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अमित शाह के जाने के बाद मणिपुर में क्या हो रहा है?

एम्बुलेंस रोककर भीड़ ने आग लगा दी, मां-बेटे जलकर मर गए, पुलिस देखती रह गई

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Why Manipur is still burning after Amit Shah's visit
अमित शाह के दौरे के बाद भी मणिपुर में हत्याएं क्यों नहीं रुक रही हैं? (दोनों तस्वीरें : PTI)
8 जून 2023 (Updated: 8 जून 2023, 13:05 IST)
Updated: 8 जून 2023 13:05 IST
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गृहमंत्री अमित शाह मणिपुर में तीन दिनों के लिए थे. जब एक प्रेसवार्ता आयोजित करके वो मणिपुर से बाहर गए, तो लोगों के मन में एक आशा जरूर थी कि अब तो मणिपुर शांत हो जाएगा.

लेकिन मणिपुर के लिए ये आशा बहुत दूर की कौड़ी है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं? घटनाक्रम को देखते हुए. और घटनाक्रम के केंद्र में है 45 साल की मीना हांगसिंग और उनके 7 साल के बेटे टॉनसिंग हांगसिंग की मौत. मणिपुर में बनी हिंसा की फॉल्ट लाइंस को देखकर बात करें तो दो गुट एक दूसरे की लाशें उतार रहे हैं. मैतेई और कुकी. 

लेकिन मीना की मौत क्यों हुई? मीना एक मैतेई थीं, जिनकी शादी कुकी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले व्यक्ति से हुई थी. उनके बेटे की तबीयत खराब थी. वो अपने बेटे को एम्बुलेंस से लेकर जा रही थीं अस्पताल. लगभग 2 हजार लोगों ने एम्बुलेंस को घेर लिया. मां-बेटेमय एम्बुलेंस में आग लगा दी गई. सामने पुलिस मौजूद थी. कुछ नहीं कर सकी. दोनों की मौत हो गई. खबरों में मारने वालों की पहचान खोजी गई और लिखा गया एक पुलिस थाने का नाम - लामसांग पुलिस स्टेशन. एक तमाशबीन के अलावा पुलिस की पहचान एक थाने तक ही महदूद थी.

दो लोग जलकर कंडे में तब्दील हो चुके थे.

लेकिन लोगों की आशाओं के धूमिल होने का बस ये ही एक सूचकांक नहीं था. बस जमीन वास्ते मैतेई समुदाय की जनजातीय होने की अभिलाषाओं और इसके विरोध में उपजे कुकी विद्रोह में और भी लोग मारे गए. जैसे एक सीमा सुरक्षा बल (BSF) का जवान. BSF हवलदार का नाम था रंजीत यादव. वो सेरो इलाके में पोस्टेड था. सेरो यानी मणिपुर के काकचिंग जिले में लगे सुगनू के पड़ोस में बसा इलाका. वो इलाका, जहां सबसे अधिक खून बहाया गया है. गोलियां चली हैं, घर जले हैं. रंजीत यादव अपनी ड्यूटी में मारा गया. साथ ही असम राइफल्स के कुछ और जवान गोलियों से घायल हुए.

रंजीत की मौत का इलाका वो इलाका था, जहां लोग तपाती हुई मई की गर्मी में जैकेट और शॉल डाले रहते हैं. इन कपड़ों के अंदर हथियार होते हैं. तमंचे-तलवार-गंड़ासे से लेकर राइफल, पिस्टल और कुछ ऑटोमैटिक हथियार. मीडिया के दृश्य से हटने के बाद ये हथियार अपने खोलों से बाहर निकलते हैं. ये हथियार दुनिया को देखते हैं और अपने विरोधी समुदाय को देखते हैं. इन हथियारों का होना मणिपुर के जलते रहने को सुनिश्चित करता है. मीडिया को दृश्य से हटाने के लिए कुछ-कुछ वैसा ही किया जाता है, जैसा हमारे साथ किया गया. मसलन, सुगनू में मौजूद हमारे स्थानीय सूत्र का कहना,

"आप यहां से चले जाइए, कुछ हुआ तो मैं भी आपके साथ खड़ा नहीं रह पाऊंगा."

