता और दादा की तरह संगीत में ही करियर बनाने की अनुमति मिल जाएगी. नुसरत ने बिजली की रफ़्तार से तबले पर अपनी उंगलियां चलाईं, और इसकदर लय मिलाई कि मुनावर एकदम खुश हो गए. उत्साहित होकर ‘मुनावर’ ने नुसरत के पिता से कहा कि ‘फतेह तुम्हारा बेटा बहुत ही टैलेंटेड है, मैं हार गया, तुम्हारा बेटा जीत गया’' इस बात को सुनकर फतेह बहुत अधिक खुश हुए, और अपने बेटे को 'डॉक्टर' बनाने का अपना पुराना प्लान बदल दिया. यह नुसरत की पहली जीत थी. अब नुसरत की ट्रेनिंग पर जोर दिया जाने लगा. इस तरह नुसरत का दरबाजा संगीत की दुनिया के लिए खुल गया.'कव्वाली के राजाओं के राजा' बनने के लिए नुसरत ने क्या किया?
संगीत के क्षेत्र में नुसरत साहब की एंट्री के बाद जो हुआ वह इतिहास है. नुसरत के गानों के लिए उन्हें दो ग्रैमी अवार्ड के लिए नॉमिनेट भी किया गया. उन्हें यूनेस्को म्यूजिक अवार्ड भी मिला और पाकिस्तान का प्रेसिडेंट अवार्ड भी. सबसे अधिक कव्वाली रिकॉर्ड करने के लिए नुसरत का नाम गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हुआ. लेकिन इन तमाम रिकग्निशन और अवार्ड्स का सफर इतना आसान नहीं रहा. नुसरत ने अपने संगीत की धार बनाने के लिए रियाज करने में पूरा दम लगा दिया था. एक इंटरव्यू के दौरान नुसरत ने बताया कि वह हर रोज दस-दस घंटे एक कमरे में बंद होकर रियाज किया करते थे. अगर रात के दस बजे से रियाज शुरू की हो तो रियाज सुबह के दस बजे तक भी चलती, अगर सुबह के दस बजे से शुरू होती तो रात के दस बजे तक रियाज चलती.
नुसरत फतेह अली खान की एक तस्वीर
नुसरत ने बॉलीवुड में गाना कम्पोज करने से पहले क्या शर्त रखी थी?
नुसरत पाकिस्तान में जितने फेमस थे उतने ही भारत में भी, लेकिन वह एक बार ही भारत आ सके, वह भी राजकपूर के बुलाने पर, लेकिन उसके बाद उनका भारत आना नहीं हो सका. नुसरत ने बॉलीवुड की कई फिल्मों के लिए गाने कम्पोज किए हैं, जिनमें से एक रोचक किस्सा ये है कि फिल्म ‘कच्चे धागे’ जिसे 'मिलन लुथरिया' ने डायरेक्ट किया था, उसमें नुसरत साहब से एक गाना कम्पोज करने के लिए कहा गया. नुसरत साहब ने एक शर्त रखी, उन्होंने कहा कि वह तभी म्यूजिक कम्पोज करेंगे जब कम से कम एक गाना तो लता मंगेशकर से गवाया जाए. लास्ट में लता और नुसरत ने मिलकर एक गाना बनाया भी, और गाने का नाम था ‘ऊपर खुदा आसमां नीचे’, उसके बाद इस गाने ने हिंदी सुनने वालों की यादों मे, हमेशा के लिए अपनी जगह बना ली. भले ही नुसरत साहब को अंतिम सांस लिए हुए आज 23 साल हो गए हों, लेकिन 23 सदियों तक भी उनके गाने उन्हें अमर बनाए रखने में सक्षम हैं. उन सब का जिक्र करना तो मुश्किल है, लेकिन कुछ का जिक्र तो यहां कर ही लेते हैं.
एक संगीत समारोह में गाते हुए नुसरत फ़तेह अली खान
#मेरे रश्के क़मर उर्दू के कवि 'फना बुलंदशहरी' ने इस गजल को लिखा था, जिसे नुसरत साहब ने अपनी आवाज दी थी. नई जनरेशन वालों ने इस गाने को साल 2017 में आई अजय देवगन की फिल्म ‘बादशाहो’ में सुना होगा. लेकिन इसे नुसरत साहब की आवाज में सुनने का अपना अलग ही मजा है. अगर आपने अबतक नुसरत साहब की आवाज में ये कव्वाली नहीं सुनी, तो यकीं मानिए बहुत कुछ मिस कर रहे हैं.
