क्या है मैकमहोन लाइन, जिसके अंदर चीन के लकड़ी का पुल बनाने का दावा कर रहे BJP सांसद?
चीन और भारत के इस बॉर्डर का लंबा और विवादित इतिहास रहा है.
Advertisement

अरुणाचल ईस्ट लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद और बीजेपी के मुखिया तापिर गाव (बाएं) ने बयान दिया. कि चीन ने भारतीय सीमा में 75 किलोमीटर अंदर आकर लकड़ी का एक पुल बनाया है. फोटो-Arunachal24.in
क्या चीन अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ कर रहा है? क्या चीन ने अरुणाचल में घुसकर एक पुल बना दिया है?तापिर गाव. अरुणाचल ईस्ट लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद. राज्य में बीजेपी के मुखिया. 4 सितंबर को उन्होंने बयान दिया. कि चीन ने भारतीय सीमा में 75 किलोमीटर अंदर आकर लकड़ी का एक पुल बनाया है. तापिर बोले, एक गांववाला शिकार के लिए जंगल गया था. उसी ने ये पुल देखा. विडियो बनाया और उन्हें भेज दिया. सेना ने तापिर की बात से इनकार किया है. कहा, ऐसी कोई घुसपैठ नहीं हुई है. तापिर गाव जिस जगह पर पुल बनने की कह रहे हैं, वो चागलगाम से 25 किलोमीटर दूर है. ये चागलगाम प्रशासनिक सर्किल है अनजाव ज़िले का. यहां से भारत-चीन की लीगल सीमा, यानी मैकमहोन लाइन करीब 100 किलोमीटर दूर है. आपने पिछली लाइन में 'मैकमहोन लाइन' नोटिस किया? आगे हम आपको इसी की कहानी समझाने वाले हैं.
क्या है मैकमहोन लाइन? 1914 का साल. शिमला में एक सम्मेलन हुआ. तीन पार्टियां थीं- ब्रिटेन, चीन और तिब्बत. इस कॉन्फ्रेंस में सीमा से जुड़े कुछ अहम फैसले हुए. तब ब्रिटेन के भारतीय साम्राज्य में विदेश सचिव थे सर हेनरी मैकमहोन. उन्होंने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच एक सीमा खींची. 890 किलोमीटर लंबी. इसमें उन हिस्सों की भी मार्किंग हुई, जिन्हें लेकर ब्रिटेन और तिब्बत के बीच पहले कोई समझ नहीं थी. फॉरेन सेक्रटरी के नाम की वजह से इस सीमारेखा को नाम मिला- मैकमहोन लाइन. इसमें तवांग (अरुणाचल प्रदेश) को ब्रिटिश भारत का हिस्सा माना गया.#Correction
— ANI (@ANI) September 4, 2019
Tapir Gao, BJP MP from Arunachal Pradesh: McMahon line is at a distance of approximately 100 km from Chaglagam, now if China makes a bridge at a distance of 25 km from Chaglagam, that implies China is already 60-70 km into our territory. pic.twitter.com/LPmZ0MpZV3
चीन ने समझौते पर साइन नहीं किया था इस सम्मेलन में मानचित्र का कोई लिखित रेकॉर्ड नहीं रखा गया. बस एक मैप पर लाइनों के सहारे आउटर तिब्बत को इनर तिब्बत और इनर तिब्बत को चीन से अलग कर दिया गया. दो मानचित्र आए इसमें. पहला वाला आया 27 अप्रैल, 1914. इस पर चीन के प्रतिनिधि ने दस्तखत किया. दूसरा आया 3 जुलाई, 1914 को. ये डिटेल्ड मैप था. इसपर साइन नहीं किए थे चीन ने.
कहां से कहां तक? मैकमहोन लाइन के पश्चिम में है भूटान. पूरब में ब्रह्मपुत्र नदी का 'ग्रेट बेंड' है. यारलुंग जांगबो के चीन से बहकर अरुणाचल में घुसने और ब्रह्मपुत्र बनने से पहले नदी दक्षिण की तरफ बहुत घुमावदार तरीके से बेंड होती है. इसी को ग्रेट बेंड कहते हैं.
