एलियो खसाया के बारे में जानकर कहेंगे, इंसान के रूप में शैतान है!
लाइबेरिया में चले गृह युद्ध में एलियो खसाया पर वॉर क्राइम के संगीन आरोप हैं.
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एलियो खसाया
ये पूरा मामला क्या है?
ये 1817 की बात है. उन दिनों अमेरिका में एक ग्रुप था- ACS. पूरा नाम- अमेरिकन कोलोनाइज़ेशन सोसायटी. इस संगठन का काम था, अमेरिकी ग़ुलामों को खरीदकर उन्हें आज़ाद करना. इन आज़ाद किए गए गुलामों को जहाज़ के रास्ते एक नई जगह भेज दिया जाता था. कहां? पश्चिम अफ्रीका की एक ज़मीन पर. जिसे ACS ने वहां के स्थानीय कबीलों से खरीदा था.

अमेरिकन कोलोनाइज़ेशन सोसायटी (फोटो: loc.gov)
क्या ACS परोपकार कर रहा था?
क्या उसका मकसद ग़ुलामी प्रथा को ख़त्म करना था? नहीं, उनका मकसद था गुलामों से एक अलग तरह का फ़ायदा कमाना. उन्हें इस शर्त पर आज़ादी देना कि वो उनकी खरीदी नई जगह पर जाकर बस जाएंगे. ACS इस नई जगह को अपनी कॉलोनी बनाना चाहता था. मगर ऐसा हो नहीं पाया. स्लेवरी सिस्टम ख़त्म करने की मांग कर रहे लोगों ने ACS का ख़ूब विरोध किया. ACS की जेब भी खाली हो गई. और इस तरह 1840 के बाद ये संगठन आया-गया हो गया.

विलियम टोलबर्ट (एएफपी)
ACS तो गया, मगर उसकी खरीदी ज़मीन और उसके द्वारा छोड़े गए गुलामों का क्या हुआ? वहां एक नया देश बन गया. इसका नाम पड़ा- लाइबेरिया. जुलाई 1847 में अपनी आज़ादी का ऐलान करने के बाद लाइबेरिया बना एक लोकतंत्र. अब हम कहानी को फास्ट फॉरवर्ड करके आते हैं 1980 पर. इस वक़्त यहां के राष्ट्रपति थे विलियम टोलबर्ट. उनकी सरकार का सैन्य तख़्तापलट कर दिया गया. सैमुअल डो के नेतृत्व में हुए इस तख़्तापलट में राष्ट्रपति टोलबर्ट मार डाले गए. इसके बाद देश में आ गई तानाशाही.

लाइबेरिया (गूगल मैप्स)
लाइबेरिया में कई अलग-अलग कबीले हैं. कबीलों के बीच टेंशन रहती थी. सैमुअल डो ने इस टेंशन को और भड़काया. कई कबीलों को निशाना बनाने लगे. इसकी प्रतिक्रिया में बना एक विद्रोही गुट. इसका नाम था- NPFL. पूरा नाम, नैशनल पेट्रिअटिक फ्रंट ऑफ लाइबेरिया. इसका लीडर चार्ल्स टेलर कभी ख़ुद भी तानशाह सैमुअल डो का सहयोगी रहा था. दिसंबर 1989 में टेलर के नेतृत्व वाले NPFL ने सरकार के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष छेड़ दिया. ये कहलाया लाइबेरिया का पहला सिविल वॉर. ख़ूब हिंसा हुई इसमें. 1990 आते-आते लाइबेरिया के ज़्यादातर हिस्से विद्रोही गुटों के कब्ज़े में आ गए. सैमुअल डो को भी क़त्ल कर दिया गया.

सैमुअल डो (एएफपी)
जिस सरकार से लड़ने को विद्रोही एकजुट हुए थे, अब वो सरकार जा चुकी थी. तो क्या अब हिंसा ख़त्म हो गई? जवाब है, नहीं. अब विद्रोही गुट में भी कई धड़े बन गए. ये सब सत्ता पाने के लिए आपस में लड़ने लगे. करीब सात साल तक चली ये हिंसा. इस दौरान लाइबेरिया के करीब एक लाख लोग मारे गए. करीब 10 लाख लोगों को अपना घर-बार छोड़कर देश के बाहर भागना पड़ा. 1997 में बहुत बीच-बचाव के बाद एक पीस डील हुई और NPFL के नेता चार्ल्स टेलर देश के राष्ट्रपति बना दिए गए.

