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भारत का असली दुश्मन कौन? क्या कहता है कानून?

दुश्मन, शत्रु, एनिमी. इन शब्दों को सुनकर आपके दिमाग में पहली चीज़ क्या आती है?असल में देश का दुश्मन कौन है? देश का कानून इस बारे में क्या कहता है?

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enemy of the state
देश के दुश्मन किसे कहेंगे
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1 मार्च 2024 (Updated: 4 मार्च 2024, 20:00 IST)
Updated: 4 मार्च 2024 20:00 IST
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18 अप्रैल 1944 की बात है. महाराष्ट्र के एक हिल स्टेशन matheran में इंदिरा गांधी मौसम का आनंद ले रही थीं. तभी उन्हें एक धमाके की आवाज़ सुनाई दी. ये आवाज़ आई थी मुंबई से. 
मुंबई के विक्टोरिया डॉक्स पर एक जहाज खड़ा था. जहाज में गर्दन तक डायनामाइट लदा हुआ था. वही डायनामाइट जिसके आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल के नाम पर नोबेल प्राइज़ दिया जाता है. 
धमाके की कंपन आसपास की इमारतों में भी महसूस की गई. इनमें से एक बिल्डिंग थी साउथ कोर्ट. मालाबार हिल्स में मौजूद इस घर के मालिक और कोई नहीं बल्कि पाकिस्तान बनाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना थे. खबर पहुंची तो जिन्ना परेशान हो गए. घर बिकने में पहले ही दिक्कत आ रही थी, और अब ये नुक़सान की मुसीबत अलग.  इसके बाद 1968 में भारत सरकार ने एक और एक्ट पास किया, एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट, जिसके तहत ऐसे देश जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया हो, उनकी किसी संपत्ति को सरकार कब्ज़े में ले सकती थी. और मोहम्मद अली जिन्ना और पाकिस्तान, दोनों ही भारत के दुश्मन. 
तो समझते हैं कि असल में हमारा दुश्मन कौन है? 
-एनिमी या दुश्मन कौन है? ये कैसे तय होता है?
-दुश्मन डिक्लेयर होने के बाद उसपर क्या कार्रवाई होती है?

दुश्मन, शत्रु, एनिमी. इन शब्दों को सुनकर आपके दिमाग में पहली चीज़ क्या आती है?कोई व्यक्ति जिसने आपके साथ गलत किया हो, कोई संगठन जिसकी वजह से आपको कभी नुकसान हुआ हो या कोई देश जिसने आपके देश पर हमला किया हो? अपने मन के हिसाब से तो आप पड़ोसी को भी दुश्मन मान लें जो आए दिन आपके दरवाजे के सामने कूड़ा फेंक जाता है. पर ये तो हुई मज़ाक की बात. असल में देश का दुश्मन कौन है? देश का कानून इस बारे में क्या कहता है? 
दुश्मन को परिभाषित करने के लिए भारत के संविधान में एक एक्ट है. नाम है THE DEFENCE OF INDIA ACT, 1962.

क्या है इस एक्ट में? 
ये एक्ट भारत में पब्लिक की सेफ़्टी और उसकी सुरक्षा के लिए लाया गया था. इसमें पब्लिक की सेफ़्टी से जुड़े कुछ विशेष प्रावधान दिए गए हैं जो जंग, इमरजेंसी जैसे हालत में काम आते हैं. 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान preventive detention यानी बाद के खतरे को टालने के लिए किसी को हिरासत में लेने के लिए ये कानून लाया गया था. इसे शुरुआत में एक राष्ट्रपति के आदेश के बाद लाया गया था. तब इसे डिफेंस ऑफ इंडिया ऑर्डिनेंस 1962 के नाम से जाना गया. इसमें देश की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित हो? इसके लिए नियम तय किये गए थे. फिर दिसम्बर 1962 में संसद से पास होने के बाद इस अध्यादेश ने कानून का रूप ले लिया. इसमें कुल 156 नियम शामिल थे जो इंसानी जीवन के कई पहलू मसलन ट्रैवल, फाइनेंस, व्यापार, कम्युनिकेशन, पब्लिशिंग को रेगुलेट करते थे. इस कानून ने किसी भी आरोपी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को सस्पेंड कर दिया. साथ इसके रूल 30 ने अनुच्छेद 22 के तहत मिले हुए right to representation को भी सस्पेंड कर दिया. इस वजह से इस कानून ने सरकार को  बिना मजिस्ट्रेट के सामने पेश किये व्यक्ति को हिरासत में रखने की अनुमति दे दी.

