बाप से पिटा, मां से लात खाई, तुमाई चुम्मी के लिए गुटखा छोड़ दें?
अब हर शनिवार. निखिल सचान की लिखी. 'कानपुर की मनोहर कहानियां' पहली किस्त 'कमला पसंद'

कहते हैं कि काशी शिव ने बसाई. कानपुर किसने बसाया. कोई नहीं कहता. कह ही नहीं सकता. कनपुरिए हौंक देंगे. उन्हें इस तरह की फालतू झौंकाझांकी पसंद नहीं हैं. बताना है तो बताओ कि केसर में छिपकली तो नहीं मिली. हनुमान पार्क की बत्ती किसने चुरा लीं. केसा वाले रेड कब डाल रहे हैं. सोलंकी ने किसे पीटा. और कमला क्लब वाले मैच में कौन जीता. मगर ये ब्यौरे भी नसीब वालों को मिलते हैं. कनपुरिए बताना तो चाहते हैं. मगर मुंह में मसाला डाला है. अभी अभी. उनकी कमर पर लिपटा लाल गमछा खुल जाए. मगर पीक कुर्बान नहीं हो सकती. मगर कुछ लड़के हैं. हम. बहुवचन में. जो कानपुर से चले आए. गुटखा भी नहीं चबाए. लेकिन इन दोनों की गंध है कि नथुनों से जाती ही नहीं. पहले खुशबू आती है. फिर आवाजें. तस्वीरें. सब मिलके कहानी बन जाती हैं. मगर बात तो बहुवचन की थी. तो कहानियां. मनोहर कहानियां. कानपुर की. इन्हें सुनाएंगे बलम कनपुरिया. मार्क शीट पर नाम लिखा है निखिल सचान. सचान साहब का लौंडा बढ़िया निकला. ऐसा कि जिसकी फोटू जागरण में छपती थी. और मोहल्ले के तमाम चिंटू उस शाम परवल की सब्जी में बीजों के प्रकार पर शोध कर रहे होते थे. काहे से उसी कमरे के किनारे रिमोट लिए बइठे पापा हौंक रहे होते थे. कौर तोड़ो तो गाली और थाली छोड़ो तो चप्पल. देखो उसे (निखिल को) आईआईटी निकाला. फिर आईआईएम भी. किताबें भी लिखता है. और एक ये हैं. इन्हें भेजा जाता है बंबा रोड से सब्जी लाने और पहुंच जाते हैं सनातन वाली गली में लौंडियाबाजी करने. हम भी कहां से कहां पहुंच गए. दोष कानपुर का है. ये सबसे कहता रहता है. अबे तुम हमें सिखा रहे हो. इसलिए सीखें गौने का इंतजार करें. और आप पढ़ें. ये नई सीरीज. कानपुर की मनोहर कहानियां By निखिल सचान. और हां. कमेंट बॉक्स में लड़के को बधाई जरूर दें. इनकी शादी और गौना सब बस अभी अभी हुए हैं. तिलक के लड्डू नहीं भिजवाए बे.
- सौरभ द्विवेदी

सचान साहब का लड़का. निखिल
राजेश कलक्टर गंज में रहता था और उषा नौबस्ता में. दोनों तीस के होने वाले थे फिर भी प्यार दोनों की ज़िन्दगी से गायब था. राजेश शिक्षा निकेतन में पढ़ा था जहां लड़कियां नहीं थीं. उषा सुभाष बालिका विद्यालय में पढ़ी थी जहां लड़के नहीं थे. स्कूल-कॉलेज के बाद मोहल्ले में बात बनी नहीं. दिल का एक कोना बंजर ही रह गया.कानपुर की मनोहर कहानियां
पहली किस्त- कमला पसंद
प्रेम की तासीर तो ज़ुकाम-बुख़ार सी है. किसी को भी हो जाता है. राजेश श्रीवास्तव और उषा सचदेवा को भी हो गया.
शादी की उमर हो चुकी थी लेकिन घर वालों को तो जैसे इस बात की चिंता ही नहीं थी क्योंकि कानपुर में चिंता करने को और भी बहुत कुछ होता है. जैसे आज चौदह घंटे बिजली नहीं आई, पानी में आरसेनिक मिला हुआ आ रहा है, छत पे लेटने जाओ तो मच्छर बहुत लगते हैं, दूध के चट्टे वाली की भैंस बीमार हो गई, कटिया वाला तार कोई चोरी कर ले गया. घर वाले पानी (आरसेनिक वाला) पी-पी के अखिलेश, मुलायम और मायावती को गरियाते रहते थे. वो अपनी किस्मत को कोसते रहते थे, और, राजेश-उषा अपने-अपने घर वालों को.