एक किताब ये शिमला वाला समझौता पहले विश्व युद्ध के ठीक पहले की बात है. वर्ल्ड वॉर में स्थितियां बदल गईं. रूस और ब्रिटेन एक ही टीम में थे. इतनी सारी चीजें हुईं कि मैकमहोन लाइन भूली सी चीज हो गई. इसका ज़िक्र उभरा 1937 में. एक किताब थी अंग्रेज़ों की- अ कलेक्शन ऑफ ट्रीटीज़, ऐंगेज़मेंट्स ऐंड सनद्स रिलेटिंग टू इंडिया ऐंड नेबरिंग कंट्रीज़. शॉर्ट में इसको कहते हैं एचिसन्स कलेक्शन ऑफ ट्रीटीज़. इसे तैयार किया था विदेश विभाग में भारत सरकार (ब्रिटिश) के अंडर सेक्रटरी सी यू एचिसन ने.
ये भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच हुई संधियां, समझौते और सनद का आधिकारिक संग्रह था. नई जानकारियां अपडेट हुआ करती थीं इसमें. 1937 वाले संस्करण में जाकर शिमला कॉन्फ्रेंस में लिए गए फैसलों का ज़िक्र आया इसमें.

ये तस्वीर है एचिसन के कलेक्शन ऑफ ट्रिटीज़ की. इसमें भारत (ब्रिटिश इंडिया) के अपने पड़ोसी देशों, अलग-अलग रियासतों से हुई संधियों का ब्योरा है. ये आधिकारिक दस्तावेज़ है (फोटो: आर्काइव ओआरज़ी)
20वीं सदी की शुरुआत: तिब्बत में ब्रिटेन का क्या सीन था? तिब्बत 'ग्रेट गेम' का हिस्सा था. ब्रिटेन और रूस, दोनों में मुकाबला था उसे लेकर. चिंग वंश के पतन के बाद चीन की स्थिति बड़ी ख़राब हो गई थी. तिब्बत ने उसे अपने यहां से निकाल दिया था. शिमला कॉन्फ्रेंस के दौर में चीन बड़ी कमज़ोर स्थिति में था. शिमला सम्मेलन में भी उसकी कुछ ख़ास भूमिका नहीं थी. कहते हैं कि अंग्रेज़ों ने उसे एक टेक्निकल वजह से शामिल किया था. 1907 में ब्रिटेन और रूस के बीच सेंट पीटर्सबर्ग में एक संधि हुई थी. इसमें दोनों साम्राज्यों ने ईरान, अफ़गानिस्तान और तिब्बत में अपने-अपने औपनिवेशिक झगड़े निपटाए. ये तय हुआ कि न ब्रिटेन, न रूस, दोनों में से कोई भी तिब्बत के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देंगे. अगर बहुत ही ज़रूरी हो ऐसा करना, तो ये चीन की मध्यस्थता में किया जाएगा.
मैकमहोन लाइन पर विवाद चीन कहता है कि मैकमहोन लाइन के बारे में उसको बताया ही नहीं गया था. उससे बस इनर और आउटर तिब्बत बनाने के प्रस्ताव पर बात की गई थी. उसका कहना है कि उसे अंधेरे में रखकर तिब्बत के प्रतिनिधि लोनचेन शातरा और हेनरी मैकमहोन के बीच हुई गुप्त बातचीत की अंडरस्टैंडिंग पर मैकमहोन रेखा खींच दी गई. कई जानकार कहते हैं कि ब्रिटेन 1912 में चिंग वंश की सत्ता ख़त्म होने के बाद तिब्बत को मिली आज़ादी बरकरार रखना चाहता था. वो चाहता था कि भूटान की तरह तिब्बत भी भारत और चीन के बीच एक बफ़र स्टेट का काम करे. यही सब सोचकर उसने ये समझौता किया.
