चीन सरकार दुनियाभर में कैसे जासूसी करवा रही है?
भारत में चीन के कितने एजेंट्स काम कर रहे हैं?
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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारतीय सीमा पर तनाव के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले सेना अधिकारी को लेकर बड़ा फैसला किया है. इसे आपसी रिश्तों के लिए बेहतर संकेत माना जा रहा है. (एएफपी)
आज बात एक डेटाबेस की. जिसके सामने आने के बाद हंगामा बरपा हुआ है. कई देशों की जांच एजेंसियों में हलचल तेज़ हो गई है. वहां अब तक हुए नुकसान का जोड़-घटाव चलने लगा है. ये कौन सी लिस्ट है? इसमें ऐसा क्या है कि चीन पर जासूसी के आरोप लग रहे हैं? और, इन सबसे भारत का क्या कनेक्शन है? विस्तार से जानते हैं.एक कमिटी है. इंटर-पार्लियामेंट्री एलायंस ऑन चाइना. IPAC. जून, 2020 में बनी थी. इसका काम है चीन के बढ़ते प्रभाव पर नज़र रखना. डेमोक्रेटिक देशों को चीन (खासकर कम्युनिस्ट पार्टी) के साथ कैसे रिश्ते रखने चाहिए, ये कमिटी इसपर भी चर्चा करती है. 19 देशों के 150 से ज़्यादा सांसद इसके मेंबर हैं.

IPAC कमिटी का काम चीन के बढ़ते प्रभाव पर नज़र रखने का है.
इस साल सितंबर के महीने में IPAC को एक डेटाबेस मिला. असल में ये डेटाबेस अप्रैल, 2016 में लीक हुआ था. टेलीग्राम पर एक चैटरूम में. इसे शंघाई के एक सर्वर से उड़ाया गया था. तब इसपर किसी ने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया. जब IPAC ने इस डेटाबेस की जांच करवाई, तो इसमें चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के लगभग 20 लाख सदस्यों की लिस्ट मिलीं. फुल जानकारी के साथ.
ये डेटा लीक कैसे हुआ?
इनमें से 63 फ़ीसदी पुरूष हैं. जबकि लगभग 99 फीसदी मेंबर हान जाति के हैं. हान, चीन के मूल निवासी माने जाते हैं. चीन में उनका प्रभुत्व है. डेटाबेस में और क्या-क्या था? पार्टी में उनके पद, नाम, जन्म की तारीख़, नेशनल आइडेंटिटी नंबर के साथ-साथ जाति और घर का पता. दुनियाभर में CCP की 79 हज़ार शाखाओं की जानकारी भी बाहर आई. इतिहास में पहली बार CCP मेंबर्स की ऐसी डिटेल्स पब्लिक डोमेन में आईं है.

चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी के करीब 20 लाख सदस्यों का डेटाबेस लीक हुआ था अब उन्हें डिकोड किया गया है. (एएफपी)
IPAC ने ये डेटाबेस चार मीडिया ऑर्गेनाइज़ेशन को सौंपा. आगे की जांच हुई तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने हुए. पता चला कि CCP के मेंबर्स न सिर्फ़ दुनिया की टॉप कंपनियों में काम कर रहे हैं. बल्कि, कई देशों के दूतावासों और सरकार में भी उनकी पैठ है. इनमें से कई लोग ऐसे पदों पर हैं, जहां से वो किसी देश की पॉलिसी पर असर डाल सकते हैं.
जिन कंपनियों के नाम सामने आए हैं, उनमें फ़ाइज़र और एस्ट्राज़ेनेका का भी नाम है. ये दोनों कंपनियां कोरोना वैक्सीन की दौड़ में सबसे आगे चल रहीं है. इसके अलावा, बोइंग, एयरबस और रॉल्स-रॉयस में भी सैकड़ों की संख्या में CCP मेंबर्स मौजूद हैं. ये कंपनियां डिफ़ेंस के साजो-सामान बनाती हैं. कंपनियों की लिस्ट लंबी है. इतना समझ लीजिए कि दुनिया की हर बड़ी टेक, फ़ार्मा, डिफ़ेंस सेक्टर की कंपनियों में चीन का सीधा हस्तक्षेप हो रहा है.

