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मार्क जकरबर्ग का फेसबुक मैनिफेस्टो भारत की पत्रकारिता को बदल देगा

मार्क जकरबर्ग ने जारी किया मैनिफेस्टो जो हर चीज के बारे में बात करता है.

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फोटो - thelallantop
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ऋषभ
22 फ़रवरी 2017 (Updated: 22 फ़रवरी 2017, 01:58 PM IST) कॉमेंट्स
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आप सो के उठें और पाएं कि आपके घर के बाहर सब कुछ एक रात में बदल गया है तो कैसा लगेगा? कुछ वैसा ही होने वाला है. 13 साल पहले बना फेसबुक देश-दुनिया में पत्रकारिता को ही बदलने वाला है. किसी को ये लग सकता है कि सब कुछ अच्छा हो रहा है, पर किसी को ये डर भी सताएगा कि सब कुछ फेसबुक के हाथ में आ जाएगा. भारत भी इस मसले में स्टेकहोल्डर रहेगा क्योंकि भारत में फेसबुक यूजर भी बहुत हैं. और मार्क भारत के लिए अक्सर प्लान भी बनाते रहते हैं. कुछ दिन पहले इंटरनेट घर-घर तक पहुंचाने की बात कर रहे थे. नेट न्यूट्रलिटी का भी प्रोजेक्ट लेकर आए थे, जिसको लेकर खूब हंगामा हुआ था. पहले बात मार्क जकरबर्ग के मैनिफेस्टो की. शुक्रवार 17 फरवरी को फेसबुक ने अपना एक मैनिफेस्टो जारी किया. जिसमें कहा गया है कि हम हमेशा बिजनेस को बदलने की बात करते हैं, पर क्या हमने सोचा है कि दुनिया कैसे बदली जा सकती है. 1. पहले वो अपनी ताकत की बात करते हैं जिसमें करोड़ों लोग जुड़े हुए हैं. फिर वो आतंकवाद, पर्यावरण से लेकर बीमारियों की बातें करते हैं. फिर वो एक शब्द इस्तेमाल करते हैं. सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर. कहते हैं कि इसकी मदद से सपोर्टिव समुदाय बनाये जायेंगे. मतलब आज के जमाने में परिवार टूट रहे हैं, लोग अकेले हो रहे हैं तो फेसबुक पर बने ये ग्रुप एक-दूसरे की मदद करेंगे. 2. फिर वो सेफ समुदाय की बात करते हैं. कि जिंदगी टूट जाने पर लोग मिलकर फिर बना लेंगे. इसमें वो उदाहरण देते हैं तमाम बीमारियों से जूझते लोगों की जिनके एक पोस्ट पर कई लोगों ने मदद पहुंचाई. सीरिया और इराक से भागते लोगों की भी मदद होगी. वो भी ऐसे वक्त में कि उनके लिए कहीं पर जगह नहीं है. 3. इसके बाद वो जागरुक समुदाय की बात करते हैं. कि जहां पर हर इंसान के पास विचार है, उसमें सही बात सब तक कैसे पहुंचाई जाए. इसमें जिक्र आता है फेक न्यूज का. जो आज कल सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है. अमेरिका के चुनाव में हिलेरी क्लिंटन के एक ईमेल को मुद्दा बना दिया गया. जबकि सलाहकार कहते रह गए कि ये फर्जी मुद्दा था. पर सच्चाई और कहानी के बीच जनता फर्क नहीं कर पाई. खुद प्रेसिडेंट ट्रंप सच की बजाए ऑल्टरनेटिव फैक्ट की बात करते हैं. फैक्ट से उनको नफरत है. 4. फिर वो बात करते हैं सिविल सोसाइटी की. उनका कहना है कि वोट करने वाले लोग ही आबादी के आधे होते हैं. तो ये सोसाइटी कैसे बनाई जाए. ये समस्या कई जगह आई है. जैसे भारत में ही प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी को कुल 17 करोड़ के आस पास वोट मिले थे. जबकि कुल आबादी 127 करोड़ है. 81 करोड़ वोटर थे. 56 करोड़ ने वोट किया था. इसके बाद बात करते हैं इंक्लूजिव समुदाय की. इसमें वो बात करते हैं ब्लैक लोगों से लेकर मिडिल ईस्ट और एशिया तक की. सबके भले के लिए काम करना चाहते हैं.
पर इन सबमें जो सबसे अच्छी बात है वो है फेक न्यूज को लेकर. फेक न्यूज कहीं पर भी हिंसा भड़का सकती है. क्योंकि कोई भी कंटेंट अब छुपा नहीं है. इसे रोकने में भी वक्त लगता है. पर उतनी देर में ये लोगों के दिमाग को लहका देता है. नतीजा, हिंसा होती है.