मैकमहोन लाइन को माना क्या चीन ने? चीन कहता है, वो मैकमहोन लाइन नहीं मानता. उसका कहना है कि भारत और चीन के बीच आधिकारिक तौर पर सीमा तय ही नहीं हुई कभी. चीन के मुताबिक, तिब्बत कोई संप्रभु देश नहीं कि वो सीमाओं को लेकर संधियों पर दस्तखत करे. चीन कहता है शिमला समझौते में मैकमहोन लाइन को लेकर उसके साथ कोई विमर्श हुआ ही नहीं. उसके पीठ पीछे ब्रिटेन और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने अपनी मनमानी से सब तय कर लिया. चीन ये भी कहता है कि उसने कभी इस लाइन को मान्यता नहीं दी. चीन का दावा है कि अरुणाचल तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा है. चूंकि तिब्बत पर चीन का कब्ज़ा है, सो वो अरुणाचल को भी अपना बताता है.
भारत क्या कहता है? भारत उपनिवेश था अंग्रेज़ों का. 1947 में जब देश आज़ाद हुआ, तो सीमाओं को लेकर अंग्रेज़ों की जो समझ थी, जो करार थे, वो ही कैरी-फॉरवर्ड किए भारत ने. इसीलिए भारत ने मैकमहोन लाइन को सीमा माना. भारत कहता है कि मैकमहोन लाइन को लेकर चीन ने एक लंबे समय तक कभी कोई आपत्ति नहीं जताई. चीन ने आधिकारिक तौर पर 23 जनवरी, 1959 को इस लाइन के लिए चुनौती पेश की थी. पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के पहले प्रीमियर झाउ इनलाई ने तब नेहरू को चिट्ठी भेजकर मैकमहोन लाइन पर आपत्ति जताई थी. यही मैकमहोन लाइन भारत और चीन के बीच का बोन ऑफ कन्टेंशन है. माने, विवाद की जड़. सीमा से जुड़े इसी विवाद के कारण 1962 में चीन ने भारत पर हमला किया था. अरुणाचल प्रदेश के अंदर घुस आया था.
लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल क्या है? 1962 की जंग ख़त्म होने के बाद भारत और चीन के नियंत्रण में जो इलाके रह गए, उसी का बंटवारा है LAC. ये दोनों देशों की आपसी सहमति से तय नहीं हुआ. LAC मैकमहोन से थोड़ा ऊपर-नीचे है.
बातचीत का क्या हुआ? 1962 की जंग ने भारत और चीन के बीच संदेह का एक बड़ा गहरा रिश्ता बना दिया. लंबे समय तक दोनों देशों का संपर्क टूटा रहा. फिर 1976 में आकर दोनों ने एक-दूसरे के यहां राजदूत भेजे. 1981 में सीमा विवाद सुलझाने पर आधिकारीक बातचीत शुरू हुई. इसके बाद कई चरणों की बातचीत हो चुकी है दोनों पक्षों के बीच. लेकिन अभी तक कुछ ठोस हुआ नहीं है. अंतरराष्ट्रीय सीमा तो क्या, दोनों देश LAC को लेकर भी अंडरस्टैंडिंग नहीं बना सके हैं. ऐसे में चीन की तरफ से लगातार घुसपैठ की ख़बरें आती रहती हैं. ये ख़ासतौर पर उन इलाकों में होता है, जिसे दोनों देश LAC का अपना-अपना साइड बताते हैं. जब तक सीमा विवाद नहीं सुलझेगा, जब तक दोनों देश सीमा पर एकमत नहीं होंगे, तब तक शायद ये अग्रेशन और ऐसी घुसपैठ होती रहेंगी.
क्या है S-400 मिसाइल सिस्टम, जिसे रूस से खरीदने के लिए भारत ने अमेरिका को ठेंगा दिखा दिया है
गज़नवी मिसाइल का टेस्ट क्या पाकिस्तान के इंडियन एयरस्पेस क्लोज़र की धमकियों से जुड़ा है?