The Lallantop
Advertisement

GST को लेकर सरकार का ये खेल पापड़ इंडस्ट्री का जायक़ा खराब ना कर दे

पापड़ का इतिहास और इस पर जीएसटी का पेंच दोनों जान लीजिए.

Advertisement
Img The Lallantop
पापड़ पर लगने वाली जीएसटी को लेकर मैन्युफैक्चरर कंपनियां खासी परेशानी हैं. इसका कारण है जीएसटी में पापड़ के अलग-अलग प्रकार पर लगने वाला जीएसटी.
pic
अमित
26 अगस्त 2021 (Updated: 26 अगस्त 2021, 04:21 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
सर्दियों का सीज़न. आलू-मटर-गोभी की तहरी के साथ अचार और पापड़. परम आनंद. किसी दक्षिण भारत के रहने वाले से पूछेंगे तो वो पापड़ (Papad) के साथ परम आनंद का फॉर्मूला सांभर-चावल के साथ बता देगा. क्या कभी पापड़ खाते वक्त आपने सोचा है कि आखिर ये आया कहां से है? ये किसी संयोग का नतीजा है या प्रयोग का? क्या आप जानते हैं कि भारत के घर-घर तक पापड़ पहुंचने में एक बड़े कॉपरेटिव मूवमेंट का हाथ है? इधर सरकार और पापड़ बनाने वालों के बीच जीएसटी को लेकर भी झगड़ा शुरू हो गया है. तो आज आपको बताते हैं पापड़ को लेकर जीएसटी का चक्कर और पापड़ की कहानी. आज पापड़ की कहानी क्यों? असल में आजकल भारत सरकार पापड़ इंडस्ट्री के साथ 'कच्चा पापड़-पक्का पापड़' वाला टंग ट्विस्टर खेल रही है. हुआ ये है कि पापड़ बनाने वाली कुछ कंपनियां सेंट्रल बोर्ड ऑफ इंडायरेक्ट टैक्सेज एंड कस्टमर्स (CBDT) के पास पहुंची हैं. CBDT अप्रत्यक्ष टैक्स के नियम-कायदे तय करने वाली सबसे बड़ी अथॉरिटी है. अंग्रेजी अखबार द इकॉनमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक, पापड़ बनाने वाली कंपनियां गुजरात की अथॉरिटी ऑफ अडवांस रूलिंग (AAR) के फैसले को लेकर कंफ्यूजन की दुहाई दे रही हैं. AAR का कहना है कि पापड़ पर जीएसटी नहीं लगेगा, लेकिन अगर पापड़ गोल से चौकोर हुआ या उसमें कोई खास मसाला डाला गया तो इसकी जीएसटी कैटेगिरी बदल जाएगी.
अथॉरिटी का कहना है कि पापड़ मतलब - फिक्स साइज़ और फिक्स रेसिपी. अगर इसमें छेड़छाड़ की तो ये 'अनफ्रायड फ्रायम्स' की कैटेगिरी में आ जाएगा. फ्रायम्स यानी वे भारतीय स्नैक फूड्स, जो मुख्य रूप से आलू और साबूदाना से बनते हैं.
फ्रायम्स पर 18 फीसदी जीएसटी लगता है. पापड़ बनाने वाली कंपनियों को अब समझ में ही नहीं आ रहा है कि अपने किस प्रॉडक्ट को पापड़ मानें, किसको फ्रायम्स. जब तक ये कंफ्यूजन बना रहेगा कंपनियां रेट नहीं तय कर पाएंगी. अब पापड़ की परिभाषा को लेकर CBDT ही फैसला लेगी. पापड़ आया कहां से? पापड़ का इतिहास जानने से पहले इससे जुड़ा एक किस्सा सुनिए. दक्षिण में एक बहुत बड़े आध्यात्मिक गुरु हुए हैं श्री रमण महार्षि. वो 1859 में पैदा हुए और उनकी आध्यात्मिक जीवन यात्रा 1950 में समाप्त हुई. 15-16 साल की उम्र में ही उन्होंने घर छोड़ दिया. आध्यात्म की ओर मुड़ गए और अन्नामलई के पहाड़ों पर ज्ञान की तलाश में निकल गए. कुछ बरसों बाद वापस आए और लोगों के बीच अपने प्रवचन को लेकर मशहूर हो गए.
रमण महर्षि जब 29 साल के थे तो एक दिन उनकी मां उनके घर आ गईं. बरसों बाद मां को देख कर उन्हें अच्छा तो लगा, लेकिन उन्होंने मां को चेताया कि वो साधु-संन्यासी का जीवन जी रहे हैं, ऐसे में उनसे किसी मदद की आशा न करें. मां ने कहा कोई बात नहीं, बस पापड़ बनाने में मेरी मदद कर दो. रमण महार्षि अपनी मां की दाल पीस कर साथ पापड़ बनाने बैठ गए. इस दौरान उन्होंने एक आध्यात्मिक गाना लिखा. गाने के बोल थे 'अपलम इत्तु पारा'. इस गाने का भावार्थ कुछ ऐसा था,
"जिस तरह अपने मन को थपथपाना चाहिए, कुछ उसी तरह पापड़ का आटा गूंथना चाहिए. फिर शांति की बेलन के साथ उसे समता की थाली में बेल लें. सबसे आखिरी में पापड़ की तरह, खुद को बुद्धि और प्रज्ञा की ज्वाला में सेंक लेना चाहिए. इस तरह आप पापड़ पा भी सकते हैं और इसे खा भी सकते हैं."
