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संसद भले बदल गई, लेकिन इसके ये किस्से दुनिया कभी भूल ना पाएगी

जब भरे सदन में नेहरू को चपरासी का पोता कहा गया. इंदिरा को चमेली कहा गया. एक दामाद ने अपने ससुर के सामने उनकी सरकार का घोटाला खोल दिया. लोहिया ने शादी की बात कर दी. पुरानी संसद के ऐसे ही कई धांसू किस्से

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 पुरानी संसद के कुछ अनसुने या कमसुने किस्से
फाइल फोटो- आज तक
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अभय शर्मा
21 सितंबर 2023 (Updated: 21 सितंबर 2023, 01:33 PM IST) कॉमेंट्स
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लल्लनटॉप में हमारे एक साथी से हमने पूछा कि आप अपने गांव वाले घर में 22 साल रहे. वहां की कोई यादगार बात बताइए. हमारे साथी ने सबसे पहले जो बताया वो एक किस्सा था. ये किस्सा था साल 2007 का, इस साल क्रिकेट का वर्ल्ड कप हुआ था. मार्च और अप्रैल के महीने में, ये वो समय होता है जब बोर्ड परीक्षाएं होती हैं. हमारे साथी की भी बारहवीं की परीक्षा थी. लेकिन खुमारी वर्ल्ड कप की थी. पिता जी पढ़ाई को कहते, लेकिन ये महाशय टीवी से चिपके रहते. एक दिन पिता जी ने कहा कि पढ़ाई करो, आज टीवी बिलकुल न चले, कल एग्जाम है. कहकर पिता जी किसी काम से घर से बाहर चले गए, कुछ घंटे बाद वापस आए तो हमारे साथी और उनके भाई टीवी पर मैच देखते मिले. पिता जी बिलकुल नहीं चिल्लाये, एकदम कूल लग रहे थे, वो धीरे-धीरे टीवी की ओर बढे और धीरे से बोले- 'जरा एक बड़ा सा पत्थर ले आओ.' मैच देख रहा पड़ोस का एक लड़का बड़ा सा पत्थर लेकर इनके पिता जी को देने चल दिया. पत्थर हाथ में आते ही पिता जी जोर से चिल्लाये- आज ये टीवी फोड़ देते हैं. ना रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी. टीवी फूट ही जाती, अगर मम्मी पीछे से आकर पिता जी का हाथ ना पकड़तीं.

ना जाने कितनी घटनाएं 22 साल में उस घर में हुईं होंगी, लेकिन हमारे साथी को ये किस्सा सबसे पहले याद आया. क्योंकि इसमें पिता जी का व्यवहार कुछ ऐसा था, जो उन्हें हैरान कर गया. शायद एक किस्सा ऐसे ही बनता है. हमारी पुरानी संसद के भी ऐसे ही कई किस्से हैं जो सच में चौंकाने वाले हैं. सुनकर यही कहेंगे - 'अरे ऐसा भी कभी सदन में हुआ था.' अब जब एक नयी संसद बन गई है और पुरानी को छोड़ दिया गया है तो हमने सोचा क्यों ना इस मौके पर अपनी पुरानी संसंद के कुछ किस्सों को याद किया जाए. आज की तारीख के एपिसोड में हम पुरानी संसद के कुछ अनसुने या कमसुने किस्से आपको सुनाएंगे.

जब दामाद ने ससुर की सरकार का घोटाला खोल दिया

ये बात है साल 1958 की. एक दिन लोकसभा का सत्र चल रहा था. ट्रेजरी बेंच पर बैठा कांग्रेस का ही एक सांसद बोलने के लिए खड़ा हुआ. उसने जो कहा उससे नैतिकता के ऊंचे आदर्शों का दावा करने वाली जवाहरलाल नेहरू की सरकार हिल गई. उसने आरोप लगाया कि सरकार में बड़ा वित्तीय घोटाला हुआ है. भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी ने कुछ ऐसी कंपनियों के करोड़ों रुपए के शेयर खरीदे हैं, जिनकी माली हालत बेहद खराब है. ये कंपनियां कलकत्ता के एक कारोबारी हरिदास मूंदड़ा की थीं.

