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ISRO का सबसे तगड़ा रॉकेट झोला भरकर कमाई कर रहा है

8000 से ज्यादा सैटेलाइट्स पृथ्वी के चारों तरफ घूम रहे हैं. इसमें भारत ने 36 और जोड़ दिए.

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ISRO Satellite launch
इसरो का LVM-3 रॉकेट, सैटेलाइट का कचरा (फोटो सोर्स- ISRO और इंडिया टुडे)
27 मार्च 2023 (Updated: 27 मार्च 2023, 24:19 IST)
Updated: 27 मार्च 2023 24:19 IST
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26 मार्च 2023 को, ISRO यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का सबसे बड़ा रॉकेट LVM-3 अन्तरिक्ष पहुंचा. ये अपने साथ एक ब्रिटिश कंपनी वनवेब के 36 सैटेलाइट्स ले गया था. भारतीय स्पेस प्रोग्राम के लिए ये एक सफल मिशन था. लेकिन इसी सफलता के साथ नत्थी होकर आई है एक चिंता. जिसके चलते वैज्ञानिकों के माथे पर बल पड़ रहे हैं.

क्यों? आज की मास्टरक्लास में हम यही जानेंगे. हम भारत के इस सबसे बड़े सैटेलाइट लॉन्च की बात करेंगे. जानेंगे सैटेलाइट लॉन्च के ग्लोबल धंधे में भारत की हिस्सेदारी कितनी है, और ये भी मालूम करेंगे कि सैटेलाइट्स लॉन्च करने की इस होड़ के खतरे क्या हैं? 

लो-ऑर्बिट सैटेलाइट्स

रविवार को इसरो ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से LVM-3 रॉकेट लॉन्च किया. ये भारत का सबसे वज़नी रॉकेट है. LVM-3 यानी लॉन्च व्हीकल मार्क-3, असल में GSLV-MarkIII स्पेसक्राफ्ट का ही नया नाम है. GSLV माने जियोसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल (Geosynchronous Launch Vehicle). यानी ऐसे स्पेसक्राफ्ट जो सैटेलाइट्स को जियोसिंक्रोनस ऑर्बिट्स में लॉन्च करते हैं. जियोसिंक्रोनस माने वो ऑर्बिट्स जहां लॉन्च किए गए सैटेलाइट्स का अपने एक्सिस पर रोटेशन का पीरियड पृथ्वी के रोटेशन के पीरियड के बराबर होता है. ये पीरियड है 23 घंटा, 56 मिनट्स और 4 सेकंड्स. मोटा-माटी 1 दिन. इससे होता ये है कि ये धरती पर खड़े किसी व्यक्ति को ये सैटेलाइट आसमान में हमेशा एक ही जगह नज़र आता है. माने सैटेलाइट हमेशा एक ही इलाके पर फोकस बनाए रहता है.

लेकिन ऐसा नहीं है कि GSLV MK3 सिर्फ जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट ही लॉन्च कर सकता है. 26 मार्च को इसने लो अर्थ ऑर्बिट में सैटेलाइट स्थापित किए. माने पृथ्वी से 1200 किलोमीटर की ऊंचाई वाले ऑर्बिट पर. साल 2019 में चंद्रयान-2 का लॉन्च भी इसी रॉकेट से किया गया था. और भारत जिस गगनयान मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस में भेजना चाहता है, उसे भी यही रॉकेट ले जाएगा. माने एक ही रॉकेट अलग-अलग ऑर्बिट्स में सैटेलाइट ले जा सकता है. इसीलिए इसरो ने इसके नाम में से जियोसिंक्रोनस उड़ा दिया. और इसे एक जेनेरिक नाम दिया - लॉन्च व्हीकल मार्क -3. इंजीनियरिंग में कोई बदलाव नहीं हुआ है. जो 3 स्टेज पहले थे, वही अब भी हैं. 3 स्टेज माने तीन तरह के इंजन. हर इंजन एक निश्चित उंचाई तक रॉकेट को ले जाता है, उसके बाद अगला इंजन अपना काम शुरू करता है. 

26 मार्च को LVM अपने साथ जो 36 सैटेलाइट ले गया था, वो सभी 150-150 किलोग्राम के हैं. इन्हें LVM-3 ने अन्तरिक्ष में 12 अलग-अलग स्तरों पर लॉन्च किया. पहला सैटेलाइट छोड़ा गया 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर. इसके बाद हर अगले सैटेलाइट के बीच 4 किलोमीटर की दूरी रखी गई ताकि ये आपस में ना टकराएं. ये कुल 75 मिनट लंबा मिशन था. स्पेसक्राफ्ट्स के लिए ये काफ़ी बड़ा मिशन माना जाता है. जब सारे सैटेलाइट अपने अपने ऑर्बिट्स में स्थापित हो गए, ISRO ने मिशन पूरा होने की घोषणा कर दी. इस साल ISRO के लिए ये दूसरा बड़ा मिशन था. इसके पहले इसरो ने स्माल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) का सफल लॉन्च किया था.

