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इस बंदे ने दीये का तेल खोजने के चक्कर में घूम डाली दुनिया

मार्को पोलो: यूरोप में एशिया का रौला सेट करने वाला पहला घुमक्कड़ आदमी.

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मार्को पोलो
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लल्लनटॉप
11 अगस्त 2016 (Updated: 11 अगस्त 2016, 07:10 AM IST) कॉमेंट्स
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पारुल
पारुल

घूमने का शौक रखने वालों के लिए ही तो हम लाए हैं नक्शेबाज सीरीज. 'दी लल्लनटॉप' की इस नई सीरीज की आज तीसरी किस्त पढ़िए. इसे लिखा है पारुल ने. इस किस्त में हम आपको वेनिस के मार्को पोलो के बारे में बताएंगे. बताएंगे मतलब बताएंगे. क्योंकि हम नहीं चाहते आप या हम घूमने जाने की बात पर छोटे-छोटे बहाने बनाएं. फिर फाइनली जाने के प्लान को न जाने के प्लान में बदल दें. आज पढ़िए, मार्को पोलो किस फैमिली बैकग्राउंड के थे. किस रास्ते कहां घूमने निकले.


मार्को पोलो

वेनिस के रहने वाले थे. मन से घुमक्कड़ आदमी. ये 13वीं सेंचुरी में घूमने निकले थे. ये पहले आदमी नहीं थे, जो यूरोप से एशिया आए थे. लेकिन इन्होंने पहली बार फुल डिटेल में यूरोप को एशिया के बारे में बताया था.
ड्राइविंग फ़ोर्स:
मार्को पोलो अपने पापा और चाचा के साथ ही घूमने निकले थे. इससे पहले जब उनके पापा और चाचा चाइना के बादशाह कुबलाइ खान से मिलने गए थे, तब कुबलाइ ने उनसे जेरूसलम के पवित्र दीये का तेल मांगा था. और यही पहुंचाने के बहाने वो लोग फिर से घूमने निकल गए.
फैमिली बैकग्राउंड:
ये व्यापारी परिवार से थे. बिजनेस की ज़रूरत के हिसाब से व्यापारियों को घूमना-फिरना पड़ता ही है. इनके पापा और चाचा पहले ही एशिया घूम आए थे. इसी वजह से मार्को पोलो पहली बार अपने पापा से 14-15 साल की उम्र में मिल पाए थे. इनका नामी-गिरामी व्यापारी खानदान था. ये भी अपर मिडिल क्लास या अपर क्लास परिवार से रहे होंगे. मार्को पोलो की पढ़ाई-लिखाई ख़ास तौर से बिज़नेस में करवाई गई थी. मतलब उस ज़माने के कॉमर्स स्ट्रीम वाले थे.
Marco_Polo

ट्रेवल रूट/जगहें:
मार्को पोलो अपने पापा और चाचा के साथ पहले नाव में निकले. और फिर ऊंट से आगे गए. कुछ दूर पैदल भी चलना ही पड़ा. ये लोग पूरे 24 सालों तक एशिया में घूमते रहे. चाइना के बाद बंगाल की खाड़ी और बर्मा तक घूमने गए थे.
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कुबलाइ खान मार्को पोलो को बहुत मानते थे. इन्हें दरबार में पोजीशन भी दे दी थी. और वो बिलकुल नहीं चाहते थे कि मार्को पोलो, उनके पापा और चाचा वापस जाएं. फिर कुबलाइ के एक रिश्तेदार की शादी तय हो गई चाइना में. वो रिश्तेदार ईरान का एक बादशाह था. तभी बारात के साथ मार्को पोलो चाइना से ईरान जा पाएं. फिर वहां से सुमात्रा की तरफ वाले एरिया में भी घूमने गए. कुछ वक़्त बाद वापस घर चले आए.
मुश्किलें:
कुबलाइ खान तक पहुंचने के रास्ते में एक बार मार्को पोलो, उनके पापा और चाचा व्यापारियों के एक कारवां के साथ हो लिए. रास्ते में ही डाकुओं का एक ग्रुप आ गया. और छीना-झपटी के साथ मार-काट भी हो गई. ये तीनों डाकुओं से लड़ कर किसी तरह जिंदा बच पाए.
जब मार्को पोलो वापस घर पहुंचे, तो उस वक़्त वेनिस और जेनोआ के बीच लड़ाई चल रही थी. इस लड़ाई में मार्को पोलो भी शामिल हो लिए. इसी चक्कर में जेल भी चले गए. बाकी ट्रैवलर वापस आकर राजा को कहानियां सुना के फ़ेमस हो जाते थे. जबकि मार्को पोलो को जेल में एक साथी को घूमने की पूरी कहानियां सुनानी पड़ीं. उसने मार्को पोलो की बताई हुई कहानियों के साथ कुछ अपनी मनगढ़ंत कहानियां भी जोड़ दीं.
आउटपुट:
मार्को पोलो के ट्रेवल अकाउंट को 'बुक ऑफ़ मार्वेल्स ऑफ़ द वर्ल्ड' या 'द ट्रेवल्स ऑफ़ मार्को पोलो' कहा जाता है. जिसमें उनके जेल वाले साथी की कुछ मनगढ़ंत कहानियां भी शामिल थीं. इस किताब से यूरोप के लोगों को एशिया के बारे में बहुत कुछ पता चला. और आगे के कई यूरोपियन घुमक्कड़ों ने इस किताब को पढ़ कर ही एशिया घूमने आने का मन बनाया. जैसे क्रिस्टोफर कोलंबस. इन जनाब के बारे में हम आपको बताएंगे.


1. फाह्यान: वो ट्रैवलर, जो चीन से पैदल इंडिया आ गया
2.  वो पहला चाइनीज, जो बिना इजाजत इंडिया आया

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