ड्राइवर के साथ भी, ड्राइवर के बिना भी; कितनी तरह से चलती है दिल्ली मेट्रो?
पीएम मोदी ने ड्राइवरलेस मेट्रो को हरी झंडी दिखा दी है.
Advertisement

बिन ड्राइवर के मेट्रो कैसे चलेगी? (फ़ोटो: PTI)
अब से इस लाइन पर ड्राइवर की जगह दिल्ली मेट्रो का ऑपरेशन कंट्रोल सेंटर ट्रेन को चलाएगा. इसी सेंटर से इंजीनियर की टीम मेट्रो के ऑपरेशन पर नज़र रखेगी. मगर क्या दिल्ली की सारी लाइन बिन ड्राइवर के चल सकती हैं? इसका जवाब न में है. असल में दिल्ली मेट्रो की मजेन्टा और पिंक लाइन में नया वाला सिग्नलिंग सिस्टम लगा हुआ है, जिसकी वजह से सिर्फ़ इन्हीं दोनों लाइन पर चलने वाली मेट्रो को बिना ड्राइवर के चलने के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है.
इस सिग्नल सिस्टम का नाम CBTC या कम्यूनिकेशन बेस्ड ट्रेन कंट्रोल. हार्डवेयर की दिक्कत को छोड़कर बाकी हर तरह की परेशानी को ये सिस्टम खुद ठीक कर सकता है. आइए ये जान लेते हैं कि मेट्रो ऑपरेशन कितने तरह के होते हैं. साथ ही ये भी कि दिल्ली मेट्रो की अलग-अलग रूट किस मोड पर चलते हैं.
ग्रेड ऑफ़ ऑटोमेशन (GoA)

मेट्रो ऑपरेशन को ड्राइवर के रोल के हिसाब से अलग-अलग ग्रेड में बांटा गया है. (फ़ोटो: PTI)
मेट्रो में ड्राइवर के रोल के हिसाब से अलग-अलग ग्रेड ऑफ़ ऑटोमेशन या GoA होते हैं. यानी मेट्रो के चलने में ऑटोमेटिक तरीके से कितनी चीज़ें हो रही हैं और ड्राइवर कितनी चीज़ें कंट्रोल कर रहा है. GoA पांच होते हैं. सबसे कम ग्रेड पर ड्राइवर का रोल सबसे ज़्यादा होता है और जैसे-जैसे ग्रेड बढ़ता रहता है, ड्राइवर का काम कम होता रहता है. आखिरी ग्रेड में ड्राइवर पूरी तरह से गायब हो जाता है.
GoA 0: इस ग्रेड में ट्रेन में किसी भी तरह का ऑटोमेटिक सिस्टम नहीं होता है. मेट्रो पूरी तरह से ड्राइवर के भरोसे होती है. दिल्ली मेट्रो का कोई भी रूट इस ग्रेड पर नहीं चलता है.
GoA 1: इस ग्रेड में ड्राइवर का पूरा कंट्रोल होता है मगर एक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम पूरे ऑपरेशन पर नज़र रखता है. दिल्ली मेट्रो ने 2002 में इसी ग्रेड पर ऑपरेशन चालू किया था. रेड लाइन आज भी इसी ग्रेड पर चलती है.
GoA 2: इस ग्रेड में मेट्रो ऑटोमेटिक ट्रेन ऑपरेशन की मदद से चलती है. इसमें ड्राइवर सिर्फ़ ट्रेन को चालू करता है और गेट को बंद करता है. बाक़ी ट्रेन चलाने से लेकर ट्रेन रोकने और दरवाज़े खोलने तक का सारा काम ऑटोमेटिक होता है. सबसे पहले दिल्ली मेट्रो की यलो लाइन इस ग्रेड पर चलाई गई थी.

DMRC की यलो लाइन पर चलने वाली एक मेट्रो ट्रेन के ड्राइवर. (फ़ोटो: PTI)
GoA 3: इस ग्रेड पर ड्राइवर का काम खत्म हो जाता है और ट्रेन पूरी तरह से ऑटोमेटिक तरीके से चलती है. मगर इमरजेंसी वग़ैरह के लिए ड्राइवर ट्रेन में ही मौजूद रहता है. इसे अटेन्डेन्ट कहा जाता है. हिन्दी में बोलें तो सहायक. दिल्ली मेट्रो की नई मजेन्टा लाइन (बोटैनिकल गार्डन से जनकपुरी वेस्ट) इसी ग्रेड पर अपग्रेड की जाएगी. आगे चलकर पिंक लाइन को भी इसी मोड पर चलाया जाएगा. इसे ड्राइवरलेस ट्रेन ऑपरेशन या DTO भी कहते हैं.
GoA 4: आपको याद होगा कि जब शुरुआत में अपने देश में मॉल वग़ैरह में escalator (एसकेलेटर) चालू हुए थे तो लोगों की मदद के लिए वहां पर अटेंडेंट या सहायक होता था. फिर जब लोगों को इन चलने-फिरने वाली सीढ़ियों की आदत हो गई तो सहायक को हटा लिया गया. यही चीज़ GoA 3 मोड से GoA 4 में जाने पर लागू होती है.
ये सबसे हाई ग्रेड है और इसमें ट्रेन पूरी तरह से ऑटोमेटिक तरीके से चलती है. न ड्राइवर होता है न सहायक और न ही ड्राइवर का कैबिन. इस मोड को अनअटेन्डेड ट्रेन ऑपरेशन या UTO भी कहते हैं. इस ग्रेड में टेक्नॉलजी में बदलाव किसी तरह का नहीं होता है बस बात भरोसे की होती है. जब GoA 3 में मेट्रो का ऑपरेशन सही तरीके से होता है तो फिर सहायक को भी हटा लिया जाता है. मजेन्टा लाइन के DTO मोड को आगे चलकर UTO पर शिफ़्ट कर दिया जाएगा.
बिन ड्राइवर वाली ट्रेन का फायदा क्या?

दिल्ली मेट्रो. (फ़ोटो: PTI)
बिन-ड्राइवर वाली ट्रेन एक जैसी रफ़्तार से चल पाएंगी. इनकी टॉप स्पीड 95 किलोमीटर प्रति घंटा (kmph) होगी और ये पटरी पर 85kmph की रफ्तार से चलेंगी. DMRC के मुताबिक, ये ट्रेन कम पावर पर खाएंगी. नए वाले सिग्नल सिस्टम की वजह से दो ट्रेनों के बीच की न्यूनतम दूरी घट जाएगी और मेट्रो स्टेशन के प्लैट्फॉर्म पर ट्रेन की फ्रीक्वेन्सी भी अच्छी होगी. यानी एक ट्रेन के जाने के बाद दूसरी ट्रेन का ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा. और इसमें ड्राइवर केबिन नहीं होगा तो पैसेंजर्स के लिए थोड़ी ज्यादा जगह होगी.
दिल्ली के अलावा बैंगलोर में भी बिन-ड्राइवर वाली मेट्रो चलाने की तैयारी हो रही है. टेक्नॉलजी कंपनी सीमेन्स (Siemens) ने इसी महीने बताया है कि बैंगलोर मेट्रो के फेस 2 में ये GoA 4 मोड में ट्रेन चलाने में मदद करेगी.