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IIT के एग्ज़ाम में टॉप करके आखिर MIT क्यों चले जा रहे ये 'ईडियट'

3 ईडियट का रैंचो वाला फॉर्मूला यहां लागू होता है

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IIT-JEE के एग्जाम में टॉप करने वाले 2 स्टूडेंट्स ने IIT छोड़ MIT में एडमिशन ले लिया है.
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अमित
7 अक्तूबर 2020 (Updated: 10 अक्तूबर 2020, 09:16 AM IST) कॉमेंट्स
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नाम - चिराग फेलोरJEE अडवांस 2020 में रैंकिंग - 1
नाम - आर. महेंद्र रावJEE अडवांस 2020 में रैंकिंग - 4
नाम - चितरंग मुर्दियाJEE अडवांस 2014 में रैंकिंग - 1
ये वो नाम हैं, जिन्होंने देश के सबसे कठिन कहे जाने वाले JEE एडमिशन टेस्ट में टॉप किया, लेकिन IIT में एडमिशन नहीं लिया. आखिर क्यों? इन सबमें एक बात कॉमन है. वह है MIT (मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी) जाने का सपना. यह वह सपना है, जो तकनीक की दुनिया में पढ़ाई-लिखाई करने वाला हर स्टूडेंट संजोता है. लेकिन चंद ही पहुंच पाते हैं. आखिर क्या है अमेरिका में MIT नाम के इस इंस्टिट्यूट में, क्यों दुनियाभर का तकनीकी दिमाग इस तरफ खिंचा चला आता है. आइए जानते हैं.
कहीं ये 3 ईडियट का फंडा तो नहीं
इतने कठिन एग्जाम में टॉप करने वाले आखिर क्यों एक ऐसे कॉलेज में एडमिशन नहीं लेते, जिससे बाहर निकलते ही सफलता कदम चूमेगी? इसके पीछे असल में 3 ईडियट फिल्म में दिया गया रैंचो का फॉर्मूला है-
सक्सेस के पीछे मत भागो, एक्सिलेंस के पीछे भागो, सक्सेस झक मारकर तुम्हारे पीछे आएगी.
2014 में IIT में पहली रैंक लाने वाले मुर्दिया ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा था-
मैंने IIT JEE एग्जाम 2014 में पहली रैंक पाई. कंप्यूटर इंजीनियर बनने के सपने के साथ IIT मुंबई में एडमिशन लिया. कुछ दिन बाद ही मुझे अहसास होने लगा कि कंप्यूटर इंजीनियरिंग मुझे अच्छी तो लगती है लेकिन मेरा असली इंटरेस्ट तो फिजिक्स में है. मैं क्वांटम फिजिक्स में रिसर्च करना चाहता था.
मुझे नहीं पता कैसे, लेकिन मेरा सपना अब क्वांटम फिजिक्स बन चुका है. मैंने IIT छोड़ने का फैसला कर लिया है. सभी इस फैसले से हिले हुए हैं. मेरे दोस्त भी कुछ समझ नहीं पा रहे. लोग मुझसे कह रहे थे कि तुम अभी बच्चे हो. यह नहीं समझ पा रहे कि इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर निकलते ही तुम्हें लाखों की सैलरी मिलेगी.
लेकिन मेरे भीतर से आवाज कुछ और कह रही थी. मेरा एडमिशन दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी MIT में हो गया है, वो भी पूरी स्कॉलरशिप पर. यह मेरे लिए बड़ा कदम है. जैसा कि सबके करियर में होता है, वैसे ही मुझे भी लग रहा है कि कहीं मेरा फैसला गलत न हो. लेकिन अगर दिल से कोई आवाज आ रही है तो यह गलत नहीं हो सकती.
चितरंग मुर्दिया 2018 में MIT से ग्रेजुएशन करने के बाद यूसी बर्कले यूनिवर्सिटी में फिजिक्स की आगे की पढ़ाई कर रहे हैं.
इस साल के JEE अडवांस टॉपर चिराग कहते हैं-
IIT का एग्जाम यकीनन सबसे टफ एग्जाम है. मैंने 4 साल तक इसकी तैयारी की. लेकिन MIT का एग्जाम सिर्फ कठिन सवालों तक सीमित नहीं है. MIT यह देखता है कि स्टूडेंट का व्यक्तित्व कैसा है, और उसका किसी प्रॉब्लम को हल करने का तरीका क्या है. MIT का एग्जाम यह चेक करता है कि किसी दिए गए मौके में कोई कितना कुछ कर सकता है. मैं फिजिक्स और मैथ्स में डिग्री लेना चाहता हूं. मेरा रुझान ज्यादातर एस्ट्रोफिजिक्स की तरफ है. मैं नासा या इसरो के साथ काम करना चाहता हूं.
आखिर ऐसा क्या खास है MIT में बस इतना समझ लीजिए कि तकनीक की दुनिया में जो भी अडवांस दिख रहा है, उसमें MIT के लोगों की टांग जरूर अड़ी हुई है. यह एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी है. इसकी स्थापना 1861 में हुई. तब से आज तक इससे 1 लाख 20 हजार स्टूडेंट्स पढ़कर निकल चुके हैं. इनमें से 39 को नोबेल पुरस्कार मिल चुका है. याद रहे कि आजादी के बाद सिर्फ 5 भारतीय नागरिकों ने नोबेल पुरस्कार ही जीते हैं, जिनमें साइंस में कोई नहीं है. आजाद भारत के नोबेल पुरस्कार विजेता भारतीय नागरिकों में शामिल हैं मदर टेरेसा (1979), दलाई लामा (1989), अमर्त्य सेन (1998), राजेंद्र पचौरी (2004), कैलाश सत्यार्थी(2014).
अब चूंकि इंस्टिट्यूट के नाम में टेक्नॉलजी है तो ऐसा नहीं है कि यहां सिर्फ टेक्नॉलजी की पढ़ाई ही होती है. यहां पर बायलॉजी, इकॉनमिक्स, म्यूजिक, राइटिंग, पॉलिटिकल साइंस, लिटरेचर, फिलॉसफी, भाषा विज्ञान सहित 45 से ज्यादा कोर्स कराए जाते हैं.
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अकेले MIT में पढ़ने वालों को ही 39 नोबेल पुरस्कार मिल चुके हैं.

