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इस साल दिए गए फिज़िक्स के नोबेल पुरस्कार का इंडिया कनेक्शन जान लीजिए

भारतीय वैज्ञानिक अमल रायचौधरी की इक्वेशन ने ब्लैक होल की खोज में कैसे मदद की?

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स्टीफन हॉकिंग, रॉजर पेनरोस और अमल रायचौधरी. (ऑक्सफर्ड)
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आयुष
10 दिसंबर 2020 (Updated: 10 दिसंबर 2020, 05:31 PM IST) कॉमेंट्स
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फिज़िक्स के नोबेल प्राइज़ की घोषणा 6 अक्टूबर को हुई. साल 2020 का फिज़िक्स नोबेल प्राइज़ ब्लैक होल पर काम करने वाले वैज्ञानिकों को दिया गया है. इनाम का आधा हिस्सा पाने वाले वैज्ञानिक हैं रॉजर पेनरोस. रॉजर पेनरोस और स्टीफन हॉकिंग ने साथ मिलकर ब्लैक होल्स पर काम किया. इन्होंने मैथेमेटिकली ये साबित किया कि ब्लैक होल्स बन सकते हैं. ये करने के लिए इन्होंने आइंस्टाइन की जनरल रिलेटिविटी थ्योरी का सहारा लिया. लेकिन ब्लैक होल की ये गणित एक और इक्वेशन के कंधे पर चढ़कर लिखी गई. रायचौधरी इक्वेशन. ये इक्वेशन भारतीय भौतिकशास्त्री अमल कुमार रायचौधरी ने दी थी.
ब्लैक होल्स का ये इंडियन कनेक्शन बहुत कम लोग जानते हैं. हम आपको इस भारतीय फिज़िसिस्ट के बारे में बताएंगे.  लेकिन ये हम आज क्यों बता रहे हैं? इसलिए कि 10 दिसंबर को अल्फ्रेड नोबेल की बरसी होती है. इसी दिन स्टॉकहोम में आयोजित समारोह में नोबेल पुरस्कार दिए जाते  हैं. लेकिन इस बार कोरोना महामारी की वजह से ये पुरस्कार विजेताओं को घर पर दिए गए. अब लौटते हैं, अपनी स्टोरी पर. अमल कुमार रायचौधरी की स्टोरी पर.
गणित से प्यार
अमल कुमार रायचौधरी का ज़्यादातर वक्त कोलकाता में बीता. इनका जन्म 14 सितंबर 1923 को बंगाल के बारिशाल में हुआ था. बारिशाल आज के बांग्लादेश में है. पैदा होने के एक महीने बाद अमल अपनी मां के साथ कोलकाता आ गए.
अमल के पिता कोलकाता में स्कूल टीचर थे. गणित पढ़ाते थे. धीरे-धीरे अमल का रुझान भी गणित की तरफ होने लगा. अमल ने शुरुआती शिक्षा कोलकाता के तीर्थपति इंस्टीट्यूशन से हासिल की. शुरुआत में इनकी टीचर्स के सामने अच्छी इमेज नहीं थी. इनके मुकाबले सभी इनके बड़े भाई की तारीफ करते थे. लेकिन धीरे-धीरे ये बदली.
अमल रायचौधरी ने एक बार अपने स्कूल के दिनों का किस्सा मुस्कुराते हुए बताया था. एक दिन स्कूल के हैडमास्टर इनकी गणित की क्लास ले रहे थे. हैडमास्टर साब बहुत स्ट्रिक्ट आदमी थे. लेकिन अच्छी क्वालिटी को सराहने में नहीं चूकते थे.
अपने हाथ से अपनी इक्वेशन लिखते प्रोफेसर रायचौधरी. (विज्ञान प्रसार)
अपने हाथ से अपनी इक्वेशन लिखते प्रोफेसर रायचौधरी. (विज्ञान प्रसार)


