23 मार्च 2022 (Updated: 23 मार्च 2022, 04:32 PM IST) कॉमेंट्स
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एक तारीख़. तीन अलग-अलग साल. तीन घटनाएं.
पहले साल में एक नए मुल्क़ की अवधारणा की नींव रखी गई.
दूसरे में एक ऐतिहासिक ग़लती का चैप्टर खोला गया.
तीसरे का संबंध एक खुलासे से जुड़ी संभावना से है. खुलासा, सेना और सरकार की मिलीभगत का. आम जनता को बेवकूफ़ बनाने के खेल का.
और संभावना कुछ ऐसी कि क्या ये खुलासा एक प्रधानमंत्री का कल बिगाड़ सकता है?
पाकिस्तान के इतिहास में 23 मार्च की तारीख़ खासी अहमियत रखती है. दो मायनों में. पहला, साल 1940 में इस दिन लाहौर संकल्प पास हुआ था. मुस्लिम लीग की सालाना बैठक में. मुस्लिम लीग लंबे समय से मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग कर रही थी. 23 मार्च 1940 के रोज़ उस मांग को औपचारिकता का ज़ामा पहना दिया गया था.
ये तारीख़ दूसरी दफ़ा ख़ास बनी, साल 1956 में. पाकिस्तान को बने हुए नौ साल बीत चुके थे. मगर नए मुल्क़ का संविधान बनने में समय लग रहा था. 23 मार्च 1956 को संविधान सभा ने पाकिस्तान के पहले संविधान को मंज़ूरी दे दी. हम पहला इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि इसके बाद भी कई बार संविधान को भंग किया गया और फिर इसे नए सिरे से लिखा गया.
मार्च 1956 के संविधान के तहत, पाकिस्तान एक इस्लामिक गणतंत्र बन गया. अगले दो बरस तक 23 मार्च की तारीख़ को पाकिस्तान में गणतंत्र दिवस के तौर पर मनाया गया.
फिर 07 अक्टूबर 1958 की तारीख़ आई और मज़मून बदल गया. इस्कंदर मिर्ज़ा पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति थे. सत्ता के गलियारों में उनके ख़िलाफ़ माहौल बन रहा था. उन्हें कुर्सी से उतारने की तैयारी चल रही थी. ऐसे में मिर्ज़ा ने एक जूनियर आर्मी ऑफ़िसर अयूब ख़ान से दोस्ती गांठी. प्रमोशन देकर आर्मी चीफ़ बना दिया. फिर 07 अक्टूबर को उन्होंने संविधान को निलंबित कर मार्शल लॉ लगा दिया. अयूब ख़ान को मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर बना दिया गया.
इस्कंदर मिर्ज़ा इतने से ही संतुष्ट नहीं हुए. उन्हें अयूब ख़ान से भी परहेज था. उन्होंने सेना में विरोधी धड़े को शह देकर अयूब ख़ान को ठिकाने लगाने की साज़िश की. तब तक अयूब ख़ान को पूरे खेल की भनक लग चुकी थी. 27 अक्टूबर 1958 की आधी रात, जब इस्कंदर मिर्ज़ा अपने आलीशान महल में आराम फ़रमा रहे थे, अयूब के भरोसेमंद जनरल महल में दाखिल हुए. उनके हाथ में इस्तीफ़े की चिट्ठी थी. उनके कहने पर इस्कंदर मिर्ज़ा को जगाया गया.
उनसे चिट्ठी पर साइन करने के लिए कहा गया. थोड़ी ना-नुकूर के बाद मिर्ज़ा ने कलम उठाकर अपना नाम लिख दिया. उसी समय इस्कंदर मिर्ज़ा के नाम के आगे ‘पूर्व राष्ट्रपति’ का टैग चिपक चुका था. उसी रात उनसे महल छोड़ने के लिए कहा गया. बाद में उन्हें पाकिस्तान से निर्वासित कर दिया गया. इस्कंदर मिर्ज़ा के अंतिम दिन लंदन में गुज़रे. गुज़ारे के लिए वो एक छोटा-मोटा होटल चलाया करते थे. 1969 में उनकी मौत हो गई. उस समय पाकिस्तान में याह्या ख़ान का शासन शुरू हो चुका था. याह्या ने मिर्ज़ा के मृत शरीर को पाकिस्तान लाने की इजाज़त नहीं दी. आख़िरकार, उन्हें ईरान की मिट्टी में दफ़न होना पड़ा.
