The Lallantop
Advertisement

प्लेन या हेलिकॉप्टर उड़ाने के इन नियमों की अनदेखी बड़ी दुर्घटना करा सकती है

CDS बिपिन रावत के साथ हुए हादसे ने ये सवाल भी खड़ा किया कि क्या पायलट से कोई चूक हुई.

Advertisement
Img The Lallantop
फाइल फोटो. (पीटीआई)
10 दिसंबर 2021 (Updated: 10 दिसंबर 2021, 16:34 IST)
Updated: 10 दिसंबर 2021 16:34 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
CDS बिपिन रावत की हवाई दुर्घटना में हुई मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. कई लोग उनके जाने का विश्वास नहीं कर पा रहे हैं. देश के पहले CDS की इस तरह मौत होने का दुख तो है ही, लेकिन साथ ही ये ताज्जुब भी लोगों को हो रहा है कि आखिर देश के सबसे आधुनिक सैन्य हेलिकॉप्टर Mi-17 V5 में क्या गड़बड़ी आ गई कि चॉपर बुरी तरह क्रैश होकर उसमें सवार CDS बिपिन रावत और उनकी पत्नी समेत सभी लोगों की जिंदगी खत्म कर गया.
हादसे का अब तक कोई स्पष्ट कारण सामने नहीं आया है. केवल आशंकाएं जताई जा रही हैं. उनमें से एक ये भी है कि हो सकता है हेलिकॉप्टर चला रहे पायलट से कोई चूक हुई हो. लेकिन ये केवल आशंका है, असल वजह सामने आना बाकी है.
हालांकि इस आशंका ने हमें याद दिला दिया है कि किसी फ्लाइंग मशीन को उड़ाना मजाक नहीं है, और उसे संभालना तो और भी चुनौतीपूर्ण काम होता है. ये चुनौती तब और बड़ी हो जाती है जब विमान या हेलिकॉप्टर में कोई तकनीकी दिक्कत आ जाए या उड़ान से जुड़े नियमों में कोई चूक हो जाए. इनसे पार नहीं पा पाने का मतलब जान का खतरा हो सकता है. यही वजह है कि फ्लाइंग मशीनें एक सेट ऑफ़ रूल्स पर ही चलती हैं. इन रूल्स या सावधानियों पर से नजर हटी, मतलब दुर्घटना घटी.
तो आज उन कुछ फ्लाइट रूल्स पर बात करेंगे जिनका ध्यान रखते हुए पायलट किसी एयरक्राफ्ट को उड़ाते हैं.

VFR और IFR

ये नियम मोटा-माटी दो कैटेगरी में बंटे हैं- विजुअल फ्लाइट रूल्स (VFR) और इंस्ट्रमेंट फ्लाइट रूल्स (IFR). अलग-अलग देशों में इन नियमों में कुछ फर्क भी है. मौसम, विज़न और देशों की जियोग्राफिक कंडीशन के हिसाब से. लेकिन फिर भी कुछ बेसिक नियम ऐसे हैं जो हर देश के एयरस्पेस में लागू होते हैं. फिर चाहे हवाई जहाज किसी भी तरह का हो. संक्षिप्त में इन नियमों को समझने की कोशिश करेंगे. सबसे पहले जानते हैं कि विजुअल फ्लाइट रूल्स क्या होते हैं. # विजुअल फ्लाइट रूल्स (VFR) इन नियमों के मुताबिक़ प्लेन उड़ाने के लिए सबसे ज़रूरी है कि पायलट कॉकपिट के बाहर स्पष्ट रूप से देख पा रहा हो ताकि एयरक्राफ्ट या प्लेन की ज़मीन से ऊंचाई और डायरेक्शन तय की जा सके और रूट की रुकावटों से बचा जा सके. इसके अलावा सरकारी एजेंसीज़ भी VFR फ्लाइट के लिए कुछ मानक बनाती हैं ताकि उड़ रहे हवाई जहाज की बादलों से दूरी और उसकी विजिबिलिटी वगैरह तय रहे.
विमान का कॉकपिट, जहां पायलट्स रहते हैं (प्रतीकात्मक फोटो - आज तक)
विमान का कॉकपिट, जहां पायलट्स रहते हैं (प्रतीकात्मक फोटो - आज तक)