फ़ाइज़र कंपनी कोरोना वैक्सीन की दौड़ में सबसे आगे चल रहीं है. (एएफपी)
ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के अखबार क्या कह रहे?
ब्रिटिश अख़बार डेली मेल की रिपोर्ट है. इसके मुताबिक, चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी के वफ़ादार सदस्यों का दखल ब्रिटेन के हर मामले में हो रहा है. ब्रिटिश दूतावासों, यूनिवर्सिटीज़ और बैंकों में उनकी भरमार है. एक मेंबर तो MI6 के दफ़्तर के पास ही काम करता है. MI6, ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी है. जैसे, अमेरिका में CIA, इजरायल में मोसाद और भारत में रॉ.
इसी तरह ऑस्ट्रेलिया का अख़बार है. दी ऑस्ट्रेलियन. ये डेटाबेस उनके पास भी पहुंचा था. उनकी जांच में सामने आया कि कम-से-कम दस देशों के दूतावासों में CCP के मेंबर अहम पदों पर हैं. चीन के प्रति पॉलिसी डिसाइड करने में उनका हाथ रहता है. ऑस्ट्रेलिया का दूसरा सबसे बड़ा बैंक है. ऑस्ट्रेलिया एंड न्यूज़ीलैंड बैंकिंग ग्रुप (ANZ). इसमें CCP के 23 मेंबर्स काम कर रहे हैं. यहां चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी की एक शाखा भी चलती है.

दी ऑस्ट्रेलियन ने मामले को लेकर लंबी रिपोर्ट पब्लिश की है.
ऑस्ट्रेलिया वर्सेज चीन
ऑस्ट्रेलिया ने सितंबर महीने में एक चीनी प्रफ़ेसर का वीजा रद्द कर दिया था. शंघाई के रहनेवाले चेन होंग अक्सर ऑस्ट्रेलिया आते रहते थे. वो ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ काफी मुखर थे. ऑस्ट्रेलिया की खुफिया एजेंसी है एशियो (ASIO). एजेंसी ने होंग से खतरे की आशंका जताई थी. अभी जो लिस्ट सामने आई है, उसमें चेन होंग का भी नाम है.

ऑस्ट्रेलियाई खुफिया एजेंसी एशियो.
पिछले कुछ समय से ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच रिश्ते खराब चल रहे हैं. अगस्त, 2018 में ऑस्ट्रेलिया ने चीनी कंपनी हुवेई को बैन कर दिया था. ऑस्ट्रेलिया साउथ चाइना सी में चीन की बदमाशी की आलोचना करता रहा है. इसके अलावा, उसने कोरोना वायरस को लेकर चीन के ख़िलाफ़ इंक्वायरी की मांग भी उठाई है. तब से चीन मौका तलाश रहा था.
ये मौका तब मिला, जब ऑस्ट्रेलियन आर्मी ने अफ़ग़ानिस्तान में वॉर क्राइम से जुड़ी एक रिपोर्ट पब्लिश की. चीनी इसके बाद, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक फ़ेक तस्वीर ट्वीट की थी. इसमें एक ऑस्ट्रेलियन सैनिक एक बच्चे की गर्दन ख़ून से सना चाकू रखता दिखा. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने तस्वीर हटाने और माफ़ी मांगने के लिए कहा. चीन ने न तो तस्वीर हटाई और न ही माफ़ी मांगी. CPC मेंबर्स की लिस्ट ने ऑस्ट्रेलिया को सकते में ला दिया है.

