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काम-धंधा देने के लिए मोदी की सबसे बड़ी योजना औंधे मुंह गिर गयी

10 फीसदी लोगों का ही भला हो पाया.

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मोदी और क्या सोचेंगे?
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सिद्धांत मोहन
4 सितंबर 2019 (Updated: 4 सितंबर 2019, 12:27 PM IST)
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मुद्रा योजना. नरेंद्र मोदी की फ्लैगशिप स्कीम. 8 अप्रैल 2015 को इसकी लॉन्चिंग हो रही है. वित्तमंत्री हैं अरुण जेटली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं,
"जिनके पास फंडिंग नहीं है, हम उनकी फंडिंग करने का बीड़ा उठाएंगे. जो साहूकार से 24-30 प्रतिशत ब्याज उठाता रहा है, उसे इस स्कीम पर भरोसा नहीं होगा. हम उन्हें भरोसा दिलाना चाहते हैं. आप देश के लिए काम कर रहे हैं, देश के विकास के लिए काम कर रहे हैं, देश आपके लिए चिंता करने को तैयार है ... देश की जो आर्थिक धरोहर है, उसका आधार बनाने में मुद्रा का बहुत बड़ा योगदान होगा."
लेकिन कह सकते हैं कि ऐसा हो नहीं रहा है. आर्थिक मंदी है. और आंकड़े हैं, जो ये कह रहे हैं कि मुद्रा लोन लेने वाले हर 5 व्यक्तियों में से 1 ही व्यक्ति ने इस लोन का इस्तेमाल नया व्यापार शुरू करने के लिए किया. बाकी ने लोन लिया तो अपने पुराने व्यापार में इसे लगा दिया. इससे न तो नये स्वावलंबी पैदा हुए, न तो नया बाज़ार बना.
केंद्रीय श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय द्वारा किये गए एक सर्वे के मुताबिक़ मुद्रा स्कीम से लाभ पाने वालों में से लगभग 20 प्रतिशत लोगों ने ही इस स्कीम से मिलने वाले पैसों का उपयोग नए व्यापार के लिए किया. बाकी 80 प्रतिशत लोगों ने अपने पुराने व्यापार को बढ़ाने के लिए लोन लिया.
"बहुत हसरतों के साथ मुद्रा योजना की लॉन्चिंग की थी"
"बहुत हसरतों के साथ मुद्रा योजना की लॉन्चिंग की थी"

सर्वे की ये रिपोर्ट अभी जनसाधारण के लिए जारी नहीं हुई है. लेकिन अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट के कुछ हिस्सों को प्रकाशित किया है. केन्द्रीय श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय द्वारा किए गए इस सर्वे में कहा गया है कि अप्रैल 2015 से दिसंबर 2017 के बीच मुद्रा स्कीम के तहत लोन लेकर 1.12 करोड़ नए रोज़गार पैदा हुए थे. ये बात ध्यान रखने की है कि ये 33 महीनों का समय मुद्रा स्कीम की लॉन्चिंग से शुरू होता है और 2017 के आखिर तक जाता है.
नौकरी 10 प्रतिशत लोगों को ही मिली 
रिपोर्ट कहती है कि इन 1.12 करोड़ लोन में से 51.06 लाख लोग या तो स्वरोज़गार के लाभार्थी हैं, या तो मालिक हैं, या तो व्यवसाय स्वामियों के घरों के लोग हैं. इसके अलावा बचे हुए 60.94 लाख तनख्वाह पर काम करने आये कर्मचारी हैं. लेकिन ये जो लगभग 1.12 करोड़ लोग हैं, वे कुल मुद्रा स्कीम के तहत दिए गए 12.27 करोड़ लोन खातों से निकलते हैं.
आसान भाषा में समझिए. 33 महीनों के समयांतराल में सरकार ने दिया 12.27 करोड़ लोगों को लोन. और इनमें से नए रोज़गार के तौर पर नौकरी मिली महज़ 1.12 करोड़ लोगों को. यानी समूचे लोन प्रतिशत का महज़ 10 प्रतिशत. बाकी लोगों ने क्या किया? पैसों का उपयोग किया अपने पुराने बिजनेस को बढ़ने के लिए.
पहले जान लीजिए मुद्रा स्कीम का तियां-पांचा
मुद्रा स्कीम के तहत सरकार लोगों को ये सुविधा देती है कि उन्हें बिना किसी गारंटी के ज़ीरो प्रतिशत ब्याज पर लोन मिल सकता है. बैंकों से मिलने वाले इस लोन को देने के पीछे दो प्रमुख उद्देश्य थे. प्राथमिक उद्देश्य तो ये कि लोग सरकार से लोन लेकर अपना व्यापार शुरू करें, जिससे देश में और रोज़गार पैदा हो. और दूसरा उद्देश्य ये कि लोग लोन उपयोग अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए करें.