#सांवरे तोरे बिन जिया जाए ना ये गाना नुसरत साहब की ही आवाज में है, ये गाना उस उंचाई तक पहुंच जाता है जहां भाषाई व्याकरण ओछी पड़ जाए. गाना आदमी की भावनाओं में उतरकर, अंतर्मन के तारों में धुन भर देता है. नुसरत साहब के गानों, उनकी कव्वालियों की सुंदरता भी यही है कि आदमी गाने के साथ बहता भी है और एक जगह जम भी जाता है. नुसरत साहब ने ये गाना फिल्म बैंडिट क्वीन के लिए गाया था, जिसके डायरेक्टर थे शेखर कपूर. अगर आपने अब तक ये गाना नहीं सुना है तो अब जल्दी से सुन लीजिए
#छोटी सी उमर बैंडिट क्वीन के इस गाने के बाद 'म्यूजिक डायरेक्टर' के रूप में नुसरत साहब ने हिंदी फिल्मों में एंट्री की थी. नुसरत साहब के कंठ से जब ये गाना निकला तो लोगों के दिल के अंदर तक पहुंच गया. गाने की शुरूआती लाइनें ये हैं ‘छोटी सी उमर परनाइ रे बाबोसा करयो थारो कई मैं कसूर हो’, जिन लोगों ने बालिका बधू सीरियल देखा होगा, उन्होंने कम से कम इन लाइनों को तो जरूर सुना होगा. बाकी पूरा गाना आप खुद सुनिए
#तेरे बिन नहीं जीना मर जाना ढोलना
फिल्म 'कच्चे-धागे' का ये बेहतरीन गाना लता मंगेशकर ने गाया है, नुसरत साहब ने इसे कम्पोज किया है. ये नुसरत साहब की ही कव्वाली ‘तेरे बिन नहीं लगदा दिल मेरा ढोलना’ पर ही आधारित है, इस गाने का हिंदी समझने वालों पर इतना क्रेज है कि, 2018 में ही आई रनवीर सिंह की फिल्म सिम्बा में भी, इसी टाइटल वाले गाने को राहत फतेह अली खान द्वारा गया है. अब आप नुसरत साहब की आवाज में भी इस गाने को सुन लीजिए.
#सानू इक पाल चेन ना आवे नुसरत साहब की इस गजल की कम्पोजिंग बेहद जटिल है, इसी लिरिक्स वाले गाने को अजय देवगन की फिल्म ‘रेड’ में ‘राहत फतेह अली खान’ ने गाया है. लेकिन इधर हम आपको केवल नुसरत साहब की आवाज वाली गजल को ही सुनाएंगे, तो सुनिए आप भी.
#छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिला के ओरिजिनली इस गजल को अमिर खुसरो ने लिखा था. इसे नुसरत साहब ने कव्वाली की फॉर्म में गाया है. जितनी एनर्जेटिक ये कव्वाली है उतनी ही गहरी भी. अगर आपने नुसरत साहब की आवाज में ये कव्वाली नहीं सुनी, तब आपने क्या ही सुना है? तो देर मत कीजिए बिल्कुल भी, यहीं सुन लीजिए.
#मेरा पिया घर आया इसे ओरिजिनली पंजाबी सूफी संत ‘बाबा बुल्लेशाह’ ने 18 वीं शताब्दी में लिखा था. जब नुसरत साहब ने इसे कव्वाली फॉर्म में बनाकर गाया, तो ये गजल बेहद फेमस हुई, इतनी कि इसपर बॉलीवुड में भी गाने बने.
#आफरीन-आफरीन इस गजल को ‘जावेद अख्तर साहब’ ने लिखा है, नुसरत साहब ने इस गजल को अपनी आवाज दी है, राहत फ़तेह अली खान ने जब इस गजल को कोक स्टूडियो में गाया (जबकि इस गाने का म्यूजिक वीडियो 95-96 में आया था, लीज़ा रे स्टारर. कोक स्टूडियो से बहुत पहले) तब हमारी जनरेशन वालों का इसपर ध्यान गया, राहत ने तो गाने को बेहतरीन तरीके से गाया ही है, लेकिन अगर आपने नुसरत साहब की आवाज में नहीं सुना तो मजा अधूरा ही रह जाएगा. तो सुन ही लीजिए
********** ये स्टोरी हमारे यहां इंटर्नशिप कर रहे श्याम ने लिखी है
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