विजुअल मेटियोरोलॉजिकल कंडीशंस का मतलब है मौसम से जुड़ी हुई वो स्थितियां जिनमें VFR रूल्स के मुताबिक़ प्लेन उड़ाया जा सकता हो. इनके नियम भी अलग-अलग देशों में अलग-अलग हो सकते हैं. माने ये मौसम पर भी निर्भर करता है कि मिनिमम विजुअल रेंज क्या रहेगी, बादलों से दूरी कितनी रहे, ज़मीन से ऊंचाई कितनी हो.
कुछ देशों में ख़ास परिस्थितियों में कुछ रेस्ट्रिक्शन के साथ VFR रूल्स के तहत ही रात में भी प्लेन उड़ाने की अनुमति दे दी जाती है. लेकिन ऐसे मौकों पर प्लेन उड़ाने वाले पायलट स्पेशली ट्रेंड होते हैं. और नियम भी कुछ सख्त होते हैं. अन्यथा रात में सारी फ्लाइट IFR रूल्स के मुताबिक ही चलती हैं.
प्रतीकात्मक फोटो - (आज तक)
प्रतीकात्मक फोटो - (आज तक)


VFR पायलट पर ये ज़िम्मेदारी होती है कि वो खुद रास्ते की रुकावटों और दूसरे प्लेन्स को देखे और उनसे बचे. पायलट को ये भी तय करना होता है कि वो बाकी प्लेन्स से अलग रूट रखे. एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल यानी ATC ऐसे हवाई जहाज़ों के रूट या ऊंचाई खुद तय नहीं करता.
हालांकि अमूमन ऐसे प्लेन्स में एक Transponder डिवाइस होती है जिसकी मदद से ATC रडार पर ऐसे प्लेन की आइडेंटिफिकेशन करता रहता है, ताकि इसे दूसरे प्लेन से दूर रखा जा सके. लेकिन जब VFR मोड में उड़ाए जा रहे प्लेन एयरपोर्ट पर लैंड करने वाले होते हैं तो ATC की तरफ़ से उन्हें इंस्ट्रमेंट फ्लाइट रूल्स के मुताबिक़ क्लियरेंस लेना पड़ता है. कई बार आपने सुना होगा कि हवाई जहाज लैंडिंग से पहले काफ़ी देर एयरपोर्ट के आस-पास चक्कर काटता रहा, उसके बाद लैंड हुआ.
ज्यादातर सर्दियों में मौसम ख़राब होने पर विसिबिलिटी कम रहती है (प्रतीकात्मक फोटो - इंडिया टुडे)
ज्यादातर सर्दियों में मौसम ख़राब होने पर विसिबिलिटी कम रहती है (प्रतीकात्मक फोटो - इंडिया टुडे)


अगर किसी पायलट के पास इंस्ट्रमेंट रेटिंग नहीं है, यानी वो स्पेशली ट्रेंड नहीं है और उसके पास सिर्फ प्राइवेट पायलट सर्टिफिकेट या कमर्शियल पायलट सर्टिफिकेट ही है, तो वो इंस्ट्रमेंट फ्लाइट रूल्स के हिसाब से हवाई जहाज नहीं उड़ा सकता. और ऐसे पायलट्स के लिए दिक्कत तब होती है जब अचानक मौसम ख़राब हो जाए.
उदाहरण के लिए, अगर एयरपोर्ट के ऊपर 1000 फीट से भी कम ऊंचाई पर बादल आ जाएं तो VFR मोड में चल रही एक फ्लाइट को लैंडिंग के लिए एयरपोर्ट से IFR रूल्स के मुताबिक क्लियरेंस लेना होगा. क्लियरेंस न मिलने की स्थिति में उसके पास तीन विकल्प बचेंगे. एक, या तो वो किसी ऐसे एयरपोर्ट पर जाए जहां विजुअल मेटियोरोलॉजिकल कंडीशन हों यानी VFR रूल्स के मुताबिक मौसम ठीक हो. दूसरा उसे इमरजेंसी डिक्लेयर करनी पड़ सकती है. और तीसरा, क्लियरेंस के बिना ही प्लेन लैंड कराना पड़ सकता है. ऐसे में उसके खिलाफ़ इन्क्वारी भी हो सकती है.
कई बार रनवे खाली न होने पर भी लैंडिंग के लिए एयरपोर्ट से क्लीयरेंस नहीं मिलता , प्रतीकात्मक फोटो (आज तक)
कई बार रनवे खाली न होने पर भी लैंडिंग के लिए एयरपोर्ट से क्लीयरेंस नहीं मिलता , प्रतीकात्मक फोटो (आज तक)


