The Lallantop
Advertisement

दुनिया का सबसे ख़ुफ़िया संगठन इल्युमिनाटी कैसे बना?

क्या इल्युमिनाटी ने फ़्रांस की क्रांति कराई?

Advertisement
Illuminati secret society
इल्युमिनाटी के लोग एक आंख को अपना चिन्ह मानते हैं. इस आंख को एक त्रिकोण में रखकर ग्रुप का लोगो बनाया गया है. (तस्वीर: wikimedia Commons)
font-size
Small
Medium
Large
8 अगस्त 2023 (Updated: 4 अगस्त 2023, 02:26 IST)
Updated: 4 अगस्त 2023 02:26 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

काला चोग़ा और सर पर अजीब सी टोप पहने कुछ लोग एक घेरा बनाकर खड़े हैं. बीच में आग जल रही है. ज़मीन पर आड़े तिरछे कुछ चिन्ह बने हैं. बैकग्राउंड में बजता संगीत और लैटिन भाषा में दोहराए जा रहे कुछ मंत्र. सीक्रेट सोसायटी या ख़ुफ़िया संगठन का नाम जब हम सुनते हैं तो ऐसी सी छवि दिमाग़ में उपजती है. इंटरनेट पर 'सीक्रेट सोसायटीज' (Illuminati Secret Society), सर्च करें तो आपको एक नाम पढ़ने को मिलेगा. इल्युमिनाटी. ये नाम आपने फ़िल्मों किताबों और ख़ुफ़िया कहानियों में कई बार सुना होगा. कांस्पीरेसी थियोरीज की मानें तो इल्युमिनाटी दुनिया का सबसे ख़तरनाक संगठन है. जिसके सदस्यों में बिल गेट्स और ओपरा विनफ़्रे जैसे नाम शामिल है. इन थियोरीज के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति JF केनेडी की हत्या से लेकर देशों के बीच युद्ध करवाने, और सरकारें गिराने में इस संगठन का हाथ रहा है. इन कांस्पीरेसी थियोरीज में कितनी सच्चाई है ये तो आप अपने विवेक से तय कर सकते हैं. लेकिन बक़ौल इतिहास, इल्युमिनाटी नाम का एक संगठन इतिहास में हुआ ज़रूर करता था. क्या था ये संगठन, क्या थे इसके सीक्रेट नियम और ये कैसे काम करता था, चलिए जानते हैं. (Illuminati) 

कैसे बना इल्युमिनाटी? 

क़िस्से की शुरुआत होती है साल 1748 से. मध्य यूरोप में एक राज्य हुआ करता था, बवेरिया. बवेरिया के इंग्लोस्टाड नाम के एक शहर में जन्म हुआ एडम वाइसहाप्ट का. वाइसहाप्ट के पूर्वज यहूदी थे और बाद में उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था. एडम वाइसहाप्ट को धर्म और धार्मिक क़ानूनों में रुचि थी. इसलिए बड़े होकर वो इंग्लोस्टाड की यूनिवर्सिटी में धार्मिक क़ानूनों के प्रोफ़ेसर बन गए. वाइसहाप्ट के सामने एक दिक़्क़त थी. वो ये कि वो खुद पादरी नहीं थे. जबकि यूनिवर्सिटी का प्रशासन पादरियों से चलता था. वो भी कोई आम पादरी नहीं. बल्कि ये सभी रोमन कैथलिक चर्च के विशेष सम्प्रदाय, जेसुइट्स का हिस्सा थे. जेसुइट्स ऑर्डर की स्थापना 16 वीं सदी में हुई थी. और इनका काम था, दुनिया भर में ईसाई धर्म का प्रचार करना. ट्रिविया के लिए बता दें, साल 1580 में जेसुइट्स ऑर्डर के दो पादरी मुग़ल बादशाह अकबर के दरबार में पहुंचे थे. अकबर न केवल उनसे खुश हुए बल्कि लाहौर में उन्हें एक चर्च बनाने की इजाज़त भी दे दी. बहराहल क़िस्से पर आगे बढ़ते हैं.