मुद्रा स्कीम में तीन स्लैब के तहत लोगों को लोन दिया जाता है
# शिशु वर्ग : इसके तहत 50 हज़ार रुपए तक का लोन दिया जाता है.
# किशोर वर्ग : इसके तहत 50 हज़ार से 5 लाख रुपयों तक का लोन दिया जाता है.
# तरुण वर्ग :  इसके तहत 5 लाख से 10 लाख रुपयों तक का लोन दिया जाता है.
मुद्रा स्कीम की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़ 2015 में लॉन्चिंग से लेकर अब तक मुद्रा स्कीम के तहत लगभग 19 करोड़ 90 लाख लोगों को मुद्रा स्कीम के तहत लोन दिया गया. इस पूरी अवधि में 9 लाख 48 हज़ार 289 करोड़ रूपए मुद्रा स्कीम के तहत दिए गए हैं.
लेकिन जिस सर्वे की हम यहां बात कर रहे हैं, वो मुद्रा स्कीम की लॉन्चिंग से लेकर आगे तक के तीन सालों पर आंकड़ों पर आधारित है. ये सर्वे मुद्रा स्कीम के 97 हज़ार लाभार्थियों की मदद से किया गया. इस सर्वे को अप्रैल से नवम्बर 2018 के बीच किया गया था.
इस सर्वे की मुख्य बातें क्या हैं?
# इस अवधि में शिशु, किशोर और तरुण वर्गों को मिलाकर 12.27 करोड़ लोगों को 5.71 लाख करोड़ स्कीम के तहत दिए गए. औसतन हर आदमी को 46 हज़ार 536 रूपए मिले.
# इस पूरे पैसे में से शिशु लोन के तहत 42 प्रतिशत पैसा शिशु वर्ग के तहत आवंटित किया गया है.
# पूरे पैसे में से 34 प्रतिशत पैसा किशोर वर्ग के तहत बांटा गया है.
# और बचा हुआ 24 प्रतिशत तरुण वर्ग के तहत बांटा गया है.
# अब शिशु स्कीम से लिए गए लोन से 66 प्रतिशत मामलों में ही रोज़गार पैदा हो सका, किशोर वर्ग के 18.85 प्रतिशत मामलों से ही रोज़गार पैदा हो सका. तरुण वर्ग के 15.51 प्रतिशत मामलों से नए रोज़गार पैदा हो सके.
# जानकारों का कहना है कि एक नौकरी पैदा करने के लिए औसतन लोन अमाउंट 5.1 लाख रुपए है. और चूंकि ये दिए जा रहे मुद्रा लोन के औसत से बहुत ही ज्यादा है, इस वजह से ही मुद्रा लोन की मदद से रोज़गार पैदा करने में समस्याएं आ रही हैं.
# जितनी नौकरियां पैदा हुईं, उसका दो-तिहाई हिस्सा नौकरियों के रूप में सामने आया.
# इसके अलावा कृषि के क्षेत्र में लगभग 22 लाख नौकरियां (जो लगभग 20 प्रतिशत है) और मैन्युफैक्चरिंग में केवल 13 लाख (11.7 प्रतिशत) नौकरियां पैदा हो सकीं.
# इसके अलावा मुद्रा लोन का इस्तेमाल नौकरियों को बढ़ाने के लिए किया गया है.
इतनी ही रही मुद्रा की पकड़
इतनी ही रही मुद्रा की पकड़

