'मातम मनाओ, कोलकाता को नर्क बनाने वाली मदर टेरेसा को संत बनाया गया'
यहां जानिए क्या हैं वजहें...
Advertisement

फोटो - thelallantop
कोलकाता को आज मातम मानना चाहिए. जिस औरत ने शहर की खाल पर 'नर्क' की मुहर लगा दी, उसे संत बनाया जा रहा है. और जिसके लिए कुछ लोग शुक्रिया अदा करते नहीं थक रहे हैं. अल्बेनिया में पैदा होने वाली गोंजा बोहाहिऊ ने 70 साल तक कोलकाता में नन के तौर पर काम किया. फिर 'मदर टेरेसा' बन गई. और इसी प्रक्रिया में पश्चिम की अंतरात्मा की ठेकेदार बन गई. और गरीबों के देश में कैथलिक चर्च का झंडा गाड़ दिया. खूब दान और अवॉर्ड मिले, दुनिया के सबसे बड़े नेताओं, उद्योगपतियों, यहां तक कि तानाशाहों से भी.
और जब भोपाल में हुए दुनिया के सबसे बड़े उद्योग-नरसंहार में हजारों लोग गैस से मर गए, उसने कहा, 'क्षमा कर दो, क्षमा कर दो, क्षमा कर दो.'उस वक़्त के यूनियन कार्बाइड का बॉस, जो पूरे मामले का मुख्य आरोपी था, जिसे भारत सरकार अंत तक सजा मिलने से बचाती रही, उसने जरूर अपनी कल्पनाओं में टेरेसा को देख अपना अंगूठा उचका, मुस्कुराते हुए बधाई दी होगी. लेकिन इन सब के अलावा, कोलकाता के पास एक बड़ा कारण है शर्मसार होने के लिए. संत कहलाने के लिए जरूरी है कि कम से कम दो चमत्कार करना, जिसे पोप चमत्कार की मान्यता दें. पहला चमत्कार शायद टेरेसा की मौत के बाद हुआ था. मोनिका बरसा, एक आदिवासी औरत जिसे पेट में ट्यूमर था, मिशनरी में इलाज कराने गई. वहां पर दो नन्स ने उसके पेट पर एक सिक्का बांध दिया, जिसपर टेरेसा की तस्वीर थी. वो औरत आखिर में ठीक हो गई. इस 'चमत्कार' के लिए टेरेसा को 2003 में धन्य घोषित कर दिया गया. जो डॉक्टर उसका इलाज कर रहे थे, चकित रह गए. 'ये 'चमत्कार की बातें बेतुकी हैं और इनका सबको विरोध करना चाहिए.' डॉक्टर रंजन कुमार मुस्ताफी (वेस्ट बंगाल के एक डॉक्टर) ने ऐसा अखबारों से कहा. 'उस औरत को मीडियम साइज़ का ट्यूमर था. जो पेट के निचले हिस्से में टीबी की वजह से हो गया था. जो दवाएं उसे दी गईं, उसने उसके पेट में बने सिस्ट को घटा दिया. और साल भर के इलाज के बाद वो ठीक हो गई. दूसरा कथित चमत्कार 2008 में हुआ. ब्राज़ील के मारसीलो अंद्रिनो को घातक ब्रेन इन्फेक्शन था. सर्जरी के कुछ समय पहले उसके परिवार वालों ने मदर टेरेसा से प्रार्थना की. और बिना सर्जरी के ही मारसीलो सही हो गया. वैटिकन ने तय किया कि ये असल चमत्कार था. और मदर टेरेसा को संत घोषित करना तय कर दिया गया. संत घोषित करने से जुड़ी एलिजिबिलिटी कम नहीं है. ईसाइयों के फीस्ट के दिन, ऐसा माना जाता है, कि संत का निर्जीव शरीर तरल हो जाता है. कहते हैं नैप्लस के संत जनौरिअस, जो 1900 सालों से हैं निर्जीव हैं, चर्च के मुताबिक़ हर साल 19 सितंबर को तरल हो जाते हैं. या फिर 'ओडर ऑफ़ सैंक्टिटी' (पवित्रता की महक) को ही ले लीजिए. कहते हैं संत के मरने के बाद उनका शरीर गुलाबों की तरह महकता है. कोलकाता के लिए इससे बड़ी 'आइरनी' नहीं हो सकती थी. ये वही शहर है जहां रोलैंड रॉस ने मलेरिया की रिसर्च की, जगदीश चन्द्र बोस ने रेडियो सिग्नल खोजे, सत्येन्द्रनाथ बोस ने दुनिया को बोसॉन दिया.
1981 में मदर टेरेसा हाइती गईं. वहां के तानाशाह से पुरस्कार लेने. एक आदमी, जिसने लाखों गरीबों को लूटा. और उन्हें उनके मानवीय अधिकारों से वंचित रखा.कोलकाता में उसी साल एक 50 साल के डॉक्टर ने फांसी लगाई, क्योंकि उसकी जिंदगी भर की रिसर्च को बोगस कह उसे शहर से दूर ट्रांसफर कर दिया गया था. 27 साल बाद उसे इंडिया को पहला टेस्ट ट्यूब बेबी देने वाले व्यक्ति के नाम से जाना गया. क्रिस्टोफर हिचेन्स अपनी किताब 'मिशनरी पोजीशन' में लिखते हैं: 'मदर टेरेसा की कमाई बंगाल के किसी भी फर्स्ट क्लास क्लीनिक को खरीद सकती थी. लेकिन क्लीनिक न चलाकर एक संस्था चलाना एक सोचा समझा फैसला था. समस्या कष्ट सहने की नहीं है, लेकिन कष्ट और मौत के नाम पर एक कल्ट चलाने की है. मदर टेरेसा खुद अपने आखिरी दिनों में पश्चिम के सबसे महंगे अस्पतालों में भर्ती हुईं.' मदर टेरेसा पर बार-बार लोगों का धर्म परिवर्तन करने के आरोप लगा है. जो गरीबों से भी गरीब थे, वो उनके फंडामेंटलिस्ट धर्म परिवर्तन कैंपेन का निशाना भर थे.' कोलकाता में कई संत हुए हैं. जिन्होंने साइंस और दिमाग से चमत्कार किए थे. इस शहर को उन लोगों की पूजा करने की जरूरत नहीं जो नर्क के दूत थे, जिन्होंने शहर को नर्क बनाया.