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परमाणु हथियारों की होड़ में भारत कहां ठहरता है? रिपोर्ट में पता चल गया.

दुनिया हर साल परमाणु हथियारों पर खर्च बढ़ा रही है. 2023 में 9 देशों ने परमाणु हथियारों पर लगभग आठ लाख करोड़ रुपये खर्च किए. 2022 की तुलना में 2023 में 13 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई. वो भी ऐसे समय में, जब दुनिया परमाणु युद्ध की आशंका में जी रही है.

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nuclear war increasing nuclear weapons
परमाणु विस्फोट (फोटो- आजतक)
17 जून 2024 (Updated: 17 जून 2024, 09:04 PM IST) कॉमेंट्स
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                                    “A world without nuclear weapons would be less stable and more dangerous for all of us.”

यानी, परमाणु हथियारों के बिना हमारी दुनिया कम स्थिर और अधिक ख़तरनाक होगी. ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री मार्ग्रेट थैचर को ये बात कहे दशकों बीत चुके हैं. लेकिन उनकी बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक बनी हुई है. इस प्रासंगिकता का नया सबूत मिलता है, इंटरनेैशनल कैंपेन टू अबॉलिश न्युक्लियर वेपन्स (ICAN या आइ-कैन) की नई रिपोर्ट से. आइ-कैन दुनियाभर के 110 देशों के 660 संगठनों का ग्रुप है. स्थापना 2007 में हुई थी. इसका मकसद है, परमाणु हथियारों की रेस खत्म कराना. इस संस्था को 2017 में नोबेल पीस प्राइज़ मिल चुका है.
 

नई रिपोर्ट क्या कहती है?

दुनिया हर साल परमाणु हथियारों पर खर्च बढ़ा रही है. 2023 में 9 देशों ने परमाणु हथियारों पर लगभग आठ लाख करोड़ रुपये खर्च किए. 2022 की तुलना में 2023 में 13 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई. वो भी ऐसे समय में, जब दुनिया परमाणु युद्ध की आशंका में जी रही है.

तो समझते हैं-
- आइ-कैन की रिपोर्ट में क्या खुलासे हुए? 
- परमाणु हथियारों पर इतने पैसे क्यों खर्च कर रहे हैं?
- किन देशों ने कैसे हासिल किए न्युक्लियर हथियार?
 

पहले बेसिक क्लियर कर लेते हैं. किन देशों के पास कितने परमाणु हथियार हैं? घोषित रूप से 8 देश हैं. 
- रूस के पास सबसे ज़्यादा 5889 परमाणु हथियार हैं.
- अमेरिका दूसरे नंबर पर है. उसके पास लगभग 5224 परमाणु हथियार हैं.
- चीन: लगभग 410
- फ्रांस : 290
- ब्रिटेन : 225
- पाकिस्तान : 170
- भारत : 164
- नॉर्थ कोरिया : 30

इन देशों के पास घोषित तौर पर परमाणु हथियार हैं. आइ-कैन का दावा है कि इज़रायल के पास लगभग 90 परमाणु हथियार हैं. हालांकि, इज़रायल ने ना तो कभी इससे इनकार किया है और ना ही कभी स्वीकार किया है. इसके अलावा, ईरान के पास भी परमाणु हथियार होने का अंदेशा जताया जाता है. इसके अलावा 6 ऐसे देश हैं, जहां अमेरिका और रूस ने अपने परमाणु हथियार रखे हुए हैं. इन्हें न्युक्लियर होस्टिंग कंट्रीज़ कहते हैं. अमेरिका के परमाणु हथियार रखने वाले देश हैं- इटली, तुर्किए, बेल्जियम, जर्मनी और नीदरलैंड्स. रूस ने अपने कुछ हथियार बेलारूस में रखे हैं. कैसे शुरू हुई परमाणु हथियारों की होड़? कैसे दुनिया के तीन सबसे ताक़तवर देशों ने परमाणु हथियार हासिल किए? आइए जानते हैं.
 