किस पर लागू होता है ये कानून?
-ये कानून पूरे भारत पर लागू होता है. 
-ये भारत के सभी नागरिकों पर लागू होता है. चाहें वो देश में हों या देश के बाहर हों. 
-आर्मी, नेवी और एयरफोर्स या देश के किसी और आर्म्ड फोर्स के सदस्यों या उससे जुड़े लोगों पर. 
-भारत में रजिस्टर्ड जहाजों (पानी के जहाज) और विमानों पर सवार व्यक्तियों पर भी ये एक्ट लागू होता है, चाहे वो कहीं भी हों.

 एक्ट के तहत दुश्मन किसे कहा जाता है ?
-कोई भी व्यक्ति, फर्म या देश जो भारत के खिलाफ बाहरी हमला कर रहा है. 
-किसी देश से संबंधित कोई भी व्यक्ति या फर्म अगर भारत के खिलाफ आक्रामकता या अग्रेशन दिखा रहा है; तो उसे दुश्मन माना जाता है. 
-केंद्र सरकार ऐसे किसी देश को दुश्मन घोषित कर सकती है जो भारत के खिलाफ किसी भी तरह की आक्रामकता दिखा रहा हो. 
-और जिस देश ने अग्रेशन दिखाया है, उस देश से जुड़ा हुआ कोई भी व्यक्ति दुश्मन की कैटगरी में आता है. 
-साथ ही उस देश से जुड़ी फ़र्मों को भी दुश्मन माना जाता है.


इस कानून के तहत केंद्र सरकार को कुछ विशेष पावर्स मिलती हैं. सरकार इन पावर्स का इस्तेमाल नियम बनाने के लिए करती है. जैसे:
-भारत सरकार Official Gazette में अधिसूचना जारी करते हुए ऐसे नियम बनाए, जो भारत की रक्षा और नागरिक सुरक्षा लिए जरूरी हों. 
-नियम ऐसे होंगे जो भारत की नागरिक सुरक्षा, पब्लिक ऑर्डर का मेंटेनेंस, आर्म्ड फोर्सेस की सुचारू मूवमेंट और नागरिकों के जीवन के लिए आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति को सुनिश्चित कर सकें. 

नियम बनाने के अलावा इसमें सरकार को ऐसे कदम उठाने होते हैं जिससे दुश्मन की मदद करने वाले प्रभावशाली लोगों को रोकना या प्रतिबंधित करना शामिल है. इसमें मिलिट्री ऑपरेशन्स और नागरिक सुरक्षा का सुचारु रूप से काम करना शामिल है.

दुश्मन की मदद को लेकर इसमें कुछ प्रतिबंध भी हैं, जैसे-
-दुश्मन या उसके एजेंट्स से किसी भी तरह का संपर्क रखना. 
-किसी कानूनी अधिकार के अधिग्रहण, कब्जा या किसी सेंसिटिव सूचना का प्रकाशन जिससे दुश्मन को मदद पहुंच सकती है. 
-दुश्मन या उसकी ओर से लिए गए कर्जों या लोन्स में किसी भी तरह का योगदान या भागीदारी जो दुश्मन  को मदद पहुंचाए. 
-दुश्मन के साथ किसी भी तरह से पैसे का लेन-देन, या किसी भी तरह का व्यापार. साथ ही दुश्मन के इलाके या उसके द्वारा कब्जा किये हुए इलाके में मौजूदगी. 
-और नागरिक सुरक्षा, मिलिट्री ऑपरेशन्स पर किसी भी तरह का प्रतिकूल असर डालने वाले कम्युनिकेशन जैसी चीजों को प्रतिबंधित किया गया है.


इस कानून में कुछ चीजों या यूं कहें कि कुछ जगहों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना जरूरी बताया गया है. जैसे:
-बंदरगाह, डॉकयार्ड, लाइटहाउस, छोटे जहाज और एयरोड्रोम. 
-रेलवे लाइन्स, ट्राम की लाइन्स, सड़कें, पुल, नहरें और जमीन या पानी पर मौजूद हर वो रास्ता जिससे ट्रांसपोर्टेशन होता है. 
-टेलीग्राफ, पोस्ट ऑफिस, सिग्नल के एक्विपमेंट्स और साथ ही कम्युनिकेशन के सारे माध्यम. 
-बिजली और पानी की सप्लाई लाइन. 
-खदानें, ऑयल-फील्ड, फैक्ट्री की सुरक्षा. 
-ऐसे लैब्स जहां कोई महत्वपूर्ण रिसर्च जारी हो या कोई ट्रेनिंग चल रही हो. 
-और साथ ही ऐसी जगहें जहां से प्रशासन संचालित होता है. ये ऐसी जगहें होती हैं जिनकी सुरक्षा अगर खतरे में पड़ जाए तो चीजों को चलाने के लिए कोई आदेश देने वाली बॉडी नहीं रहेगी. इससे मिलिट्री ऑपरेशन्स और सिविल डिफेंस पर असर पड़ सकता है. लिहाजा ऐसी जगहों की सुरक्षा बहुत ही अहम हो जाती है.