ये सीधे-सीधे 'You Can't Have Cake And Eat It Too' के दर्शन के खिलाफ है. लेकिन आध्यात्म में ये मुमकिन करने का तरीका श्री रमण महार्षि ने पापड़ के जरिए समझाया है.
भारत में पापड़ कब और कैसे आया इसे लेकर कोई एतिहासिक जानकारी नहीं मिलती. जानकार मानते हैं कि घरों में इसे परंपरागत तरीके से बरसों पहले से बनाया जा रहा है. उनका कहना है कि मुगलकाल से पहले भी पापड़ को खाने में इस्तेमाल किया जाता था. देशभर में स्थानीय सामग्री की उपलब्धता के हिसाब से पापड़ का रंग-रूप भले अलग-अलग था, लेकिन पापड़ देश में बहुत पहले से मौजूद है. कुछ लोग इसमें काली मिर्च, जीरे जैसे मसालों के इस्तेमाल की वजह से मानते हैं कि इसकी शुरुआत दक्षिण भारत से हुई. आलू से लेकर चावल और दाल से लेकर कटहल तक के पापड़ भारत में बनाए जाते हैं.
Jack Fruit Papad
बैंगलुरू में आपको कटहल के बने पापड़ खाने को मिल सकते हैं. (फोटो-विकीपीडिया)
भारत में पापड़ इंडस्ट्री का क्या हाल है? भारत में पापड़ का मार्केट तकरीबन 1 हजार करोड़ रुपए का है. इसे देश का सबसे बड़ा गृह उद्योग बताया जाता है. मतलब इससे देश की ऐसी आबादी जुड़ी है जो अपने घर पर रह कर ही इसमें काम करती है. मिसाल के तौर पर लोग पापड़ के लिए आटा गूंथने का काम, मसाला पीसने का काम अलग से घर पर रह कर ही कर लेते हैं. यानी इस काम से भारी संख्या में महिलाएं जुड़ी हुई हैं. अगर बड़े ब्रैंड्स की बात करें तो लिज्जत, आनंद पापड़, गणेश पापड़ और नंदन पापड़ जैसे ब्रैंड्स काफी पॉपुलर हैं. पापड़ क्रांति, जिसने सबकुछ बदल दिया त्योहारों से पहले उत्तर भारत की तकरीबन हर छत पर पापड़ बना कर छतों पर सूखते मिल जाते थे. फिर साल भर रेडीमेड पापड़ को घर-घर तक एक खास ब्रैंड ने पहुंचाया. इसका नाम है लिज्जत. इस पापड़ ब्रैंड की शुरुआत 7 महिलाओं ने की और बाद में ये एक सहकारिता आंदोलन में तब्दील हो गया.
बात है 1959 की गर्मियों की. मुंबई के गिरगांव इलाके में लोहाना निवास नाम की एक इमारत थी. उसकी छत पर 7 गुजराती महिलाएं रोज की तरह बैठक के लिए जमा हुईं. कई दिन से महिलाएं सोच रही थीं कि खाली वक्त में गप्पें मारने से अच्छा है कि कुछ काम भी किया जाए. कारण था कि इससे अपनी जेब में भी कुछ पैसे आएंगे और रोज-रोज पति से पैसे नहीं मांगने होंगे. कई आइडिया दिमाग में आए लेकिन आखिर में तय हुआ कि वो मिलकर पापड़ बनाएंगी और बाजार में बेचेंगी.
इस काम में सबसे बड़ी अड़चन थी कैपिटल की. मतलब कोई भी बिजनेस शुरू करने के लिए कैपिटल या शुरुआती पैसा चाहिए होता था. जब महिलाएं खुद ही अपने पतियों पर आश्रित थीं तो काम शुरू करने के लिए पैसे कहां से आते. ऐसे में सबने मिल कर 80 रुपए का कर्ज लिया और पापड़ बनाने के लिए कच्चा माल खरीदा गया. सभी महिलाओं ने मिलकर पहले दिन 4 पैकेट पापड़ बनाए. पापड़ बेचने में महिला गृह उद्योग के संस्थापक पुरुषोत्तम दामोदर दत्तानी ने उनकी मदद की. उन्होंने चारों पैकेट गिरगांव के आनंदजी प्रेमजी स्टोर में बेच दिए.