मास्साब गणित का एक सवाल हल कर रहे थे. अमल रायचौधरी हिम्मत इकट्ठी करके खड़े हुए. बोले, सर मैं इसे आसान तरीके से सॉल्व कर सकता हूं. मासाब ने कहा- कैसे? करके दिखाओ. इन्होंने वो सवाल हल किया. अगले महीने स्कूल की मैग्ज़ीन में हैडमास्टर ने ये सॉल्यूशन छापा, और लिखा- ये मैथड कक्षा 9 के छात्र अमल ने बताई है.
अमल कुमार रायचौधरी को गणित बहुत पसंद थी. बच्चों को ऐलजेब्रा अक्सर किसी एलियन का नाम लगता है, उसी क्लास में अमल ऐलजेब्रा की किताब लिए बैठे रहते थे. इन्हें सवाल हल करने में बहुत मज़ा आता था. लेकिन गणित की जगह इन्होंने फिज़िक्स का रस्ता चुना.
अमोल कुमार रायचौधरी के पापा ने उन्हें ये सलाह दी थी. पिताजी ने समझाया कि मैं ज़िंदगी भर गणित के साथ रहा. क्या मिला. यहां कुछ नहीं रखा. तुम कुछ अलग करो. सो इन्होंने फिज़िक्स की उंगली थाम ली.

आइंस्टाइन की थ्योरी हाथ लगी

अमल ने हिंदू स्कूल से अपनी मैट्रिक की शिक्षा ली. 1940 में कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में ऐडमिशन ले लिया. यहां इन्होंने BSc की पढ़ाई की. अपने कॉलेज के सालों को याद करते हुए रायचौधरी ने बताया था-
तब भारत में अंग्रेज़ों के खिलाफ कई आंदोलन हो रहे थे. उसी दौरान जापान ने रंगून पर बम गिरा दिया. कलकत्ता में डर फैल गया. बहुत सारे लोग कलकत्ता छोड़कर जाने लगे. इनका परिवार भी बारिशाल चला आया.
जैसे-तैसे इन्होंने अपने फाइनल ईयर के एग्ज़ाम दिए और 1942 में BSc की पढ़ाई पूरी की. 1945 में अमल ने MSc भी कर ली. इसके बाद इन्होंने इंडियन असोसिएशन फॉर दी कल्टिवेशन ऑफ साइंस में स्कॉलरशिप के लिए अप्लाई किया. उन्हें रिसर्च स्कॉलर की नौकरी मिल गई.
रायचौधरी को थ्योरी में ज़्यादा दिलचस्पी थी. इन्हें यहां का काम नहीं भाया. कुछ साल काम करने के बाद वे अवसाद में चले गए. उन्हें लगा कि जवानी गुज़री जा रही है. कोई ढंग का काम नहीं हो रहा. कुछ साल बाद इन्होंने ये नौकरी छोड़ दी.
पैसा कमाने के लिए रायचौधरी आशुतोष कॉलेज में पढ़ाने लगे. लेकिन रिसर्च के लिए कलकत्ता यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एन आर सेन के पास जाते थे. प्रोफेसर सेन ने रायचौधरी को पहला रिसर्च पेपर पब्लिश करने में मदद की. यहां जनरल रिलेटिविटी में इनकी रुचि पैदा हुई. जनरल रिलेटिविटी आइंस्टाइन की दी हुई थ्योरी है.
आइंस्टाइन की रिलेटिविटी थ्योरी का भी शुरुआत में मज़ाक उड़ाया गया था. (विकिमीडिया)
आइंस्टाइन की रिलेटिविटी थ्योरी का भी शुरुआत में मज़ाक उड़ाया गया था. (विकिमीडिया)


इसके बाद अमल ने कई और पेपर पब्लिश किए. इनका तीसरा पेपर फिज़िकल रिव्यू में प्रकाशित हुआ. इसी पेपर में वो इक्वेशन लिखी थी, जिसे आज रायचौधरी इक्वेशन के नाम से जाना जाता है.
सिंगुलैरिटी ब्लैक होल का केंद्र होता है. वो अनंत घनत्व वाला बिंदु, जिसका गुरुत्वाकर्षण बल बहुत ज़्यादा होता है. इसकी ग्रैविटी से आसपास की रौशनी भी बाहर नहीं जा पाती. और इसी कारण ब्लैक होल्स दिखाई नहीं देते.

