The Lallantop
Advertisement

स्पेस शटल में कल्पना चावला की मौत कैसे हुई थी?

स्पेस शटल कोलंबिया के आख़िरी पलों की कहानी में क्या पेंच है?

Advertisement
Img The Lallantop
कल्पना चावला (फोटो सोर्स -India Today)
pic
शिवेंद्र गौरव
1 फ़रवरी 2022 (Updated: 3 फ़रवरी 2022, 01:57 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

‘जब आप तारों और आकाशगंगा को देखते हैं, तो आपको लगता है कि आप केवल किसी विशेष भूमि के टुकड़े से नहीं, बल्कि सौर मंडल से हैं, मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनीं हूं, हर पल अंतरिक्ष के लिए बिताया और इसी के लिए मरूंगी.’

ये शब्द अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला कल्पना चावला के हैं. जिनका परिवार बंटवारे के बाद मुल्तान से भारत आया, और जो खुद अमेरिका में बस गईं. लेकिन इस पूरी जीवनचर्या के दौरान उन्होंने भारत देश का नाम रौशन कर दिया.
आज 1 फरवरी है और आज की तारीख़ का संबंध है स्पेस शटल कोलंबिया के क्षतिग्रस्त होने और कल्पना चावला और उनके बाकी साथियों की मृत्यु से.कल्पना का जीवन-साल 1947 में भारत आजाद हुआ था, अंग्रेजी हुकुमत से. इसी साल बना था पाकिस्तान. यानी ये साल था विभाजन का. विभाजन के वक्त बहुत से परिवार भी एक देश से दूसरे देश गए थे. इन्हीं परिवारों में से एक परिवार बनारसी लाल चावला का भी था, जो पाकिस्तान के मुल्तान में रहता था. लेकिन पार्टिशन के कारण हरियाणा के कर्नाल आ गया था. फिर यहीं बस गया.
बनारसी बड़े मेहनती आदमी थे. घर चलाने के लिए पहले कपड़े बेचा करते थे, और भी कई सारे छोटे-मोटे काम करते थे. बाद में इन्होंने टायर बनाने का बिजनेस शुरू किया. इनकी बीवी, घर के काम देखती थीं. दोनों के चार बच्चे हुए. 17 मार्च 1962 के दिन सबसे छोटी बेटी हुई. नाम रखा ‘मोंटो’.
मोंटो बहुत प्यारी बच्ची थी. उसे हवाई जहाज बहुत पसंद था. वो बचपन में सितारों के बीच उड़ने का सपना देखती थी. आंखों में एक अलग चमक थी. एक अलग जज़्बा था. इसी जज़्बे ने और आसमान में उड़ने के इसी सपने ने, मोंटो को एक दिन कल्पना चावला(Kalpana Chawla) बना दिया. और यही मोंटो आगे चलकर स्पेस में जाने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. और राकेश शर्मा के बाद दूसरी भारतीय.
बचपन में ‘मोंटो’ (photo Source India Today)
बचपन में ‘मोंटो’ (फोटो सोर्स - India Today)

