हिमाचल प्रदेश : वो 'सी' क्लास स्टेट, जिसे पूर्ण राज्य बनने के लिए चार पड़ाव पार करने पड़े
हिमाचल प्रदेश के बनने की पूरी कहानी.
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2 दशकों में अलग-अलग पहाड़ी इलाकों को जोड़ कर हिमाचल प्रदेश अस्तित्व में आया.
भारत के राज्यों का भूगोल कमोबेश एक ही बार में तय हो गया था. आजादी के बाद से ही अस्तित्व में रहे राज्य (जैसे बिहार), फिर राज्य पुनर्गठन के बाद बने राज्य (जैसे आंध्र प्रदेश) और बाद में बने नए राज्य (जैसे उत्तराखंड). लेकिन एक राज्य ऐसा भी है, जो दशकों में जाकर अपने मौजूदा स्वरूप तक पहुंचा. और ये लगातार बढ़ा ही. आज इसी राज्य की कहानी. हिमाचल प्रदेश के बनने की कहानी, जिसके पूर्ण राज्य बनने की इस बरस गोल्डन जुबली है.यह 25 जनवरी 1971 का दिन था. यानी आज से ठीक 50 साल पहले. उस दिन शिमला के रिज़ मैदान में हजारों लोग जमा थे. सब लोग खुशी से नाच रहे थे. उनके साथ-साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार भी नाच रहे थे. मंच पर देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी मौजूद थीं. इस खुशी की वजह. हिमाचल प्रदेश के पूर्ण राज्य के रूप में अस्तित्व में आने का ऐलान. जिस शिमला में ये ऐलान हुआ, कहानी वहीं से शुरू करते हैं.

इंदिरा गांधी के साथ यशवंत सिंह परमार.
हिमालय हिल स्टेट की बुनियाद आजादी के पहले देश में दो तरह की प्रशासनिक इकाई थीं. एक, जहां अंग्रेजों का सीधा शासन था. दूसरा, जहां रियासतें थीं. सीधे शासन वाले इलाकों में आजादी की लड़ाई के लिए कांग्रेस समेत कई राजनीतिक आंदोलन सक्रिय थे. रियासतों में नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष का काम प्रजा मंडल करता था. ऐसे ही प्रजा मंडल शिमला और आसपास के पहाड़ी इलाकों में बसी रियासतों में सक्रिय थे. जब भारत की आजादी की तैयारी शुरू हुई तो ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग की तरह ही इन प्रजा मंडलों का भी संज्ञान लिया. 1946 में सरकार ने हिमालय हिल स्टेट रीजनल कमेटी बनाई. प्रजा मंडल के नेताओं को, मसलन मंडी के पूर्णानंद को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया. 1947 में कमेटी के चुनाव हुए तो बाद के बरसों में हिमाचल प्रदेश के सबसे कद्दावर नेता बने यशवंत परमार इसके अध्यक्ष बन गए. आप क्लास सी स्टेट हैं बात आगे बढ़ाने से पहले अब हम स्टेट की कैटिगरी समझ लेते हैं. जब देश को आजादी मिली तो कुछ ब्रिटिश प्रशासनिक इकाइयां थीं तो कुछ रियासतें. संविधान लागू होने से पहले यानी उस दौर में जब रियासतें जुड़ रही थीं और सीमाएं बन बिगड़ रही थीं, तब शासन चलाने के लिए इन सब भौगोलिक इकाइयों को तीन तरह के स्टेट में बांटा गया.