कहानी अमेरिका की

1940 का दशक. दूसरा विश्वयुद्ध चरम पर था. दुनिया ऐसे हथियार बनाने की होड़ में थी जो उन्हें विश्व विजेता बना सकें. अमेरिका को ख़बर लगी कि सोवियत यूनियन ऐसा हथियार बनाने के करीब पहुंच गया है. उसने अपने प्रोजेक्ट में तेज़ी लाई. 16 जुलाई 1945 को अमेरिका ऐसा बम बनाने में कामयाब हुआ. उसने न्यू मेक्सिको में पहला सफल परमाणु परीक्षण किया. इस सफल परीक्षण ने महज़ तीन हफ्ते में ही दुनिया को पूरी तरह बदल दिया. 6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा में पहला परमाणु बम गिराया. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, इसमें लगभग 01 लाख 30 हज़ार लोग मारे गए. तीन दिन बाद उसने नागासाकी पर बम गिराया. इसमें लगभग 74 हज़ार लोग मारे गए और 75 हज़ार के करीब गंभीर रूप से घायल हुए. इस बमबारी से डरकर जापान 14 अगस्त 1945 में सरेंडर करने को मजबूर हो गया. इसके बाद दूसरा विश्वयुद्ध भी खत्म हो गया.

अमेरिका ने परमाणु हथियार बनाने के लिए 1942 में मैनहेटन प्रोजेक्ट शुरू किया. इसमें ब्रिटेन और कनाडा भी शामिल थे. अमेरिकी आर्मी के बड़े अफ़सर इस प्रोजेक्ट में लगे हुए थे. वैज्ञानिक जे रॉबर्ट ओपनहाइमर इस प्रोग्राम को लीड कर रहे थे. ब्रिटेन और कनाडा के वैज्ञानिक भी इसमें काम कर रहे थे. दोनों देशों से प्रोजेक्ट के लिए ज़रूरी धातु और उपकरण लाए जाते. 3 साल में ये प्रोजेक्ट पूरा हो गया.

रूस 

रूस के पास दुनिया में सबसे ज़्यादा 5889 परमाणु हथियार हैं. इसकी नींव सोवियत यूनियन के दौर में ही पड़ गई थी.  साल 1922 में व्लादिमिर लेनिन ने सोवियत यूनियन की नींव रखी. सोवियत यूनियन के बनने के साथ ही लेनिन ने एकेडमी ऑफ साइंसेज भी बनाई. इसका मकसद विज्ञान को बढ़ावा देना था. इसी डिपार्टमेंट के तहत रेडियम लेबोरेट्री की शुरुआत की गई. यहीं से पहली बार परमाणु हथियार की संभावनाओं को तालाशने का सिलसिला शुरू हुआ. 1943 में लेबोरेट्री ऑफ़ मीजरिंग इंस्ट्रूमेंट की स्थापना की गई. ये भी एकेडमी ऑफ साइंसेज के तहत बनाई गई संस्था थी. इसका डायरेक्टर बनाया गया इगोर कुरिचतोव को. 1945 में अमेरिका ने परमाणु बम का सफल परीक्षण कर लिया. इस घटना के बाद सोवियत संघ ने प्रोजेक्ट तेज़ किया. 1946 में इगोर ने सोवियत यूनियन का पहला न्युक्लियर रिएक्टर बनाया. ये यूरोप का भी पहला न्यूक्लियर रिएक्टर था. लेकिन सफल परमाणु परीक्षण करने में 3 साल और लग गए. सोवियत यूनियन ने न्यूक्लियर पावर का इस्तेमाल कर सिर्फ हथियार नहीं बनाए. बल्कि दुनिया में सबसे पहला न्यूक्लियर पावर प्लांट 1954 में यहीं शुरू हुआ.