यानी विजुअल फ्लाइट रूल्स को मोटा-माटी समझें तो ये कि सामान्य मौसम की स्थितियों में फ्लाइट VFR मोड में उड़ सकती है. लेकिन जब VFR रूल्स के मुताबिक किसी फ्लाइट को ऑपरेट करने में खतरे की संभावना हो, पायलट साफ़ न देख पा रहा हो तब IFR रूल्स के तहत ही फ्लाइट उड़ाई जाती है. इंस्ट्रमेंट फ्लाइट रूल्स (IFR) इन नियमों के बारे में आप अब तक थोड़ा बहुत समझ गए होंगे. विजुअल मेटियोरोलॉजिकल कंडीशंस से नीचे की स्थितियां, यानी जब मौसम VFR मोड में फ्लाइट उड़ाने लायक न हो, तब IFR मोड में फ्लाइट उड़ाई जा सकती है. यानी ख़राब मौसम का मतलब ये नहीं है कि फ्लाइट ऑपरेशन नहीं होंगे. IFR मोड में प्लेन उड़ाया जा सकता है लेकिन सिर्फ तब, जब ख़तरा न हो और फ्लाइट सेफ़ रहे.
ये तो मौसम की बात है. दूसरा पैमाना है समुद्र स्तर से ऊंचाई. सी-लेवल से 18 हजार फीट से लेकर 60 हजार फीट तक की ऊंचाई पर उड़ने वाले हवाई जहाज भी IFR के हिसाब से ही उड़ते हैं. VFR पायलट्स इस क्लास में फ्लाइट नहीं उड़ा सकते. इमरजेंसी की स्थिति में भी नहीं. हां एक अपवाद सेलप्लेन्स और ग्लाइडर्स का है. जो एयर स्पोर्ट्स में इस्तेमाल होते हैं. माउंटेन रेंज में उड़ने वाले ये ग्लाइडर्स आकार में छोटे और हल्के होते हैं और VFR रूल्स के तहत ही क्लास A के एयरस्पेस में उड़ान भर सकते हैं.
रफाएल फाइटर प्लेन (फोटो -आज तक)
रफाएल फाइटर प्लेन (फोटो -आज तक)


क्लास A की फ्लाइट के पायलट्स और एयरक्राफ्ट का साजो-सामान भी IFR रूल्स के मुताबिक ही होता है. कई देशों में कमर्शियल एयरलाइनर्स IFR के मुताबिक ही ट्रैवेल करते हैं. इंस्ट्रमेंट्स पायलट्स की ट्रेनिंग और विशेषज्ञता कमर्शियल पायलट्स से कहीं बेहतर होती है. क्रॉस कंट्री फ्लाइट उड़ाने वाले पायलट्स सामान्यतः IFR पायलट्स ही होते हैं. ऐसी फ्लाइट्स के पायलट्स को अपना फ्लाइट-प्लान पहले से तैयार रखना होता है और एयर ट्रैफिक कंट्रोल और एयरपोर्ट को इस बारे में डिटेल्ड इनफार्मेशन देनी होती है.
हवाई जहाज़ों की उड़ान के इन नियमों के अलावा भी कुछ प्रचलित बातें हैं.
# हर टेक ऑफ वैकल्पिक है और हर लैंडिंग मैन्डेटरी. यानी हवाई जहाज उड़ाने से पहले लैंड करने से जुड़े सुरक्षा नियमों का ध्यान ज़रूर रखना चाहिए.
# उड़ान खतरनाक नहीं है, प्लेन का क्रैश होना खतरनाक है.
# फ्यूल सिर्फ तब ज्यादा होता है जब प्लेन में आग लगती है. उसके पहले तक हमेशा फ्यूल को कम मानना चाहिए.
# ऊंचाई को लेकर संदेह हो तो उसी ऊंचाई पर बने रहें जहां आप हैं, कम से कम वहां किसी चीज़ से टकराने का ख़तरा नहीं है.
# अच्छी लैंडिंग तब है जब आप सुरक्षित बच जाएं और सबसे अच्छी लैंडिंग तब जब प्लेन का दोबारा इस्तेमाल किया जा सके.
# लैंडिंग के वक़्त प्लेन का ज़मीन से जितना ज्यादा एंगल बनेगा, खतरा भी उतना ही ज्यादा रहेगा.
# बादलों से दूर रहें, कई बार सफ़ेद सी दिखने वाली कोई चीज़ बादल न होकर दूसरा कोई प्लेन या कोई पहाड़ भी हो सकता है.
# पुराने पायलट भी हैं और साहसी पायलट भी हैं, लेकिन पुराने और साहसी पायलट नहीं हैं.
# और आख़िरी बात कि अच्छे जजमेंट अनुभव से आते हैं, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि अनुभव ज्यादातर बुरे जजमेंट से आते हैं.

thumbnail

Advertisement

Advertisement