सत्ताधारी पार्टी के ही एक सांसद की तरफ से किए गए इस खुलासे ने विपक्ष को पहली बार एक बड़ा मुद्दा दे दिया. ये आजाद भारत का ऐसा पहला घोटाला था, जिसमें व्यापारी, अफसर और नेता तीनों शामिल थे. इससे देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बड़ी किरकिरी हुई. क्यूंकि इसे उजागर करने वाले कोई और नहीं, बल्कि उनके दामाद सांसद फिरोज गांधी थे.

छोटे-छोटे मुद्दों पर नेहरू सरकार की टांग खींचने वाले फिरोज ने आखिरकार 1958 में 'एलआईसी-मूंदड़ा घोटाले' से पर्दा हटाकर देश में सियासी भूचाल ला दिया था. घोटाला ये था कि हरिदास मूंदड़ा ने सरकारी तंत्र का इस्तेमाल करके एलआईसी को अपनी संदेहास्पद कंपनियों के शेयर्स ऊंचे दाम पर खरीदने पर मजबूर किया था. इसकी वजह से एलआईसी को करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ा.

संसद में घोटाले का खुलासा करते हुए फिरोज गांधी ने आरोप लगाया कि प्रधान वित्त सचिव एचएम पटेल और वित्त मंत्री टीटी कृष्णमाचारी ने एलआईसी पर मूंदड़ा की कंपनियों में निवेश के लिए दबाव बनाया. कुछ कागज लहराते हुए कहा कि इसके सबूत उनके पास हैं. इनसे इन दोनों की मिलीभगत का पता चलता है. जब सदन में टीटी कृष्णामाचारी से इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने गोलमोल जवाब दिया.  मामले की जांच हुई और वित्त मंत्री को पद से इस्तीफा देना पड़ा. कोर्ट के आदेश पर कई अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाया गया.

नेहरू के वित्त मंत्री टीटी कृष्णामाचारी और फिरोज गांधी के बीच तनातनी की खबरें घोटाले से पहले भी आती रहती थीं. बताते हैं एक बार तो कृष्णामाचारी ने सदन में फ़िरोज़ गांधी को इशारों-इशारों में नेहरू का 'लैपडॉग' यानी 'पालतू कुत्ता' कह दिया था. फ़िरोज़ गांधी ने इसका तुरंत जवाब दिया. पलटकर बोले- 'चूंकि कृष्णमाचारी खुद को राष्ट्र का स्तंभ मानते हैं, इसलिए वह उनके साथ वही करेंगे जो आमतौर पर एक कुत्ता किसी खंभे के साथ करता है.'

इसके बाद ही 'एलआईसी-मूंदड़ा घोटाले' का खुलासा कर फिरोज गांधी ने कृष्णामाचारी के राजनीतिक करियर पर दाग लगा दिया.

जब PM को कहा चपरासी का पोता

लोकसभा में समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया और पंडित जवाहरलाल नेहरू से जुड़े भी कई किस्से मशहूर हैं. लोहिया 1962 का लोकसभा चुनाव उत्तर प्रदेश की फूलपुर लोकसभा सीट से लड़े थे. जीतने की उम्मीद बेहद कम थी क्योंकि सामने थे देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू. नतीजा लोहिया चुनाव हार गए. लेकिन एक साल बाद ही यानी 1963 में उत्तर प्रदेश की फ़र्रुख़ाबाद लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ, लोहिया ने दावेदारी ठोक दी और जीत गए. पहली बार संसद पहुंचे. लोहिया संसद में नेहरू के खिलाफ बोलने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. वो नेहरू को 'सिय्डो-सेक्युलर', और न जाने कैसे-कैसे अपशब्द कहते थे, लेकिन नेहरू ने कभी इसको निजी तौर पर नहीं लिया.

