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भारत के पास होता ये हथियार तो 'गलवान' जैसी हिमाकत नहीं करता चीन

अगर सब कुछ भारतीय सेना की प्लानिंग के मुताबिक हुआ तो भारत के पास जल्दी ही एक ऐसा हथियार होगा, जिसके आगे पाकिस्तान तो छोड़िए, चीन भी कोई हिमाकत करने से पहले सौ बार सोचेगा. इस फील्ड गन को China और Pakistan से लगी सीमा पर तैनात किया जा सकता है.

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indian armed forces may induct new 155 mm field gun garuda 105 of kalyani strategic systems limited
गरूड़ 105 फील्ड गन (फोटो-एक्स)
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मानस राज
20 दिसंबर 2024 (Updated: 20 दिसंबर 2024, 02:40 PM IST) कॉमेंट्स
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‘हम मुजाहिदीनों को लद्दाख में घुसाएंगे. वो वहां अपनी गतिविधियां शुरू करेंगे. दूसरी तरफ कई मुजाहिदीन जम्मू में घुसपैठ करेंगे. इनसे निपटने के लिए भारत अपनी फौज लद्दाख और जम्मू की तरफ भेजेगा. उस समय घाटी में भारतीय फौज नाम की ही बची रह जाएगी. यहीं पर शुरू होगा ऑपरेशन का चौथा स्टेज. मुजाहिदीनों के सहारे पाकिस्तान बानिहाल और जोजिला को ब्लॉक कर देगा. इस तरह कश्मीर घाटी को अलग-थलग करके पाकिस्तान उस पर कब्जा कर लेगा.’ 1999 में कारगिल की पहाड़ियों में हुई भारत-पाकिस्तान की जंग के बाद पाकिस्तानी सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ये बातें कहीं थी तत्कालीन पाक पीएम नवाज़ शरीफ से. 

इस लड़ाई में भारत की जीत हुई. जीत के बाद पाकिस्तानी जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने कहा-

‘पाकिस्तान ने शुरू से जंग में बढ़त हासिल कर ली थी. पाकिस्तान ऊंचाई पर था. लेकिन भारत की सेना ने बोफोर्स तोपों से हमला कर दिया. अगर भारत ओवररिएक्ट न करता तो पाकिस्तान इस जंग को जीत जाता.’ 

भारत के ओवररिएक्ट करने का मतलब तोपों से था. बोफोर्स तोपें, जिनकी खरीद के दौरान कई आरोप लगे. पर इस तोप ने 1999 की जंग का रुख ही बदल दिया. जो बाजी एक समय पाकिस्तान के पक्ष में लग रही थी, भारत ने उसे पलट दिया. तोपें हमेशा से युद्ध के मैदान में एक गेम चेंजर रही हैं. 1999 में कारगिल की पहाड़ियों में हुई भारत-पाकिस्तान की जंग में भी तोपों ने एक अहम भूमिका निभाई थी. पाकिस्तान ने इस लड़ाई में शुरुआती बढ़त सिर्फ अपनी फायरपावर बोले तो तोपों (अंग्रेजी में Artillery) की बदौलत बनाई थी. लगातार वो नेशनल हाईवे 1 पर बमबारी कर रहे थे. जिससे कश्मीर को लद्दाख से जोड़ने वाली सड़क को ब्लॉक किया जा सके. पाकिस्तान का प्लान ही यही था कि आर्टिलरी की बदौलत बढ़त बनाने के बाद आगे जमीनी कार्रवाई की जाए. पर भारत ने हर चुनौती का सामना करते हुए इस जंग में जीत हासिल की. भारत की बोफोर्स (Bofors) तोपों ने टाइगर हिल की लड़ाई में अहम रोल अदा किया.

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बोफोर्स तोप (PHOTO-India Today Archives)

भारत की ये पहली जंग थी जिसे देश के लोगों ने टेलिविजन पर देखा था. उस समय भारत के लोगों ने टीवी पर देखा था कि कैसे बोफोर्स ने टाइगर हिल की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना को तोड़कर रख दिया था. वर्तमान में भी भारत की सेना कई तरह की तोपों का इस्तेमाल करती है. कुछ हल्की तो कुछ भारी. और अब हल्की फील्ड गन की इस कड़ी में एक नया नाम जल्द ही जुड़ सकता है. नाम है 'गरुड़ 105 V2' (Garuda 105 Anywhere Go Gun). आपने अगर ऊरी मूवी देखी है तो आपने उसमें भी एक गरुड़ देखा होगा. वो एक जासूसी ड्रोन था. पर ये वाला गरुड़ ड्रोन नहीं बल्कि एक फील्ड गन है.

