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तसलीम-आरिफ की जोड़ी, जिनकी कव्वाली के कैसेट घर घर घूमते थे

यूपी में पली बढ़ी 80s- 90s की पीढ़ी ने इनकी कव्वाली जरूर सुनी होगी.

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इनकी जोड़ी बिछड़े हुए करीब 10 साल हो चुके हैं.
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आशुतोष चचा
13 अक्तूबर 2017 (Updated: 13 अक्तूबर 2017, 10:17 AM IST) कॉमेंट्स
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तसलीम-आरिफ कव्वाल सैदपुर बदायूंनी. ये है इनका पूरा तखल्लुस. यूपी और इसके आस पास इनके कलाम को सुनने वाले बहुत सारे हैं. यूं समझ लो कि यूपी के दीनी मुसलमानों में इस्लाम का टेस्ट इन्हीं दोनों के कैसेट सुन सुनकर डेवेलप हुआ था. ये 'वाकया' सुनाते थे तो लोग टेप रिकॉर्डर के पास जमे रहते थे. अम्मियां चूल्हे के नजदीक टेप रिकॉर्डर रखती थीं. अब्बा लोग अपनी सिलाई मशीन के पास खींचते रहते थे. मोहल्ले में कहीं मिलाद शरीफ होती थी तो मौलाना साहब के आने से पहले तसलीम-आरिफ की कव्वाली समां बांधती थी.
वाकया हजरत अबू बकर सिद्दीकी, हजरते शब्बीर की दास्तान, वाकया जंग ए खंदक, रोजेदार बीवी ईमानदार शौहर, ऐसे न जाने कित्ते कैसेट थे जो एक घर से दूसरे घर चक्कर काटते रहते थे. सुपरहिट कैसेट था शहीदाने कर्बला. इसके कई सारे पार्ट्स आए और देखते देखते गायब हो जाते थे. हाल ये था कि यहां इस्लाम का मतलब तसलीम-आरिफ की कव्वालियों ने सिखाया. हर कलाम में इंसानियत का संदेश होता था.

फिर ये सूफियाना कलाम से आगे बढ़े. मुकाबला कव्वाली के कैसेट आने लगे. जलसों में न्योता दिया जाता था. वहां इनके नाम से इतनी भीड़ आ जाती थी कि पैर रखने की जगह नहीं मिलती थी. लोग सर्दियों की रातों में अपने घर से रजाई लेकर जाते थे. कुल मिलाकर मामला ये है कि तसलीम-आरिफ कैसेट के जमाने वालों के लिए याद रखने वाले नाम हैं. 'शैतान मेरी लैला, ऐटम बम है तेरी जवानी' जैसी कव्वालियां 3gp फॉर्मैट में लोगों के मोबाइल में चलते मिलते हैं. हमको पता चला कि इनके बारे में लोग अपने मन से बातें बनाते रहते हैं. किसी को कुछ अता पता नहीं है. तो हमने पता किया. दोनों लोगों से बात की. और जो निकलकर आया वो पूरा का पूरा आपके सामने पेश है.
पहले लगाया तसलीम साहब का नंबर. उन्होंने अपने बारे में काफी कुछ बताया है.
सवाल- तसलीम साहब हम आपके कैसेट सुनते सुनते बड़े हुए हैं. घर के बड़े बुजुर्ग कहते थे कि तसलीम और आरिफ भाई भाई हैं? आप बताइए कि सच्चाई क्या है, ताकि मैं उनको छाती चौड़ी करके बता सकूं. तसलीम- दोस्त हैं हम. सवाल- मुलाकात कैसे हुई? तसलीम- मैं बचपन से ही गाता था तो ये कॉपी कर लेते थे. मेरे भाई ने एकाध बार मुझसे पूछा कि तुम वहां गाने गए थे क्या? मैंने कहा नहीं गया था. फिर बोले कि वहां तुम्हारा कलाम कोई गा रहा था. तब मुझे पता चलो और आरिफ को साथ बुला लिया. (यहां पर एक छोटी सी कनफ्यूजन है. तसलीम ने बताया कि 18 साल की उम्र में मुलाकात हुई थी, आरिफ ने कहा कि छठीं क्लास में थे तब हुई थी.) सवाल- कहीं से प्रॉपर ट्रेनिंग ली है गाने की? या खानदान में गाने की परंपरा रही? तसलीम- बचपन से गाने का शौक था. जुनून था. तो पहले खुद ही गाना शुरू किया. और ज्यादा सफाई लाने के लिए उस्ताद जाफर बदायूंनी के शागिर्द हुए. सवाल- आपका एक कैसेट काफी हिट हुआ था, शहीदाने कर्बला. उसके कई पार्ट्स आए, इसके लिए कैसे तैयारी हुई? या अचानक दिमाग में खयाल आया था. तसलीम- देखिए मोहर्रम आता है तो ऐसे कलाम की जरूरत होती है. वाकया लिखा जाता है. शायर उसके लिए कलाम लिखते हैं. फिर तर्ज बनती है. कि कैसे इसको गाना है. फिर रिकॉर्डिंग होती थी और कैसेट मार्केट में आ जाता था. एक कैसेट आने पर कामयाब हुआ तो सिलसिला चल पड़ा. सवाल- सुनते हैं कि आप और आरिफ अलग हो गए हैं? तसलीम- हां, काफी वक्त हो गया. 10 साल होने को आए. थोड़ा मनमुटाव हो गया था. उनका तरीका अलग है. सवाल- आप लोग कव्वालियों की लाइव परफार्मेंस के लिए बुलाए जाते हैं. वहां आयोजक लोग किच किच नहीं करते पैसे देने में? रिकॉर्डिंग वाले में पैसे का क्या सीन रहता है? तसलीम- होता है. कभी कभी कोई दिक्कत खड़ी करता है लेकिन बहुत कम ऐसा होता है. रिकॉर्डिंग का जमाना बहुत बदल गया है. पहले स्टूडियो वाले हमें बुलाकर पैसे देते थे और अपने कैसेट बेचते थे. लेकिन अब हमको उन्हें पैसे देने पड़ते हैं. क्योंकि कैसेट और सीडी का जमाना चला गया. अब सब यूट्यूब पर आता है. सवाल- आजकल नया क्या कर रहे हैं? तसलीम- खुद का स्टूडियो चालू किया है बदायूं में. वहां नए आर्टिस्ट्स को मौका दिया जाता है. जो गरीब हैं लेकिन टैलेंट की कमी नहीं है उनको आगे ला रहे हैं. अभी मेरा नया वीडियो 'नाना मदीना छूट गया' आया है यूट्यूब पर. इसके अलावा जहां बुलाए जाते हैं वहां प्रोग्राम करते हैं.