adam weishaupt
एडाम वाइसहाप्ट ने अपना नाम स्पार्टकास रखा था (तस्वीर: wikimedia Commons)  

18वीं सदी के मध्य में जेसुइट्स ऑर्डर के तारे गर्दिश में चल रहे थे. कारण- यूरोप के देशों की जहां-जहां कोलोनियां थीं. वहां सारा काम शोषण और ग़ुलामी से चलता था. ग़ुलामों को बुरी हालत में रखा जाता था. जेसुइट्स ग़ुलामी के ख़िलाफ़ तो नहीं थे, लेकिन ग़ुलामों के साथ बेहतर बर्ताव की वकालत करते थे. ये यूरोपियन साम्राज्यों के हितों के ख़िलाफ़ था. इसलिए जेसुइट्स पादरियों पर लगाम लगाने के लिए उन पर प्रतिबंध लगा दिए गए. जेसुइट्स ख़तरे में थे. इसलिए वे उन सभी को शक की नजर से देखते थे, जो उनके ऑर्डर का हिस्सा नहीं थे. एडम वाइसहाप्ट भी जेसुइट्स का हिस्सा नहीं था. इसलिए उसको भी दबाने की कोशिश हुई. इस बात से खीजकर वाइसहाप्ट ने ऐसे दूसरे संगठनों की खोज शुरू कर दी. जहां उसके विचारों को आज़ादी मिले.

वाइसहाप्ट धार्मिक क़ानूनों और तौर तरीक़ों में बदलाव चाहते थे. उसका मानना था कि धर्म को विज्ञान के साथ साथ चलना चाहिए. इन विचारों को बढ़ावा देने के लिए उन्हें साथी चाहिए थे. इसलिए उन्होंने फ़्रीमेसन्स नाम के एक समुदाय से जुड़ने की कोशिश की. फ़्रीमेसन्स आज़ाद ख़्याल लोगों की एक बिरादरी थी. जिसके मेम्बर दर्शन और धर्म पर चर्चा करते थे. फ़्रीमेसन्स दुनिया के सबसे पुराने संगठनों में एक है. और 21 वीं सदी में भी अस्तित्व रखता था. बाक़ायदा स्वामी विवेकानंद भी अपने शुरुआती दिनों में इस समुदाय से जुड़े हुए थे. फ़्रीमेसन्स उदार ख़्यालों के लोग थे. लेकिन उनमें पर्याप्त क्रांतिकारी सोच नहीं थी. कम से कम एडम वाइसहाप्ट का ऐसा ही मानना था. इसलिए उन्होंने तय किया कि वो अपना अलग संगठन बनाएंगे.

क्या नियम थे इल्युमिनाटी के? 

1 मई 1776 की तारीख़. रात के अंधेरे में वाइसहाप्ट और उसके चार छात्र इंग्लोस्टाड के पास एक जंगल में इकट्ठा हुए. टॉर्च की रौशनी में नहाए हुए इन पांच लोगों ने प्रतिज्ञा ली. प्रतिज्ञा ये कि वो अपने संगठन को ख़ुफ़िया रखेंगे और अपनी पहचान किसी से ज़ाहिर नहीं करेंगे. उन्होंने अपने ख़ुफ़िया नाम रखे और अपने संगठन को नाम दिया इल्युमिनाटी. संगठन के कुछ नियम तय किए गए. मसलन 30 साल से ज़्यादा उम्र का कोई व्यक्ति संगठन का सदस्य नहीं बन सकता था. साथ ही उन्होंने एक उल्लू को अपने इल्युमिनाटी का प्रतीक बनाया. रोमन परम्परा में उल्लू ज्ञान की देवी मिनरवा का सहायक होता है. इसलिए इसे ज्ञान, विवेक और न्याय का प्रतीक माना जाता है.