ये कहानी सुनाने की दो वजहें हैं.
पहली, इस्कंदर मिर्ज़ा ने पाकिस्तान में एक ऐतिहासिक मृगतृष्णा का आग़ाज़ किया था. राजनीतिक समस्या का इलाज़ सेना से कराओ और बदले में धोखा पाओ. कालांतर में ये परंपरा बार-बार दोहराई जाती रही. इस्कंदर मिर्ज़ा को उदाहरण बने 64 साल बीत चुके हैं. मगर सबक किसी ने नहीं सीखा. बहुत संभावना है कि अभी वाले प्रधानमंत्री इमरान ख़ान का नाम भी उसी लिस्ट में शुमार हो जाए.
दूसरी वजह ये है कि आज कैलेंडर पर 23 मार्च की तारीख़ दर्ज़ है. वो तारीख़, जिस रोज़ इस्कंदर मिर्ज़ा के नेतृत्व में पाकिस्तान के पहले संविधान को मंज़ूरी मिली थी. हालांकि, बाद में उन्होंने ही इसे रद्दी की किताब कहकर संबोधित किया था. जब उन्हें कुर्सी से उतार कर निर्वासित कर दिया गया. तब से 23 मार्च को गणतंत्र दिवस की बजाय पाकिस्तान संकल्प दिवस या पाकिस्तान दिवस के तौर पर सेलिब्रेट किया जाने लगा.
आयोजन तो इस साल भी हुआ. भव्य परेड भी निकाली गई. लेकिन धुकधुकी के बीच में. दरअसल, इन दिनों इमरान ख़ान की कुर्सी के ऊपर तलवार लटक रही है. विपक्ष ने प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव की चिट्ठी भेजी हुई है. इसको लेकर 25 मार्च को नेशनल असेंबली का सेशन बुलाया गया है. इमरान की पार्टी के 20 से अधिक सांसदों ने बग़ावती रुख़ अपना लिया है. नीम पर करेला ये कि जिस सेना के सपोर्ट से इमरान ख़ान सत्ता में आए, उसने भी हाथ खड़े कर दिए हैं.
आज हम पाकिस्तान दिवस के मौके पर एक सनसनीखेज खुलासे का ज़िक्र करेंगे. फ़रवरी 2022 में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) ने पाक सेना के दो कैंपों पर ज़बरदस्त हमले किए थे. BLA ने दावा किया था कि हमले में सौ से अधिक पाक सैनिक मारे गए हैं. सेना और सरकार ने इस दावे को झूठा बता दिया. सरकारी बयान आया कि हमलावरों की साज़िश को नाकाम कर दिया गया है. कहा गया कि पूरी कार्रवाई में 20 हमलावरों और 09 सैनिकों की मौत हुई.
इंडिया टुडे ने सेटेलाइट इमेजरी के ज़रिए पूरी घटना की विस्तृत पड़ताल की. इसमें सामने आया कि BLA और पाकिस्तान के सरकारी दावे में ज़मीन-आसमान का अंतर है. पता ये भी चला है कि पाकिस्तान सरकार ने जान-बूझकर नुकसान को छिपाया. छिपने-छिपाने के इस खेल में सेना और सरकार की बड़ी भागीदारी रही है.
ये खुलासा उस समय हुआ है, जब एक तरफ़ इमरान सरकार के अस्तित्व पर संकट के बादल छाए हुए हैं. वहीं दूसरी तरफ़, इस्लामाबाद में आर्गेनाइजे़शन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC) के विदेशमंत्रियों की बैठक चल रही है. OIC की स्थापना 1969 में हुई थी. इसे दुनियाभर की मुस्लिम आबादी का प्रतिनिधि माना जाता है. इसमें कुल 57 सदस्य देश शामिल हैं.
OIC की बैठक में पाकिस्तान ने आर्थिक संकट और कश्मीर का मुद्दा ज़ोरों से उठाया है. अगर BLA के अटैक को लेकर हुए खुलासे की आंच बैठक तक पहुंची तो इमरान ख़ान की सरकार से भरोसा तो कम होगा ही. विपक्ष को अविश्वास प्रस्ताव को जायज ठहराने का एक और मज़बूत हाथ मिल जाएगा. एक आकलन और भी है. कहा जा रहा है कि इस बार का पाकिस्तान दिवस इमरान सरकार के कार्यकाल का अंतिम आयोजन हो सकता है.