ब्लैक होल्स की पहेली

रॉजर पेनरोस और स्टीफन हॉकिंग जैसे वैज्ञानिकों ने ब्लैक होल्स को समझना शुरु किया. साठ के दशक में इन्होंने सबसे ऐतिहासिक थ्योरम सामने रखी. पेनरोस-हॉकिंग सिंगुलैरिटी थ्योरम. रॉजर पेनरोस को 2020 में फिज़िक्स का नोबेल मिलने की एक बड़ी वजह यही थ्योरम्स थीं.
पेनरोस और हॉकिंग की इस थ्योरी की बुनियाद रायचौधरी इक्वेशन है. इन्होंने कई जगह इस इक्वेशन का ज़िक्र किया है. उस वक्त वैज्ञानिकों के लिए सिंगुलैरिटी को समझना बेहद मुश्किल था. रायचौधरी इक्वेशन स्पेस टाइम सिंगुलैरिटी को समझने के लिए एक नया औजार बनकर आई.
इसके बाद साइंटिफिक कम्युनिटी में अमल कुमार रायचौधरी का नाम इज़्ज़त से लिया जाने लगा. उनकी बीवी नमिता रायचौधरी ने कहा था-
इन्हें इंडिया में कोई जानता नहीं था. जब पश्चिमी देशों में लोग जानने लगे, तभी लोगों ने भारत में पूछना शुरु किया. ये हमारे देश की रवायत है. अगर विदेशी तुम्हारी तारीफ कर दें, तब आप महान हो जाते हैं.
रायचौधरी कुछ साल अमेरिका में भी रहे. वहां मेरीलैंड यूनिवर्सिटी में पढ़ाया. इन्हें अमरीकी स्टूडेंट्स और भारतीय स्टूडेंट्स में एक बुनियादी फर्क नज़र आया. पढ़ाते वक्त अमेरिका के स्टूडेंट्स कई जगह इन्हें रोककर कहते थे, सर यहां शायद आइंस्टाइन गलत थे. लेकिन कलकत्ता में किसी स्टूडेंट ने कभी ऐसे सवाल खड़े नहीं किए.
रॉयचौधरी अपने स्टूडेंट्स को यही समझाते थे- सवाल किया करो. ज़रूरी नहीं कि वे सही ही हों.
1961 में ये अपने कॉलेज पढ़ाने लौट आए. कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में फिज़िक्स प्रोफेसर बनकर. एक अच्छे रिसर्चर के अलावा इन्हें एक बेहतरीन टीचर की तरह भी याद किया जाता है.
प्रोफसर रायचौधरी एक लेक्चर के दौरान. (विज्ञान प्रसार)
प्रोफसर रायचौधरी एक लेक्चर के दौरान. (विज्ञान प्रसार)


रायचौधरी के स्टूडेंट्स बताते हैं कि वे हमेशा धोती-कुर्ता पहनकर कॉलेज आते थे. कॉलेज के गेट पर चना जोर गरम खाते थे. बच्चों में ये बात फैल गई कि प्रोफेसर रायचौधरी का दिमाग चना खाकर तेज़ हुआ है. इसके बाद कॉलेज के स्टूडेंट्स चने वाले के आगे भीड़ लगाए पाए जाते थे.
रायचौधरी ने प्रेसिडेंसी कॉलेज में करीब 30 साल पढ़ाया. इनके पढ़े बच्चे कई बड़े साइंटिस्ट बनकर निकले. 18 जून 2005 को अमल कुमार रायचौधरी की मौत हो गई. 2020 में जब रॉजर पेनरोस को फिज़िक्स नोबेल प्राइज़ मिला, तब इनका नाम दोबारा चर्चा में आया.
अमल रायचौधरी की मौत से कुछ महीने पहले इनके ऊपर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई गई थी. ये डॉक्यूमेंट्री ज़रूर देखी जानी चाहिए.

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