वनवेब कंपनी क्या करती है?

The OneWeb constellation, पृथ्वी के चारों तरफ घूम रहे LEO सैटेलाइट्स का नेटवर्क है. और इस नेटवर्क के पीछे है UK की कंपनी वनवेब. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ये कंपनी अब तक कुल 618 सैटेलाइट्स लॉन्च कर चुकी है जिनमें से 588 सैटेलाइट्स एक्टिव हैं. और इन्हीं का इस्तेमाल करके वनवेब पूरी दुनिया में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी को बेहतर करना चाहती है. माने इन्टरनेट की स्पीड बढ़ाना चाहती है. UK की सरकार और भारत की एक कंपनी भारती इंटरप्राइजेज, वनवेब कंपनी के 2 बड़े शेयरहोल्डर हैं. 
कंपनी ने कहा है कि इस लांच से दुनिया भर में कम्युनिटीज, बिज़नेसेज और सरकारों को जोड़ने में मदद मिलेगी. इससे पूरे भारत के कस्बों, गांवों, स्कूलों के साथ-साथ दुर्गम जगहों में भी कनेक्टिविटी आसान हो जाएगी.

हालांकि वनवेब, पहले एक रूसी स्पेस एजेंसी के जरिए अपने सैटेलाइट्स लॉन्च करने वाली थी. लेकिन रूस-यूक्रेन वॉर के चलते, रूसी एजेंसी ने प्लान रद्द कर दिया. उसकी दो मांगें थीं, एक - कि सैटेलाइट्स का इस्तेमाल रूस के खिलाफ न किया जाए. और दूसरी - कि UK की सरकार कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बेच दे. आप तो जानते ही हैं कि सैटेलाइट्स का इस्तेमाल जासूसी के लिए भी किया जाता है. इसीलिए रूस को भी इन सैटेलाइट्स से अपनी जासूसी का डर था.

इधर यूरोपीयन स्पेस एजेंसी एरियनस्पेस अपना Ariane5 रॉकेट रिटायर कर चुकी थी. Ariane6 के लॉन्च में देर हो रही थी. अब वनवेब को सिर्फ स्पेसएक्स (SpaceX) और इसरो से मदद मिलने की उम्मीद थी. हालांकि स्पेसएक्स ने वनवेब के भी कुछ सैटेलाइट लॉन्च किए हैं लेकिन वो अपना खुद का सैटेलाइट नेटवर्क स्टारलिंक भी डेवेलप कर रहा है. ऐसे में वनवेब ने भारत के साथ 72 सैटेलाइट्स के लॉन्च की डील की थी. जिसे भारत ने दो बार में पूरा कर दिया है.

सुनील भारती मित्तल, वनवेब के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन हैं. उनके मुताबिक,

“भारत ने ऐसे मौके पर हमारी मदद की जब हमें सबसे ज्यादा जरूरत थी. रूस-यूक्रेन युद्ध के वक़्त हमें बड़ा झटका लगा. 6 लॉन्च का कॉन्ट्रैक्ट था. जिसके लिए पैसे भी चुकाए जा चुके थे. अब वनवेब को न सिर्फ अपने पैसे वापस पाने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है. बल्कि हमने अपने 36 सैटेलाइट्स भी खो दिए हैं. जिनमें से 3 बड़े कीमती और जरूरी थे. हमारा एक साल भी बर्बाद हो गया है.”

सैटेलाइट के बिज़नेस में भारत

अब तक इसरो कम-से-कम 36 देशों के 384 विदेशी सैटेलाइट्स लॉन्च कर चुका है. इन लॉन्चिंग्स के लिए करीब 10 कमर्शियल मिशन चलाए गए थे. कई बार भारतीय मिशन के साथ विदेशी सैटेलाइट्स भी ले जाए गए. इनमें से ज्यादातर कमर्शियल लॉन्च अमेरिकी कंपनियों के साथ हुए.