चार्ल्स टेलर (एएफपी)
नई सरकार के आने से भी लाइबेरिया के हालात नहीं सुधरे
1999 में यहां फिर से सिविल वॉर शुरू हो गया. बहुत बीच-बचाव और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद ये जंग ख़त्म हुई 2003 में. 2005 में यहां निष्पक्ष लोकतांत्रिक चुनाव हुए और इसमें जीतकर राष्ट्रपति बनीं ऐलेन जॉनसन सरलीफ़.
ये तो हुआ सिविल वॉर का ब्रीफ इतिहास. अब आपको इस सिविल वॉर की परतें हटाकर इसका घिनौना चेहरा दिखाते हैं. हमने आपको बताया था कि इस युद्ध में कई विरोधी गुट शामिल थे. एक तो था, चार्ल्स टेलर का NPFL. ये सबसे बड़ा गुट था. इसके बाद दूसरे नंबर पर था- ULIMO. पूरा नाम- यूनाइटेड लिबरेशन मूवमेंट ऑफ लाइबेरिया फॉर डेमोक्रेसी. इसके अलावा तीसरा बड़ा गुट था- AFL. पूरा नाम- आर्म्ड फोर्सेज़ ऑफ लाइबेरिया.

ऐलेन जॉनसन सरलीफ़
ये तीन प्राइमरी ग्रुप्स थे. जैसे-जैसे सिविल वॉर आगे बढ़ा, इनमें भी बंटवारे होने लगे. एक कबीले के लोगों ने अपना गुट बना लिया, दूसरे कबीले ने अपना. इन सबकी आपस में लड़ाई होने लगी. ये कभी गांव जलाते. नरसंहार करते. वहां की महिलाओं और बच्चियों का रेप करते. इनकी क्रूरताओं के एक बड़ा शिकार हुए बच्चे. हुआ ये कि रेबेल फोर्सेज़ को अपना विस्तार करने के लिए लड़ाकों की ज़रूरत पड़ती. संख्याबल ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ाने के लालच में ये बच्चों को पकड़कर उन्हें हथियार थमा देते. ये बच्चे कहलाते थे- चाइल्ड सोल्ज़र्स.

चाइल्ड सोल्ज़र्स. (एएफपी)
क्या होता था इन चाइल्ड सोल्ज़र्स के साथ?
इसके जवाब में हम आपको दो सैंपल कहानियां सुनाते हैं.
पहली कहानी
एक 15 साल का लड़का था. 1990 के साल उसका इलाका भी सिविल वॉर के चपेट में आया. उसके पिता परिवार के लिए सुरक्षित जगह खोजने घर से निकले, मगर फिर कभी लौटे नहीं. लड़के को अपनी मां की परवाह थी, जो पास के एक शहर में रहती थी. वो मां के पास जाने के लिए निकला. मगर रास्ते में एक चेकपॉइंट पर आकर INPFL नाम के एक विद्रोही गुट ने उसे पकड़ लिया. उनके पास कुछ और क़ैदी भी थे. इन क़ैदियों में विरोधी गुट का एक सैनिक भी था. INPFL वालों ने उस 15 साल के लड़के के आगे दो विकल्प रखे. या तो वो उस क़ैद लड़ाके की हत्या करे. या फिर ख़ुद मारा जाए. अपनी जान बचाने के लिए उस लड़के को पहला विकल्प चुनना पड़ा. इसके बाद INPFL ने उसे हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी और उसे भी युद्ध में झोंक दिया.
दूसरी कहानी
एक 14 साल के बच्चे की है. इसका कोड नेम था, BH.वो अपनी चाची के साथ रहता था. सिविल वॉर के कारण BH के गांव में भुखमरी की स्थिति हो गई. वो खाने की तलाश में घर से निकला और एक रेबेल ग्रुप के हाथ पड़ गया. उन्होंने BH के हाथ-पांव बांध दिए. कई दिन तक भूखा-प्यासा रखकर उसे कड़ी धूप में तपाया. BH के आगे भी दो रास्ते थे. या तो तड़प-तड़पकर मर जाए. या हथियार उठाकर गुट में शामिल हो जाए.
ये सैंपल कहानियां हैं. 9-10 साल से लेकर 18 साल की उम्र तक के हज़ारों बच्चों का यही हश्र हुआ लाइबेरिया में. अनाथ बच्चे बस ज़िंदा रहने की चाहत में हत्यारे बन गए. क्या आप सोच सकते हैं कि 12 साल का बच्चा चाकू से किसी की गरदन काट दे? या किसी लड़की से ग्रुप रेप करने के बाद उसके सिर में चाकू घोंप दे? ऐसी एक-दो नहीं, सैकड़ों दास्तानें हैं. ऐसी कहानियां, जब इन बच्चों ने बताया कि एक पॉइंट के बाद उनको खून बहाने में मज़ा आने लगा था. वो टॉर्चर करने में सुख पाने लगे थे. कई केस तो ऐसे हैं, जब गैंग जॉइन करने के बाद इन बच्चों ने अपनी पुरानी खुन्नस निकाली. कभी किसी टीचर ने पीटा था, तो उसको जाकर काट दिया. अपने दोस्त के सामने उसकी मां का रेप किया.

