पानी के नीचे चलेगी कोलकाता मेट्रो, कैसे हुआ इसका कंसट्रक्शन?
अंडरग्राउंड में जहां रेल लाइन को जमीन के नीचे बनाया जाता है वहीं अंडरवाटर मेट्रो में रेल लाइन को पानी के नीचे बनाया जाता है.
2 जून 1972 , देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कोलकाता मेट्रो की आधारशिला रखी. उस समय तक भारत में कहीं भी मेट्रो सुविधा नहीं थी. उनकी हत्या से कुछ दिन पहले 24 अक्टूबर, 1984 को ये प्रोजेक्ट पूरा हुआ. और आज कोलकाता मेट्रो ने देश में पहली अंडरवाटर मेट्रो चलाकर अपने हिस्से एक और मील का पत्थर जोड़ लिया है. तो समझते हैं:
-अंडरवाटर मेट्रो लाइन क्या है ?
-दुनिया में और कहां-कहां अंडरवाटर रेलवे लाइंस हैं ?
-और कोलकाता मेट्रो का इतिहास क्या है?
कोलकाता. मशहूर फ्रेंच लेखक Dominique Lapierre इस शहर को City Of Joy कहा करते थे. और इसी City Of Joy से आई है एक खबर. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोलकाता में देश के पहले अंडरवॉटर मेट्रो सेक्शन का उद्घाटन किया है. हावड़ा मैदान मेट्रो स्टेशन और एस्प्लेनेड मेट्रो स्टेशन्स के बीच बना ये सेक्शन, हुगली नदी के नीचे बना हुआ है. ये अंडरवॉटर मेट्रो हावड़ा को सॉल्ट लेक सिटी से जोड़ेगी. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि अंडरवाटर और अंडरग्राउंड, दोनों अलग-अलग तरह की मेट्रो हैं. अंडरग्राउंड में जहां रेल लाइन को जमीन के नीचे बनाया जाता है वहीं अंडरवाटर मेट्रो में रेल लाइन को पानी के नीचे बनाया जाता है. यहां के पानी के नीचे, इस टर्म का मतलब है कि किसी भी नदी का जो सर्फेस होता है, उसके नीचे वाले हिस्से को खोदकर यहां मेट्रो चलाई जाती है. इसके लिए ट्यूब जैसे टनल या फिर कंक्रीट टनल का इस्तेमाल किया जाता है. कोलकाता अंडरवाटर मेट्रो को बनाने के लिए नदी के नीचे कंक्रीट टनल का इस्तेमाल किया गया है.
माने ये टनल नदी के नीचे की जो सतह है उससे भी 13 मीटर और नीचे बनाई गई है. दिल्ली मेट्रो में जैसी अंडरग्राउंड टनल है, ये भी वैसी ही है, बस अंतर इतना है कि ये नदी की सतह से नीचे बनाई गई है.
हुगली नदी के नीचे बना ये मेट्रो सेक्शन 16.6 किलोमीटर लम्बा है. इस सेक्शन में 6 स्टेशन हैं. उद्घाटन के बाद अब ये अंडरवॉटर मेट्रो आम लोगों के लिए उपलब्ध है. अधिकारियों ने उम्मीद जताई है कि ये मेट्रो हुगली नदी के नीचे 520 मीटर की दूरी को 45 सेकंड में तय करेगी. एस्प्लेनेड और सियालदह के बीच ईस्ट-वेस्ट अलाइनमेंट का हिस्सा अब भी बन रहा है. वहीं सॉल्ट लेक सेक्टर 5 से सियालदह तक का हिस्सा पहले से ही चालू है.
अंडरवाटर मेट्रो की खास बातें:
-इस सेक्शन पर मेट्रो, ऑटोमैटिक ट्रेन ऑपरेशन यानी ATO सिस्टम से चलेगी. ATO सिस्टम में मेट्रो ड्राइवर के एक बटन दबाने के बाद ट्रेन अपने आप अगले स्टेशन पर पहुंचेगी.
-जमीन की सतह से टनल की गहराई 33 मीटर है वहीं हुगली नदी के तल से इसकी गहराई 13 मीटर है.
-इस अंडरवॉटर मेट्रो में 5G इंटरनेट की सुविधा दी जाएगी. इसके टनल को ऐसा डिजाइन किया गया है कि टनल में पानी की एक भी बूंद अंदर नहीं जा सकती.
-ट्रेन की स्पीड 80 किलोमीटर प्रति घंटा होगी. ये स्पीड टनल के अंदर और बाहर, दोनों जगह होगी.
-हुगली नदी के अंदर बने इस टनल का डायमीटर 5.55 मीटर है. डायमीटर को ऐसे समझिये की जो टनल है वो सर्कल यानी गोलनुमा शेप की होती है. इस गोले के अंदर जो सबसे बड़ी इमेजनरी लाइन सर्कल के दो छोरों को कनेक्ट करे, उसे डायमीटर कहा जाता है.
-पानी के लीकेज को रोकने के लिए टनल में हाई क्वालिटी के एम-50 ग्रेड के कंक्रीट का इस्तेमाल किया गया है.
-टनल की अंदरूनी दीवार की मोटाई 275 मिलीमीटर है. इसमें भी एम-50 ग्रेड कंक्रीट यूज किया गया है.