इस सर्वे में ये विभाजन करके नहीं बताया गया है कि जो 1.12 करोड़ नौकरियां पैदा हुई हैं, वे व्यापार की नयी यूनिट लगाने की वजह से पैदा हुई हैं, या पुरानी यूनिट में ही विस्तार करने से पैदा हुई हैं. लेकिन मुद्रा योजना के लाभार्थियों से ये पूछा गया है कि क्या उन्होंने मुद्रा लोन मिलने के बाद कामकाज के लिए नयी यूनिट लगाई है? पुख्ता जवाब सर्वे से गायब हैं.
मुद्रा योजना के तहत 13 करोड़ लोन दिए गए हैं.
मुद्रा योजना की लॉन्चिंग

सर्वे में कहा गया है कि वही लोग स्वरोज़गार का लाभ पा रहे हैं, जो अपना खुद का धंधा करते हैं या तो वो जो ऐसे कामकाज़ या व्यापार में स्वतंत्र रूप से अकेले या एकाध लोगों के साथ मौजूद हैं. इसमें उन लोगों के परिजन, जो बिना तनख्वाह के काम करते हैं, वे भी शामिल होते हैं.


ये भी पढ़िए : मोदी सरकार की इस योजना से बैंकों को क्यों नुकसान हो रहा है?

इसके अलावा Hired Worker यानी काम पर रखे हुए कर्मचारियों का भी वर्णन इस सर्वे में किया गया है. कहा गया है कि वही वर्कर है जो किसी व्यवसाय में या तो बराबरी का मालिक है या तो पार्टनर है या तो वो मूल स्वामी की व्यवसाय चलाने में मदद कर रहा है. किसी भी रूप में उसे कार्य पर रखा गया हो. वहीं Employee का भी मतलब इस सर्वे में साफ़ किया गया है. Employee वही व्यक्ति है, जो किसी कार्य में या तो पैसों या तो बिना पैसों के कार्य रहा है. और मुद्रा लोन की मदद से चल रहे व्यवसाय में किसी न किसी रूप में जुड़ा हुआ है.
सरकार ने सर्वे क्यों कराया?
बीते दिनों नौकरियों के आंकड़ों को लेकर सरकार की बहुत आलोचना हुई है. मोदी के चुनावी वादों में भी नौकरियां पैदा करने का एक लक्ष्य रहा है. NSSO यानी National Sample Survey Office ने नौकरियों का आंकड़ा जारी किया और कहा कि बेरोजगारी का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है. हालांकि ये आंकड़े दिसंबर 2018 में बनकर तैयार हो गए थे, लेकिन इन आंकड़ों को लोकसभा चुनाव बीत जाने के बाद मई 2019 में सामने लाया गया. अखबार की मानें तो सरकार की योजना है कि इस सर्वे की रिपोर्ट का इस्तेमाल NSSO के बेरोज़गारी संबंधी आंकड़ों का जवाब देने के लिए किया जाएगा.
हड़ताल का ज़्यादा असर सरकारी बैंकों पर रहा (सांकेतिक फोटोःरॉयटर्स)
बैंक अधिकारियों ने समय-समय पर बिना नाम ज़ाहिर किये मुद्रा योजना पर सवाल उठाए (सांकेतिक फोटोःरॉयटर्स)

हालांकि इस सर्वे से अभी तक इस बात का पता नहीं चल सका है कि मुद्रा स्कीम के तहत एनपीए हो गए आंकड़े क्या हैं? क्योंकि लम्बे समय से बात होती रही है कि मुद्रा योजना के तहत दिए गए अधिकतर लोनों का वापिस भुगतान नहीं किया गया. वे एनपीए हो गए. इंडियन एक्सप्रेस में भी कुछ महीनों पहले आई खबर बताती है कि मुद्रा योजना के तहत दिए गए आधे से ज़्यादा लोन एनपीए हो चुके हैं. बैंक अधिकारी भी दबी ज़ुबान से बात बताते रहते हैं, लेकिन खुलकर सामने नहीं आते हैं. सरकार से बोला जाता है कि जवाब दे, लेकिन सरकार भी लगता है कि इस मुद्दे पर खुलने के इंतज़ार में है.
ऐसे में लॉन्चिंग के समय की ही एक बात याद आती है, जब मोदी ने कहा था,
"आज से महज़ एक साल के बाद बैंक आपके दरवाज़े पर लाइन लगाकर खड़े रहेंगे कि आओ भाई, कुछ लोग मुद्रा लोन ले लो. और धीरे-धीरे सभी बैंक मुद्रा की ओर मुड़ेंगे."



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