आज हम जानेंगे,
- पाक आर्मी के कैंप पर हुए हमलों की कहानी क्या है?
- इंडिया टुडे की पड़ताल में क्या कुछ सामने आया है?
- और, इस खुलासे का इमरान ख़ान सरकार पर क्या असर पड़ेगा?
पहले बैकग्राउंड समझ लेते हैं.
बलूचिस्तान क्षेत्रफल के हिसाब से पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है. इसकी सीमा ईरान और अफ़ग़ानिस्तान से मिलती है. सामरिक दृष्टि से भी ये इलाका पाकिस्तान के लिए बेहद खास है. यहां उसके तीन नौसैनिक अड्डे है. चगाई परमाणु परीक्षण स्थल भी बलूचिस्तान में ही है.
इसके अलावा, बलूचिस्तान में तांबा, सोना और यूरेनियम का भंडार है. संसाधन की कोई कमी नहीं है, लेकिन उसका लाभ स्थानीय लोगों को नहीं मिलता. बलोच लोगों की भागीदारी कम है. उन तक शिक्षा की भी पहुंच नहीं है.
अब इसका ऐतिहासिक पहलू समझ लेते हैं. भारत के विभाजन के समय तय हुआ कि जिन रियासतों पर ब्रिटिश साम्राज्य का सीधा नियंत्रण नहीं रहा, वे रियासतें अपना भविष्य चुनने के लिए स्वतंत्र होंगी. बलूचिस्तान ऐसी ही एक रियासत थी. बलूचिस्तान के तीन इलाकों ने पाकिस्तान के साथ विलय कर लिया. लेकिन कलात के राजा ने ख़ुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया. ये व्यवस्था विभाजन के 255 दिनों बाद तक कायम रही.
फिर 30 मार्च 1948 को पाक आर्मी ने कलात पर हमला कर दिया. कलात के राजा मीर अहमद यार ख़ान को उठाकर कराची लाया गया. वहां उनसे ज़बरदस्ती विलय के क़ागज़ात पर दस्तख़त करा लिए गए. बलोच जनता इस विलय को अवैध मानती है. पिछले 74 सालों से वहां लगातार आज़ादी की मांग उठती रही है. पाकिस्तान बलपूर्वक इस मांग का दमन करता है. हज़ारों की संख्या में बलोच नागरिक मारे जा चुके हैं या गायब हो चुके हैं.
दमन और हिंसा के बीच बग़ावत जन्म लेती है. इसी बुनियाद पर बना एक अलगाववादी संगठन है - बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी. शॉर्ट में बोलें तो BLA. इनका कहना है कि आज़ाद बलोचिस्तान चाहिए. वो भी बस उतना नहीं, जितना पाकिस्तान के पास है, बल्कि पूरा ग्रेटर बलोचिस्तान, जिसे पहले हिंदुस्तान के मुगलों और फारस के सफ़ाविद एम्पायर ने बांटा. फिर इसे बांटा ईरान-ब्रिटेन ने. थोड़ा हिस्सा ईरान गया. थोड़ा गया अफ़गानिस्तान. और थोड़ा हिस्सा आया पाकिस्तान के पास. कई सारे बलोचिस्तानी लोगों की तरह BLA भी ऐतिहासिक बलोचिस्तान को एक करके उसे अलग स्टेट बनाना चाहता है.
BLA पश्चिमी पाकिस्तान में बेस्ड है. ये पाकिस्तान से सटे अफ़गान इलाकों में भी सक्रिय है. पिछले 20 साल से सक्रिय ये संगठन अब तक दर्ज़नों हमले कर चुका है. पाकिस्तान, अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन BLA को आतंकवादी संगठन घोषित कर चुके हैं.
पाकिस्तान ने अप्रैल 2006 में BLA पर प्रतिबंध लगा दिया था. उस दौर में पाकिस्तान के राष्ट्रपति हुआ करते थे परवेज़ मुशर्रफ़. BLA ने साल 2005 में मुशर्रफ़ को मारने की कोशिश की. वे कामयाब तो नहीं हुए, लेकिन सरकार के निशाने पर आ गए. BLA पर पाकिस्तान में कई बड़े हमलों का इल्ज़ाम है.