25 जनवरी 1971 को हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया.
ए कैटिगरी के स्टेट पूर्ण राज्य. जैसे संयुक्त प्रांत, बिहार-बंगाल. जहां पर प्रांतीय सरकारें काम कर रही थीं. जैसे आज का यूपी, जिसे तब संयुक्त प्रांत कहते थे. वहां गोविंद वल्लभ पंत की सरकार थी. बी कैटिगरी के स्टेट ऐसे राज्य, जो फौरी तौर पर कुछ रियासतों और कुछ ब्रिटिश शासित इलाकों को मिलाकर बनाए गए थे. जैसे पेप्सू (पटियाला एंड ईस्ट पंजाब स्टेट यूनियन). यहां शुरुआत केंद्र के नियुक्त एडमिनिस्ट्रेटर थे, जो मुख्यमंत्री के तौर पर काम करते थे. सी कैटिगरी के स्टेट यूनियन टैरिटरी की तर्ज पर. सीधे केंद्र की कमांड के अधीन. 'कुछ छोटे इलाके जहां तत्काल सेल्फ गवर्नमेंट यानी राज्य सरकारों के गठन की प्रक्रिया को शुरू नहीं किया जाएगा, वहां एक चीफ कमिश्नर अपॉइंट कर स्थानीय शासन व्यवस्था को चलाया जाएगा. इस सी कैटिगरी में दिल्ली था और था हिमाचल प्रदेश.
15 अप्रैल 1948 को हिमाचल प्रदेश क्लास 'सी' स्टेट के रूप में अस्तित्व में आया. ये हिमालय हिल स्टेट कमेटी के इलाकों को मिलाकर बना था. पहला विस्तार जिस महीने हिमाचल प्रदेश सी स्टेट बना, उसी अप्रैल 1948 में सोलन इलाके की नालागढ़ रियासत इसमें शामिल हो गई. अब राज्य में 4 जिले थे. महासू (शिमला का पुराना नाम), सिरमौर, चंबा और मंडी. दूसरा विस्तार 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू होने पर भी हिमाचल प्रदेश का क्लास सी स्टेट का दर्जा बरकरार रखा गया. इसमें इसी बरस बगल के दो राज्यों, यूपी और पंजाब के कुछ इलाके भी जोड़े गए.
* यूपी के दो गांव, संसोग और भटाड़. इन्हें शिमला की जुब्बल तहसील में जोड़ा गया.
* PEPSU (पटियाला & ईस्ट पंजाब स्टेट यूनियन) का छबरोट. ये भी शिमला की कुसुम्पटी तहसील में जोड़ा गया. तीसरा विस्तार देश में 1952 में पहले चुनाव हुए. हिमाचल प्रदेश में हुए चुनाव में कांग्रेस जीती और यशवंत परमार मुख्यमंत्री हो गए. इसके दो बरस बाद राज्य का भूगोल फिर बढ़ा. बिलासपुर रियासत जो 1948 में भारत में विलय कर चुकी थी. अब तक अलग प्रशासनिक इकाई थी. सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में. 1954 में इसे भी हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया. चौथा विस्तारइस विस्तार पर बात करने से पहले हिस्ट्री का एक क्विक लैसन.
1953-54 के दौर में देश में भाषायी आधार पर राज्यों के गठन की मांग ने जोर पकड़ लिया था. कई जगह हिंसक प्रदर्शन हुए. बंबई प्रांत में मराठी-गुजराती लड़ रहे थे तो मद्रास में तमिल और तेलुगू भाषी. इन सबको देखते हुए जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने जस्टिस फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया. आयोग ने पूरे देश को 14 राज्यों और 6 केन्द्रशासित प्रदेशों में बांटने की सिफारिश की. क्लास ए, बी, सी टाइप की स्टेट कैटिगरी खत्म कर दी गईं.

पोट्टू श्रीरामूलु के अलग आन्ध्र प्रदेश राज्य के लिए किए गए अनशन और उस दौरान उनकी मृत्यु की वजह से राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन करना पड़ा था.
इसी विधान के तहत 1 जुलाई 1956 को हिमाचल प्रदेश केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया. क्लास सी स्टेट के तौर पर इसे मिली विधानसभा और मुख्यमंत्री का पद खत्म हो गया. अब केंद्र का एडमिनिस्ट्रेशन था.
सात साल बाद ये व्यवस्था फिर बदली और 1963 में विधानसभा बहाल कर दी गई. यशवंत परमार एक बार फिर मुख्यमंत्री हो गए.

यशवंत सिंह परमार लगातार इंदिरा गांधी से हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करते रहे.
तीन बरस बाद हरियाणा बना. पंजाब के हिंदी भाषी इलाकों को अलग कर. नवंबर 1966 में. और तभी इंदिरा सरकार ने पंजाब के पहाड़ी इलाकों को भी अलग कर हिमाचल प्रदेश में जोड़ दिया. ये इलाके थे कांगड़ा और उसके आसपास के. ये हिमाचल प्रदेश के भूगोल का चौथा और आखिरी विस्तार था. इसका मौजूदा स्वरूप, 55673 स्कैवयर किलोमीटर में फैलकर तय हुआ.
लेकिन हिमाचल प्रदेश अभी भी यूटी था. यशवंत परमार इसे पूर्ण राज्य का दर्जा देने की लगातार इंदिरा से गुहार कर रहे थे. प्रशासनिक आधार तो था ही, परमार इंदिरा के मुश्किल राजनीतिक वक्त में उनके साथ भी रहे थे. नतीजतन, इंदिरा सरकार ने दिसंबर 1970 में हिमाचल प्रदेश राज्य अधिनियम को संसद में पास करवा दिया. और इसी के बाद शिमला का वो उत्सव हुआ, जिससे बात की शुरुआत हुई थी. तारीख थी 25 जनवरी 1971 और देश का 18वां पूर्ण राज्य था, हिमाचल प्रदेश.