लाइबेरियन सिविल वॉर और चाइल्ड सोल्ज़र्स. (एएफपी)
ये सब हम आज क्यों बता रहे हैं आपको?
इसलिए कि 3 दिसंबर को स्विट्ज़रलैंड से एक मुकदमे की ख़बर आई है. वहां 45 साल के एक आदमी 'एलियो खसाया' पर केस शुरू हुआ है. इस केस की कहानी भी लाइबेरियन सिविल वॉर से जुड़ी है.
एलियो 14 साल का था, जब इस सिविल वॉर में शामिल हुआ. वो मेंबर था- ULIMO का. बतौर चाइल्ड सोल्ज़र शुरुआत करने वाले एलियो ने बालिग होने के बाद भी ये लड़ाई नहीं छोड़ी. वो ULIMO में एक बड़ा कमांडर बन गया. उसके ऊपर लगे प्रमुख इल्ज़ाम कुछ यूं हैं-
अपने हथियारबंद ग्रुप में बच्चों की भर्ती करना निर्दोष लोगों की हत्या, नरसंहार बच्चों और महिलाओं से बलात्कार एक विस्थापित औरत को जबरन अपनी पत्नी बनाना, उसके साथ बार-बार रेप
एलियो पर लगा एक आरोप और भी भीषण है. इल्ज़ाम है कि उसने एक स्कूल टीचर की हत्या की. शरीर चीरकर उसका दिल निकाला. फिर उसके टुकड़े करके खा गया.
अपराध लाइबेरिया में तो केस स्विट्ज़रलैंड में कैसे चल रहा है?
हुआ ये कि सिविल वॉर ख़त्म होने के बाद विद्रोही गुटों से जुड़े कई कमांडर विदेश भाग गए. उन्हें डर था कि अपने देश में रहे, तो शायद पकड़े जाएं. एलियो भी 1997 में लाइबेरिया से भागकर स्विट्ज़रलैंड पहुंचा और यहीं बस गया. बाद के सालों में लाइबेरियन सिविल वॉर के दौरान हुए युद्ध अपराधों पर जागरूकता फैली. दोषियों को खोजकर उन्हें उनके किए की सज़ा दिलवाने की कोशिशें शुरू हुईं. भुक्तभोगियों और चश्मदीदों के बयान दर्ज करके ऐसे दोषियों की लिस्ट बनाई गई. इस लिस्ट में एलियो का भी नाम था.