चीनी के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने फ़ेक तस्वीर ट्वीट की थी.
भारत में इसका क्या असर हुआ है?
इस डेटाबेस से भारत की चिंताएं भी बढ़ी हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के 7 ब्रांच काम कर रहे हैं. पार्टी का एक सदस्य शंघाई स्थित भारतीय दूतावास में 2014 से 2017 तक पोस्टेड था. कुल 92 मेंबर्स का इंडिया कनेक्शन सामने आया है. हालांकि, भारत सरकार ने इस रिपोर्ट पर कोई बयान नहीं दिया है.
अभी तक ये पता नहीं चल सका है कि इन डेटाबेस में जिनका भी नाम आया है, उन्होंने क्या जासूसी की है? या उन्होंने कितना नुकसान पहुंचाया है? अगर ये पता नहीं चला है तो फिर इन देशों में हलचल क्यों मची हुई है?
इसकी वजह है, चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी का कल्चर. CCP के कुल 9.2 करोड़ सदस्य हैं. पार्टी की मेंबरशिप हासिल करने के लिए वफ़ादारी साबित करनी होती है. ये कितना मुश्किल है. इसे एक आंकड़े से समझते हैं. मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, दस लोग पार्टी की मेंबरशिप के लिए अप्लाई करते हैं तो एक को चुना जाता है. ऐसा नहीं कि बस मिस्ड कॉल किया और पार्टी के मेंबर बन गए.

चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग (फोटो: एपी)
इसके अलावा, मेंबर्स को शपथ लेनी होती है कि ‘वे समय पड़ने पर पार्टी के लिए हर तरह का बलिदान देने के लिए तैयार होंगे’. उन्हें पार्टी का हित सबसे ऊपर रखना होता है. चीन में एकदलीय व्यवस्था है. कम्युनिस्ट पार्टी ही सरकार है. पार्टी के आदेश जारी होते हैं, और उनका पालन होता है. बिना किसी ना-नुकूर के. अच्छे-बुरे पर सवाल उठाने की कोई गुंजाइश नहीं होती है. इसलिए ये लिस्ट सवाल खड़े करने वाली है. इन देशों को अपने नुकसान का अंदाज़ा तक नहीं है. कई मेंबर तो ऐसे हैं जो एक ही जगह पर 16 सालों से टिके हुए हैं.
इस खुलासे से एक बयान अचानक से भयावह हो गया है?
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का. जिनपिंग खुल्लमखुल्ला दावा करते रहे हैं कि 2049 तक चीन के पास दुनिया की सबसे ताक़तवर आर्मी होगी. सवाल लाज़िमी है कि क्या ये 20 लाख पार्टी मेंबर्स उसी मिशन में लगे हुए हैं. आशंका बलवती है. इसकी जांच होनी चाहिए. होगी भी. जो सच है, वो सामने आना चाहिए. इस खुलासे का नतीजा क्या निकलता है, ये वक़्त की क़ैद में दर्ज़ है.

चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी. (एएफपी)
ये तो हुई खुलासे की बात. चीन इसपर क्या कह रहा है? कम्युनिस्ट पार्टी का भोंपू अख़बार है, ग्लोबल टाइम्स. अख़बार ने रिपोर्ट को निजता का हनन बता दिया है. साथ ही ये भी कहा है कि वेस्टर्न मीडिया ने बात का बतंगड़ खड़ा कर दिया है. ग्लोबल टाइम्स ने ये भी लिखा कि डेटाबेस फ़र्ज़ी हो सकता है. जिसके जरिए आम चीनी नागरिकों को निशाना बनाने की कोशिश हो रही है.
अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए खुफिया एजेंसियां जासूसी करती रहीं है. लेकिन जब बात चीन की हो तो वहां नज़र टेढ़ी हो ही जाती है. चीन अपने नागरिकों के दमन के लिए मशहूर है. चाहे वो कल्चरल रेवॉल्यूशन हों या फिर तियानमेन स्क्वायर में चला टैंक. उस मुल्क़ को बस साम्राज्य के विस्तार की परवाह है. इसके लिए वो किसी के हित की बलि चढ़ा सकता है.