दोनों महीने भर पहले शादी डॉट कॉम पर मिले थे और वहां से फेसबुक पर. राजेश की हाईट पांच चार थी, रंग गेंहुआ लेकिन उसने बढ़ा के पांच पांच लिख दिया था और रंग गोरा. थोड़ी बहुत चोरी उषा ने भी की थी और इसी बदौलत बात जम गई. दोनों ने ऑनलाइन एक दूसरे को पसंद कर लिया था. रात-रात भर बातें होती थीं. रिलाइंस के सिम और सैमसंग गुरु के मोबाइल के भरोसे गाड़ी आगे बढ़ गई थी. रात भर पावर कट में पसीना चुआते, मच्छर कटाते, सपा को गरियाते दोनों एक दूसरे से बतियाते रहते और रात का पता भी न चलता. बस इतना पता लगता कि कब बत्ती आ गई. बत्ती आने पर नीचे चल के कूलर चला के बातें होतीं.
एक दिन रात कुछ ज्यादा ही लम्बी हो गई क्योंकि बत्ती रात भर नहीं आई. बातें भी ज्यादा खिंच गयीं. ताप चढ़ गया. तय हुआ कि अब बस मिलना है. पराग दूध डेरी के पार्क में मिलने की बात तय हुई. उषा ने कहा, बस फ़ोन पर ही किस करते रहोगे या असली में भी करोगे? फ़ोन रख दिया. राजेश को रात भर नींद नहीं आई. हरारत होती रही. किस करना है. कान में गूंज रहा था. साथ में मच्छर की मुन-मुम भी. कल क्या होगा का सोचते-सोचते राजेश की कांख छिल गई.छुपते-छुपाते दोनों अगले दिन पार्क में मिले. राजेश ने लाल रंग की शर्ट पहनी थी और उषा ने पीले छींट का नीला सलवार सूट. राजेश ने पहली बार उषा को इतना पास से देखा और उषा ने पहली बार राजेश की छुअन महसूस की. राजेश और पास आया. उषा और पीछे हट गई. राजेश उतना ही और आगे आया. उषा चौंक के उठ खड़ी हुई.
"आप गुटका खाते हैं"उषा दनदनाते हुए टैम्पो से नौबस्ता वापस चली गई और राजेश कलक्टरगंज. न उषा ने फ़ोन उठाया न राजेश ने फ़ोन किया. उषा ने मैसेज में साफ़ बात लिखी कि हमसे शादी करनी है तो गुटका छोड़ना होगा. राजेश की हिम्मत नहीं हुई कि वो मैसेज का जवाब दे. प्रेम अलग चीज़ है और गुटका अलग. इसी गुटके के चक्कर में वो बाप से पिटा है. बाप की बात का जवाब उसने सिर्फ़ इसलिए नहीं दिया था क्योंकि उसने अभी-अभी ही पुड़िया मुंह में डाली थी. इसी पुड़िया के चक्कर में वो मां से लात खाया है क्योंकि बाथरूम की नाली जाम हो गई थी.
"हैं? माने हां. तो" ?
"हम जा रहे हैं. आप गुटका खाते हैं"
"अरे गुटका नहीं है. कमला पसंद है. नुकसान नहीं करता है. महकता भी अच्छा है”
“छी"
"अरे किस तो कर लो यार"
वही पुड़िया वो ऐसे ही छोड़ दे ?दिन बीतते गए पर उषा अडिग थी. रातें लम्बी लगने लगीं. पहले बत्ती जाती थी तो पता भी नहीं चलता था. अब तो जैसे गर्मी की रातों का एक-एक मिनट पता लगता था. उषा के प्रेम में पिछला महीना तो ऐसा गया था जैसे दुनिया भर की तकलीफें कहीं दूसरे मोहल्ले चली गई थीं.
ऐसी ही एक लम्बी रात, राजेश एक हाथ में कमला पसंद और एक हाथ में उषा की फोटो लिए बैठा था. जब उससे रहा ही नहीं गया तो उसने उषा को मैसेज किया, "हम गुटका छोड़ रहे हैं. घर वालों से बात करो लो. तुमको ब्याहने आ रहे हैं. लेकिन याद रखना, कमला पसंद छोड़ रहे हैं तुम्हारे लिए. तुमको भी वादा करना होगा कि तुम हमारे प्यार का मान रखोगी"
उषा ने मैसेज पढ़ा और जैसे उसके पांव जमीं पर पड़ते ही नहीं थे. वो सोच रही थी, "कोई किसी से इतना प्यार कैसे कर सकता है ! एक तरफ़ राजेश है और एक तरफ़ हमारे बाबू जी. मां पूछती रह जाती हैं कि आज रात तरोई बने कि कोंहड़ा, बाबू को भली ही तरोई इतनी नापसंद है लेकिन आज तक उनसे गुटका थूक के ये न बोला गया कि कोंहड़ा बना लो”
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निखिल की कहानियों की दो किताबें आ चुकी हैं. नमक स्वादानुसार और जिंदगी आइस पाइस. इनके अमेजन लिंक नीचे दिए गए हैं. पसंद आए तो जरूर खरीदें. किताबें हैं. काटती नहीं हैं.
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