एनजीओ सिविटास मैक्सिमा
कई विदेशी संगठन भी एलियो जैसे युद्ध अपराधियों की तलाश में जुटे थे. इनमें से ही एक NGO था- सिविटास मैक्सिमा. ये स्विट्ज़रलैंड के जिनिवा स्थित एक NGO है. सिविटास मैक्सिमा को अपनी छानबीन के दौरान पता चला कि एक वॉर क्रिमिनल स्विट्ज़रलैंड में लेक जिनिवा के पास रह रहा है. इन्होंने इसकी जानकारी स्विस अटॉर्नी जनरल को दी और एलियो के खिलाफ़ एक केस दर्ज करवाया. इसी शिकायत के आधार पर नवंबर 2014 में एलियो को अरेस्ट कर लिया गया.
आमतौर पर ऐसे मामलों में आरोपी को उसके देश के हवाले कर दिया जाता है. मगर स्विट्ज़रलैंड ने ऐसा नहीं किया. उसने कहा कि वो ख़ुद ही एलियो पर केस चलाएगा. इसकी वजह है, 2011 में पास हुआ एक स्विस कानून. इसके तहत, स्विट्ज़रलैंड ने प्रावधान बनाया था कि कोई वॉर क्रिमिनल उसके यहां पकड़ा जाता है, तो स्विट्ज़रलैंड को उसके ऊपर केस चलाने का अधिकार होगा. फिर चाहे वो वॉर क्राइम किसी भी देश में क्यों न हुआ हो. एलियो के केस में पहली दफ़ा स्विट्ज़रलैंड इस कानून का इस्तेमाल कर रहा है. ये भी पहली बार है, जब स्विट्ज़रलैंड ऐसे किसी वॉर क्राइम को मिलिटरी कोर्ट नहीं, बल्कि क्रिमिनल कोर्ट में चला रहा हो.
अपने ऊपर लगे आरोपों पर एलियो का क्या कहना है?
उसके मुताबिक, ये आरोप झूठे हैं. लोफा नाम के जिस प्रांत में ये युद्ध अपराध हुए, वहां वो मौजूद ही नहीं था. एलियो के मुताबिक, गुट के बाकी लड़ाकों द्वारा किए गए क्राइम्स का ठीकरा उसके सिर फोड़ा जा रहा है. एलियो का दावा है कि वो निर्दोष है और इस केस के रास्ते अपना खोया सम्मान हासिल करने की उम्मीद करता है.
क्या लाइबेरिया ने उन्हें कोई सज़ा दी? इसका जवाब है, नहीं. 1989 से 2003 तक चली हिंसा में वहां ढाई लाख से ज़्यादा लोग मारे गए. 10 लाख से ज़्यादा लोग बेघर हुए. सैकड़ों महिलाओं के साथ रेप हुआ. इंसानों को पकाकर खाने जैसी दरिंदगी हुई. मगर इनके दोषियों को लाइबेरिया में अब तक कोई सज़ा नहीं मिली. किसी पर मुकदमा तक नहीं चला. इसकी एक बड़ी वजह ये है कि अपराध में शामिल कई वॉरलॉर्ड्स आज भी ताकतवर ओहदों पर हैं. वो ये मामला खुलने नहीं देते. कोई गवाह सामने आने की कोशिश भी करता है, तो उसको धमकाकर चुप करा दिया जाता है.
अबतक ऐसे केवल एक ही अपराधी को सज़ा मिली है. वो भी लाइबेरिया से बाहर. इस हत्यारे का नाम था- मुहम्मद जबातेह उर्फ़ जंगल जबाह. वो लाइबेरिया से भागकर अमेरिका में बस गया था. यहीं पर 2016 में वो अरेस्ट हुआ. मुकदमे के दौरान लाइबेरिया के कई लोग जबातेह के खिलाफ़ गवाही देने कोर्ट पहुंचे. इनमें से एक ने अदालत को बताया कि जबातेह और उसके लड़ाके इंसानों का मांस खाते थे. एक दफ़ा तो इन्होंने एक औरत को फोर्स करके उससे उसके ही पति के कलेजे को पकवाया. कोर्ट ने जबातेह को 30 साल की क़ैद सुनाई.
जस्टिस के लिहाज से देखें, तो स्विट्ज़रलैंड में एलियो पर शुरू हुआ केस ऐतिहासिक है. पीड़ित परिवारों को उम्मीद है कि इस केस के चलते शायद लाइबेरियन गवर्नमेंट पर भी प्रेशर आए. वो भी ऐसे मामलों में कार्रवाई शुरू करे. सोचिए, कितना अजीब है. जिस देश में इतने बड़े स्तर पर मानवीय अपराध हुए, उसको इंसाफ़ की कुछ पड़ी ही नहीं है.

बीस्ट्स ऑफ नो नेशन.
आज हमने आपको अफ्रीका के चाइल्ड सोल्ज़र्स की कहानी बताई. इस टॉपिक पर एक फिल्म है- बीस्ट्स ऑफ नो नेशन. ये आगु नाम के एक बच्चे की कहानी है. सिविल वॉर में अपना घर-परिवार गंवाने के बाद आगु मरसिनरी फाइटर्स के हाथ लग जाता है. चाइल्ड सोल्ज़र बन जाता है. फिल्म में आप आगु को एक सामान्य बच्चे से हत्यारे में तब्दील होते हुए देखते हैं. ये कहानी अफ्रीका के कई हिस्सों की आपबीती है. वक़्त मिले, तो फिल्म देखिएगा.