इल्युमिनाटी की शुरुआत के साथ ही जल्द ही वो फैलने लगा. इसके सदस्य जासूसों जैसा व्यवहार करते थे. और दूसरे संगठनों मसलन फ़्रीमेसन्स में घुसपैठ कर उनके सदस्यों को रिक्रूट करते थे. रिक्रूट करने का भी एक सिस्टम था. इल्युमिनाटी का नाम जब भी आपने सुना होगा. उसके साथ एक तस्वीर देखी होगी. एक पिरामिड जिसके ऊपर एक आंख बनी होती है. ये पिरामिड इल्युमिनाटी के स्ट्रक्चर को दर्शाता है. इल्युमिनाटी में सदस्यता के 13 लेवल थे जो तीन क्लासों में बंटे थे.

Illuminati
 ऐसे कई लोग हैं, जिनका मानना है कि इल्युमिनाटी गुप्त रूप से काम कर रहा है (सांकेतिक तस्वीर: Wikimedia Commons)

सबसे नीचे का तल उन लोगों का होता था, जो नए-नए संगठन में जुड़े होते थे. इन्हें मिनरवल कहा जाता था. सदस्य बनने के बाद ही ये लोग लीडर से ऑर्डर ले सकते थे. और समूह की मीटिंग में शामिल हो सकते थे. मिनरवल क्लास चार भागों में बंटा होता था.        

1) इनिशिएट 
2) नोविस 
3) मिनरवल 
4) इल्युमिनाटस माइनर  

मिनरवल के बाद आता था दूसरा तल. इनका काम नए सदस्यों को रिक्रूट करना और उन्हें समूह के तौर तरीक़ों से वाक़िफ़ कराना होता था. इस क्लास में पांच प्रकार के सदस्य होते थे.

5) अप्रेंटिस     
6) फ़ेलो 
7) मास्टर 
8) इल्युमिनाटस मेजर 
9) इल्युमिनाटस डीरिजंस

तीसरा और सबसे ऊपरी चरण था समूह के सबसे ताकतवर लोगों का. ये वो लोग थे जो समूह के कार्यकलाप निर्देशित करते थे. इनमें भी अलग अलग चरण होते थे    

10. प्रीस्ट 
11. प्रिंस 
12. मैगस 
13. किंग              

इल्युमिनाटी करते क्या थे?

जैसा पहले बताया, ये लोग उदारवादी थे. जिन्हें अंग्रेज़ी भाषा में लिबरल कहा जाता है. ये सत्ता में सुधार के हिमायती थे. और चाहते थे, लोग धार्मिक किताबों के बजाय तर्क संगत विचारों को प्राथमिकता दें. मोटा मोटी कहा जाए तो ये समाज में परिवर्तन लाना चाहते थे. क्या ये ऐसा कर पाए. जवाब है नहीं. शुरुआत में इल्युमिनाटी को सफलता मिली. कुछ ही सालों में इसके सदस्यों की संख्या 5 से बढ़कर ढाई हज़ार हो गई. साल 1777 इल्युमिनाटी के लिए सबसे अच्छा साल था. उस साल चार्ल्स थियोडोर बवेरिया के राजा बने. जो खुद उदारवाद के समर्थक थे. उन्होंने परिवर्तन की कोशिश की. लेकिन जल्द ही बवेरिया के रईस उनके ख़िलाफ़ खड़े हो गए. लिहाज़ा चार्ल्स थियोडोर को पीछे हटना पड़ा. इसी के साथ इल्युमिनाटी की भी उल्टी गिनती शुरू हो गई. संगठन के ठिकानों पर रेड पड़नी शुरू हो गई. इन ठिकानों से सरकार को संगठन के कई ख़ुफ़िया दस्तावेज मिले. जिनके अनुसार इल्युमिनाटी सच में दुनिया पर राज करने, और दुनिया को कंट्रोल करने की ख्वाहिश रखता था. एडम वाइसहाप्ट ने खुद को संगठन के किंग यानी राजा का दर्जा दिया हुआ था. और वो खुद को स्पार्टकस के नाम से बुलाता था. ये सब बातें जब बाहर आई, इंग्लोस्टाड के ड्यूक ने इल्युमिनाटी पर प्रतिबंध लगा दिया. और एडम वाइसहाप्ट को देश निकाला दे दिया गया. माना जाता है कि इसके बाद इल्युमिनाटी पूरी तरह ख़त्म हो गया. हालांकि सब ऐसा नहीं मानते.