मसलन, जून 2013 में BLA ने उस घर को उड़ा दिया था, जिसमें पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनी ज़िंदगी के अंतिम बरस गुज़ारे थे. जून 2020 में BLA ने पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज़ पर हमला किया था. सितंबर 2021 में BLA विद्रोहियों ने ग्वादर में जिन्ना की एक मूर्ति को बम लगाकर उड़ा दिया था.
BLA एक करे तो पाक आर्मी दस गुणा दम लगाकर उसे मिटाने की कोशिश करती है. बलूचिस्तान से नौजवानों को गायब किया जाता है. हवाई हमले शुरू हो जाते हैं. इस हिंसक कार्रवाई के शिकार अधिकतर आम नागरिक होते हैं. इससे लोगों का भरोसा सरकार से कम होता है और BLA के प्रति बढ़ता जाता है.
इसका फायदा उठाकर BLA ने हमले तेज़ कर दिए. फिर 02 फ़रवरी 2022 की तारीख़ आई. इस दिन BLA के चरमपंथियों ने पूरी ताक़त से पंगौर और नुस्की में पाक आर्मी के दो कैंपों पर हमला कर दिया. ये दोनों कैंप बलूचिस्तान के अंदर थे. इनमें पाकिस्तान आर्मी की फ़्रंटियर कोर तैनात थी.
इस हमले के कुछ घंटों के बाद सेना के मीडिया विंग इंटर-सर्विस पब्लिक रिलेशंस (ISPR) का बयान आया. इसमें कहा गया,
‘सेना की त्वरित कार्रवाई के चलते आतंकी साज़िश को नाकाम कर दिया गया. मुठभेड़ में एक सैनिक शहीद हुआ है. आतंकियों को खदेड़ दिया गया गया है, जबकि उनके हताहतों की जांच चल रही है.’
हमले के अगले दिन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने भी ट्वीट किया. इसमें उन्होंने सैनिकों की बहादुरी को सलाम किया. लिखा कि आतंकियों को दोनों ठिकानों से पीछे धकेल दिया गया है.
इन बयानों का मतलब ये था कि हमला रुक चुका है. जबकि ऐसा था नहीं. 03 फ़रवरी को ही BLA ने एक प्रेस रिलीज़ जारी की. इसमें कहा गया कि,
- पंगौर और नुस्की के कैंप अभी भी मजीद ब्रिगेड के नियंत्रण में हैं. पाकिस्तानी ISPR का बयान पूरी तरह से मनगढंत है. मजीद ब्रिगेड को BLA के एलीट लड़ाकों में गिना जाता है. इसमें आत्मघाती हमलावरों को शामिल किया जाता है.
- BLA ने दावा किया कि पाक आर्मी के सौ से अधिक सैनिकों को मारा जा चुका है. बैकअप फ़ोर्स आने के बावजूद वे मजीद ब्रिगेड को पीछे नहीं हटा पाए हैं.
- फ़िदायीन हमले के बाद पाकिस्तान सरकार ने मीडिया कवरेज़ रोक दी है. उसने टेलीकॉम सेवाओं को भी जाम कर दिया है.
- प्रेस रिलीज़ में ये भी लिखा था कि BLA का ऑपरेशन पूरी रफ़्तार से जारी है.
BLA का हमला 05 फ़रवरी तक चला. पाक सेना की तरफ़ से फिर एक बयान जारी हुआ. इसमें कहा गया कि पंगौर और नुस्की के ऑपरेशन में 20 चरमपंथी मारे गए, जबकि 09 पाक सैनिक शहीद हुए. ये बयान पिछले दावे के बिलकुल उलट था, जिसमें कहा गया था कि सेना ने 24 घंटे के अंदर साज़िश को पूरी तरह नाकाम कर दिया.
08 फ़रवरी को इमरान ख़ान और आर्मी चीफ़ कमर जावेद बाजवा ने दोनों कैंपों का दौरा किया. इस दौरान इमरान ख़ान ने फ़्रंटियर कोर के सैनिकों की सैलरी बढ़ाने की बात कही. और भी बहुत सारे वादे किए गए. उस समय तक पत्रकारों को लोकेशन पर नहीं जाने दिया गया था. इसके अलावा, इलाके में लंबे समय तक इंटरनेट सेवा भी बंद रखी गई थी.
