The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Lallankhas
  • know every detail about TIP or test identification parade or shinakht parade

'शिनाख्त परेड' क्या है, जिसकी वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने स्थिति साफ कर दी है

Test Identification Parade के बारे में पूरी जानकारी.

Advertisement
Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता का कहना है कि सरकार को अब पूरे देश में एक जैसी न्यायिक सेवा के बारे में सोचना चाहिए.
pic
Varun Kumar
4 नवंबर 2020 (Updated: 4 नवंबर 2020, 12:52 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
एक हत्या हुई. हत्या के आरोपियों ने शिनाख्त परेड में शामिल होने से इनकार कर दिया. पीड़ित पक्ष ने कोर्ट में कहा कि इस इनकार से साफ है कि यही दोषी है. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कहा है कि शिनाख्त परेड में शामिल होने से इनकार करने के आधार पर किसी को दोषी नहीं माना जा सकता है. अब आप सोच रहे होंगे कि ये शिनाख्त परेड क्या है? चलिए, आपको विस्तार से बताते हैं इस शिनाख्त परेड के बारे में. क्या कहा कोर्ट ने जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता यानी कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो शिनाख्त परेड को वैधानिक आधार प्रदान करता हो. शिनाख्त परेड कोई ठोस सुबूत नहीं है और अदालत तमाम अन्य सुबूतों को भी देखेगी. क्या होती है शिनाख्त परेड कानून की भाषा में इस शिनाख्त परेड को Test Identification Parade (TIP) कहा जाता है. इंडियन एविडेंस एक्ट के सेक्शन 9 और कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर के सेक्शन 54A में इसके बारे में विस्तार से बताया गया है. मान लीजिए कि कहीं कोई कत्ल हुआ. थोड़ी दूरी पर खड़े शख्स ने इस वारदात को देखा. वो चश्मदीद गवाह बन गया. अब कोर्ट उससे आरोपी को पहचानने के लिए कहता है. मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में वो आरोपी को पहचानता है. अगर पहचान लेता है कि ये वही है, तो पुलिस चार्जशीट तैयार करती है. अगर नहीं पहचान पाता, तो आरोपी जमानत पर छूट सकता है. अब इस प्रक्रिया में विक्टिम या पहचान करने वाले का चेहरा छुपा दिया जाता है, या फिर उसे सामने नहीं लाया जाता है, ताकि उसके जीवन को कई खतरा न रहे. दिलचस्प किस्सा वरिष्ठ खोजी और अपराध पत्रकार संजीव कुमार सिंह चौहान कहते हैं-
"शिनाख्त परेड जेल में होती है. मुजरिम जब अरेस्ट होकर कोर्ट में पेश होता है और कोर्ट उसे 14 दिन की जुडिशियल कस्टडी में भेज देता है, तो फिर विक्टिम पार्टी का लॉयर कहता है कि इनकी पहचान कराई जाए. अगर पहचान हो जाती है, तो इसका मतलब आरोपी सही हैं. नहीं पहचान पाए, तो फायदा आरोपियों को मिल जाता है.साल 2003-2004 में पटियाला हाउस कोर्ट में एक केस आया था. मुख्तार अंसारी के गुर्गों का. ऐसा कम होता है कि मुजरिम कहे कि हमारी शिनाख्त परेड कराओ. इस केस में ऐसा कहा गया. इस केस में मॉडल टाउन से एक शख्स को किडनैप किया गया था, पंचकुला में उसे रखा गया था. करोड़ों की फिरौती वसूली गई थी. पुलिस ने अपराधियों को पकड़ा, तो उन्होंने कोर्ट से कहा कि हमारी शिनाख्त परेड कराई जाए. दरअसल आरोपियों ने पीड़ित को धमकी दे रखी थी कि अगर तुमने हमें पहचाना, तो जान से मार देंगे.किडनैपिंग पहले की थी, सामने 2003 में आया था केस. पटियाला हाउस की टाडा कोर्ट में, एसएम ढींगरा की कोर्ट में ये केस आया था. मजिस्ट्रेट कोर्ट ने TIP नहीं कराई, लेकिन सेशन कोर्ट ने TIP की इजाजत दे दी. शिनाख्त परेड में विक्टिम ने मुजरिमों को पहचानने से इनकार कर दिया और उन्हें जमानत मिल गई."