चीन

1949 में चीन में कम्युनिस्ट क्रान्ति हुई. माओ ज़ेदोंग ने सिविल वॉर में जीत हासिल की और पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की नींव रखी. माओ एक ऐसा निज़ाम लेकर आए थे जो उसूली तौर पर अमेरिका के ख़िलाफ़ था. इसको कायम रखने के लिए उन्हें भी दुनिया के साथ कदम से कदम मिलकर चलने थे. इसके लिए चीन को भी परमाणु हथियार की दरकार थी. अब तक अमेरिका और सोवियत यूनियन परमाणु हथियार का सफल परीक्षण कर चुके थे. लेकिन माओ को परमाणु हथियार पाने की कोई जल्दी नहीं थी. क्योंकि उनके सामने गृह युद्ध से हुए नुकसान को ठीक करना था. उनके सामने दूसरी चुनौतियां थीं. लेकिन 1954 में ऐसी घटना हुई जिसने माओ को परमाणु हथियार बनाने पर मजबूर कर दिया. क्या हुआ इस साल? चीन और ताइवान के बीच लड़ाई शुरू हुई. दरअसल चीन ने ताइवान के कुछ द्वीपों पर कब्ज़े का प्लान बनाया. उसपर बम बरसाए. तब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहॉवर ने माओ को परमाणु हमले की धमकी दी. इस धमकी के बाद माओ ने चीन को जल्द से जल्द परमाणु ताकत बनाने की कसम खाई. चीन ने 1964 में पहला परमाणु हथियार का सफल परीक्षण किया. 2 साल बाद 1966 में उसने हाइड्रोजन बम का भी परीक्षण कर लिया. अब तक आपने जाना दुनिया के 3 सबसे ताकतवर देशों ने कैसे परमाणु हथियार हासिल किए.

अब आते हैं आइ-कैन की रिपोर्ट पर
- 2023 में 9 देशों ने मिलकर परमाणु हथियारों पर लगभग आठ लाख करोड़ रुपए खर्च किए. 2022 के मुकाबले इन देशों ने 90 हज़ार करोड़ रुपए अधिक खर्च किए हैं. ये 13 फीसद की बढ़ोत्तरी है.
- इसको ऐसे भी समझ सकते कि 2023 में 9 देशों ने मिलकर हर सेकेंड लगभग ढ़ाई लाख रुपए खर्च किए हैं.  
- परमाणु हथियार पर सबसे ज़्यादा खर्च अमेरिका ने किया है. लगभग चार लाख करोड़ रुपये. दूसरे नंबर पर चीन है. उसने लगभग 1 लाख करोड़ रुपए खर्चे हैं. तीसरे पर रूस है. उसने लगभग 70 हज़ार करोड़ रुपये की रकम खर्च की है.
- इस लिस्ट में भारत छठे नंबर पर है. रिपोर्ट के मुताबिक़, उसने लगभग 22 हज़ार करोड़ रुपए खर्च किए हैं.
- 2023 में परमाणु हथियारों के विकास और उनके रख-रखाव में लगी 20 प्राइवेट कंपनियों ने लगभग ढ़ाई लाख करोड़ रुपए कमाए.

इस बढ़ोत्तरी की वजह क्या है? 2 बड़ी वजह है.
नंबर एक, बढ़ती जंग 
पिछले दो बरसों में दुनिया में दो बड़ी जंग शुरू हुई है और चलती जा रही है. रूस-यूक्रेन युद्ध फरवरी 2022 से चल रहा है. जबकि अक्टूबर 2023 से इज़रायल-हमास वॉर. दोनों में अमेरिका अप्रत्यक्ष तौर पर शामिल है. अमेरिका, यूक्रेन और इज़रायल, दोनों को लगातार सैन्य मदद भेज रहा है. रूस कह चुका है कि अगर दूसरे देश इस जंग में कूदे तो परमाणु बम का भी इस्तेमाल करना पड़ सकता है. जबकि इज़रायली सरकार के कुछ मंत्रियों ने गाज़ा पर परमाणु हमले की बात कही है. इन लड़ाइयों में जंग में परमाणु हथियारों से लैस तीन देश शामिल हैं. अमेरिका, रूस और इज़रायल. इसलिए 2023 में ये उछाल देखने को मिली.

नंबर दो,ताक़तवर बनने की चाह 
जानकार कहते हैं कि न्युक्लियर पावर कंट्रीज़ में होड़ लगी रहती है, कि कौन सा देश ज़्यादा ताकतवर होगा. इसलिए वे ज़्यादा से ज़्यादा हथियार इकठ्ठा करने की चाह रखते हैं. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट(SIPRI) की रिपोर्ट इसका उदाहरण है. रिपोर्ट में पता चला है कि भारत पहली बार परमाणु हथियार की संख्या के मामले में पाकिस्तान से आगे निकल गया है. भारत ने 172 परमाणु बम बना लिए हैं. पाकिस्तान के पास 170 परमाणु बम हैं. इसी तरह ब्रिटेन कह चुका है कि वो चीन और रूस के ख़तरे को देखते हुए अपनी परमाणु हथियार की संख्या 260 करेगा. फिलहाल उसके पास 225 परमाणु हथियार हैं.