तभी से अंदेशा लगाया जा रहा था कि कहने और होने में भारी अंतर हो सकता है.
अब इंडिया टुडे के अंकित कुमार ने स्पेस फ़र्म प्लेनेट लैब्स PBC से मिली सेटेलाइट इमेजरी के सहारे हमले में हुए नुकसान का आकलन किया है. इसमें क्या पता चला है?
- फ़्रंटियर कोर के कैंप में घुसकर तबाही मचाने का BLA का दावा सही हो सकता है. BLA ने हाल ही में एक वीडियो रिलीज़ किया है. इसमें बताया गया है कि किस तरह हमले की प्लानिंग की गई और फिर उसे अंज़ाम दिया गया.
- सेटेलाइट इमेजरी से BLA के दावों और उपलब्ध सबूत में काफ़ी हद तक समानता का पता चला है. हालांकि, BLA ने 195 सैनिकों को मारने का दावा किया था. उपलब्ध डेटा से इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती है.
- पता ये भी चला है कि हमले के बाद कैंप का इंफ़्रास्ट्रक्चर काफ़ी हद तक बदल गया. हमले के बाद की सेटेलाइट तस्वीरों में कुछ इमारतें गायब हैं. कई जगहों से पेड़ों को काटकर हटाया जा चुका है.
- नुस्की के कैंप में 09 चरमपंथी अत्याधुनिक राइफ़ल और ग्रेनेड लॉन्चर के साथ पहुंचे थे. उन्होंने हमले से पहले एक वीडियो भी बनाया था. इसमें एक हमलावर को पाक आर्मी और सरकार पर बेगुनाह बलोच युवाओं को मारने का आरोप लगाते हुए सुना गया. नुस्की कैंप में वे साउथ गेट से अंदर घुसे थे. सेटेलाइट तस्वीरों में साउथ गेट और उसके आस-पास के इलाकों में तबाही देखी जा सकती है.
इस हमले के बाद से बलूचिस्तान में लोगों के गायब होने का सिलसिला बढ़ गया है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि इसके पीछे पाक सेना है. द बलूचिस्तान पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, 02 फ़रवरी के बाद से 48 लोगों को उठाया गया है. इनमें से एक की टॉर्चर से मौत भी हो चुकी है.
एक दिलचस्प बात पता है!
जो इमरान ख़ान सेना के साथ मिलकर बलूचिस्तान में हिंसा और दमन का सिलसिला चला रहे हैं, वो एक समय बलोच नेताओं के समर्थन में कोर्ट में गवाही दे चुके हैं. उनका बयान कुछ यूं था,
मी लॉर्ड, अगर मैं बलोचिस्तान का रहने वाला होता, तो मैं भी हिंसा का रास्ता इख़्तियार करने पर आमादा होता. सेना ने वहां कई नागरिकों को अगवा किया. कईयों की हत्या की. करीब 75 हज़ार लोगों को बेघर कर दिया. चुनावों में धांधली की. अदालतों को कंट्रोल किया. जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपनी सत्ता का दुरुपयोग किया. बलोचिस्तान में सैकड़ों लोग लापता कर दिए गए. ग़ैरक़ानूनी तरीके से हत्याएं की गईं. बलोचिस्तान के साथ यूं बरता गया मानो ये पाकिस्तान का हिस्सा न होकर इसका ग़ुलाम हो.
पाकिस्तान के इतिहास में एक और परंपरा रही है. वहां सेना अपराध करके हाथ आसानी से धो लेती है. उन्हें माफ़ी भी मिल जाती है. लेकिन चुने हुए शासकों को ये सुविधा हासिल नहीं है. उनका अंज़ाम बहुत बुरा होता है. अगर बलूचिस्तान में चल रहे दमन में उनकी भागीदारी साबित हुई या ये साबित हुआ कि उन्होंने अपने लोगों से सच छिपाया, तो उनका भविष्य बिगड़ सकता है. फिलहाल, उनके सामने चुनौती अपनी सरकार बचाने की है. हालिया खुलासा उनकी राह कितनी मुश्किल करेगा, ये देखने वाली बात होगी.