इसके बाद वो अब्राहम लिंकन का एक कोट देते हैं. जो कि अमेरिकन सिविल वॉर में दिया गया था-
हम लोग साथ रहकर ही सक्सेसफुल हो सकते हैं. ये कल्पना करने की बात नहीं है, बल्कि ये वो चीज है जो हम कर सकते हैं. पुरानी परंपराएं वर्तमान के खतरनाक समय के लिए पर्याप्त नहीं हैं. बहुत मुश्किलें हैं. पर हमें उठ के काम करना चाहिए. हमारा मामला नया है, इसलिए हमें नया सोचना चाहिए.
ये वाकई में जमाने को बदलने वाला लगता है. किसी देश के प्रधानमंत्री ने भी इतने बड़े वादे नहीं किये होंगे. ये टेक्नॉल्जी को लोगों के इमोशन और निजी जिंदगी तक एक झटके में लाने का प्लान है. पर इसका एक दूसरा पक्ष भी है. फेसबुक की इस दुनिया में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पत्रकारिता कैसे सर्वाइव करेगी. क्योंकि ये फेसबुक का जर्नलिज्म प्लान है. फेसबुक के पास पैसा किसी मीडिया हाउस से ज्यादा ही है. जितने ऑनलाइन एडवर्टिजमेंट होते हैं उनका 85 प्रतिशत फेसबुक और गूगल को ही जाता है. न्यूज संस्थानों को ये पैसा नहीं मिलता. अगर आप फेसबुक पर बढ़ती न्यूज को देखें तो पाएंगे कि जनता यहीं से न्यूज ग्रहण कर रही है.
अगर द अटलांटिक की मानें तो मार्क एक ऐसी न्यूज संस्था बना रहे हैं जिसमें पत्रकार ही नहीं रहेंगे.
फेसबुक पर 200 करोड़ एक्टिव यूजर रहते हैं हर महीने. इतना दुनिया के किसी अखबार की सर्कुलेशन नहीं है. कई देशों के अखबारों को मिला दें तो भी इतना नहीं होगा. ये यूजर ही न्यूज देंगे और न्यूज पढ़ेंगे. फेसबुक को एडिटर की जरूरत नहीं पड़ेगी. ये काम बॉट्स करेंगे. वही बॉट्स जो डाटा एनालिसिस कर कंपनियों को बताते हैं कि क्या बिकता है जमाने में. क्या चल रहा है. क्या चलाना चाहिए. अब दोनों बातें आ सकती हैं. पहली कि दुनिया में पॉजिटिविटी फैलेगी. लोगों तक अच्छी न्यूज फैलेगी. फेक न्यूज को काउंटर कर दिया जाएगा. मदद करने वाले लोग किसी भी देश में मदद कर सकते हैं. बिचौलियों की हरकतें बंद होंगी. जो न्यूज छुप जाती हैं, वो सामने आ जाएंगी. जैसे चीन और नॉर्थ कोरिया की चीजें. कोई ना कोई तो बता ही देगा. पत्रकारिता हमेशा के लिए बदल जाएगी. क्योंकि सबको आवाज मिल जाएगी. दूसरी कि दुनिया में सब कुछ रोबोटिक हो जाएगा. तब लोगों को बरगलाना आसान हो जाएगा. एक आदमी कंपनी कंट्रोल कर रहा है, वही सब करेगा. पत्रकार खबरों की इंटेंसिटी से ज्यादा फेसबुक से जुड़े होने की बात करेंगे. उन्हें वो ग्लैमर पसंद आएगा. फिर ये भी होगा कि अमेरिका का दूसरे देशों की पत्रकारिता में दखल बढ़ जाएगा. पर जो भी हो, भारत में कई चीजें बदल जाएंगी. भारत के लोग नेट पर लिखने में उस्ताद हैं. कोरा वेबसाइट पर यहीं के लोग खूब लिखते हैं. फेसबुक को भी यहां पर पॉलिटिकल डिस्कशन के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा निगेटिव साइड भी उतना ही स्ट्रॉन्ग है. दंगों के वक्त भी इसका सहारा लिया गया था. फेक न्यूज फैलाने में भी यही माध्यम काम आ रहा था. तो अब भारत में कई तरह का डिस्कोर्स आ गया है. इन सारी बातों में बदलाव तो आएगा ही. कुछ भी हो सकता है. ये हमेशा होते आया है. चीजें बदलती हैं, सब कुछ खो देने का डर आ जाता है. फिर कोई आ जाता है क्रूसेडर बनकर. सौ साल पहले महात्मा गांधी ने कहा था कि पत्रकारिता का स्तर एकदम गिर गया है. उनकी बातें पढ़कर लगेगा कि आज की बात हो रही है. ऐसे में मार्क जकरबर्ग का मैनिफेस्टो कुछ नया ही ले के आ रहा है. देखते हैं क्या होता है. या तो एकदम से लेवल बढ़ जाएगा या फिर ऐसा हो जाएगा कि न चाहते हुए भी चीजें खराब हो जाएंगी. ये भी पढ़ें-

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