साल 2020 में भारत ने स्पेस सेक्टर में प्राइवेट इन्वेस्टमेंट के रास्ते खोल दिए थे. इसके बाद साल 2022 के अक्टूबर महीने में इसरो ने वनवेब के 36 सैटेलाइट्स लॉन्च किए थे. इससे पहले भी भारत समय समय पर दूसरे देशों/कंपनियों के सैटेलाइट लॉन्च करता रहा है. लेकिन फिलहाल भारत की इस ग्लोबल मार्केट में हिस्सेदारी सिर्फ 2 फीसदी है. माने सुधार का काफी स्कोप है. भारत सरकार चाहती है कि 2030 तक भारत की हिस्सेदारी 10 फीसदी हो जाए. इसके लिए इसरो भी अपने लॉन्च बढ़ाएगा और स्काईरूट और अग्निकुल जैसी प्राइवेट कंपनियां भी.  ये कंपनियां फिलवक्त अपने-अपने स्पेसक्राफ्ट डेवेलप करने में लगी हुई हैं.

LVM Mk3 का ये लॉन्च इसीलिए अहम था, क्योंकि अब इसरो भारी कमर्शियल रॉकेट्स के लॉन्च वाले मार्केट में स्थापित होने लगा है. और सिर्फ नाम ही नहीं हो रहा है. इसरो को वनवेब के साथ हुई डील से 1 हजार करोड़ की कमाई भी हुई है. 

कमर्शियल सेक्टर को ध्यान में रखते हुए इसरो, स्माल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) भी डेवेलप कर रहा है. इस स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च करने में लो ऑर्बिट सैटेलाइट लॉन्च करने वाले पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) की तुलना में वक़्त और पैसा कम लगता है.

अब आते हैं ISRO की कमाई पर. न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL), इसरो की कमर्शियल ब्रांच है. इसे साल 2019 में शुरू किया गया था. इसरो के बजट पर आई पार्लियामेंट्री कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक NSIL की कमाई भी बढ़ी है. साल 2021-22 में कंपनी ने 1 हजार, 731 करोड़ रुपए कमाए. जबकि साल 2023-24 में उसकी कमाई करीब 3 हजार, 509 करोड़ रुपए हो गयी. कमाई में करीब तीन गुना बढ़ोत्तरी होने के बाद कमेटी ने कहा है कि स्पेस डिपार्टमेंट, NSIL को और मदद करेगा. ताकि ये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से काम कर सके. NSIL के अलावा, स्पेस डिपार्टमेंट का अपना रेवेन्यू भी बढ़ा है. साल 2020-21 में डिपार्टमेंट ने 929 करोड़ रुपए कमाए, वहीं साल 2022-23 में 2 हजार, 780 करोड़ रुपए कमाए. ये लगभग 200 फीसद की बढ़ोत्तरी है.

कमेटी ने कहा भी,

“इससे ये तथ्य सामने आता है कि डिपार्टमेंट का अपना राजस्व बढ़ रहा है और इसरो एक रिसर्च बेस्ड इंस्टिट्यूट से से एक व्यवसाय करने वाली एजेंसी में तब्दील हो रहा है.”

हमने शुरुआत में कहा था कि सैटेलाइट बिज़नेस की इस होड़ से ख़तरा भी है. कैसे? आइये समझते हैं.

ख़तरा कैसे है?

इस वक़्त हमारी पृथ्वी करीब 8 हजार सैटेलाइट्स से घिरी है. एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स, अकेले 3 हजार से ज्यादा सैटेलाइट्स लॉन्च कर चुकी है. और ये तादात लगातार बढ़ रही है. नेचर एस्ट्रोनॉमी में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, लाइट पॉल्यूशन यानी प्रकाश के प्रदूषण और सैटेलाइट्स के घेराव के चलते, रात में स्पेस की गतिविधियाँ देख पाना मुश्किल हो जायेगा. दुनिया की कई एस्ट्रोनॉमी लैब्स में किये गए शोध में पाया गया है कि लाइट पॉल्यूशन की वजह से रिसर्चर्स को सही ऑबजर्वेशन नहीं मिल पा रहे हैं. 
दूसरी समस्या है ट्रैफिक की. जैसे सड़क पर भीड़ से हादसे की आशंका रहती है. उसी तरह सैटेलाइट्स के बढ़ने से स्पेस में ट्रैफिक बढ़ रहा है. अभी यह समस्या छोटी है. लेकिन जैसे जैसे सैटेलाइट बढ़ेंगे, वैसे वैसे ये बड़ी होती जाएगी. तीसरी समस्या है मलबे की. सैटेलाइट अपने मिशन्स के ख़त्म होने के बाद, अन्तरिक्ष में तैरता मलबा बन जाते हैं. जैसा किसी भी मलबे के साथ होता है, स्पेस में भी मलबा जितना कम हो, उतना ही अच्छा.

इसीलिए ज़रूरी है कि सैटेलाइट लॉन्च उतने ही किए जाएं, जितनी ज़रूरत है.

वीडियो: मास्टरक्लास: NASA और ISRO जो सैटेलाइट लॉन्च करते हैं, वो पृथ्वी से कितनी दूर चली जाती हैं?

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