अमेरिकी में यूनिवर्सिटीज़ और इंस्टिट्यूट्स को रैंकिग देने वाली एजेंसीज़ के इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ कि MIT पांचवें नंबर से नीचे गई हो. ज्यादातर इसकी रैंक 1 से 3 के बीच ही रहती है.
रिसर्च ऐसी-ऐसी कि कान खड़े कर दें MIT में जाने वाला हर शख्स कुछ ऐसा कर दिखाना चाहता है, जो पहले न किया गया हो. इसके लिए ज्यादातर लोग रिसर्च में एडमिशन चाहते हैं. यहां की रिसर्च लैब्स बहुत खास हैं. इनमें ज्यादातर वक्त ऐसी रिसर्च होती हैं, जो आने वाले वक्त की तस्वीर बदल सकती हैं. मिसाल के तौर पर-
# मशीन लर्निंग के जरिए कंप्यूटर बताएगा कि हार्ट फेल होने का खतरा है कि नहीं.
# जो ब्लैक होल किसी को नहीं दिखता, उसकी तस्वीर खींची गई (MIT हेस्टैक ऑब्जर्वेटरी द्वारा)
# दुनिया का सबसे काला रंग बना दिया. यह रोशनी को 99.995 फीसदी तक सोख लेता है.
# हीरे को कैसे एक मजबूत मैटल में बदल दिया जाए.
# वह मैकेनिज्म, जिससे इंसानी दिमाग में यादें बनती हैं और स्टोर होती हैं.
ये तो बस MIT की वेबसाइट्स पर मौजूद सैकड़ों रिसर्च पेपर्स में से बानगी भर हैं. आप जहां तक सोच सकते हैं, MIT की रिसर्च लैब में शुरुआत वहां से होती है. MIT की भर-भर कर रिसर्चें पढ़नी हैं तो यहां
क्लिक करें .
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MIT मीडिया लैब में दुनियाभर के धुरंधर जमा होकर कुछ अफलातून बनाने में लगे रहते हैं.