या जैसे पास में खड़े एक बंदे का कहना, 

"तुम अपने कैमरे और फोन से फोटो मत खींचो, जाओ. ये तुम्हारे लिए अच्छा होगा."

इस तस्वीर खींचने की कोशिश में एक संभावित फोटो जमीन पर पड़ी ढेर सारी चिट्ठियों और पोस्टकार्ड्स के अंबार की भी हो सकती थी. इसे खींचकर अंग्रेजी में लिखी किसी खबर की अच्छी फीचर इमेज बनाया जा सकता था, त्रासदी का एक दिल्ली संस्करण पैदा किया जा सकता था. लेकिन तस्वीर खींचने के चक्कर में अपनी सुरक्षा से समझौता न करने की समझ पत्रकारों में बची हुई थी.

ये 2-3 हत्याओं भर की कहानी नहीं है. मणिपुर में अभी भी हिंसा बदस्तूर जारी है. पहाड़ों के पैरों यानी फुटहिल्स में लगातार फायरिंग की खबरें आ रही हैं. घाटी में कर्फ्यू में शाम 5 बजे तक छूट दी जा रही है. पहाड़ियों पर छूट देने में अभी भी कोताही बरती जा रही है. कारण? सभी पहाड़ी इलाके अभी तक शांत नहीं हैं. निष्कर्ष? सभी पहाड़ी इलाके कभी भी एक साथ भड़क सकते हैं.

एक और निष्कर्ष : पूरा मणिपुर एकसाथ कभी भी जल सकता है.

मणिपुर में लोगों की पहचान चेहरे से ज़ाहिर हो जा रही है. हम अपने मैतेई ड्राइवर से मज़ाक में कहते हैं कि वो ही कुकी इलाके में चले और अपनी मैतेई पहचान न बताए. पूछने पर कह दे कि वो कुकी है. ड्राइवर ने एक वाक्य में मणिपुर को उघाड़कर रख दिया -

"वो मेरे चेहरे से पहचान जाएगा कि मैं कुकी नहीं है. तुम मेनलैंड के लोगों के लिए हम लोग एक जैसा दिखता है. लेकिन हम लोग चेहरे से बता देता है कि सामने कुकी है या मैतेई."

इस बात को पूर्वांचल की चौकड़ियों की लफ़्फ़ाज़ी सरीखा मान अनसुना भी किया जा सकता था, अगर कुकी इलाके में मिले हमारे ड्राइवर इस बात की तसदीक न करते,

"हां, तुम्हारा मैतेई थोरा ठीक बोल रहा. दस में से सात बार एकदम सही पता लगता है, बस चेहरा से."

हथियार और पहचान का समुच्चय मौत की गारंटी है. पत्रकारों को जानकारी पहुंचाने वाले भी भरसक जोर देते हैं - हमारी पहचान न ज़ाहिर हो.

राजनीतिक क्राइसिस का भी अपना स्थान है. नगा जनजाति के 10 विधायक दिल्ली आ जाते हैं. अमित शाह से मुलाकात करने. उन्हें कुकी और मैतेई के बीच चल रहे समझौते के प्रयासों से बाहर न रख दिया जाए, इसकी फिक्र है. एक अलग प्रशासन की डिमांड करने वाले 10 कुकी विधायकों को मणिपुर विधानसभा की विशेषाधिकारों और नीतियों से जुड़ी कमिटी कारण बताओ नोटिस जारी कर देती है. मणिपुर जलता रहता है.

वीडियो: मणिपुर हिंसा पर अमित शाह ने जांच-राहत पर क्या-क्या ऐलान कर दिए?

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