नाज़ो धरीजो, वो अकेली लड़की जो 200 बंदूकधारियों से भिड़कर जीत गई
कहानी फ़िल्मी तो है ही, इस पर फिल्म भी बन गई है.
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'माई प्योर लैंड' फिल्म का एक सीन. (सोर्स: यूट्यूब)
ऐसा फिल्मों में होता है. ऐसा सिर्फ फिल्मों में ही होता है. अब तक तो हम यहीं समझते आए थे. ऐसी असाधारण लड़ाई किसी फ़िल्मी हीरो के ही बस की बात है. क्योंकि उसकी तरफ डायरेक्टर होता है. वो चाहे तो अकेले आदमी से लाख भर दुश्मन मरवा दे.
एक फिल्म आई है. पाकिस्तानी फिल्म. 'माई प्योर लैंड'. इंग्लैंड में रहने वाले सैम मसूद ने बनाई है. वहां तो दो महीने पहले ही रिलीज़ हो गई, लेकिन पाकिस्तान में अब जा के रिलीज़ हुई है. हमें इसका ट्रेलर दिलचस्प लगा. ट्रेलर में एक जगह 'बेस्ड ऑन ट्रू स्टोरी' लिखा देखकर हमारी उत्सुकता जाग गई. हमने खोजबीन की. जो कहानी निकलकर सामने आई, उसने हमें फ्लैट कर दिया.ये तो फिल्म से भी ज़्यादा रोमांचक मसला निकला. फिरंगियों की उस कहावत पर यकीन पुख्ता हो गया कि 'ट्रुथ इज़ स्ट्रेंजर दैन फिक्शन'. सच में कभी-कभी सच्चाई कल्पना से ज़्यादा विचित्र होती है.
पहले आप ट्रेलर देख लीजिए. फिर किस्सा बताते हैं.
खानदानी दुश्मनी की फ़िल्मी कहानी
बॉलीवुड की मेहरबानी से हमने ऐसी कई फ़िल्में झेल ली हैं, जिनमें दो खानदानों के बीच पीढ़ी-दर-पीढ़ी मार-काट चलती आई है. इस सच्ची कहानी के मूल में भी ऐसा ही कुछ किस्सा है. नाज़ो के पिता हाजी खुदा बख्श का अपने भाई-बंधुओं से ज़मीन का झगड़ा था. दरअसल खुदा बख्श के पिता ने चार शादियां की थीं. ज़ाहिर है जायदाद के बंटवारे का बखेड़ा खड़ा होना ही था. हुआ भी.बड़े वाले धरीजो की मौत के बाद तो बाकायदा जूतियों में दाल बंटने लगी. एक ही परिवार के मेंबर एक दूसरे के ख़ून के प्यासे हो गए. खुदा बख्श की तीन बेटियां और एक बेटा था. नाज़ो बहनों में सबसे बड़ी हैं.
ज़मीन के मामले में अक्सर रिश्तेदार कमीन ही निकलते हैं
अपने पिता की मौत के बाद खुदा बख्श ने उतनी ज़मीन अपने अंडर ले ली, जितनी पर वो अपना हक़ समझता था. ये बात बाकियों को रास नहीं आई. आए दिन झगड़े होने लगे. मारपीट, सर-फुटव्वल, गोली-बारी सब होता रहा. सामने वाली पार्टी ने अपने पॉलिटिकल कनेक्शंस का सहारा लिया. नाज़ो के इकलौते भाई सिकंदर को पुलिस ने एक फेक एनकाउंटर में मार गिराया. खुदा बख्श पर झूठा इल्ज़ाम लगाकर उसे गिरफ्तार कर लिया गया. जेल में बंद कर दिया गया. झूठे-सच्चे कई सारे केस थोप दिए.अब नाज़ो के घर में सिर्फ महिलाएं बची थीं.
बाप ने बचपन से सिखाया था हथियारों से खेलना
खुदा बख्श ने शुरू से ही अपनी बच्चियों को आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाया था. यूं तो पाकिस्तान के सिंध प्रांत का वो इलाका पितृसत्ता का एवरेस्ट है. वहां लड़कियों का दखल महज़ रसोई तक सीमित है. शिक्षा के नाम पर कुरआन की तालीम. बस इतना ही. ऐसे माहौल का हिस्सा होने के बावजूद खुदा बख्श ने अपनी लड़कियों को हर मुमकिन तरीके से पढ़ाया.
नाज़ो धरीजो, डरना तो जैसे सीखा ही नहीं. (इमेज: आयशा मीर)
रिश्तेदारी के एक कज़न से घर में उर्दू-इंग्लिश की पढ़ाई की व्यवस्था कराई. लेकिन जो सबसे ख़ास बात उसने अपनी बेटियों को सिखाई, वो है आत्मरक्षा की कला. उसने अपनी बेटियों को बंदूक चलाना सिखाया. छोटी-मोटी गन नहीं. कलाश्निकोव राइफल.
ट्रिब्यून को दिए एक इंटरव्यू में नाज़ो कहती है,
"मैंने बहुत पहले सीख लिया था कि कुछ चीज़ें सिर्फ बंदूक के दम पर सॉल्व की जा सकती हैं. कुछ लोगों को बस यही एक भाषा समझ में आती है."
वो रात जिसने नाज़ो को हीरो बना दिया
घर के बड़े बेटे की मौत और कर्ता-धर्ता का जेल में होना विरोधी पार्टी के हौसले बुलंद कर गया. एक रात तकरीबन 200 हथियारबंद लोगों ने नाज़ो के घर पर हमला बोल दिया. उन्होंने सोचा होगा कि औरतें ही तो हैं. झापड़ मारकर कब्ज़ा लेंगे ज़मीन. नाज़ों ने उन्हें ग़लत साबित किया.
नाज़ो के पास सिर्फ दो चीज़ें थी. अपनी कलाश्निकोव राइफल और बहनों का साथ. हालात सिर्फ एक फ्रंट पर उसका साथ दे रहे थे. उसे घर की ओट हासिल थी, हमलावर खुले में थे. एक और चीज़ उसके पक्ष में गई. वो ये कि हमलावरों ने उसे हल्के में ले लिया था. घर के आसपास के गेहूं के खेतों में छिपकर हमलावरों ने गोलियों की बौछार कर दी. नाज़ो जवाब देती रही. लेकिन हार नहीं मानी.
वो ट्रिब्यून को बताती है,
"हम पर गोलियों की बारिश सी हो रही थी. मैं जवाब देती रही लेकिन मेरे पास सिर्फ एक राइफल थी. और गोलियां भी बहुत कम थी. हम लड़ते रहें. इस सोच के साथ कि जब हारने की नौबत आएगी, खुद को गोली मार लेंगे. सम्मान से ज़्यादा बड़ी चीज़ कोई नहीं. जान भी नहीं."इस अप्रत्याशित जवाबी हमले से हमलावर चकरा गए. वो फायरिंग करते रहे लेकिन उनका घर में घुसने का हौसला न हुआ. सुबह होते-होते सब भाग गए. अगले दिन पूरे इलाके में नाज़ो और उसकी बहनों की बहादुरी के चर्चे थे. आनेवाले दिनों में ये किस्सा इतना मशहूर हुआ कि नाज़ो को घर-घर पहचाना जाने लगा.
पांच साल बाद नाज़ो
उस घटना के पांच साल बाद भी ज़मीन पर अब भी नाज़ो का ही कब्ज़ा है. वो वहां कपास, गेंहू और चावल उगाती है. इलाके में उसका पूरा सम्मान है. लोग उसे अपना आइडियल मानते हैं. नाज़ो आजकल राजनीति में जाने की फ़िराक में है. उसने पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ (PMLN)की सदस्यता भी ले ली है. और अब उसकी ज़िंदगी पर ये फिल्म बनी है. अपन तो देखने वाले हैं.
नाज़ों की भूमिका में पाकिस्तानी एक्ट्रेस सुहाई अबरो.
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