मुख्अय खबर के बाद अब चलते हैं सुर्खियों की ओर.
पहली सुर्खी स्विट्ज़रलैंड से है. रूस-यूक्रेन जंग में शांति बहाली के लिए स्विट्ज़रलैंड में एक समिट हुई. इसमें 90 देशों ने हिस्सा लिया था. समिट के आख़िरी दिन आधिकारिक बयान जारी किया गया. इसमें यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा की बात कही गई. इस बयान पर 84 देशों ने दस्तख़त किए. मगर भारत, साउथ अफ़्रीका और सऊदी अरब समेत छह देशों ने साइन करने से मना कर दिया. 
 

समिट के दस्तावेज में क्या?

- रूस की जंग ने बड़े पैमाने पर तबाही लाई है. इससे कई वैश्विक संकट पैदा हो रहे हैं. इसके लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को कदम उठाने चाहिए. 
- युद्ध में बनाए गए कैदियों को रिहा किया जाए. अवैध रूप से जिन यूक्रेन के नागरिकों को रूस ने जेल में रखा है उन्हें भी आज़ाद किया जाए.

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की ने क्या कहा?  

“इस पीस समिट का आयोजन उनके देश के लिए एक कूटनीतिक सफलता है.  रूस शांति के लिए तैयार नहीं है. लिहाजा, हम लड़ते रहेंगे.”

पुतिन क्या मांग रहे हैं ?

उन्होंने समिट से पहले अपनी शर्तें रख दीं थी. कहा था कि जंग तभी रुकेगी जब यूक्रेन NATO में शामिल होने की ज़िद छोड़ दे. साथ ही यूक्रेन की सेना दोनेश्क, लुहान्स्क, खेरसॉन और ज़ेपॉरज़िया पर से दावा छोड़ दे. यूक्रेन और उसके मित्र देशों ने इन शर्तों को मानने से इनकार कर दिया था. उधर ज़ेलेंस्की ने इस समिट में 10 पॉइंट्स का एक प्रस्ताव सामने रखा. इसमें यूक्रेन जंग खत्म करने के अलावा क्रीमिया का क़ब्ज़ा छोड़ने की मांग भी रखी है. इस पीस समिट से पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेन्सकी से मुलाक़ात की थी. पीएम मोदी ने कहा था कि इस संघर्ष का समाधान बातचीत और कूटनीति के ज़रिए ही संभव है. भारत हमेशा से रूस-यूक्रेन के युद्ध के शांतिपूर्ण समाधान का पक्षधर रहा है.

दूसरी खबर है अमेरिका से 
17 जून को अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन भारत पहुंचे. उन्होंने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से मुलाक़ात की. वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिल सकते हैं. सुलिवन सीधे स्विट्ज़रलैंड से आए हैं. वहां वो यूक्रेन पीस समिट में हिस्सा लेने गए थे. सुलिवन मोदी 3.0 में भारत के दौरे पर आने वाले अमरीका के सबसे बड़े अधिकारी हैं. वो इनीशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजिज (ICET) की दूसरी मीटिंग में हिस्सा लेने के लिए आए हैं. इसकी शुरुआत 2022 में हुई थी. इसका मकसद तकनीक के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाना है.

सुलिवन का भारत दौरा एक और वजह से ख़ास है. वो ऐसे समय में आए हैं, जब एक दिन पहले ही निखिल गुप्ता को अमरीका प्रत्यर्पित किया गया है. निखिल गुप्ता पर खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साज़िश रचने का आरोप है. पन्नू अमरीका का नागरिक है. वहीं से भारत के ख़िलाफ़ भड़काऊ भाषण देता रहता है. यूएस जस्टिस डिपार्टमेंट के मुताबिक़, मई और जून 2023 में निखिल गुप्ता नामक भारतीय एजेंट ने अमरीका में पन्नू की हत्या की सुपारी दी थी. जिसको सुपारी दी गई, वो FBI का एजेंट था. इसी बीच निखिल गुप्ता चेक रिपब्लिक पहुंचा, वहां अमरीकी अधिकारियों की दरख़्वास्त पर उसको अरेस्ट कर लिया गया. ये विवाद नवंबर 2023 में बाहर आया, जब फ़ाइनेंशियल टाइम्स ने रिपोर्ट पब्लिश की.