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गरुड़ 105 (PHOTO- KALYANI STRATEGIC SYSTEMS LIMITED)
प्रोटोटाइप से हकीकत तक

साल 2014 की बात है. भारत की जानी-मानी कंपनी भारत फॉर्ज (Bharat Forge) के स्वामित्व वाली कंपनी कल्याणी स्ट्रैटेजिक सिस्टम्स लिमिटेड ने डिफेंस एक्सपो में एक प्रोटोटाइप या यूं कहें कि एक कॉन्सेप्ट लॉन्च किया. (प्रोटोटाइप या कॉन्सेप्ट उसे कहते हैं जो किसी भी प्रोजेक्ट का शुरुआती रूप हो.) इस कॉन्सेप्ट का नाम था 'गरुड़ 105 V2'. ये एक 105 मिलीमीटर की फील्ड गन थी. जिसे एक गाड़ी के ऊपर लगाया गया था. 

फील्ड गन नाम ऐसी तोपों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. जिन्हें आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सके. ऐसी तोपों में पहिए लगे होते हैं या इन्हें किसी गाड़ी के ऊपर फिट किया जाता है. गाड़ी के ऊपर फिट होने की वजह से इनके लिए अपनी पोजीशन बदलना आसान हो जाता है. जंग के दौरान इनकी इसी खासियत की वजह से दुश्मन की तोपों के लिए इन्हें निशाना बनाना मुश्किल हो जाता है. 2014 के डिफेंस एक्सपो में पेश किए गए गरुड़ 105 V2 के मॉडल का वजन एक टन से भी कम बताया गया था. उस समय कहा गया कि इसे किसी भी टैक्टिकल वाहन पर आराम मे फिट किया जा सकता है. इसका फायदा ये होता है कि किसी भी तरह के इलाके में इसकी तैनाती करने में आसानी होती है. सोशल मीडिया पोस्ट्स में इसकी कई तस्वीरें भी सामने आई हैं.

फिर समय बीता और साल आया 2018. मौका था फिर से डिफेंस एक्सपो का. कल्याणी ग्रुप ने 4 साल बाद एक्सपो में फिर से इसे पेश किया. पर अब ये महज एक प्रोटोटाइप नहीं बल्कि हकीकत बन चुका था. इसके अलावा कल्याणी ने DRDO के साथ मिलकर ATAGS (Advanced Towed Artillery Gun Systems) पर भी काम करना शुरू किया. और अब 2024 में आई कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि फौज ने इसके जितने भी ट्रायल किये, ये सिस्टम सब में पास हो गया है. गरुड़ 105 का फायरिंग टेस्ट, ड्रॉप टेस्ट जिसमें एक पैराशूट के माध्यम से इसे किसी खास एरिया में ड्रॉप किया जाता है, वो सभी टेस्ट्स पूरे हो गए हैं. अब सेना जल्द ही इसे खरीदने की प्रक्रिया भी शुरू करेगी. तो समझते हैं, क्या है इस फील्ड गन की खासियत.

गरुड़ 105

इस तोप से 105 मिलीमीटर, 37 कैलिबर के गोले लगते हैं. ये जो मिलीमीटर का नाप तोप के गोलों और बंदूक की गोलियों का होता है, वो असल में बैरल का व्यास या अंग्रेजी में कहें तो डायमीटर होता है. बैरल उस नली को कहते हैं जिसमें से तोप का गोला बाहर आता है. जितना लंबा बैरल होगा, उतनी ही बढ़िया मारक क्षमता होगी. ठीक वैसे ही जैसे स्नाइपर बंदूकों की बैरल लंबी होने की वजह से उनकी रेंज अन्य राइफल्स के मुकाबले अधिक होती है.