मोंटो उर्फ कल्पना चावला की कहानी-अब बनारसी जी ने अपनी सबसे छोटी बच्ची का कोई फॉर्मल नाम नहीं रखा था. मोंटो ही उसका नाम था. जब वो थोड़ी बड़ी हुई, तो स्कूल में एडमिशन कराने की बारी आई. एक आंटी मोंटो को लेकर कर्नाल के टैगोर बाल निकेतन स्कूल गईं. वहां प्रिंसिपल ने पूछा कि क्या नाम रखा जाए. तब आंटी ने बताया कि मोंटो के तीन नाम हैं- ज्योत्सना, सुनैना और कल्पना. लेकिन तीनों में से कौन-सा नाम रखा जाए, इस पर अभी कोई फैसला नहीं किया है. प्रिंसिपल ने मोंटो से ही पूछा, कि वो क्या नाम रखना चाहती है. मोंटो ने कहा कि वैसे तो उसे तीनों नाम पसंद हैं, लेकिन कल्पना सबसे ज्यादा पसंद है. क्योंकि उसका मतलब इमेजिनेशन होता है. और मोंटो को तो आसमान में उड़ने की कल्पना करना पसंद था ही. फिर क्या. स्कूल के पहले दिन मोंटो का नाम हो गया कल्पना चावला. उस वक्त किसी ने ये नहीं सोचा होगा, कि ये लड़की आगे चलकर स्पेस की सैर करेगी.
स्कूल में जब ड्रॉइंग बनाने की बारी आती. सारे बच्चे वही पहाड़, नदी के चित्र बनाते. कल्पना उन पहाड़ों और नदियों के ऊपर हवाई जहाज का चित्र बना देतीं. क्लास की दीवारों पर भी एक झटके में इंडिया का जीअग्रैफ़िकल मैप बना देती थीं. शुरुआत से ही साइंस की तरफ झुकाव था. गर्मियों में जब परिवार के लोग छत पर सोते थे, छोटी कल्पना रात में जागतीं, और सितारों को देखती रहतीं.
खैर, स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से बी.टेक किया. फिर एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका चली गईं. यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस से 1984 में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग भी पूरी कर ली. फिर एक और मास्टर्स किया और पीचएडी की. जब कभी अपने दोस्तों के साथ करियर से रिलेटेड बातें करतीं, तो कहतीं, ‘एक दिन मैं भी उड़ूंगी’
उड़ने का सपना कल्पना ने बचपन से देखा था. और उसे पूरा करने के लिए बहुत मेहनत भी करती थीं. उन्होंने पढ़ाई पूरी करने के बाद 1988 में ‘नासा’ के साथ काम करना शुरू किया. फिर अमेरिका में ही शिफ्ट हो गई. 1991 में इन्हें अमेरिका की नागरिकता भी मिल गई. फिर ‘नासा’ एस्ट्रोनॉट कॉर्प्स का हिस्सा बन गईं. 1997 में पहली बार स्पेस मिशन में जाने का मौका मिला. वो ‘नासा’ के स्पेस शटल प्रोग्राम का हिस्सा बनीं.
आगे बढ़ने से पहले स्पेस शटल प्रोग्राम के बारे में थोड़ा बात कर लेते हैं. नासा का एक प्रोग्राम है ‘ह्यूमन स्पेसफ्लाइट’. इस प्रोग्राम के तहत कुछ लोगों को ग्रुप में स्पेसक्राफ्ट के जरिए स्पेस में भेजा जाता है. किसी रिसर्च के लिए. तो स्पेस शटल प्रोग्राम भी एक ह्यूमन स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम था. चौथा ह्यूमन स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम था. इस चौथे प्रोग्राम का 88वां मिशन था कोलंबिया फ्लाइट STS-87. इसका हिस्सा बनीं कल्पना चावला. ये कल्पना का पहला स्पेस मिशन था. वो 1997 में अपने 5 एस्ट्रोनॉट साथियों के साथ इस मिशन पर गईं. 10.4 मिलियन माइल्स का सफर तय किया. पृथ्वी के 252 चक्कर काटे. पहला मिशन सफल रहा.
फिर कल्पना साल 2003 में अपने दूसरे स्पेस मिशन पर गईं. मिशन था स्पेस शटल कोलंबिया STS-107. स्पेस शटल प्रोग्राम का 113वां मिशन था. 16 जनवरी, 2003 के दिन STS-107 पृथ्वी से रवाना हुआ. कल्पना एक बार फिर स्पेस में थीं. वापसी थी 1 फरवरी 2003 को यानी आज ही के दिन. कल्पना वापस आने वाली थीं. टीवी पर यही उस दिन की सबसे बड़ी खबर थी. कोलंबिया STS-107 धरती पर वापस भी आया, लेकिन 80,000 से ज्यादा टुकड़ों में.
स्पेस शटल में कल्पना चावला (photo Source Aajtak)
स्पेस शटल में कल्पना चावला (फोटो सोर्स - Aajtak)