प्रोजेक्ट की शुरुआत कब हुई:
इस प्रोजेक्ट का कॉन्ट्रैक्ट 2010 में कंस्ट्रक्शन कंपनी एफकॉन्स को दिया गया. एफकॉन्स ने टनल बनाने के लिए जर्मन कंपनी हेरेनकनेक्ट से टनल बोरिंग मशीन, TBM मंगाई. खास बात ये थी कि जर्मन कंपनी से मंगाई गई इन TBM मशीनों के नाम एफकॉन्स के एक कर्मचारी की बेटियों के नाम पर रचना और प्रेरणा रखे गए.
प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद सबसे बड़ी दिक्कत आई मिट्टी की खुदाई में. ऐसा इसलिए क्योंकि पूरे कोलकाता में मिट्टी एक जैसी नहीं है. कुछ ही दूरी पर अलग-अलग तरह की मिट्टी पाई जाती है. इसलिए सिर्फ मिट्टी के सर्वे में ही लगभग 6 महीने लग गए. इसके बाद कई बार मिट्टी की जांच के बाद ये तय हुआ कि हुगली नदी से 13 मीटर नीचे की मिट्टी टनल के लिए उपयुक्त है.
हाईकोर्ट ने काम रोका;
सब कुछ तय होने के बाद 2017 में TBM से सुरंग बनाना शुरू किया गया. इसके लिए 125 दिनों का समय रखा गया था पर इसे 67 दिनों में ही पूरा कर लिया गया. पर इसी दौरान एक दुर्घटना भी हो गई. 1 सितंबर 2019 को जब टनल बोरिंग मशीन चंडी सियालदह से आधे किलोमीटर की दूरी पर थी, तभी एक पत्थर से टकरा गई. नतीजा ये हुआ कि पूरी टनल में मिट्टी भरने लगी. इससे कोलकाता के बहू बाजार की कई बिल्डिंग्स धंस गई. लोगों में डर बैठ गया कि कहीं टनल की वजह से उनका घर भी न धंस जाए. सैंकड़ों परिवारों को प्रशासन से होटलों में शिफ्ट कर दिया. इस घटना को देखते हुए कोलकाता हाई कोर्ट ने टनल निर्माण पर रोक लगा दी. कई महीनों तक काम बंद रहा फिर फरवरी 2020 में जाकर फिर से इसपर काम शुरू हुआ.
कोलकाता मेट्रो की शुरुआत कैसे हुई?
ऑफिशियली देखें तो कोलकाता मेट्रो की शुरुआत हुई साल 1984 में. पर इसकी कल्पना ब्रिटिश इंडिया में ही की गई थी. कोलकाता में अंडरग्राउंड रेलवे का प्रस्ताव पहली बार 1921 में आया. एक ब्रिटिश इंजीनियर Harley Dalrymple-Hay ने East-West tube railway का प्रस्ताव अधिकारियों के सामने रखा पर किसी कारण से तब इसपर काम शुरू नहीं हो सका.
इसके बाद 1947 में देश आजाद हुआ. और एक बार फिर से अंडरग्राउंड रेलवे की बात होने लगी. तत्कालीन मुख्यमंत्री बिधान चंद्र रॉय ने तब जोर शोर से इसके लिए आवाज उठाई पर तब देश आर्थिक तौर पर इतना सक्षम नहीं था जितना आज है. इसलिए मेट्रो का सपना एक फिर ठंडे बस्ते में चला गया. फिर आया 70 का दशक. तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने 29 दिसंबर 1972 को कोलकाता मेट्रो की आधारशिला रखी. फिर साल 1973-74 में कंस्ट्रक्शन का काम शुरू हुआ. और 24 अक्टूबर, 1984 को कोलकाता में पहली मेट्रो दौड़ी. इसके बाद 27 सितंबर 1995 को दमदम से टॉलीगंज तक 17 स्टेशनों के बीच 16.45 किमी. के सेक्शन पर कोलकाता मेट्रो की सेवाएं शुरू हो गईं. समय समय पर इसका विस्तार होता गया और 2010 में कोलकाता मेट्रो को क्षेत्रीय रेलवे का दर्जा दे दिया गया.
भारत से इतर अंडरवाटर रेलवे टनल
-पहला नाम है डेनमार्क की Great Belt Fixed Link का. 1995 में बनकर तैयार हुई ये टनल 8 किलोमीटर लंबी है. ये टनल डेनमार्क के Sjælland से Sprogø को जोड़ती है.
-अगला नाम है साउथ कोरिया की Boryeong Undersea Tunnel का. 6.92 किलोमीटर लंबी ये टनल Boryeong को Wonsan Island से जोड़ती है.
-लिस्ट में अगला नाम है Marmaray टनल का. ये टनल तुर्किए के इस्तांबुल में है. Marmaray टनल एशिया से यूरोप को जोड़ने वाली रेल टनल है.
-अगला नाम है Channel Tunnel का. इस टनल का 37.9 किलोमीटर हिस्सा पानी के नीचे है. ये फ़्रांस और इंग्लैंड को कनेक्ट करती है.
-और अब नाम आता है जापान की मशहूर Seikan टनल का. इसका कुछ हिस्सा समुद्र में है. इस टनल का कन्स्ट्रक्शन 1988 में पूरा हुआ था.
-और आखिर में नाम है अहमद हमीदी टनल का. ये टनल मशहूर सुएज नहर के नीचे है. इसमें 7 सुरंगें हैं जिसमें से 2 रेलवे के लिए हैं. ये टनल सिनाई पेनिनसुला को अफ्रीकी महाद्वीप से जोड़ती है.