बनारस... जहां महाश्मशान में चिताओं की भस्म से खेली जाती है होली
बनारस की होली, एक बनारसी के कीबोर्ड से.

बनारस. दुनिया का एकमात्र शहर, जहां अबीर-गुलाल-रंग के अलावा चिता की भस्म से भी होली खेली जाती है. चौंकिए मत! ये सोलह आने सच है. दुनिया में ऐसे बहुत शहर हैं, जहां इंसान जीने की ललक से जाता है. लेकिन बनारस में हर बरस न जाने कितने लोग मरने की चाहत में आते हैं. आखिर क्या है ऐसा इस शहर में? इसका जवाब यहां लिखकर नहीं दिया जा सकता. इसके लिए तो आपको बनारस जाना ही होगा. मौका होली का है, इसलिए आज बात बनारसी होली की. बनारस की होली में मसान, चिता की भस्म, महादेव का जिक्र न आए, ये कैसे हो सकता है.
बनारस की होली का जब भी ज़िक्र होता है, तो पंडित छन्नूलाल मिश्रा की याद ताज़ा हो जाती है. बनारस को किसी ने धरकर जिया है, तो वो पंडित जी ही हैं. फेसबुक पर गुजरते हुए आज सामने कुछ तस्वीरें दिख गईं. महाश्मशान में चिताओं के साथ होली खेलते लोगों को देखकर बनारस के उस मिजाज की याद आ गई, जो हर बनारसी के डीएनए में मौजूद होता है. बात आगे बढ़े, इससे पहले पंडित जी को सुन लीजिए...
खेले मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी भूत पिसाच बटोरी दिगंबर,खेले मसाने में होरीलखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से रंग-गुलाल हटा के चिता-भस्म भर झोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी गोपन-गोपी श्याम न राधा, ना कोई रोक ना कौनऊ बाधा ना साजन ना गोरीदिगंबर खेले मसाने में होरी नाचत गावत डमरूधारी, छोड़ै सर्प-गरल पिचकारी पीतैं प्रेत-धकोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी भूतनाथ की मंगल-होरी, देखि सिहाएं बिरिज कै गोरी धन-धन नाथ अघोरी दिगंबर खेलैं मसाने में होरी
चलिए, अब बात करते हैं भस्म होली की. हज़ारों सालों से अपना मिजाज़ बनाए रखने की कुव्वत दुनिया के चुनिंदा शहरों में ही हैं. बनारस भी ऐसा ही कुछ है. पान, भांग, मलोइओ, घाट, गलियों और भोलेनाथ के लिए दुनियाभर में फेमस बनारस हर दिन अलग-अलग रंग में नजर आता है. दुनिया का एकलौता महाश्मशान मणिकर्णिका. एक तरफ जलती चिताएं तो दूसरी ओर, चिताओं के भस्म से होली खेलते साधु औेर भक्त. देखने वालों के लिए कुछ अजीब-सा नजारा. ढोल, मजीरे से लेकर डमरुओं पर झूमते लोग. चारों तरफ सिर्फ हर-हर महादेव. मान्यताओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन बाबा भोले अपने प्रिय गण, भूत, प्रेत और भक्तों के साथ महाश्मशान पर जलती चिताओं के बीच भस्म होली खेलते हैं।
बाबा विश्वनाथ के दरबार में सबसे पहले होली
बनारस भोले के बिना अधूरा है. ऐसे में होली भी कहां बाबा के बिना हो सकती है. भोले की नगरी में होली की शुरुआत बाबा विश्वनाथ के मंदिर से शुरू होती है. दिन होता है रंगभरी एकादशी का. जब बनारसी बाबा के साथ अबीर-गुलाल खेलते हैं. ऐसी मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन भोलेनाथ मां पार्वती का गौना करवा कर काशी लौटे थे. बिना अल्हड़ मस्ती और हुल्लड़बाजी के बनारसी होली अधूरी है. होली के रंग को और रंगने का काम करती है भांग, पान और ठंडई. ऐसे में यदि होली में इन तीनों का सेवन नहीं किया तो ये रंगों का त्योहार अधूरा मानिए.
भोजपुरी गानों पर डांस और गंगा में स्नान
बनारसी होली की एक सबसे बड़ी खासियत ये भी है कि रंगीन चेहरों के साथ जगह-जगह दिखने वाली युवकों की टोलियां. किसी के चेहरे पर काला तो किसी के चेहरे पर चांदी जैसा चमकीला रंग. टोपियों की तो बात ही मत कीजिए. टोली के हर सदस्य के सिर पर अजीबोगरीब टोपी. सड़कों पर बड़े-बड़े डीजे और भोजपुरी गानों पर झूमते बनारसी. बस इस होली में दूर तक कोई महिला नहीं दिखाई देती. हुड़दंग ऐसा कि महिलाएं घर के अंदर रहने में ही अपनी भलाई समझती हैं. होली खेलने के बाद दोपहर में गंगा में रंग छुड़ाते लोगों को देखना अपने-आप में एक खूबसूरत अहसास होता है. कुछ घंटों के आराम के बाद बनारस के लोग फिर से तैयार होकर सबसे पहले चौसट्टी देवी और बाबा विश्वनाथ का दर्शन करना नहीं भूलते हैं. इसके बाद शुरू होता है रिश्तेदारों और दोस्तों के यहां गुलाल से होली खेलने का सिलसिला.
ये भी पढ़ें:
एक दिन की होली से जी नहीं भरता तो अल्मोड़ा की होली मनाइए, दो महीने लगातार
इन लोगों के लिए होली हर साल खुशियां नहीं, टेंशन का पहाड़ लेकर आती है