लोकसभा में अपने पहले ही में लोहिया ने जो कहा वो इतिहास में दर्ज हो गया. इस भाषण को आज भी 'तीन आना बनाम पंद्रह आना' के नाम से जाना जाता है. लोहिया ने कहा था कि देश के 60 प्रतिशत लोग जो कुल आबादी का 27 करोड़ हैं, वो हर दिन तीन आना पर जीवन यापन कर रहे हैं. जबकि हर दिन प्रधानमंत्री के कुत्ते पर तीन रुपये खर्च होते हैं. खुद प्रधानमंत्री की सुरक्षा पर डेली 25 हजार रुपये खर्च होते हैं.

प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने लोहिया के इन आरोपों के जवाब में कहा कि योजना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश के 70 फीसदी लोग 15 आना रोजाना कमा रहे हैं. लोहिया ने नेहरू को चुनौती दी कि अगर प्रधानमंत्री योजना आयोग की बात को सच साबित कर दें तो वो लोकसभा से तुरंत इस्तीफा दे देंगे. इसका जवाब नेहरू के पास नहीं था.

लोहिया और नेहरू की बहस का एक मजेदार किस्सा भी है. एक बार संसद में बहस के दौरान राममनोहर लोहिया ने सदन को बताया कि नेहरू एक कुलीन परिवार के नहीं हैं जैसा कि उनके बारे में प्रचार किया जाता है. लोहिया ने आगे कहा, ''मैं साबित कर सकता हूं कि प्रधानमंत्री नेहरू के दादा मुगल दरबार में चपरासी थे.'' बताते हैं कि इसपर नेहरू मंद-मंद मुस्कुराये और खड़े होकर बोले- "मुझे खुशी है कि संसद के माननीय सदस्य ने आखिरकार वो बात स्वीकार कर ही ली, जो मैं उन्हें इतने सालों से बताने की कोशिश कर रहा था...कि मैं आम लोगों के बीच से ही हूं. और उनके जैसा ही हूं."

इस बहस के दौरान हैरान करने वाली बात ये थी एक भी कांग्रेसी सांसद उठकर ये नहीं चिल्लाया कि लोहिया आपने क्यों हमारे नेता को चपरासी का पोता कहा.

जब अपने ही मंत्री ने कहा गंजे सिर का क्या करूं प्रधानमंत्री जी

भारत की गोलाकर संसद एक और घटनाक्रम की साक्षी बनी. ये किस्सा ऐसा है कि एक बार को सुनकर विश्वास नहीं होगा. 1962 की जंग के बाद जब भारत का अक्साई चिन इलाका चीन के पास चला गया. तो इसे लेकर संसद से सड़क तक जवाहरलाल नेहरू सरकार की काफी आलोचना हुई. संसद में कई दिनों तक भारी हंगामा हुआ. एक रोज बहस के दौरान जवाहर लाल नेहरू ने संसद में बयान दे दिया कि अक्साई चिन में तिनके के बराबर भी घास नहीं उगती, वो तो एक बंजर इलाका है.

ये बयान देने के बाद नेहरू को उम्मीद नहीं थी कि उनकी इस बात का सबसे तीखा विरोध उनका एक मंत्री ही करेगा. ये मंत्री थे कांग्रेस नेता महावीर त्यागी. त्यागी काफी तेज तर्रार कांग्रेस नेता थे. अंग्रेजी फौज में अधिकारी रहे थे और इस्तीफा देकर स्वतंत्रता सेनानी बने थे. फिर आजादी के बाद नेहरू ने उन्हें मंत्री बनाया था.