पहले दिन 1 किलो पापड़ बेचकर 50 पैसे कमाई हुई. अगले दिन 1 रुपए. धीरे-धीरे और महिलाओं ने जुड़ना शुरू किया. फिर दिमाग में ख्याल आया कि अगर प्रोडक्शन बनाना है तो और महिलाओं को जोड़ना होगा. अगले 3-4 महीने में ही 200 से ज्यादा महिलाएं जुड़ गईं. अब तक केवल घर के काम कर रही ये महिलाएं इतनी तेजी से पापड़ बनाने के काम में जुटीं कि वडाला में भी एक ब्रांच खोलनी पड़ी. साल 1959 में 6 हजार रुपए के पापड़ की बिक्री हुई थी, जो उस वक्त के हिसाब से काफी बड़ी रकम थी. ये वो वक्त था जब आम सरकारी कर्मचारियों को 50-70 रुपए महीने सैलरी मिलती थी.
लिज्जत पापड़ शुरू करने वाली 7 महिलाओं में से एक जसवंती बेन पोपट ने एक बार बीबीसी को दिए इंटरव्यू दिया था. बताया था कि उन्हें और साथ की कम पढ़ी-लिखी महिलाओं को कभी अंदाजा नहीं था कि ये सब इतना बड़ा हो जाएगा. जसवंती बेन पोपट को साल 2021 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है.
जसवंती बेन पोपट के अलावा जिन 6 अन्य महिलाओं ने लिज्जत पापड़ की शुरुआत की, उनके नाम हैं - जयाबेन विट्ठलानी, पार्वती बेन थोडानी, उजमबेन कुंडालिया, बनुबेन तन्ना, छूटड़बेन गौड़ा और लगुबेन गोकानी.
Lijjat Papad Jaswaniben
लिज्जत पापड़ की शुरुआत करने वाली जसवंती बेन पोपट को 90 साल की उम्र में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है.
फिर बनी कोऑपरेटिव सोसाइटी पापड़ का बिजनेस उम्मीद से ज्यादा सुपर फास्ट स्पीड में बढ़ रहा था. अब इसे संभालना मुश्किल हो रहा था. ऐसे में इन सात महिलाओं को समाजसेवी छगन बप्पा का साथ मिला. उन्होंने कुछ आर्थिक मदद की. इसका इस्तेमाल महिलाओं ने मार्केटिंग टीम, प्रचार या लेबर बढ़ाने में नहीं, बल्कि पापड़ की गुणवत्ता सुधारने में किया. मुनाफा देख और महिलाओं ने जुड़ने की इच्छा जताई तो इसके संस्थापकों ने एक कोऑपरेटिव सोसाइटी रजिस्टर कराने का फैसला लिया. इस तरह से जन्म हुआ श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ का.
इसमें शुरुआत से ही कोई एक मालिक नहीं बनाया गया, बल्कि महिलाओं का समूह ही इसे चलाता है. सात महिलाओं के साथ शुरू हुए इस वेंचर में आज करीब 45 हजार से ज्यादा महिलाएं काम करती हैं. फेमिना मैगजीन में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक लिज्जत, का सालाना टर्न ओवर तकरीबन 1600 करोड़ रुपए है. क्या है काम का सिस्टम? संस्था में कोई किसी को नाम या पोस्ट से नहीं बुलाता. सब महिलाएं एक दूसरे को ‘बहन’ कह कर बुलाती हैं. महिलाएं सुबह 4.30 बजे से अपना काम शुरू कर देती हैं. एक ग्रुप आटा गूंथता है तो दूसरा इसे इकट्ठा करके घर में ही पापड़ बेलने का काम करता है. आवाजाही के लिए एक मिनी-बस की मदद ली जाती है. पूरे प्रोसेस पर मुंबई की एक 21 सदस्यों की टीम नजर रखती है.
लिज्जत की प्रेसिडेंट स्वाती रवींद्र पराड़कर महज 10 साल की थीं, जब उनके पिता का देहांत हो गया. परिवार आर्थिक संकट में था. उनकी मां पापड़ बनाती थीं और स्वाती रोज स्कूल जाने से पहले छुट्टियों में उनकी मदद करतीं. बाद में उन्होंने लिज्जत कोऑपरेटिव ज्वॉइन कर लिया और इसकी प्रेसिडेंट भी बन गईं. फिलहाल देश के 18 राज्यों में लिज्जत पापड़ बनाने वाली संस्था श्री महिला गृह उद्योग की ब्रांच हैं.
लिज्जत पापड़ की इस स्टोरी से लगान जैसी फिल्म बनाने वाले फिल्म डायरेक्टर आशुतोष गोवारिकर भी बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने 2020 में इस कहानी पर फिल्म बनाने की घोषणा कर दी. फिल्म का नाम होगा कुर्रम-कुर्रम और लीड रोल में होंगी कियारा अडवानी. खैर फिल्म तो जब आएगी तब आएगी, लेकिन तब तक पापड़ खाकर कुर्रम-कुर्रम तो किया ही जा सकता है.

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement