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ये एथनॉल ब्लेंडिंग क्या बला है, जिससे पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें आधी हो जाएंगी?

सरकार का प्लान है कि भारत में एथनॉल ब्लेंडिंग 2025-26 से शुरू होगी.

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क्या पेट्रोल के वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत भी मौजूद हैं? (सांकेतिक तस्वीर - आजतक)
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20 जनवरी 2023 (Updated: 20 जनवरी 2023, 06:48 PM IST) कॉमेंट्स
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पेट्रोल को लेकर हर दिन सुर्ख़ियां बनती हैं. कभी राष्ट्रीय, कभी अंतरराष्ट्रीय. विपक्ष के लिए ‘तेल का दाम’ (petrol-diesel prices) पुराना मुद्दा है. चाहे विपक्ष में जो कोई भी हो.

जब तेल की क़ीमतों में आग लगी हो, ऐसे में सरकार कितनी देर तक उपेक्षा करना अफ़ोर्ड कर सकती है? देश में एथेनॉल के साथ मिले हुए तेल (ethanol blended petrol) का प्रयोग शुरु हो गया है. पहले 5% मिलाया जाता था, जो अब 10% तक पहुंच चुका है. अब सरकार नैशनल बायो-फ्यूल पॉलिसी को लागू कर दो नई तरह की पेट्रोल लाने वाली है. ई-20, जिसमें 20% एथनॉल और 80% पेट्रोल होगा. और ई-80, जिसमें 80% एथनॉल और 20% पेट्रोल होगा. 

पहले भी, जुलाई 2021 में ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर नितिन गडकरी का बयान आया था कि आने वाले दिनों में सरकारी लोगों को सुविधा देगी कि वे अपने वाहनों में ईंधन के रूप में एथनॉल डलवा सकें. तो क्या एथनॉल, पेट्रोल का विकल्प बनेगा? लेकिन अगर वो पेट्रोल का विकल्प है, तो पहले ही क्यूं नहीं बन गया? और, तीसरी बात कि क्या एथनॉल के लिए गाड़ी के इंजन को भी मॉडिफ़ाई करना पड़ेगा? 

जब नितिन गडकरी का ये बयान आया था, तब हमारे साथी दर्पन ने इन सारे सवालों के आसान भाषा में जवाब खोजे थे.

क्या है एथनॉल?

एथनॉल के बारे में हमें सुजीत सौरभ ने बताया. सुजीत IIT में केमिकल साइंस और टेक्नोलॉजी की पढ़ाई कर चुके हैं. इन दिनों UPSC की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने बताया-

एथनॉल, अल्कोहल फ़ैमिली का कंपाउंड है. अल्कोहल फ़ैमिली को आम भाषा में शराब भी कह देते हैं, लेकिन ये काफी डायवर्सिफ़ाई है. इसके कई रूप हो सकते हैं. ये OH फ़ंक्शनल ग्रुप होल्ड करते हैं, तो एथनॉल भी इसी अल्कोहल फ़ैमिली से आता है. C2H5OH. ये ज्वलशील होता है. यानी जब ये ऑक्सिजन की उपस्थिति में जलता है तो कार्बनडाई ऑक्साइड और हाइड्रोजन रिलीज़ करता है. तब ये ईंधन की तरह काम करता है.

कुछ चीज़ें आसान भाषा में समझें. बचपन में अगर केमिस्ट्री नहीं पढ़ी तो भी समझ में आ जाए, ऐसे समझाने का प्रयास रहेगा. देखिए, कहा जाता है दुनिया में दो तरह के लोग हैं, एक जिन्होंने ताजमहल देखा है और दूसरा जिनका जीवन व्यर्थ है. हालांकि ये कितना सही या कितना ग़लत है, कहना मुश्किल है. लेकिन ये सौ फ़ीसदी सत्य है कि दुनिया सिर्फ़ दो चीज़ों से मिलकर बनी है. दो चीज़ें कौन सी? ऑर्गेनिक यौगिक (कंपाउंड) और इन-ऑर्गेनिक यौगिक (कंपाउंड).

मोटा मोटी, ऑर्गेनिक यौगिक वो जिसमें कार्बन (और हाइड्रोजन) हो. और, इन-ऑर्गेनिक यौगिक वो जिसमें कार्बन न हो. या कहें कार्बन का परमाणु न हो.

अब देखिए इंट्रेस्टिंग बात कि कार्बन के अलावा दुनिया भर में कई और परमाणु हैं. अभी तक कम से कम 110-120 परमाणु मिल चुके हैं. लेकिन फिर भी सिर्फ़ कार्बन से बनने वाले यौगिकों का अलग से अध्ययन किया जाता है. क्यों? क्योंकि अव्वल तो इनकी संख्या इनऑर्गेनिक कंपाउंड्स से कहीं ज़्यादा है, और दूसरा ये प्रकृति में भी इनऑर्गेनिक कंपाउंड्स कहीं अलग हैं. ऑर्गेनिक कंपाउंड्स की संख्या ज़्यादा क्यों है?

भई आप सोशली एक्टिव लोगों को नहीं देखते? वो FB, ट्विटर इंस्टा पर ब्लू टिक वाले. कितने फ़ॉलोअर होते हैं उनके. मेरे-आपके जैसे सौ भी आ जाएं, तो भी हमारा कुल योग उनके फ़ॉलोअर्स से कम ही बैठेगा. वैसे ही सामान्य भाषा में बताएं तो कार्बन भी एक केमिकली एक्टिव परमाणु है. हर किसी को अपना दोस्त बना लेता है. एटॉमिक टेबल में अपनी स्थिति और अपनी विशेष आणविक संरचना के चलते. चाहे इसके जैसे कई परमाणु हैं, जैसे सिलिकॉन लेकिन फिर भी कार्बन जैसी बॉन्डिंग किसी की नहीं. ये पाया भी अच्छी-ख़ासी मात्रा में जाता है. प्राकृतिक रूप से भी, जीवन का अर्थ भी ऑर्गेनिक है (इसी के चलते ही आप ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग या ‘ऑर्गेनिक रीच’ जैसे नाम सुनते आए हैं. इस सबकी बात किसी और दिन. लेकिन आप अभी बस ये जान लीजिए कि) अगर हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, आयरन सब पैरिस, लंदन, न्यूयॉर्क हैं तो अकेले कार्बन ताजमहल. कम से कम उस संदर्भ में जिसकी बात हमने शुरू में की थी.

कहने का मतलब ये कि

तो जब हम कहते हैं कि एथनॉल एक ऑर्गेनिक कंपाउंड है, तो इसका मतलब यही हुआ न कि अव्वल तो इसमें कार्बन और हाइड्रोजन हैं, दूसरा इसके प्राकृतिक और जीवित पदार्थों में पाए जाने की संभावना काफ़ी है. और ऐसा ही है भी. ये गन्ने, भुट्ठे, पेड़ की छाल जैसे कई बोटेनिकल रिसोर्सेज़ से निकाला जा सकता है.

और फिर जब हम कहते हैं कि ये एथनॉल अल्कोहल फ़ैमिली ऑफ़ कंपाउंड से आता है, तो इसका मतलब ये कि इसमें कम से कम एक कार्बन परमाणु से OH (ऑक्सिजन और हाइड्रोजन) परमाणु जुड़े होते हैं. 

और अंततः जब हम कहते हैं कि ये ईंधन है, तो इसका मतलब ये कि इसको जलाने पर ऊर्जा मिलती है. अब आप कहेंगे कि वो तो काग़ज़ या लकड़ी को जलाने पर भी मिलती है. तो जान लीजिए कि हर वो चीज़ जिसको जलाने से एनर्जी उत्सर्जित होती है, वो ईंधन है. यानी काग़ज़, लकड़ी भी. लेकिन ये ईंधन का बहुत जनरलाइज्ड रूप है. अभी जिस स्पेसिफ़िक शब्द ‘ईंधन’ या फ़्यूल की बात हम कर रहे हैं, उसमें शामिल हैं तेल, LPG, एथनॉल, मिट्टी का तेल वग़ैरह. क्यूंकि इनके जलने से काग़ज़-लकड़ी वग़ैरह की तुलना में कहीं ज्यादा एनर्जी निकलती है. कितनी?

इसके लिए पैमाना है: कैलोरिफ़िक वैल्यू

होने को तो कैलोरिफ़िक वैल्यू किसी भी नियतांक में नापी जा सकती है, जैसे, ‘किलोजूल प्रति किलो’, ‘किलोवाट प्रति घन मीटर’. लेकिन चलिए हम सुविधा के लिए ‘मेगाजूल प्रति किलो’ यूज़ कर लेते हैं. ‘MJ/Kg’ मतलब किसी ईंधन की एक किलो मात्रा कितने मेगाजूल ऊर्जा उत्पन्न कर रही है. यूं जितनी ज़्यादा किसी ईंधन की कैलोरिफ़िक वैल्यू, वो उतना अच्छा ईंधन. मतलब ऊर्जा प्रदान करने के संदर्भ में.

अच्छा, आपने कैलोरी और किलो कैलोरी तो हेल्थ और सेहत वाले सेक्शन में भी सुना होगा, तो समझ लीजिए वहां पर भी इसी कैलोरिफ़िक वैल्यू की बात हो रही. या फिर ये समझ लीजिए कि इसी संदर्भ में बात हो रही. दोनों के मूल में ‘ऊर्जा’ ही है. 

आप एथनॉल को सिंगल फ़्यूल के रूप में यूज़ नहीं कर पाएंगे क्योंकि एथनॉल की कैलोरिफ़िक वैल्यू बहुत कम है.

कितनी कम है? जहां डीज़ल की कैलोरिफ़िक वैल्यू 40 से 45 MJ/Kg तक है, वहीं एथनॉल की कैलोरिफ़िक वैल्यू 26 से 27 MJ/Kg ही है. साफ़ है कि इसे अगर डीज़ल, पेट्रोल वग़ैरह के साथ मिक्स किया जाए तो ही फ़ायदा है या बचत है.

मतलब ये तो साफ़ हो गया कि बेस ईंधन तो पेट्रोल-डीज़ल ही रहेगा, लेकिन सवाल ये है कि इस पिज़्ज़ा बेस में टॉपिंग कितनी रखी जाए, मतलब पेट्रोल में कितना एथनॉल मिलाया जाना चाहिए?

# फ़्लेक्स इंजन

देखिए एथनॉल की क़ीमत अभी है 60-62 रुपये प्रति लीटर, जबकि पेट्रोल की फिलहाल 100 से ऊपर है. तो क़ीमत और कैलोरिफ़िक वैल्यू का ब्रेक ईवन बनता है क़रीब 30-40% एथनॉल मिक्स पेट्रोल पर. 8.5 प्रतिशत एथनॉल तो अभी भी मिला लेते हैं पेट्रोल में, लेकिन उससे ज़्यादा के लिए चाहिए होंगे ‘फ़्लेक्स इंजन’ जिनकी बात नितिन गडकरी ने की.
‘फ़्लेक्स इंजन’ को आसान भाषा में ऐसे समझें कि जो सिर्फ़ पेट्रोल और डीज़ल ही नहीं मिक्स ईंधन को भी सपोर्ट करते हैं. तभी तो इसका नाम 'फ्लेक्सिबिलिटी' से जुड़ा हुआ है. ‘फ़्लेक्स इंजन’ के बारे में गडकरी ने कहा कि अमेरिका, ब्राज़ील और कनाडा में BMW, मर्सिडीज़ और टोयोटा की गाड़ियों में ये लगा रहता है. और इनको किसानों का भी बैकअप प्राप्त है.
मग़र किसानों का क्यूं? वो इसलिए क्योंकि एथनॉल मक्के, गन्ने, चावल, जौ वग़ैरह से निकाला जाता है. हालांकि सबसे मुख्य स्रोत है मक्का.

तस्वीर रीसेंट है. 13 जुलाई की. ठाणे की. जहां यूथ कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ता बढ़ते पेट्रोल के दामों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं. (PTI)
तस्वीर 13 जुलाई की है, ठाणे की. जहां यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने पेट्रोल के बढ़ते दामों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया. (PTI)

हालांकि ऊपर की बातों से आपको कई ऐसे सवालों के उत्तर मिल गए होंगे जो हमने शुरू में पूछे, फिर भी सवाल-जवाब फ़ॉर्मेट में इन्हें अच्छे से समझते हैं.

#पहला सवाल: पेट्रोल में एथनॉल मिलाने का कितना फायदा है?

देखिए पेट्रोल का दाम है 100 रुपए/लीटर. एथनॉल का दाम है 60 रुपए/लीटर. लेकिन फिर पेट्रोल की परफ़ॉर्मेन्स भी एथनॉल से बेहतर ठहरी (वही कैलोरिफ़िक वैल्यू वाली बात). तो दोनों की तुलना को ऐसे समझें: आपको मार्केट में सेम क्वालिटी के चावल अलग-अलग रेट पर मिल रहे हैं, एक में कंकड़ हैं, दूसरे में नहीं हैं. जिसमें कंकड़ हैं, उसका रेट 60 रुपए/किलो है. और जिसमें नहीं हैं, उसका रेट 100 रुपए/किलो. तो अगर कोई पूछता है कि 'दोनों में से किस चावल से फ़ायदा होगा?' तो आपके लिए कई चीज़ें जानना ज़रूरी होगा:

# 60 रूपये वाले चावल में कितने कंकड़ हैं? यानी उससे कितना यील्ड (चावल) निकलेगा. अब इन चावलों की एथनॉल-पेट्रोल से एनालॉजी बिठाइए. तो सवाल यही होता है कि चलिए ठीक है एथनॉल-पेट्रोल से सस्ता है लेकिन क्या एक लीटर पेट्रोल से जितनी ऊर्जा निकलती है, उतनी ऊर्जा के लिए सवा लीटर या डेढ़ लीटर एथनॉल तो नहीं जलाना पड़ रहा?

अब अगर माना कि पहले उत्तर के हिसाब से भी कंकड़ वाले चावल सस्ते पड़ रहे हैं तो भी क्या ऐसा सिर्फ़ 'प्रथमदृष्टया' तो नहीं? मतलब कंकड़ वाले चावल को बीनने में समय भी तो लगेगा. रिसोर्स लगेंगे. और टाइम इज़ मनी कहने वाले तो पहले ही इस चावल को नकार देंगे. ऐसे ही पेट्रोल की तुलना में एथनॉल पहली नजर में तो सस्ता विकल्प लग रहा है, लेकिन सवाल ये कि इसका आपके इंजन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? सवाल ये भी कि क्या कहीं इंजन में कुछ मॉडिफ़िकेशन तो नहीं कराना पड़ेगा? और क्या इस सबके बावज़ूद भी एथनॉल या एथनॉल मिक्स्ड पेट्रोल सस्ता विकल्प है?

देखिए पहले और दूसरे सवाल को तो हम आगे लेंगे. लेकिन तीसरे सवाल का उत्तर मुश्किल है. क्योंकि इतने ढेर सारे वैरिएबल्स हैं. एथनॉल को पेट्रोल के विकल्प के रूप में नहीं बल्कि एथनॉल-पेट्रोल का मिक्सचर यूज़ किया जाएगा. तो ये तुलना बिना कंकड़ वाले चावल और कंकड़ वाले चावल के बीच की नहीं, ये तुलना दरअसल 'कंकड़ वाले चावल’ और 'बिना कंकड़ वाले चावल और कंकड़ वाले चावल के मिक्सचर’ के बीच है.
हालांकि एक ‘फ़ेयर आइडिया’ हमें मिलता है एक स्टेटिस्टिक्स से कि-

जब E20, उन वाहनों में डाला जाता है, जो E0 के लिए बनाए और E10 के लिए कैलिब्रेट किए गए हैं तो ईंधन की एफ़िशिएंशी 6-7% तक कम हो जाती है.

यहां पर E-20 मतलब ऐसा पेट्रोल जिसमें 20% एथनॉल हो. तो यूं E0 और E10 ऐसा पेट्रोल जिसमें 0% और 10% एथनॉल हो. 

यूं अगर कोई वाहन सिर्फ़ पेट्रोल से चलने के लिए बनाया गया है, लेकिन उसे 10% एथनॉल मिक्स पेट्रोल के लिए कैलिब्रेट/मॉडिफ़ाई कर दिया जाए, और उसमें 20% एथनॉल मिक्स पेट्रोल डाला जाए तो जो गाड़ी एक लीटर में 15 किलोमीटर चलती थी, वो (मोटा-मोटी) 14 किलोमीटर चलेगी.

ये भी कि जब एथनॉल की माँग बढ़ेगी तो क्या गारंटी है कि वो भी धीरे-धीरे महंगा न होता जाएगा? और इससे उपजता है दूसरा सवाल.

हमारे पास एथनॉल है कितना?

देखिए एथनॉल की भारत में उपलब्धता का क्या स्टेट्स है, ये जानने के लिए हमें नीति आयोग का एक PDF पढ़ना पड़ा. जिससे मोटा-मोटी जो समझ में आता है वो ये कि:

वर्तमान में भारत की एथनॉल उत्पादन क्षमता 426 करोड़ लीटर (शीरा-आधारित) और 258 करोड़ लीटर (अनाज-आधारित) है. इसे बढ़ाकर क्रमशः 760 करोड़ लीटर और 740 करोड़ लीटर करने का प्रस्ताव है. इतने एथनॉल से न केवल 1016 करोड़ लीटर EBP (एथनॉल बेस्ड पेट्रोल) का उत्पादन हो पाएगा बल्कि बचे हुए 334 करोड़ लीटर एथनॉल का अन्य कार्यों के उपयोग किया जा सकेगा.

अब सवाल है कि क्या ये पर्याप्त है?  फ़िगर्स में न भी पड़ें तो भी ये साफ़ है कि अभी हमारा उत्पादन ‘ऊँट के मुंह में जीरा’ वाली कैटिगरी में न आए तो भी ‘दिल्ली दूर है’ वाली कैटिगरी में तो आता ही है. इसलिए ही ये सवाल जायज़ हो जाता है कि मांग के बढ़ने पर कहीं एथनॉल या EBP भी तो महंगा नहीं होता जाएगा. और इसका उत्तर छुपा है भविष्य में. हालांकि इस सवाल के उत्तर में ऑटो एक्सपर्ट टूटू धवन कहते हैं:

एथनॉल खेती का ‘बाई प्रोडक्ट’ है तो ये काफ़ी आसानी से और सस्ते में प्रोड्यूस किया जा सकता है. मतलब एथनॉल का उत्पादन कोई ‘बिग डील’ नहीं है. गांव-गांव में इसका उत्पादन होता है. बेशक लोकल स्तर पर यूज़ करने के लिए ही सही. और जैसे-जैसे मांग बढ़ेगी, उत्पादन भी बढ़ता जाएगा.

वैसे टूटू धवन की बात को कंफ़र्म करती है 14 जुलाई, 2021 की एक ख़बर, जिसके अनुसार BPCL तेलंगाना में एक एथनॉल प्लांट लगाने जा रहा है. और इसमें वो एक हज़ार करोड़ का निवेश करेगा.

# तीसरा सवाल: क्या इंजन की परफॉरमेंस पर फर्क पड़ेगा?

ये सवाल हमने टूटू धवन के सामने रखा, तो उन्होंने बताया-

गाड़ियों में ECM लगा होता है. इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल मॉडयूल. जो EBP के मिक्सचर के हिसाब से टॉलरेंस सेट कर लेगा. लेकिन अगर रेश्यो बहुत ज़्यादा ख़राब हो जाए, तब इंजन में ख़राबी आने की आशंका रहती है. वो ओवरहीट होता है.

इसी से जुड़े एक पॉइंट, फ़्लेक्स इंजन के बारे में मिस्टर धवन बताते हैं-

आजकल तो फ़्लेक्स इंजन का नाम इतना सुनने में नहीं आता. लेकिन आज से 50-60 साल पहले पेट्रोल में कैरोसिन मिक्स करके इंजन में डाला जाता था. इसमें पेट्रोल की मात्रा बहुत कम और कैरोसिन की मात्रा बहुत ज़्यादा होती थी. तब कैरोसिन मिलता भी सस्ता था. तो कैरोसिन-पेट्रोल का ये मिक्सचर बड़ी मात्रा में यूज़ होता था. ऐसे ही फ़्लेक्स इंजन में सिर्फ़ एथनॉल से (या ऐसे EBP से जिसमें एथनॉल की मात्रा पेट्रोल से कहीं ज़्यादा होगी) से गाड़ी चलेगी. ये इंजन भी फैक्ट्री से फ़िट होकर आएगा.

# चौथा सवाल: क्या पेट्रोल पंपों पर इसका इंतजाम हो गया है?

इस बारे में ऑटो एक्सपर्ट टूटू धवन बताते हैं-

EBP के लिए पेट्रोल पंप में कोई तब्दीली नहीं होती. ये पीछे से मिक्स होकर आता है. मतलब ब्लेंडिंग रिफ़ाइनरीज़ में होती है. पेट्रोल पंप को किसी भी तैयारी, मॉडिफ़िकेशन या कैलिब्रेशन की ज़रूरत नहीं है. इसी तरह गाड़ियों के इंजन की बात करें तो उससे जुड़ी चीजें भी फैक्ट्री लेवल पर ही सेट होती हैं, कंज़्यूमर लेवल पर कुछ नहीं करना होता.

# एथनॉल का एपलॉग

एथनॉल के बारे में ज़्यादातर बातें हमने कर ही लीं, अंत में बस इतना ही कहना है कि वैकल्पिक व्यवस्थाएं करना एक बात है, और उपलब्ध संसाधनों का सस्ता होना अलग बात.

वीडियो: क्या पेट्रोल-डीजल के दामों में लगी आग को एथनॉल कम कर सकेगा?

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