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धोनी के अलावा किसी को 'कैप्टन कूल' होने का हक नहीं, कमाल की चीज है ट्रेडमार्क, ये है प्रोसेस

MS Dhoni Captain Cool Trademark: धोनी ने कैप्टन कूल को ट्रेडमार्क रजिस्टर करा लिया है. ट्रेडमार्क रजिस्ट्री ने उनके आवेदन को मंजूर कर लिया है. क्या होता है ये ट्रेडमार्क और इसके रजिस्ट्रेशन का प्रोसेस क्या है, विस्तार से जानते हैं.

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MS Dhoni captain cool trademark
एमएस धोनी ने 'कैप्टन कूल' को ट्रेडमार्क कराया है (फोटोः India Today)
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राघवेंद्र शुक्ला
2 जुलाई 2025 (Updated: 2 जुलाई 2025, 11:58 PM IST) कॉमेंट्स
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भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी (Mahendra Singh Dhoni) को 'कैप्टन कूल' (Captain Cool) कहा जाता है. उन्होंने फैन्स की ओर से दिए गए इस नाम को 'ट्रेडमार्क' करा लिया है. ट्रेडमार्क रजिस्ट्री (TMR) ने उनके आवेदन को मंजूर कर लिया है और इसे अपने ऑफिशियल जर्नल में पब्लिश भी कर दिया है. अब अगर अक्टूबर 2025 तक इस पर कोई आपत्ति नहीं आती है तो ये ट्रेडमार्क रजिस्टर्ड हो जाएगा और धोनी को 'Captain Cool' शब्द पर कानूनी अधिकार मिल जाएगा. धोनी ने Class-41 के तहत आवेदन किया था, जिसमें शिक्षा, मनोरंजन, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़े ट्रेडमार्क दिए जाते हैं.

ये खबर सुनने के बाद आपके मन में भी सवाल होगा कि ये Trademark क्या चीज होती है? इसके फायदे क्या होते हैं? चलिए विस्तार से जानते हैं.

ट्रेडमार्क किसी ब्रांड की खास पहचान होती है, जो उसे अन्य ब्रांड से अलग करती है. आपने अमूल दूध का पैकेट देखा होगा. उसमें एक लड़की की एनिमेटेड फोटो लगी होती है. वह इस ब्रांड का ट्रेडमार्क है. नाइक (Nike) के ब्रांड्स पर 'टिक' मार्क हो या एप्पल (Apple) के आईफोन पर कटा हुआ सेब, ये सब उन ब्रांड्स के ट्रेडमार्क कहे जाते हैं. इनसे प्रोडक्ट्स की अपनी अलग पहचान जाहिर होती है. यह ब्रांड को प्रोडक्ट की डुप्लीकेसी से कानूनी तौर पर बचाता है. 

ट्रेडमार्क कोई शब्द हो सकता है या कोई निशान या फिर लोगो. कोई तस्वीर या कोई ‘दिया गया नाम’. जैसे धोनी को लोगों ने ‘कैप्टन कूल’ का नाम दिया तो वह उसे ट्रेडमार्क के तौर पर रजिस्टर करा रहे हैं. कुल मिलाकर ट्रेडमार्क यह साबित करता है कि प्रोडक्ट किसी खास कंपनी का है और उस ब्रांड पर उसी कंपनी का हक है. इसे बौद्धिक संपत्ति यानी इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी माना जाता है.

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महेंद्र सिंह धोनी ने 'कैप्टन कूल' को ट्रेडमार्क के तौर पर रजिस्टर कराया है (फोटोः Live Law)
Trademark कौन रजिस्टर करा सकता है?

भारत में कोई भी व्यक्ति किसी शब्द, लोगो या प्रोडक्ट को ट्रेडमार्क के तौर पर रजिस्टर करवा सकता है, चाहे उसका अपना बिजनेस हो या न हो. शर्त बस यही है कि जिस नाम, लोगो, शब्द या चिह्न का ट्रेडमार्क रजिस्टर कराया जा रहा हो, वह पहले से किसी और के नाम पर न हो. 