MIT मीडिया लैब है खास वैसे तो MIT में सभी रिसर्च लैब बेहतरीन हैं, लेकिन जिस लैब को MIT का अफलातून कहा जाता है, वह है MIT मीडिया लैब. अलग-अलग अडवांस रिसर्च के फील्ड में काम करने वाले बेहतरीन साइंटिस्ट यहां जमा होते हैं. 1985 में बनाई गई इस लैब के पीछे का आइडिया था कि कैसे अलग-अलग फील्ड से जुड़े लोग साथ आकर कुछ नया तैयार करें. मिसाल के तौर पर एक पेंटर और एक कंप्यूटर इंजीनियर मिलकर कुछ बनाएं, एक म्यूजीशियन और दिमाग पर रिसर्च करने वाले साथ आएं, कुछ लेखक और मैकेनिकल इंजीनियर टीम बनाकर कुछ नया तैयार करें.
इस आइडिया ने बेहतरीन रिजल्ट दिए. इस लैब में किए गए काम को दुनिया की साइंस में किए गए बेहतरीन काम में शुमार किया जाता है. इस लैब में ही काम करने वाले एक भारतीय रिसर्चर प्रणव मिस्त्री का सिक्स्थ सेंस नाम का प्रोजेक्ट बहुत पॉपुलर हुआ था. उन्होंने 90 के दशक में मशीन को बिना छुए ही कंट्रोल करने की तकनीक विकसित की थी. इस सिक्स्थ सेंस
 तकनीक के बारे में यहां जानकारी ले सकते हैं.
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कोरोना की वैक्सीन को छोड़कर बाकी ढेरों रिसर्च हमें MIT की वेबसाइट पर मिलीं.

बड़ा सवाल- कैसे होता है एडमिशन?
MIT की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, एडमिशन के मोटा-मोटी क्राइटेरिया ये हैं-
# उन्हें सिर्फ दिखावे के तीस मारखां नहीं चाहिए. कुछ कर दिखाने का जज्बा हो, ये चेक करने के लिए वह एक निबंध लिखने को कहते हैं. जो दिल उड़ेल देता है, वो आगे बढ़ता है.
# एडमिशन के इच्छुक लोगों से उम्मीद रखी जाती है कि उन्होंने कम से काम 4 साल अंग्रेजी पढ़ी हो, कैलकुलस के लेवल तक की गणित की पढ़ाई की हो, 2 साल हिस्ट्री या समाजिक विज्ञान पढ़ा हो, बायलॉजी, केमिस्ट्री और फिजिक्स की जानकारी हो. ये बस बेसिक क्राइटेरिया है. इसमें ढील भी दी जा सकती है, बस एडमिशन कमेटी को स्टूडेंट जमना चाहिए.
# SAT या ACT (अमेरिकी कॉलेज में एडमिशन के कॉमन टेस्ट) में से एक टेस्ट पास करना होता है. अंग्रेजी भाषा में पारंगत हैं कि नहीं इसके लिए TOEFL (Test of English as a Foreign Language) या IELTS (International English Language Testing System) एग्जाम को क्वालिफाई करना होता है.
# सबसे आखिर में होता है इंटरव्यू. जानकार कहते हैं कि इसे वो आसानी से पास कर जाते हैं, जो बिना चतुरलिंगम बने सवालों के जवाब देते हैं. मतलब जो हैं, जैसे हैं, वैसे ही दिखाएं, ओवर स्मार्ट न बनें.
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IIT-JEE एग्जाम में टॉप करने के बाद MIT का एडमिशन एग्जाम कम ही मुश्किल लगता है.
फीस कितनी होती है?
MIT की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, हर स्टूडेंट को साल भर में 73 हजार 160 अमेरिकी डॉलर या तकरीबन 53 लाख रुपए की फीस देनी होती है. यह ग्रेजुएशन की फीस है. इसके अलावा हॉस्टल का खर्च अलग से होता है.
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MIT प्राइवेट कॉलेज है, इसलिए इसकी फीस बहुत ज्यादा है.

MIT कई तरह की स्कॉलरशिप भी देता है. इसके लिए वह अलग से एग्जाम लेता है. अगर कोई स्टूडेंट पढ़ने में अच्छा है और स्कॉलरशिप एग्जाम पास कर लेता है तो उसे 100 फीसदी फीस की स्कॉलरशिप भी मिल जाती है.

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