The Lallantop
Advertisement

अंग्रेज़ी का वो प्यारा लेखक, जो अंग्रेज़ी में ही फ़ेल हो गया था

'मालगुडी डेज़' के लेखक आर. के. नारायण का बड्डे है.

Advertisement
Img The Lallantop
मालगुडी डेज़ के लेखक आर. के. नारायण.
font-size
Small
Medium
Large
10 अक्तूबर 2020 (Updated: 9 अक्तूबर 2020, 04:31 IST)
Updated: 9 अक्तूबर 2020 04:31 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

मुझे सोनी चैनल पर मालगुडी डेज़ देखना याद है. मालगुडी डेज़ को याद करो तो मन में अपने आप एक ट्यून बजने लगती है. एक रेलवे स्टेशन का स्केच याद आता है, जिस पर मालगुडी शहर का बोर्ड लगा होता था. मालगुडी डेज़ के लेखक थे आर. के. नारायण. पूरा नाम रासीपुरम कृष्णस्वामी एय्यर नारायणस्वामी. मालगुडी डेज़ एक टीवी सीरीज़ थी, जिसके हर एपिसोड की कहानी मालगुडी नाम के छोटे से शहर के इर्द-गिर्द घूमती थी. ये शहर नारायण की कल्पना से उपजा था. इसके इंट्रो में हम जो स्केच देखते थे, वो नारायण के छोटे भाई आर. के. लक्ष्मण बनाते थे. लक्ष्मण बहुत फ़ेमस कार्टूनिस्ट थे.

सबसे पहले मालगुडी डेज़ 1986 में दूरदर्शन पर टेलिकास्ट हुआ था. पहला एपिसोड था स्वामी एंड फ्रेंड्स. मालगुडी डेज़ और नारायण की बाकी कहानियों में किरदार बड़े आम होते थे. सुबह से लेकर रात तक, एक आम आदमी क्या-क्या करता है. कौन सी छोटी-छोटी चीज़ें उसे खुशी देती हैं. दुख में भी कैसे वो खुशी ढूंढ ही लेता है. नारायण की हर कहानी का अंदाज़ भावुक और हास्यास्पद है. वो अपने आप को किरदार में ढालकर सोचते थे. विलेन के बारे में भी लिखते तो ये सोचकर कि वो क्या सोचता होगा.

1. नारायण का जन्म चेन्नई में 10 अक्टूबर, 1906 को हुआ था. इनके पापा हेडमास्टर थे. नारायण को मिलाकर हेडमास्टर जी के आठ बच्चे थे. ये तीसरे नंबर के थे. साउथ इंडिया में बच्चों को जो नाम दिए जाते हैं वो सर नेम के बाद लगता है. इसी वजह से लक्ष्मण और नारायण के शुरुआती नाम एक थे- रासीपुरम कृष्णस्वामी एय्यर.


swami-and-friends-759
स्वामी एंड फ्रेंड्स का एक सीन


2. नारायण के जन्म के बाद उनकी मां बहुत बीमार पड़ गई थीं. इतनी कि नारायण को ब्रेस्ट फ़ीड कराने के लिए एक नर्स रखी गई थी. जब उनकी मां फिर से प्रेग्नेंट हो गईं, तब दो साल के नारायण को मद्रास उनकी नानी के घर भेज दिया गया. नारायण यहां टीनएज तक रहे.
3. देवानंद और वहीदा रहमान की फ़िल्म गाइड की कहानी इनकी इंग्लिश नॉवेल 'द गाइड' पर बेस्ड थी. नारायण अपनी कहानियां इंग्लिश में लिखा करते थे लेकिन एक समय ऐसा था जब कॉलेज के एंट्रेंस एग्ज़ाम में वो इंग्लिश में फ़ेल हो गए थे. एक साल बाद उन्होंने फिर से एग्ज़ाम दिया और पास किया. फिर मैसूर यूनिवर्सिटी से इंग्लिश में बैचलर डिग्री हासिल की.
guide1
देवानंद और वहीदा रहमान की फ़िल्म गाइड.

