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कैसे कैप्टन वरुण सिंह ने लड़ाकू विमान तेजस को बेकाबू होने के बावजूद सुरक्षित लैंड करवाया था?

कैप्टन वरुण सिंह के परिवार ने भारत की तीनों सेनाओं में सेवाएं दी हैं.

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Varun Singh
कैप्टन वरुण सिंह के परिवार ने भारत की तीनों सेनाओं में सेवाएं दी हैं.
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15 दिसंबर 2021 (Updated: 15 दिसंबर 2021, 07:48 PM IST) कॉमेंट्स
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वायुसेना ने आज बताया कि शौर्य चक्र से अलंकृत ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह का इलाज के दौरान देहांत हो गया है. ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह, डिफेंस सर्विसेज़ स्टाफ कॉलेज, वेलिंगटन में डायरेक्टिंग स्टाफ के पद पर तैनात थे. 8 दिसंबर को दिवंगत सीडीएस जनरल बिपिन रावत जब स्टाफ कॉलेज आने के लिए तमिलनाडु के कोयंबटूर स्थित सुलूर एयरफोर्स स्टेशन पहुंचे थे, तब कॉलेज की तरफ से आगवानी के लिए ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह उनकी आगवानी के लिए बतौर लिएज़ॉन अफसर वहां मौजूद थे. इसीलिए ग्रुप कैप्टन सिंह भी जनरल बिपिन रावत वाले हेलिकॉप्टर में ही सवार हुए, जो कि स्टाफ कॉलेज के करीब नीलगिरी की पहाड़ियों में क्रैश हो गया था. जनरल रावत, उनकी पत्नी मधुलिका रावत समेत 11 लोगों की मृत्यु की पुष्टि उसी दिन देर शाम हो गई थी. लेकिन ग्रुप कैप्टन सिंह जीवन के लिए संघर्ष करते रहे. उन्हें पहले वेलिंगटन के मिलिट्री हॉस्पिटल में भर्ती किया गया था. आगे के इलाज के लिए उन्हें बेंगलुरु स्थित भारतीय वायुसेना के कमांड हॉस्पिटल ले जाया गया था. बेंगलुरू मेडिकल कॉलेज एंड रीसर्च इंस्टीट्यूट स्थित स्किन बैंक से ग्रुप कैप्टन सिंह के लिए त्वचा की व्यवस्था भी की गई थी. बेंगलुरु के बड़े निजी और सरकारी अस्पताल ग्रुप कैप्टन सिंह के इलाज में कमांड हॉस्पिटल की मदद भी कर रहे थे. लेकिन ग्रुप कैप्टन को बचाया नहीं जा सका. और आज उन्होंने अंतिम सांस ली. सिंह परिवार ने भारत की तीनों सेनाओं में सेवाएं दीं. ग्रुप कैप्टन सिंह के पिता कर्नल केपी सिंह (रि) थलसेना में सेवाएं दे चुके हैं. और ग्रुप कैप्टन सिंह के भाई तनुज सिंह भारतीय नौसेना में एक सेवारत लेफ्टिनेंट कमांडर हैं. सिंह परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश के देवरिया का रहने वाला है. लेकिन कर्नल केपी सिंह रिटायर होने के बाद अपनी आखिरी पोस्टिंग के शहर भोपाल में ही बस गए. ग्रुप कैप्टन सिंह का परिवार इन दिनों वेलिंगटन में रह रहा था. वो अपने पीछे पत्नी गीतांजलि, बेटे रिद्धिमान और बेटी आराध्या को छोड़ गए हैं. ग्रुप कैप्टन सिंह एक बेहद अनुभवी फायटर पायलट थे और उन्होंने भारतीय वायुसेना की इंवेंटरी में कई लड़ाकू विमान उड़ाए थे. पिछले साल वो वायुसेना के 45 नं स्कॉड्रन ''फ्लाइंग डैगर्स'' में तैनात थे. ये भारतीय वायुसेना का पहला स्कॉड्रन है, जो स्वदेशी लड़ाकू विमान एलसीए तेजस को उड़ाता है. और ये उसी सुलूर एयरफोर्स स्टेशन पर तैनात है, जहां ग्रुप कैप्टन सिंह जनरल रावत की आगवानी के लिए पहुंचे थे. खैर, 12 अक्टूबर 2020 को वो भारत के स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस में उड़ान भर रहे थे. उड़ान से पहले इस तेजस को सुधारा गया था और ग्रुप कैप्टन सिंह एक सिस्टम चेक सॉर्टी उड़ा रहे थे. ये पक्का करने के लिए कि जो सुधार किए गए हैं, उनके बाद जहाज़ ठीक तरीके से काम कर रहा है. उड़ान के दौरान काफी उंचाई पर कॉकपिट का प्रेशराइज़ेशन सिस्टम खराब हो गया. इसका मतलब वो कॉकपिट में हवा का दबाव मेंटेन नहीं कर पा रहा था. ग्रुप कैप्टन सिंह इसके बाद विमान को कम उंचाई पर लाने लगे. लेकिन तभी फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम फेल हो गया. इसके बाद तेजस पूरी तरह नियंत्रण से बाहर चला गया. लेकिन ग्रुप कैप्टन सिंह ने किसी तरह विमान पर काबू पा ही लिया. लेकिन जैसे ही विमान ज़मीन के और करीब आया, वो फिर अनियंत्रित हो गया. अब ग्रुप कैप्टन सिंह के पास पर्याप्त कारण थे कि वो इजेक्ट कर जाते. अपनी जान बचाते. लेकिन ग्रुप कैप्टन सिंह ने ऐसा नहीं किया और वो एयरक्राफ्ट से जूझते रहे और उसे फिर काबू में लाकर सुरक्षित लैंड भी किया. तेजस के पूरे इतिहास में ऐसी एमरजेंसी कभी नहीं आई थी. विमान ज़मीन पर उतर आया इसीलिए वायुसेना पूरी सटीकता से जान पाई कि उसमें क्या खामी थी और ऐसी एमरजेंसी को दोबारा होने से रोकने के लिए क्या करना होगा. ग्रुप कैप्टन सिंह ने उस दिन न सिर्फ उस दिन अपनी, बल्कि ज़मीन पर मौजूद लोगों की भी जान बचाई. और उन्होंने जो किया, वो आने वाले समय में न जाने कितने पायलट्स की जान बचाएगा. ये सब करने वाले ग्रुप कैप्टन सिंह अपनी आखिरी सांस तक अपनी ड्यूटी करते रहे. दी लल्लनटॉप परिवार उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है. उनके परिवार के लिए ये एक मुश्किल घड़ी है. और इस घड़ी में हम आपके साथ हैं. चलते चलते हम आपसे ये गुज़ारिश करेंगे कि वो लेटर पढ़िएगा जो ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह ने अपने स्कूल की प्रिंसिपल को लिखा था. इस साल स्वतंत्रता दिवस पर सिंह को अलंकृत किया गया. और सितंबर में उन्होंने हरियाणा के चंडीमंदिर स्थित आर्मी पब्लिक स्कूल एक खत भेजा. इसमें उन्होंने बच्चों को संदेश दिया कि एवरेज या मिडियॉकर होने में कोई बुराई नहीं है. वो खुद किसी तरह 12 वीं में फर्स्ट डिविज़न ला पाए थे. लेकिन उन्होंने अपना दिल और दिमाग अपने पैशन में लगाया. और ज़िंदगी बदलने लगी. ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह शौर्य चक्र की ज़िंदगी को सलाम के साथ.

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