 क्यों हुआ ये हादसा?STS-107 के लॉन्च वाले दिन, यानी 16 जनवरी 2003 को स्पेस शटल के बाहरी टैंक से ‘फोम इन्सुलेशन’ का एक हिस्सा टूट गया था. जिससे ऑर्बिटर का लेफ्ट विंग काफी प्रभावित हुआ. इसमें एक छेद हो गया था जिससे एटमोस्फियरिक गैस प्रेशर से शटल के अन्दर आना शुरू हो गई.
स्पेस जर्नलिस्ट माइकल कैबेज और विलियम हारवुड की 2008 की एक किताब के मुताबिक़ नासा के अंदर कई लोग थे जो टूटे हुए विंग की तस्वीरें लेना चाहते थे. कहा जाता है कि नासा का डिफेंस डिपार्टमेंट करीब से देखने के लिए अपने ऑर्बिटल स्पाई कैमरा का इस्तेमाल करने के लिए तैयार था. लेकिन  नासा के बड़े अधिकारियों ने इसके लिए मना कर दिया. और बिना किसी जांच के लैंडिंग आगे बढ़ गई.
कुछ इंजीनियर्स का ऐसा मानना है कि ये डैमेज स्पेस शटल के लिए काफी बड़ा डैमेज था. नासा मैनेजर्स का ये कहना था कि अगर क्रू को दिक्कत पता थी, तो उसे फिक्स कर सकते थे.
1 फरवरी 2003 को शटल को कैनेडी स्पेस सेंटर में लैंड करना था. सुबह 9 बजे से ठीक पहले, मिशन कंट्रोल में असामान्य रीडिंग्स नोट की गईं. बाएं विंग के सेंसर से टेम्परेचर रीडिंग नहीं मिल रहीं थीं और फिर, शटल के बाईं तरफ़ के टायर की प्रेशर रीडिंग भी गायब हो गई.
नासा के स्पेस कम्यूनिकेटर ने टायर की प्रेशर रीडिंग के बारे में कोलंबिया से संपर्क करना चाहा, उधर से ठीक सुबह 8 बजकर 59 मिनट 32 सेकंड पर Rick Husband ने कोलंबिया से वापस फोन किया. उन्होंने जो वाक्य बोला उसका बस एक शब्द साफ़ सुनाई दिया, - "रोजर”
उस समय, कोलंबिया अमेरिका के टेक्सस प्रांत के शहर डलास के पास था,  आवाज़ की गति से भी 18 गुना तेज़ गति और जमीन से 61,170 मीटर की ऊंचाई पर. मिशन कंट्रोल ने कल्पना और उनके साथी अंतरिक्ष यात्रियों से संपर्क करने की कई कोशिशें कीं.  लेकिन सफलता नहीं मिली.
बारह मिनट बाद, जब कोलंबिया को रनवे पर होना चाहिए था. मिशन कंट्रोल को एक फोन आया. फोन करने वाले ने कहा कि एक टीवी चैनल आसमान में शटल के टूटने का वीडियो दिखा रहा है.
नासा ने इसे कॉन्टिंजेंसी घोषित कर दिया, मलबा खोजे जाने के लिए लोग भेज दिए. और अंतरिक्ष यात्रियों के लापता होने की घोषणा कर दी.
उस समय नासा के प्रशासक रहे शॉन ओ'कीफ ने कहा,

'यह वास्तव में नासा परिवार के लिए एसटीएस-107 पर उड़ान भरने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के परिवारों के लिए, और इस राष्ट्र के लिए एक दुखद दिन है'

मलबे की खोज में हफ्तों लग गए, क्योंकि यह अकेले पूर्वी टेक्सास में लगभग 2,000 वर्ग मील (5,180 वर्ग किलोमीटर) के क्षेत्र में बिखरा हुआ था. आखिरकार नासा ने शटल के 84, 000 टुकड़े बरामद किए, जो वजन के हिसाब से कोलंबिया का सिर्फ 40 प्रतिशत थे. इन्हीं 84,000 टुकड़ों में कल्पना और उनके बाकी साथियों के अवशेष भी थे, जिनकी पहचान डीएनए से की गई थी.
स्पेस शटल हादसे में कल्पना चावला की मृत्यु हो गई (photo Source Aajtak)
स्पेस शटल हादसे में कल्पना चावला की मृत्यु हो गई (फोटो सोर्स -  Aajtak)