4. नारायण ने अपना साहित्यिक करियर शोर्ट स्टोरीज़ से शुरू किया, जो 'द हिंदू' में छपा करती थीं. इनकी पहली नॉवेल का नाम था 'स्वामी एंड फ्रेंड्स'. जैसे आज भी नए लेखकों को अपनी किताब के लिए पब्लिशर्स ढूंढने में दिक्कत आती है, ठीक यही दिक्कत उस समय भी नारायण को हुई. उन्हें शुरुआत में कोई पब्लिशर नहीं मिला. फिर ये ड्राफ़्ट पहुंचा ग्राहम ग्रीन तक, कॉमन फ्रेंड पूमा की मदद से. ग्रीन एक इंग्लिश नॉवेलिस्ट थे. इन्हें 20वीं सदी के सबसे महान लेखकों में गिना जाता है. ग्रीन को ये नॉवेल बहुत पसंद आई. उन्होंने इसे पब्लिश करवाया. इसके बाद इन दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई.

5. इसके बाद नारायण की एक के बाद एक कई नॉवेल पब्लिश हुईं. सारी कहानियां मालगुडी शहर की थीं. नारायण नॉवेल में अपने जीवन के कुछ अंश डाला करते थे. उदाहरण के तौर पर उनकी नॉवेल 'द इंग्लिश टीचर' को ही ले लीजिए. इस नॉवेल में उन्होंने अपनी ज़िंदगी का वो दौर लिखा है, जब उनकी पत्नी की मौत हो गई थी. कैसे वो इस दुख से निकलने की कोशिश करते हैं, ये सब है उस नॉवेल में.


_86443902_narayan
लंदन के बीबीसी स्टूडियो में बैठे दोस्त ग्राहम ग्रीन और नारायण.

6. छोटी कहानियों के संग्रह के रूप में मालगुडी डेज़ सबसे पहले 1943 में पब्लिश हुई थी. नारायण को अपने काम के लिए कई अवॉर्ड्स और सम्मान दिए गए. 1958 में अपने नॉवेल 'द गाइड' के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था. 1964 में पद्म भूषण. 1980 में एसी बेनसन मेडल. 1989 में इन्हें राज्य सभा के लिए नॉमिनेट किया गया था. राज्य सभा के उन छह साल में नारायण ने एजुकेशन सिस्टम को बेहतर करने की कोशिश की. 2000 में इन्हें पद्म विभूषण से भी नवाज़ा गया.

7. 'द ग्रेंडमदर्स टेल' नारायण की आखिरी नॉवेल थी. ये 1992 में पब्लिश हुई थी. इसकी कहानी उन्हें उनकी नानी ने सुनाई थी, जो नानी की मां के बारे में थी. कैसे एक औरत की नई-नई शादी होती है और उसका पति कहीं गायब हो जाता है. वो कई साल उसे ढूंढती रहती है. आखिरकार सारी तकलीफ़ों के बीच उसे एक दिन उसे उसका पति मिल जाता है.


r k narayan padmavibhushan
नारायण को पद्म विभूषण देते पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम

8. 94 साल की उम्र में आर. के. नारायण का 13 मई, 2001 को देहांत हो गया था. नारायण बहुत पॉपुलर थे लेकिन एक हाई प्रोफ़ाइल राइटर्स का तबका था, जिन्हें उनके लिखने की स्टाइल से दिक्कत थी. क्रिटिक्स का पॉइन्ट रहता था कि नारायण की इंग्लिश बहुत आसान है. हमेशा गांव के बारे में लिखते हैं. उन्हें शब्दों का उतना ज्ञान नहीं है. हमारी समझ से तो उनकी लिखाई की सबसे खूबसूरत बात ही यही थी जो क्रिटिक्स को अटपटी लगती थी.




वीडियो देखें:



ये भी पढ़ें:
एक अदना कार्टूनिस्ट जो खूंखार बाल ठाकरे, इंदिरा गांधी को मुंह पर सुना देता था

‘लकीरें हैं तो रहने दो, कार्टूनिस्ट ने खींच दी होंगी’

पावेल कुचिंस्की के 52 बहुत ही ताकतवर व्यंग्य चित्र

thumbnail

Advertisement

election-iconचुनाव यात्रा
और देखे

Advertisement

Advertisement

Advertisement