कैलिबर का माप
कैलिबर का माप (PHOTO- Wikipedia)

गरुड़ 105 V2 को देखें तो सबसे अधिक चर्चा इसके वजन की है. चूंकि ये अपनी श्रेणी में बाकी तोपों के मुकाबले हल्का है इसलिए इसे कहीं भी ले जाना आसान है. इसे सेना में इस्तेमाल होने वाले किसी भी 4X4 वाहन पर फिट किया जा सकता है. 4X4 उन वाहनों की कैटेगरी है जिनमें ड्राइव करने के लिए चारों चक्कों में इंजन की पावर जाती है. हम और आप जो गाड़ियां चलाते हैं, उनमें से सभी में ये फीचर नहीं मिलता. कल्याणी सिस्टम्स की वेबसाइट के अनुसार इस पूरे सिस्टम का वजन 5.5 टन से भी कम है. 4X4 पर फिट होने की वजह से इसे ऊंची पहाड़ियों से लेकर गरम रेगिस्तान, हर जगह तैनात किया जा सकता है.

Kalyani Group Garuda 105mm Self propelled howitzer
4X4 वाहन पर लगा गरुड़ 105 (PHOTO-Reddit)

गरुड़ 105 V2, स्टेट ऑफ द आर्ट हाइब्रिड रिकॉयल सिस्टम लगा है. रिकॉयल यानी गोला दागने के बाद जो झटका होता है, उसे ये सिस्टम मैनेज कर लेता है. अगर आपने मोबाईल या कंप्यूटर पर पब्जी खेला है तो आपको अंदाजा होगा कि अधिक रिकॉयल निशाना लगाने और स्थिरता में दिक्कत पैदा करती है. कल्याणी सिस्टम्स के मुताबिक गरुड़ 105 V2 का हाइब्रिड रिकॉयल सिस्टम इसे अच्छे से संभाल लेता है. इससे ऑपरेटर या तोपची को फायरिंग होने पर बहुत ही कम झटका लगता है. साथ ही ये 360 डिग्री घूम सकता है जिससे अलग-अलग पोजिशंस से फायरिंग करने में आसानी होती है.

दावा है कि गरुड़ 105 V2 दिन के समय में डेढ़ मिनट और रात के समय 2 मिनट में रेडी हो सकती है. साथ ही ये 1 मिनट में 4 फायर कर सकती है. इसमें ऑन बोर्ड फायर कंट्रोल पैनल है जिससे इसे ऑपरेट करना आसान हो जाता है. आखिर में आती है बारी कीमत और मेंटेनेंस की. मीडिया रिपोर्ट्स और कल्याणी का दावा है कि इसका मेंटेनेंस भी बाकी 105 मिलीमीटर गंस के मुकाबले कम है. इन्हीं कारणों की वजह से इसे फौज के लिए बेहतर विकल्प माना जा रहा है. इसकी असल कीमत कितनी है, ये डील पूरी होने के बाद ही पता चलेगा. 

कल्याणी सिस्टम्स

गरुड़ 105 V2 को कल्याणी सिस्टम्स और मेक इन इंडिया प्रोग्राम के लिए एक बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है. कल्याणी सिस्टम्स भारत की जानी-मानी कंपनी Bharat Forge के मालिक बाबा कल्याणी की है. भारत फ़ोर्ज 1961 से ही अस्तित्व में है. जबकि कल्याणी सिस्टम्स की स्थापना 2010 में हुई थी. गरुड़ 105 V2 के अलावा ये कंपनी और भी कई तरह की आर्टिलरी, प्रोटेक्टेड वाहन और उनके पार्ट्स का निर्माण भी करती है. आगे गरुड़ 105 V2 को सेना में शामिल किया जाता है तो संभव है कि कल्याणी सिस्टम्स के बनाए और भी प्रोडक्ट्स के लिए आगे की राह आसान हो सकती है.

द वीक की एक रिपोर्ट के अनुसार रूस-यूक्रेन जंग में भी कल्याणी सिस्टम्स के बनाए तोप के गोलों का इस्तेमाल हुआ है. जुलाई 2024 में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की मीटिंग में रूस ने इस मुद्दे को उठाया भी था. द वीक की रिपोर्ट कहती है की भारत की तीन कम्पनियों कल्याणी सिस्टम्स, Yantra और Munitions India ने इटली, चेक गणराज्य, स्पेन और स्लोवेनिया को लगभग 2.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर के हथियार बेचे हैं.

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