राजनीति में हृदय परिवर्तन की फिजिक्स क्या है?
वैज्ञानिक आज तक इस बात पर सहमत नहीं हो पाए हैं कि ये संसार डिस्क्रीट है या कंटीन्यूअस? बोले तो, छोटे-छोटे पिक्सल्स, जिन्हें प्लांक लेंथ कहते हैं, से बना है या फिर सतत? हालांकि इसका हल जल्द ही खोज लिया जाएगा, ऐसा माना जा रहा है.
हृदय परिवर्तन की फिजिक्स क्या है?
दो अजीब और अविश्वसनीय दलों को जोड़ने का काम करते हैं-
अंतरात्मा की आवाज़ और हृदय परिवर्तन
दो पार्टियों को सिर्फ़ पुल ही नहीं जोड़ता, पुश भी जोड़ता है.
किसी बड़े कवि ने ऐसा कुछ या इससे मिलते जुलता, कुछ तो कहा है, याद आता है. और ये भी तो शायद उसी कवि ने लिखा है कि,
हृदय परिवर्तन-
अपनी आत्मा सुनने जैसा है
कौन सुन पाता है
आत्मा की आवाज़ को लाउड होते
वैज्ञानिक आज तक इस बात पर सहमत नहीं हो पाए हैं कि ये संसार डिस्क्रीट है या कंटीन्यूअस? बोले तो, छोटे-छोटे पिक्सल्स से बना है, या फिर सतत? हालांकि इसका हल जल्द ही खोज लिया जाएगा, ऐसा माना जा रहा है.
लेकिन वैज्ञानिक और गणितज्ञ (यहां तक कि कवि भी) हृदय परिवर्तन के मामले में ऐसी किसी खोज से फिलहाल दूर हैं. जैसे शून्य को शून्य से भाग देने पर जो आता है, उसकी समझ पैदा नहीं हो पाई है, वैसा ही हृदय परिवर्तन के मामले में है. आत्मा का राज़ युधिष्ठिर ने यक्ष को बता दिया और नचिकेता ने यम को. लेकिन अंतरआत्मा की आवाज़ पर हृदय परविर्तन कैसे होता है?
मतलब मेटामोर्फ़ोसिस के नायक की तरह, नेता जी एक दिन उठे और उन्होंने देखा कि उनका हृदय परिवर्तन हो गया?
या उन्होंने अंगुलिमाल की तरह बुद्धत्व को पाया?
या फिर ओशो की भाषा (या इरशाद कामिल की लिरिक्स) को उधार लेते हुए कहें तो, “घटना घटनी थी, घटना घट गई, हृदय परिवर्तन हो गया”. ऐसा कुछ होता है?
या फिर जैसे वॉशिंग मशीन कपड़े धोने में समय लगाती है - नॉर्मल, डर्टी, वेरी डर्टी - वैसे धीरे-धीरे हृदय से भी दाग छूटते हैं, परिवर्तन होता है. जैसा मूवी या किसी सीरिज़ के किसी नायक का करैक्टर आर्क होता है.
जैसा गेम ऑफ़ थ्रोंस के ‘जेमी लेनेस्टर’ का था, जैसा प्रेमचंद के पंडित अलोपिदीन का था, जैसा फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की के ऑलमोस्ट हर किरदार का होता है?
मौलिकता के संकट में भी एक सवाल तो मौलिक है ही - हृदय परिवर्तन ओशो की ‘घटना’ है या दोस्तोयेव्स्की का ‘करैक्टर आर्क’? वैसे करैक्टर आर्क होने के लिए करैक्टर की भी तो ज़रूरत पड़ती होगी? नहीं?
लेकिन फिर ‘पल्प फिक्शन’ के ‘मिस्टर वुल्फ’ हमारे सामने खड़े हो जाते हैं. उनका मानना है कि Just because you are a character doesn't mean you have character. तो क्या ये माना जाए कि जैसे ‘करैक्टर आर्क’ के लिए करैक्टर नहीं लगता, तो ‘हृदय परिवर्तन’ के लिए हृदय की ज़रूरत भी नहीं? जैसे कुछ लोगों का जीवन खुली किताब होता है, वैसे ही हमारी ये समस्या एक खुला सवाल है.
कुछ बकैत टाइप क्लासिक फ़िज़िक्स के जानकार तो ये भी पूछते पाए गए हैं कि परिवर्तन का फ्रेम ऑफ़ रेफ़्रेंस क्या है? और यूं परिवर्तन क़िसमें हो रहा है? ह्रदय में, नेता में या पार्टी में? और जिन पार्टियों में परिवर्तन ही परिवर्तन से लोग पहुंच गए हैं, उनके सामने क्या थीसियस के जहाज़ वाली समस्या नहीं खड़ी हो जाती होगी? एक बार फिर, ये एक खुला सवाल है.