नासा ने क्या कहा था-30 दिसंबर 2008 को इस दुर्घटना के बारे में नासा ने 400 पन्नों की एक जांच रिपोर्ट जारी की.
1 फरवरी, सुबह 9 बजे से पहले स्पेस शटल ने जैसे ही पृथ्वी के वायु-मंडल में एंट्री की थी, तब वायु-मंडल की गर्म गैसें स्पेसक्राफ्ट के अंदरूनी विंग स्ट्रक्चर में घुस गईं.
रिपोर्ट के मुताबिक़, कल्पना और उनके साथियों के पास बहुत कम वक़्त था. शटल का कंट्रोल खोने और केबिन के प्रेशर  बुरी तरह बिगड़ने के बीच सिर्फ 40 सेकंड लगे. क्रू इसलिए भी रेस्पोंस नहीं कर सकी क्योंकि उसे अपने स्पेस सूट पहनने में देर हुई.
रिपोर्ट के अनुसार, कोलंबिया STS-107 के सदस्यों में से एक ने प्रेशर सूट हेलमेट नहीं पहना था जबकि तीन लोगों ने अपने स्पेससूट ग्लव्स नहीं पहने थे. लेकिन कोलंबिया के क्रैश होने का क्रू की इस गलती से कोई मतलब नहीं है. कोलंबिया की सीटों के डिजाइन ने भी, क्रू के बचने की संभावना को कम कर दिया था इसके अलावा उनके हेलमेट भी सिर के हिसाब से ठीक नहीं थे, जिसके चलते उन्हें भयंकर चोटें आईं.
रिपोर्ट कहती है, "हालांकि केबिन के सर्कुलेटरी सिस्टम ने थोड़े वक़्त के लिए काम किया, लेकिन डीप्रेशराइज़ेशन इतना गंभीर था कि क्रू दोबारा होश में नहीं आ पाया. और आखिरकार हाई एल्टीट्यूड और ट्रॉमा के चलते उनकी मौत हो गई.
हालांकि मिशन कोलंबिया के प्रोग्राम मैनेजर वेन हेल ने साल 2013 में कहा था, कि जब विंग टूट गया था तभी नासा के साइंटिस्ट्स को पता चल गया था कि अब कल्पना और बाकी क्रू की ज़िंदा वापसी नहीं हो सकती. वो नहीं चाहते थे कि क्रू अपने आख़िरी दिन घुट-घुट कर जिए, उन्होंने बेहतर यही समझा कि हादसे का शिकार होने तक वो लोग खुश रहें.
वेन हेल के मुताबिक़ अगर अन्तरिक्ष यात्रियों को इसकी जानकारी होती तो भी वो कुछ नहीं कर सकते थे, हद से हद ऑक्सीजन खत्म होने तक वो अंतरिक्ष का चक्कर लगा सकते थे, ऑक्सीजन ख़त्म होने पर वैसे ही जान चली जाती.
वेन हेल के इस बयान पर नासा ने कोई कमेंट नहीं किया था, जबकि कल्पना के पिता ने इसे ख़ारिज कर दिया था.
Space.com के मुताबिक़ कोलंबिया में कल्पना के साथ 6 लोग और थे- पहला नाम Rick Husband. ये इस मिशन के कमांडर थे. माइकल एंडरसन, पेलोड कमांडर थे. कल्पना चावला के अलावा डेविड ब्राउन मिशन और लॉरेल क्लार्क मिशन स्पेशलिस्ट थे, विलियम मैक्कूल पायलट थे और इयान रेमन पेलोड स्पेशलिस्ट थे.
पहले और दूसरे स्पेस मिशन को मिलाकर कल्पना ने स्पेस में कुल 30 दिन, 14 घंटे और 54 मिनट बिताए थे. वो अक्सर कहती थीं,

‘मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूं. हर पल अंतरिक्ष के लिए ही बिताया है, और इसी के लिए ही मरूंगी.’


Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement