दुर्वासा ऋषि अपने गुस्से की वजह से फेमस हैं. एक बार एक राजा ने उनको ब्राह्मण भोज के लिए बुलाया. बांभन खवाई में पहुंचे बाबा दुर्वासा. लेकिन वहां भी इनकी आदत गई नहीं. गुस्सा हो गए. लेकिन उनका दांव इस बार उल्टा पड़ गया.
एक बार राजा अंबरीष और उनकी पत्नी ने एकादशी का व्रत किया. व्रत के पारण का समय आया. पारण में होता क्या है कि ब्राह्मणों को खाना खिलाकर व्रत खत्म किया जाता है. उस पारण में अपने गुस्से के लिए फेमस ऋषि दुर्वासा भी आए. खाने के पहले दुर्वासा यमुना नदी पर नहाने-धोने चले गए. गए तो बड़ी देर नही लौटे.
इधर पारण का टाइम निकला जा रहा था. जब एक मिनट रह गया और दुर्वासा नहीं लौटे. अंबरीष ने दूसरे ब्राह्मणों से पूछा कि अब क्या करना चाहिए. ब्राह्मणों ने कहा कि बीच का रास्ता ये है कि आप पानी पी लीजिए. ये खाने और न खाने, दोनों के बराबर होगा. अंबरीष ने ऐसा ही किया.
जब दुर्वासा वापस आए तो समझ गए कि पारण हो चुका है. उन्होंने गुस्से में लाल होकर कहा, आता माझी सटकली! अब तू नहीं बचेगा. उन्होंने उखाड़ी अपनी जटा और उससे पैदा किया एक कृत्या* को. कृत्या आग की तरह जल रही थी और तलवार लेकर अंबरीष को मारने के लिए आगे बढ़ी. अंबरीष बिल्कुल कूल होकर चुपचाप खड़े रहे.
भगवान को तो पता था कि दुर्वासा सुलगकर हमेशा ओवररिएक्ट करते हैं. उन्होंने भेजा अपना सुदर्शन चक्र जिसने कृत्या की ऐसी-तैसी कर दी. और फिर पड़ गया दुर्वासा के पीछे. चक्र से भागते हुए दुर्वासा ब्रह्मा के पास गए. ब्रह्मा ने हाथ खड़े कर दिए. बोले- भइया भगवान के मैटर में हम नहीं पड़ेंगे. फिर वो गए शंकर जी के पास. शंकर भगवान ने कहा कि जिसने तुम्हारी FIR कराई है. अगर वो अपना केस वापस ले ले तो भगवान आपको छोड़ देंगे.
दुर्वासा भागे-भागे पहुंचे अंबरीष के पास और माफी मांगी. अंबरीष ने कहा- ऋषिवर हमें एम्बैरेस न कीजिए. फाइनली अंबरीष की रिक्वेस्ट पर भगवान ने दुर्वासा को माफ़ किया.
*कृत्या= अनुष्ठान से पैदा की गई शक्ति जिसे दुश्मनों की वाट लगाने भेजा जाता है
(स्रोत: श्रीमद्भागवत महापुराण)