फायदे क्या होते हैं?

आपका ब्रांड, नाम या लोगो अगर रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क है तो कोई दूसरा उसे बिना आपकी इजाजत के इस्तेमाल नहीं कर सकता. अगर करता है तो आप उस पर केस कर सकते हैं. यह आपके प्रोडक्ट या सर्विस की अलग पहचान बनाता है, जिससे ग्राहक आसानी से भरोसा करते हैं और आपको असली ब्रांड के तौर पर पहचानते हैं.

क्या है Trademark Process?

इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑफ इंडिया (Intellectual Property In India) की वेबसाइट के मुताबिक, फिलहाल ट्रेडमार्क (TM) आवेदन की प्रोसेसिंग पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम के जरिए होती है. आवेदन हाइब्रिड मोड में ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से किया जा सकता है. आजकल तकरीबन 98% आवेदन ऑनलाइन होते हैं. जो ऑफलाइन आवेदन भी आते हैं, उन्हें सबसे पहले डिजिटल फॉर्म में बदला जाता है और फिर पूरी प्रोसेसिंग इलेक्ट्रॉनिक तरीके से की जाती है.

आवेदन की जांच ऑटोमेटेड सिस्टम से की जाती है. एग्जामिनर इस जांच की रिपोर्ट तैयार करता है और उसे एग्जामिनेशन कंट्रोलर के पास भेजता है. कंट्रोलर अगर जांच से संतुष्ट है तो रिपोर्ट को मंजूरी दे देता है और रिपोर्ट जारी हो जाती है. अगर कुछ कमी लगती है तो रिपोर्ट दोबारा एग्जामिनर के पास भेजी जाती है.

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महेंद्र सिंह धोनी (फोटोः इंडिया टुडे)

इस स्टेज पर आवेदन या तो स्वीकार कर लिया जाता है और ट्रेडमार्क जर्नल में पब्लिश हो जाता है या फिर आपत्ति लगाई जाती है. आपत्ति होने पर आवेदक को 30 दिन में जवाब देना होता है.

अगर आपत्ति रिपोर्ट का जवाब समय पर नहीं दिया तो आवेदन छोड़ दिया जाता है.

अगर जवाब दिया तो यह भी ऑटोमेटेड सिस्टम से क्रम से अधिकारी को भेजा जाता है. अधिकारी या तो आवेदन स्वीकार कर लेता है और TM जर्नल में प्रकाशित कर देता है या फिर सुनवाई का मौका देता है.

अगर आवेदन स्वीकार हो जाए तो वह TM जर्नल में प्रकाशित होता है. इसके बाद चार महीने तक अगर कोई विरोध नहीं आता तो ऑटोमेटेड सिस्टम से रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जारी हो जाता है.

अगर कोई इसका विरोध करता है तो दोनों पक्षों को सुनवाई का मौका दिया जाता है. अगर विरोध खारिज हो जाए तो रजिस्ट्रेशन हो जाता है. वहीं, अगर विरोध स्वीकार हो जाए तो आवेदन रद्द हो जाता है.

ट्रेडमार्क 10 साल के लिए मान्य होता है और हर 10 साल पर फीस देकर रिन्यू कराया जा सकता है.

भारत में ट्रेडमार्क्स रजिस्ट्री (TMR) की शुरुआत 1940 में हुई थी. फिलहाल, यह ट्रेडमार्क्स एक्ट- 1999 और उसके नियमों को लागू करने का काम करती है. इस एक्ट का मकसद ट्रेडमार्क के आवेदनों को रजिस्टर करना, गुड्स और सर्विस के ट्रेडमार्क को सिक्योरिटी देना और किसी भी तरह के गलत या धोखाधड़ी वाले इस्तेमाल को रोकना है.

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