फिर हमने आरिफ को फोन मिलाया. बातचीत का ब्यौरा कुछ यूं है.
सवाल- तसलीम साहब से कब मुलाकात हुई? आरिफ- 1976 के आस पास की बात है. शायद पांचवीं या छठीं क्लास में पढ़ते थे. (इसी कनफ्यूजन की बात किए थे हम. लेकिन हमको पता था दोनों के बीच कुट्टी हो चुकी है इसलिए ज्यादा जख्म नहीं कुरेदे. अल्ला जाने किस लेवल का मनमुटाव है.) सवाल- आपकी लाइव कव्वाली सुनने वाले आपस की नोक झोंक बहुत एंजॉय करते हैं. लास्ट में वो हार जीत का फैसला भी कर लेते हैं. ये क्या सीन है? ये मैच फिक्स तो नहीं रहते? आरिफ- ये मुकाबले जैसा कुछ होता नहीं है. एक ही शायर दोनों तरफ के कलाम लिखता है. बीच में चुहल वही डालता है. इसमें हार जीत वाली कोई बात नहीं होती. सवाल- खुद भी लिखते हैं या शायर ही लिखते हैं? आरिफ- कभी कभी मन बना तो खुद लिख देते हैं या शायर को समझा देते हैं इस मसले पर लिखना है. सवाल- मुकाबलों और रिकॉर्डिंग के अलावा आजकल क्या कर रहे हैं? आरिफ- यही सब चल रहा है. वतन से बाहर भी कई बार जा चुके हैं प्रोग्राम करने. अभी साउथ अफ्रीका गए थे. भोजपुरी फिल्मों में भी कव्वाली गाई है. सवाल- अच्छा कभी ये हुआ है कि प्रोग्राम गड़बड़ हुआ हो या लोगों ने हूट किया हो? आरिफ- ऐसा होता है कभी कभी कि प्रोग्राम में खलल आ गया हो. कहीं बीच ऑडिएंस में किसी ने झगड़ा किया हो. या कहीं प्रोग्राम की परमिशन नहीं थी और आयोजकों ने बुला लिया. ऐसे में दिक्कत पेश आती है लेकिन हूटिंग जैसी हालत का सामना कभी नहीं हुआ. प्रोग्राम भी मान के चलो कि सौ में चार ही फेल होते हैं. आपकी फेवरेट कव्वाल कौन हैं जिनके साथ आपका मुकाबला होता है? आरिफ- टीना परवीन. लखनऊ की हैं. हमारे साथ कई बार मुकाबले में रही हैं और हमने साथ में रिकॉर्डिंग भी की है. सवाल- आजकल हर आर्टिस्ट अपने को सोशल मीडिया पर स्टैबलिश करता है. फेसबुक ट्विटर से लोग उनसे डायरेक्ट जुड़ जाते हैं? आप क्यों नहीं सोशल मीडिया पर खुद को स्थापित करते? आरिफ- जिंदगी में इतने मसाइल हैं कि इसके लिए वक्त नहीं मिलता. अक्सर टूर और प्रोग्राम में दिन कटते हैं. काम बहुत ज्यादा है. बेटा चलाता है ये सब, घर में सब चलाते हैं. हमारी सलाह- अपने बेटे से ही कहें या अपने मैनेजर वगैरह से बात कर लें. लेकिन सोशल मीडिया पर आ जाएं. आपके फैन्स को सीधे जुड़ने में आराम रहेगा. आरिफ- (हंसते हुए) आइए कभी बदायूं मिलते हैं, बातें करते हैं. मैं देहली आऊंगा तो मुलाकात होगी. हमने कहा 'अरे पक्का होगी मुलाकात और ढेर सारे किस्से भी सुनेंगे.'
तसलीम आरिफ ने पहले कव्वालियों के कैसेट निकाले, उसमें कामयाब होने के बाद लाइव शोज़ करने लगे.
तसलीम आरिफ ने पहले कव्वालियों के कैसेट निकाले, उसमें कामयाब होने के बाद लाइव शोज़ करने लगे.

हमने ये सीरीज शुरू की है. जिसमें देश के हर स्टेट से कुछ खास पर्सनैलिटीज के किस्से हम आपको बताएंगे. आप भी अपने किसी पसंदीदा कलाकार का नाम और काम बताना. और ये सीरीज कैसी लग रही है ये भी बताना.
अब लल्लनटॉप शो का एक सेशन भी देख लो, जिसमें शायर इर्शाद कामिल कुछ सुना रहे हैं.



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