क्या कहते हैं वकील एलएलबी कर चुके और सिविल सर्विसेज़ की तैयारी कर रहे अभिषेक गौतम कहते हैं-
"आपने वो फिल्म देखी है 'नो वन किल्ड जेसिका'.. उसमें जेसिका का दोस्त, आरोपी को पहचानने से कोर्ट में इनकार कर देता है, जबकि पहले उसने आरोपी को साफ-साफ पहचाना था. इसकी पूरी प्रक्रिया ही असल में TIP है. पुलिस शिनाख्त परेड कराती है, बाद में कोर्ट में भी शिनाख्त की जाती है."
बुलंदशहर जिला न्यायालय में प्रैक्टिस करने वाले एडवोकेट आलोक शर्मा कहते हैं-
"सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल सही कहा है. शिनाख्त परेड कोई ठोस सुबूत नहीं है. जिस पर आरोप है, मान लीजिए कि उसकी पहचान कर ली गई, लेकिन उसकी मोबाइल लोकेशन कहीं और की है. या फिर ऐसा कोई सुबूत मौजूद है कि वो कहीं और था. ऐसे में शिनाख्त परेड को इकलौता सही सुबूत कैसे माना जाएगा."
दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता पुष्पेंद्र सिंह तोमर कहते हैं-
"कई बार पुलिस अपनी सुविधा के लिए 161 सीआरपीसी में गवाही करा देती है, लेकिन कोर्ट इसे मान्यता नहीं देता है. हालांकि 164 सीआरपीसी के जो बयान कोर्ट में होते हैं, जज साहब के सामने वही सही माने जाते हैं. 164 की गवाही देने वाले का मुकरना आसान नहीं होता है. फिर भी ट्रायल कोर्ट के सामने दिया गया बयान ही मान्य होता है."
आपको बता दें कि 161 सीआरपीसी में दर्ज बयान साक्ष्य में नहीं माना जाता और आरोपी को इसके जरिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता. दूसरी ओर 164 सीआरपीसी मजिस्ट्रेट के सामने दिया गया बयान है, जिसकी कानून के मुताबिक पूरी मान्यता है और बड़ी अदालतें इस पर भरोसा कर सकती हैं. पुलिस का क्या पक्ष है उत्तर प्रदेश के डीजीपी रहे बृजलाल ने 'लल्लनटॉप' से फोन पर हुई बातचीत में कहा-
"शिनाख्त परेड तब होती है, जब कोई उस शक्ल को पहचानता है. लेकिन तमाम बार ऐसा होता है कि आदमी शक्ल पहचानता है, लेकिन नाम नहीं जानता है. FIR में नामजद हो गया, तो नाम क्लियर हो गया. लेकिन तमाम घटनाओं में आदमी शक्ल पहचानता है, नाम नहीं जानता. पुलिस बाद में जब विवेचना करती है, तो गिरफ्तार करती है. जेल में मजिस्ट्रेट शिनाख्त परेड कराते हैं, पुलिस नहीं कराती.मजिस्ट्रेट जो SDM होते हैं, प्रक्रिया होती है फिर. ऐसे नहीं कि जो आदमी होता है, उसे खड़ा कर दिया अकेले. उसके साथ सात-आठ आदमी और खड़े किए जाते हैं. अगर चेहरे पर कोई निशान है, मान लो कट है थोड़ा.. तो जितने आदमी खड़े किए जाएंगे, सभी को उस जगह एक स्टिकर लगा दिया जाएगा, जिससे ये ना हो कि चेहरे पर एक दाग है और आप पहचान लें. तब जो पीड़ित है या जिसने देखा है, उससे शिनाख्त कराई जाती है. वो पहचान लेता है कि ये है, तो चार्जशीट लगती है. अगर न पहचाने, तो आप कुछ कर ही नहीं सकते.अगर आप TIP नहीं करा रहे, तो आप संदिग्ध हैं. जो कहता है कि मैं निर्दोष हूं, वो कहता है कि मेरा पॉलीग्राफ टेस्ट कराइए, नारको टेस्ट कराइए. अगर वो शिनाख्त परेड नहीं करा रहा है, तो यही माना जाएगा ना कि वो गलत है."
कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि शिनाख्त परेड एक बेहद महत्वपूर्ण चीज है. पीड़ित और चश्मदीद, आरोपी को पहचान सकते हैं, जिसके आधार पर उसे सजा के लिए रास्ते खुल सकते हैं. लेकिन पीड़ित और चश्मदीद को डराए जाने के मामले भी सामने आए हैं. देखना होगा कि कोर्ट की हालिया टिप्पणी TIP प्रक्रिया को आने वाले वक्त में कैसे प्रभावित करेगी.

Advertisement