सवाल एक और है. जो परिवर्तन हो रहा है, उसका व्याकरण क्या है? कौन कॉज है कौन इफ़ेक्ट? कौन कर्ता है, कौन कारक कौन कार्य? क्या, ‘करते हो तुम, मेरा नाम हो रहा है?’ टाइप का कुछ सिस्टम है? डिपेंड करता है कि फ़्रेम ऑफ रेफ़्रेंस नारायण शंकर का है या राज आर्यन? “जहां से मैं देख पा रहा हूँ एक बेटी का बाप हार गया।”
तो जैसा पहले भी कहा था, सवाल ‘असाध्य’ है. जैसा आयुर्वेद में कहा जाता है ना, ‘असाध्य रोग’. या ये कहें कि ये बात इररेलिवेंट है कि सवाल असाध्य है या साध्य. वो तो बस है. जैसे अरविंद और कमल एक दूसरे के पर्यायवाची हैं. लेकिन अरविंद(ओ) तो फार्मा भी है. जो दवा बनाती है साध्य रोगों की. लेकिन क्या हृदय परिवर्तन की भी कोई दवा हो सकती है? या कि ये सवाल ही इररेलिवेंट है. चिंता मत कीजिए. कुछ बातें दिल में आती हैं. समझ में नहीं.
अब जैसे राधेश्याम के एक पड़ोसी थे. ‘थे’ इसलिए कहा क्योंकि हृदय परिवर्तन हुआ तो पड़ोसी ना रहे. समधी बन गये. ह्रदय परिवर्तन राधेश्याम के पड़ोसी का नहीं, उनकी पुत्री और उनके पड़ोसी के पुत्र का. चूँकि ‘धर्म परिवर्तन’ वाली दिक्क्त नहीं थी अस्तु ‘हृदय परिवर्तन’ संभव था. स्पष्ट है कि दोनों परिवर्तन एक साथ संभव नहीं थे. मतलब इमोशन है, कोई फ़ोटोन थोड़ी ना, कि सेम टाइम में वेव भी हो और पार्टिकल भी. यूँ बच्चों की मर्ज़ी मान ली गई. वैसे बच्चों की मर्ज़ी मानना भी इकोनॉमिक्स के ब्रेक इवन पॉइंट वाले सिद्धांत को पूरी तरह समझना और अप्लाई करने सरीखा मुश्किल है. आख़िर कितनी मर्ज़ी मानी जाए कि साँप भी मार जाए और वीगनिज्म भी इंटैक्ट रहे.
बहरहाल राधेश्यम की कहानी हमारा मुद्दा भी ऐसे भटका रही है गोया इकॉनमी या बेरोज़गारी का मुद्दा। वो तुमसे राधेश्यम की बात करेंगे, तुम हृदय परिवर्तन पर अड़े रहना…
छोड़िए. मूल सवाल पर लौटते हैं. कि हृदय परिवर्तन की फिजिक्स क्या है? और इसका अंतरआत्मा की आवाज़ के साथ क्या रिश्ता है? क्या दोनों को मिलाने वाली कोई ग्रैंड थ्योरी है? या इसका उत्तर फ़िज़िक्स में नहीं फ़िलोसॉफ़ी में है? और वहां भी ‘नेति’ में नहीं ‘नेता’ में है? या नेता ही वो ग्रैंड थ्योरी है जो ‘इन्फ़ॉर्मेशन पैराडॉक्स’ को सुलझा सकती है?
आप पूछेंगे ‘इन्फ़ॉर्मेशन पैराडॉक्स’ क्या? तो बड़ा इंट्रेस्टिंग कॉन्सेप्ट है फ़िज़िक्स का। कि एक तरफ़ तो क्वांटम फ़िज़िक्स कहती है कि किसी भी इनफार्मेशन को नष्ट नहीं किया जा सकता, और दूसरी तरफ़ आइंस्टीन की थ्योरी के अनुसार ब्लैक होल में जो भी चीज़ जाती है वो नष्ट हो जाती है, इनफार्मेशन भी। यानी आसान भाषा में बोलें तो ब्लैक होल को आप 15 फरवरी 2024 से पहले का इलेक्टोरल बॉन्ड भी कह सकते हैं और क्वांटम फ़िज़िक्स को SBI.
बोला था ना इंट्रेस्टिंग कॉन्सेप्ट है पॉलिटिक्स का। जहां सत्य की परेशानी और पराजय पर विमर्श चलता है. और अंततोगत्वा, सत्य पराजित नहीं होता है. हां जो थोड़ी बहुत परेशानी हुई, उसे ‘सत्मेव जयते’ बोलकर पार्टी बदल ली जाती है.
ऐसे में मेरे भीतर बैठे कवि को किसी लुप्त हुए धर्म के, खो गए धर्मग्रंथ से कुछ अंश याद आ रहे हैं:
और अंत में परमेश्वर ने कहा, सुनो बच्चों! ह्रदय परिवर्तन के लिए अंतरआत्मा की आवाज़ ज़रूरी होगी. [१]
और ये भी कि, उसके बाद तुम्हें सत्मेव जयते कहना होगा [२]
और ऐसा कि, उसके बाद ही तुम अपने पापों से मुक्त हो पाओगे [३]
एक्सदोज़ख़ एनोनिमिसिया [४२०.१.१]
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