illuminati 2
 1776 में एक सीक्रेट मीटिंग में इल्युमिनाटी की नींव रखी गई  (तस्वीर: bridgeman images )

कई लोग मानते हैं कि इल्युमिनाटी इसके बाद भी क़ायम रहा. साल 1797 में बवेरिया के एक सम्मानित व्यक्ति, जॉन रॉबिनसन ने इल्युमिनाटी पर एक रिपोर्ट लिखी. जिसके अनुसार इसके सदस्य फ़्रीमेसन्स और जैकोबिंस से जा मिले थे. और यहां भी इन्होंने अपने विचारों की घुस पैठ करा दी. जैकोबिंस के साथ नाम जुड़ने के कारण इल्युमिनाटी का नाम ज़िंदा रहा. क्योंकि जैकोबिंस फ़्रांस का एक राजनैतिक क्लब था, जिसने फ़्रेंच क्रांति को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यहां से इल्युमिनाटी का नाम एक मिथक बन गया. क्योंकि ऐसा माना जाने लगा कि जो संगठन फ़्रांस जैसे ताकतवर साम्राज्य में क्रांति करवा सकता है, वो बाक़ी जगह भी ऐसा कर सकता है. साल 1798 में इल्युमिनाटी का भूत अमेरिका भी पहुंचा, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन ने एक चिट्टी में इल्युमिनाटी के ख़तरे का ज़िक्र किया, यहां तक कि अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन पर इल्युमिनाटी का सदस्य होने का आरोप भी लगा.                                  
        
इल्युमिनाटी की कहानी यहीं ख़त्म न हुई. 21 वीं सदी में भी कई लोग हैं जो मानते हैं, इल्युमिनाटी आज भी ज़िंदा है. और इसके ताकतवर सदस्य पर्दे के पीछे से दुनिया को कंट्रोल करते हैं. हम कहेंगे इल्युमिनाटी एक मिथक है, जो 18वीं सदी के एक छोटे से संगठन का नाम हुआ करता था. लेकिन फिर हमारे ऐसा कहने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. क्योंकि जो लोग इल्युमिनाटी में विश्वास रखते हैं, वो ये भी मानते हैं कि इल्युमिनाटी का कोई सदस्य ऐसी ही बात कहेगा.

वीडियो: तारीख: 'व्हाइट डेथ' दुनिया का सबसे ख़तरनाक स्नाइपर जो मुंह में बर्फ़ दबा के निशाना लगाता था!

thumbnail

Advertisement

election-iconचुनाव यात्रा
और देखे

पॉलिटिकल मास्टरक्लास में बात झारखंड की राजनीति पर, पत्रकारों ने क्या-क्या बताया?

लल्लनटॉप चुनाव यात्रा : बेगुसराय में कन्हैया की जगह चुनाव लड़ने वाले नेता ने गिरिराज सिंह के बारे में क्या बता दिया?
राष्ट्रकवि दिनकर के गांव पहुंची लल्लनटॉप टीम, गिरिराज सिंह, PM मोदी पर क्या बोली जनता?
लल्लनटॉप चुनाव यात्रा: एक फैसले के बाद से मुंबई के मूलनिवासी, जो कभी नावों के मालिक थे, अब ऑटो चलाते हैं
मुंबई के मूल निवासी 'आगरी' और 'कोली' समुदाय के लोग अब किस हाल में हैं?
लल्लनटॉप चुनाव यात्रा : बिहार की महादलित महिलाओं ने जातिगत भेदभाव पर जो कहा, सबको सुनना चाहिए

Advertisement

Advertisement

Advertisement