 क्या सजा होती है?
-एक्ट के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति देश के खिलाफ जंग छेड़ने के इरादे से कोई काम करे,, या किसी ऐसे देश के साथ हो जो भारत के बाहर उसके खिलाफ काम कर रहा है. ऐसे में उस व्यक्ति को मौत की सजा, आजीवन कारावास या एक अवधि के लिए जेल हो सकती है. जेल की ये अवधि 10 साल तक हो सकती है. साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है.

इतना समझने के बाद एक सिनेरियो पर गौर करते हैं. फर्ज करिए की कोई व्यक्ति भारत का दुश्मन है. वो भारत से बाहर है पर उसकी या उससे जुड़ी कोई संपत्ति भारत में है. जैसा कि हमने आपको मोहम्मद अली जिन्ना के बंगले के बारे में शुरू में बताया. ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसे मामलों में कौन सा कानून लागू होगा? तो ऐसे केसेस के लिए जो कानून है उसका नाम है Enemy Property Act, 1968.

 एनिमी प्रॉपर्टी किसे कहते हैं?
भारत ने पाकिस्तान से 4 बार जंग लड़ी है. पहली 1948 में, दूसरी बार 1965 में, तीसरी 1971 में और चौथी बार 1999 की कारगिल बैटल.  पर इस कानून का सिरा जुड़ता है 1965 और 1971 की जंग में. 1965 के बाद बड़े पैमाने पर लोग भारत से पाकिस्तान चले गए. पर उनकी जमीन और घर यहीं रह गए. जब दो देशों में जंग होती है तो सरकार 'दुश्मन देश' के नागरिकों की संपत्ति को कब्जे में ले लेती है, ताकि दुश्मन लड़ाई के दौरान इसका फायदा न उठा सके. भारत ने भी यही किया. इन "शत्रु संपत्तियों" की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होती है माने केंद्र सरकार इसकी  संरक्षक या कस्टोडियन के रूप में होती है.  1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद चीन चले गए लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति के लिए भी यही किया गया था.

10 जनवरी 1966 को उज्बेकिस्तान के ताशकंद में भारत-पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ था. इसमें एक क्लॉज़ जोड़ा गया जिसके तहत दोनों देश अपने-अपने यहां कब्जे में ली गई प्रॉपर्टी की वापस को लेकर चर्चा करेंगे. फिर समय बीतता गया, कैलेंडर पर साल आया 2017. इस साल भारत की संसद में एक बिल पास हुआ, नाम था  The Enemy Property (Amendment and Validation) Bill, 2016. ये 1968 के एक्ट का ही संशोधन था. संशोधन से ये हुआ कि 'शत्रु' और 'शत्रु फर्म' की परिभाषा का विस्तार हो गया. इसमें ऐसे लोग भी शामिल हो गए जो किसी भी एनिमी प्रॉपर्टी के उत्तराधिकारी हैं. चाहे वो किसी ऐसे देश के नागरिक हों जो भारत का दुश्मन न हो, फिर भी उनकी प्रॉपर्टी को एनिमी प्रॉपर्टी ही माना जाएगा.

मोहम्मद अली जिन्ना का बंगला, उसकी क्या स्थिति है? 
जिन्ना ने अपनी वसीयत में ये बंगला अपनी बहन फातिमा जिन्ना के नाम पर कर दिया था. पार्टीशन के बाद फातिमा पाकिस्तान चली गईं. 1962 में उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट से उत्तराधिकार का लेटर हासिल किया. पर इसके कुछ ही साल बाद 1968 में आ गया 'एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट 1968'. और जिन्ना का बंगला दुश्मन की संपत्ति घोषित हो गया. फिर 2007 में जिन्ना की बेटी दीना वाडिया ने इस बंगले पर दावा किया. दीना वाडिया की शादी भारत में हुई और वो भारत में बस गईं थीं. उन्होंने ये भी तर्क दिया था कि इस प्रॉपर्टी पर Hindu Succession Act लागू होता है क्योंकि जिन्ना भी दो पीढ़ी पहले हिन्दू थे. 
पर विदेश मंत्रालय ने दीना के दावे को खारिज कर दिया. मंत्रालय ने बॉम्बे हाई कोर्ट को बताया कि वसीयत के मुताबिक इस बंगले पर फातिमा जिन्ना का हक था, लेकिन वो पाकिस्तान चली गईं. लिहाजा, जिन्ना हाउस भारत की सरकार के अधीन हो गया और भारत सरकार ही इसकी संरक्षक या कस्टोडियन है.

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