बुल्ली बाई जैसा घटिया कांड दोबारा न हो, इसके लिए इंटरनेट पर ये काम करना होगा!
इंटरनेट पर कहां-कहां चल रहे हैं ऐसे घटिया प्लैट्फ़ॉर्म?
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बाएं से दाएं. Bulli Bai एप का स्क्रीनशॉट और मुंबई पुलिस की हिरासत में एक आरोपी. (फोटो: Twitter/ANI)
किसी भी यूजर की गरिमा को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को और सख्ती दिखानी होगी. खासतौर पर महिलाओं के मामले में. अगर कोई महिला किसी ऐसे कंटेंट के बारे में शिकायत करती है जिससे उसकी गरिमा को धक्का लगता है तो उसे 24 घंटे में हटाना होगा. मिसाल के तौर पर प्राइवेट पार्ट, अंतरंग तस्वीरें या फर्जी अकाउंट आदि. इस तरह की शिकायत यूजर या उसकी तरफ से कोई दूसरा भी कर सकेगा. प्लेटफॉर्म पर ऐसा कॉन्टेंट नहीं डाला जा सकेगा जिससे मानहानी हो, या वो अश्लील होइस रूल को आए लगभग एक साल होने वाले हैं. इस बीच बुल्ली बाई एप पर खबर बनती है, जहां एक खास धर्म की महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा था. सुल्ली डील्स ऐप वाला केस याद होगा. जिसमें मुस्लिम महिलाओं की फोटो लगाकर उनकी नीलामी की जा रही थी. उसी तरह बुल्ली बाई एप पर किया जा रहा था. जब बुल्ली बाई एप का मामला सामने, आया ऐसे में कुछ लोगों ने याद दिलाया कि मामला सिर्फ एक ऐप और मुस्लिम महिलाओं को टारगेट करने भर नहीं है. हिन्दू धर्म की महिलाओं को ऐसे ही टारगेट किया जा रहा है. फेसबुक से लेकर टेलीग्राम, रेडिट और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर. इसी तरह के एक चैनल को लेकर शिकायत आईटी मंत्री अश्विनी चौबे तक पहुंची. इसके बाद मंत्री ने ट्वीट किया,
चैनल ब्लॉक कर दिया. भारत सरकार कार्रवाई के लिए राज्यों के पुलिस अधिकारियों के साथ समन्वय कर रही है.क्या कुछ चल रहा है सोशल मीडिया पर? अंसुल सक्सेना ने इस तरह कुछ पोस्ट ट्वीट किए हैं जिनमें फेसबुक और टेलीग्राम पर हिन्दू औरतों को निशाना बनाया गया है.





इस तरह के मामलों में FIR के बाद पुलिस एक्शन लेती है. मान लीजिए कि कोई अश्लील फोटो है तो IT एक्ट के तहत एक्शन लेंगे. अगर किसी फोटो या वीडियो से दंगे भड़क सकते हैं तो हम IPC की उन धाराओं के तहत कार्रवाई करते हैं. धार्मिक उन्माद फैलाने वाली धाराएं लगाते हैं. IPC और IT एक्ट में भी कई प्रावधान हैं जिससे तहत हम कार्रवाई करते हैं. यह पूरी तरह केस पर निर्भर करता है कि हम क्या धारा लगाते हैं. मान लीजिए कि कोई कम्युनल फीलिंग को हर्ट करता है तो हम 295 (किसी उपासना के स्थान को या व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा पवित्र मानी गई किसी वस्तु को नष्ट, नुकसानग्रस्त या अपवित्र करना) और 153 A (दो समुदायों के बीच दुश्मनी पैदा करना)लगाते हैं. हम केस देखकर ही बता सकते हैं क्या सेक्शन लगेगा.IT Rules 2021 साफ कहते हैं कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को किसी पोस्ट या कंटेंट के फर्स्ट ओरिजिनेटर की जानकारी सरकार को देनी होगी. मतलब सरकार किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से यह पूछ सकती है कि किसी मेसेज या कंटेंट को सबसे पहले किसने डाला. अगर विदेशी धरती से डाला गया होगा तो बताना होगा कि देश में उसे किसने फैलाया. निगरानी का तरीका क्या हो? इस तरह के चैनल और ग्रुप की निगरानी का क्या तरीका है. इस बारे में साइबर एक्सपर्ट जतिन जैन ने दी लल्लनटॉप को बताया,
"सरकार को सोशल मीडिया मॉनिटरिंग करनी होगी. और ये काम दुनिया में हर जगह हो रहा है. लेकिन जैसे ही इंडिया में इसे लेकर कदम उठाए जाते हैं विरोध होने लगता है. लोगों को लगता है कि सरकार सोशल मीडिया का सर्विलांस कर रही है. लेकिन ये समझना होगा कि पर्सनल चैट पढ़ने और ओपन चैट पढ़ने में फर्क है. दूसरा है सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करना. क्योंकि इस तरह के पोस्ट को लेकर कभी न कभी रिपोर्ट जरूर किया गया होगा. 24 घंटे के भीतर इस तरह के पोस्ट होता है, लेकिन कंपनियां हटाती नहीं हैं. सरकार को पूछना पड़ेगा कि सोशल मीडिया कंपनियों ने इस तरह के कितने पोस्ट हटाए. हर प्लेटफॉर्म को ये बताना चाहिए कि किसी कंटेट का ऑरिजनल पोस्ट किसने किया और उसे कड़ी से कड़ी सजा देनी होगी. हमारे यहां कानून है. जरूरत उसे इंप्लीमेंट करने की है."हालांकि साइबर सिक्युरिटी एक्सपर्ट राकेश टंडन थोड़ी अलग राय रखते हैं. उन्होंने लल्लनटॉप को बताया,
व्यवहारिक रूप से सर्विलांस संभव नहीं है, जहां इतने करोड़ लोग सोशल मीडिया यूज कर रहे हैं. एक-एक मिनट में अरबों डेटा अपलोड और डाउनलोड होता है. ऐसे में कॉन्टेंट का सर्विलांस पॉसिबल नहीं है. हां इसमें टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल जरूर होता है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस खासकर चाइल्ड अब्यूज से जुड़े मामलों में. लेकिन ये सबके लिए संभव नहीं है.उनका कहना है कि ऐसा करने वाले लोगों को समझना चाहिए कि डिजिटल फुटप्रिंट हमेशा रहता है. बुल्ली बाई ऐप केस में भी देखें तो साइबर सेल एक्टिव हुआ तो लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. उनका कहना है कि यूजर लेवल पर रिपोर्टिंग जरूरी है. अगर फिर भी इस तरह के कंटेट, फोटो, वीडियो नहीं हटाए जाते हैं तो कंपनियों के खिलाफ सरकार को एक्शन लेना चाहिए. कंपनियां ये कहकर बच जाती हैं कि हमें रिपोर्ट करिए हम एक्शन लेंगे. खुद से इस तरह की चीजों को हटाने के सवाल पर सोशल मीडिया कंपनियां ये तर्क देकर बच जाती हैं कि वो हर यूजर की एक्टिविटी को ट्रैक नहीं कर सकते. ये यूजर की प्राइवेसी का उल्लंघन होगा.