रिपोर्ट आने के हफ़्ते भर बाद न्यूयॉर्क के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में निखिल गुप्ता के ख़िलाफ़ मुकदमा दायर किया गया. उस पर हत्या की सुपारी देने और हत्या की साज़िश रचने का आरोप लगाया गया. अमरीका ने गुप्ता को प्रत्यर्पित करने के लिए चेक रिपब्लिक में अर्ज़ी लगाई. इस मामले में भारत सरकार ने अपनी संलिप्तता से इनकार कर दिया. हालांकि, जांच के लिए उच्च-स्तरीय कमिटी ज़रूर बनाई. चेक रिपब्लिक में निखिल गुप्ता के प्रत्यर्पण का मामला निचली से संवैधानिक अदालत तक चला. मगर कोई राहत नहीं मिली. आख़िरकार, 14 जून को उसको अमरीका भेज दिया गया. फिलहाल, वो ब्रुकलिन की जेल में बंद है. उसको मैनहैटन की अदालत में पेश किया जाएगा. आरोप साबित होने पर अधिकतम 20 बरस की सज़ा हो सकती है. सुलिवन के साथ पन्नू मामले पर चर्चा की संभावना है.

 तीसरी और अंतिम खबर इज़रायल से है. 
इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने वॉर कैबिनेट भंग कर दी है. ये भी कहा है कि अब कोई और वॉर कैबिनेट नहीं बनाई जाएगी. ये कैबिनेट 11 अक्टूबर 2023 को बनी थी. वॉर कैबिनेट का गठन कोई नई बात नहीं है. हालांकि, ये दुर्लभ ज़रूर है. विपक्ष को मिलाकर बनाई गई सरकार का सबसे बड़ा उदाहरण दूसरे विश्वयुद्ध का है. ऐसा ब्रिटेन में हुआ था. जर्मनी के हमले के बाद पहले नेविल चैम्बरलिन और बाद में विंस्टन चर्चिल ने वॉर कैबिनेट बनाई थी. उसमें विपक्षी नेताओं को भी शामिल किया था. इज़रायल ने हमास के हमले के बाद वॉर कैबिनेट बनाने की पहल की थी. इरादा था, हर धड़े के सपोर्ट से इमरजेंसी डिसिजन्स लेना. वॉर कैबिनेट में तीन फ़ुलटाइम मेंबर्स को रखा गया.
- प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू.
- रक्षामंत्री योआव गलांत.
- ब्लू एंड वाइट पार्टी के बेनी गेंज़. वो विपक्ष में थे.
एक और विपक्षी नेता गेदी एज़ेनकोत को भी वॉर कैबिनेट में शामिल किया गया था. हालांकि, उन्हें बस ऑब्ज़र्वर का दर्जा मिला.

बाद में गेंज ने आरोप लगाया कि सरकार सही फ़ैसले नहीं ले पा रही है. उनके पास आगे का कोई प्लान नहीं है. जंग की दशा और दिशा तय नहीं है. जब उनकी बात नहीं सुनी गई, तब उन्होंने इस्तीफे की धमकी दी. 09 जून को गेंज ने आधिकारिक तौर पर वॉर कैबिनेट छोड़ दी. उनके साथ गेदी भी निकल गए. दोनों के निकलते ही वॉर कैबिनेट में विपक्ष की हिस्सेदारी खत्म हो गई. अब प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने वॉर कैबिनेट को पूरी तरह भंग कर दिया है.

जंग से जुड़े फ़ैसले कहां लिए जाएंगे?

इज़रायली मीडिया में छपी रिपोर्ट्स के मुताबिक़, अधिकतर डिसिजन्स सिक्योरिटी कैबिनेट में लिए जाएंगे. ये 14 सदस्यों वाली बॉडी है. इसमें विपक्षी नेता नहीं हैं. लेकिन कट्टरपंथी नेता बेन-ग्विर ज़रूर हैं. बेन-ग्विर इज़रायल के नेशनल सिक्योरिटी मिनिस्टर हैं. वो गाज़ा को जड़ से मिटाने की बात करते रहे हैं. कहा जा रहा है कि वॉर कैबिनेट भंग होने के बाद उनका उग्र रवैया बढ़ेगा. इससे जंग का स्वरूप और हिंसक हो सकता है.

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