प्रधानमंत्री नेहरू ने जब अक्साई चिन वाला बयान दिया तो भरी संसद में महावीर त्यागी खड़े हुए और अपना गंजा सिर नेहरू को दिखाने लगे. बोले- 'यहां भी कुछ नहीं उगता तो क्या मैं इस सिर को कटवा दूं या फिर किसी और को दे दूं.'

अपने ही एक करीबी मंत्री के इस जवाब को सुनकर नेहरू हक्के-बक्के रह गए.

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विपक्षी पार्टी का संशोधन स्वीकार कर लिया

हमारी पुरानी संसद का एक और गजब का किस्सा हम आपको सुनाते हैं. एक बार लोकसभा में स्वतंत्र पार्टी के सांसद राजाजी यानी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने एक बिल में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया. सरकार तो कांग्रेस पार्टी की थी वो भी पूर्ण बहुमत की, तो ये संशोधन कैसे पास हो सकता था. संशोधन को अस्वीकार करते हुए नेहरू ने उनसे कहा-  "राजाजी आपके के पास बहुमत तो है नहीं, इसलिए ये संशोधन पास नहीं हो सकता.' राजाजी ने नेहरू की ओर देखकर कहा- "हां जवाहरलाल, बहुमत तो तुम्हारे साथ है, लेकिन तर्क मेरे साथ है." राजाजी की ये बात नेहरू को इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने सदन में मुस्कुराते हुए कहा कि राजाजी की बात सही है और उनका संशोधन स्वीकार कर लिया जाए.

जब इंदिरा को संसद में चमेली कह दिया गया

ये किस्सा एक प्रेम कहानी से जुड़ा है. जिसने 60 के दशक में देश में भूचाल ला दिया था. संसद में भी मुद्दा कई बार उठा. प्रेम कहानी थी रूस के तानाशाह स्टालिन की बेटी स्वेतलाना एलिल्युयेवा और बृजेश सिंह की. कालाकांकर राजघराने के बृजेश सिंह भारत के बड़े कम्युनिस्ट नेताओं में से एक थे. बृजेश अपना इलाज कराने रूस गए थे जहां उनकी मुलाकात स्वेतलाना से हुई. बृजेश को स्वेतलाना से प्रेम हो गया. दोनों ने शादी कर ली. 31 अक्टूबर, 1966 को बृजेश सिंह की मॉस्को में मौत हो गई. स्वेतलाना अपने पति की अस्थियां गंगा में प्रवाहित करने भारत आईं. फिर वो भारत में ही बसना चाहती थीं.

स्वेतलाना और बृजेश सिंह

इसकी एक वजह निकिता ख़्रुश्चेव भी था, उस समय तक निकिता सोवियत संघ (रूस) की सत्ता छोड़ चुका था, लेकिन सरकार में उसकी अच्छी पकड़ तब भी थी. निकिता स्टालिन का धुर विरोधी था. वो स्टालिन के परिवार का नामोनिशान मिटाने पर तुला था. ऐसी स्थिति के बाद भी भारत की तत्कालीन सरकार ने स्वेतलाना के भारत में बसने का विरोध किया. यहां की सरकार को सोवियत संघ की नाराज़गी का डर था.

स्वेतलाना विपक्ष के बड़े नेता राममनोहर लोहिया से मिलीं. लोहिया इस बात से दुखी थे कि भारत ने अपनी बहु को ठुकरा दिया है. लोहिया ने इस मुद्दे पर तब भरी संसद में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चमेली कह दिया था. संसद में स्वेतलाना के पक्ष में लोहिया ने कहा था-

"स्वेतलाना न सिर्फ स्टालिन की बेटी हैं, बल्कि वो बृजेश की पत्नी भी हैं. ये भारतीय हैं शरीर की परिभाषा से भी और मन और चित्त की परिभाषा से भी. मैं उसकी तुलना एक फूल चंपा से कर सकता हूं. मैंने स्वेतलाना को चम्पा कहा और प्रधानमंत्री जो इस समय यहां हैं नहीं, मैं उन्हें विरले किस्म की चमेली कहना चाहूंगा. जब एक चमेली गद्दी पर बैठी हो और तब एक चंपा हमारे देश में शरण ना पाए, वीजा न पाकर वो दर-दर भटकती रहे, ये अच्छी बात नहीं."

इंदिरा गांधी की सरकार के पास लोहिया की बात का कोई जवाब नहीं था. हालांकि, इसके बाद स्वेतलाना अमेरिका चली गईं और वहां रहने लगीं.

इसी मसले से जुड़ा एक किस्सा और भी है, जो काफी समय तक चर्चा में रहा. बताते हैं कि जब लोहिया स्वेतलाना मामले पर बोल रहे थे तो कांग्रेस की एक सांसद तारकेश्वरी सिन्हा ने लोहिया का मजाक उड़ाते हुए कहा कि वो शादीशुदा लोगों की भावनाओं के बारे में कैसे बात कर सकते हैं. जबकि उन्हें इसका कोई अनुभव नहीं है, वो तो कुंवारे हैं. लोहिया मुस्कुराए और उन्होंने तुरंत जवाब दिया- ''तारकेश्वरी, तुमने मुझे मौका ही कब दिया.''

जब ‘रेंकना’ शब्द राज्यसभा में रिकॉर्ड हो गया

हमारी पुरानी संसद का एक और मजेदार किस्सा है. राज्यसभा से जुड़ा. जब एक सांसद ने दूसरे से कह दिया कि रेंक क्यों रहे हो? रेंकना गधे के बोलने को कहते हैं. संसद में इस तरह की अमर्यादित भाषा बोली गई और ये राज्यसभा के रिकॉर्ड में आज भी दर्ज है. सवाल ये कि इसे हटाया क्यों नहीं गया. किस्सा सुनिए आपको खुद पता चल जाएगा.

पीलू मोदी

किस्सा जुड़ा है स्वतंत्र पार्टी के वरिष्ठ नेता पीलू मोदी से. पीलू मोदी गुजरात के गोधरा से आते थे. बहुत हंसमुख और मजाकिया आदत थी इनकी. 1980 की बात है. इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं. राज्यसभा चल रही थी. पीलू मोदी किसी मुद्दे पर बोल रहे थे. ट्रेजरी बेंच की तरफ बैठे थे कांग्रेस के सांसद जेसी जैन. जैन की एक आदत थी कि जब भी कोई बोलता तो वो बीच में टोका-टाकी करने लगते. पीलू मोदी के बोलते समय भी उन्होंने ऐसा ही किया. पीलू को गुस्सा आ गया. वो जैन से अंग्रेजी में बोले- 'स्टॉप बार्किंग' यानी 'भौंकना बंद करो'.

ये सुन जेसी जैन तिलमिला उठे. अपनी सीट पर खड़े हो गए. बोले- 'सभापति जी ये मुझसे कुत्ता कह रहे हैं. ये असंसदीय भाषा है.' राज्यसभा के तत्कालीन सभापति हिदायतुल्लाह बोले- 'पीलू की टिप्पणी गलत है, ये रिकॉर्ड में नहीं जाएगी.' ये सुन जेसी जैन खुश हो गए, और हंसते हुए पीलू की ओर देख धीरे से फिर कुछ बोल दिए. पीलू ये देखकर कहां रुकने वाले थे. उन्होंने अब जैन की ओर इशारा करते हुए अंग्रेजी में कहा- 'ऑल राइट देन, स्टॉप ब्रेइंग' यानी 'रेंकना बंद करो'. पीलू ने इतनी गलत बात कह दी थी, लेकिन इसपर जेसी जैन ने कोई बवाल नहीं किया, क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि 'ब्रेइंग' का मतलब हिंदी में 'गधे का रेंकना' होता है. और इसलिए ये शब्द राज्यसभा की कार्रवाई में हमेशा के लिए दर्ज हो गया.

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