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श्री श्री 1008 सुखरंजन, जगत नरायन का धन ले गए, धरम भी

हमारे गांव में: फ्राडी जग्गू ने कमाई का ऐसा तरीका निकाला कि उनका दिवाला निकल गया.

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आशुतोष चचा
2 अगस्त 2016 (Updated: 3 अगस्त 2016, 12:04 PM IST) कॉमेंट्स
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जगत नरायन पाड़े की पूर्व साली और करेंट पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला. दिल को तसल्ली हुई. कम से कम उसकी इस नर्क से जान छूटी. मुक्त हुई. मौत कैसे हुई ये न पूछना. मुझे डर है कि तुम जूता लेकर मेरे यानी उनके गांव निकल जाओगे. फिर भी तुम्हारी क्यूरियोसिटी देखते हुए इसका इलाज करना जरूरी है. चलो तुम भी जान लो. जग्गू की औरत दूसरी बार मां बनने वाली थी. दो साल में दूसरी बार. बच्चे चार संभाल रही थी. अपनी 'गायब' दीदी के भी. गायब दीदी का किस्सा आगे है. पहले ये जानों कि वो मरीं कैसे. तो ऐसा है कि कामकाज से पाड़े का दूर का रिश्ता है. इतनी दूर का कि कभी मुलाकात नहीं होती. उनका मानना है जिसने दिया है तन को, देगा वही कफन को. तो फालतू में फांय फांय करने से कुछ नहीं मिलेगा. जाही बिधि राखे राम ताही बिधि रहिए. लेकिन मेहनत से जी नहीं चुराते. भरपूर मेहनत करते हैं. रात को. बिस्तर पर. और फिर ससुर से किया वादा भी निभाना है. कह के आए थे आपकी बेटी को कभी खाली पेट नहीं रखूंगा. अब उसका पेट तो लाल किला है. खाना अमाता नहीं. तो यही रास्ता बचता है पेट भरने का. तो पहले बच्चे का दूध नहीं छूटा था अभी. ये दूसरा लोड हो गया. पाड़े बच्चों की पैदाइश जैसी मद में पैसा फूंकने को फिजूलखर्ची समझते हैं. सरकारी अस्पताल में दिखाया था. डॉक्टर बोली थी कुछ कॉम्प्लिकेशन है. लेकिन जग्गू की अम्मा और बप्पा ने पिंड खा लिया. अम्मा घर की ड्योढ़ी पर चिल्ला के बोलीं-
"दस ठईं लरिका निकारा है ई पेट से. घर कै सारा काम करत रहेन. औ आखिरी मा लरिका निकरि जात रहा कान के खूंट की तरा. आज काल की औरतन का काम का न कहौ. बस अस्पताल मा लिहे परे रहौ."
ये जग्गू के भी मन की बात थी. डिलिवरी के टाइम वही सरकारी अस्पताल ले गए. तांगे पर लाद के. वहां नर्स मिली महा जंडैल. जच्चा को लेबर पेन हो रहा था और वो गालियां दे रही थी.
"अब बहुत दरद हो रहा है. जब किया था तब तो बहुत मजे आए थे."
तो दर्द की शिद्दत से मां गुजर गईं. बच्चा बच गया. अब एक एक साल अंतर के 6 बच्चे हैं जग्गू पाड़े के घर में. बड़ी चहल पहल रहती है. बहुत किल्ल भें रहती है. जग्गू फिर कटिया लगाए हैं. गांव के बड़े बुजुर्गों से सलाह कर रहे हैं कि एक बार फिर कलेवा खाया जाए. HGM ऐसा नहीं है कि पाड़े ने कभी पैसा कमाने की कोशिश नहीं की. लेकिन लक्ष्मी उनसे रूठी रहीं हमेशा. जब भी उनके पास आईं. उनकी कोई और अजीज चीज नोच ले गईं. जैसे 'पहली पड़ाइन' को उनसे छीन लिया था. कैसे, वो आगे पता चलेगा. गांव में बस गाय भैंसें और मुर्गियां बची हैं. जिनसे उन्होंने पैसा उधार न लिया हो. बाकी इंसान तो कोई याद नहीं आता. जब किसी के घर में बच्चा पैदा होता है तो उनसे ज्यादा खुशी किसी को नहीं होती. कहते हैं, एक और उधार देने वाला पैदा हुआ. जिसका लेना कभी न देना के उसूल पर रहते हैं. कभी डिगते नहीं. मेरे मोबाइल में उनका नंबर 'फराडी पाड़े' के नाम से सेव है.
एक बार पाड़े ने पूरी तरह सेटल होने का प्लान बनाया था. इस अंतहीन कमाई का क्लू मिला एक दुर्गापूजा में आयोजक बनके. कुछ काम धंधा नहीं रहता था तो शेरावाली मां ने उनको रास्ता दिखाया. कि हर नवराते दुर्गापूजा करा लिया कर. दो चार अच्छे वक्ता बुलाकर 10- 5 हजार उनके मुंह पर फेंको. बाकी दसियों हजार अपने टेंट में खोंसो. टेन्ट, कुर्सी, पंडाल, वक्ता खर्च मिलाकर पैसा सिर्फ आधा खर्च होता है. बाकी चंदा साफ बच जाता है. आखिरी दिन भंडारा कराने के लिए गांव के लोग खुद राशन दे जाते हैं. उसके बाद भी रो गाकर बजट की कमी दिखाकर लास्ट में और पैसे घसीटे जा सकते हैं. धर्म के धंधे से चोखा कोई धंधा नहीं.
पहले तीन साल वक्ता लोगों को बुलाया. धार्मिक प्रवचन करने वालों को. जगराता करने वालों को. उनको पैसा भी देते रहे. आधा बचाते रहे. फिर पूरा बचाने का आइडिया आ गया. वक्ताओं को दुत्कार के भगा देते थे. रो देते थे कि चंदा नहीं आया. या आगे देने का वादा करके बला टाल देते थे. बाबा लोग मुंह बनाकर रोते हुए चले जाते थे. नकटे का छप्पर पीटें भी तो क्या हासिल होता. आखिर उनकी रेपुटेशन को धक्का लगता ऐसे चें चें करने से. बाकी 'कस्टमर' बिदक जाते. तो ये सिलसिला चलता रहा. फिर कुछ सालों बाद वक्ताओं को बुलाना छोड़ दिया. खुद ही सेज... सॉरी स्टेज सजाने लगे. खुद ही ऑर्केस्ट्रा में गाते और प्रवचन करते. सारा पैसा बचने लगा. और साल में दुर्गापूजा सिर्फ दो बार होती है. इसलिए एडीशनल यज्ञ कराने लगे. हर तिमाही पर. एक दिन हल्ला सुने कि पास के ठकुरन गांव में बाबा सुखरंजन आए हैं. यज्ञ कराते हैं. मार्मिक वक्ता हैं. बातों से भक्तों की भीड़ इकट्ठी कर लेते हैं. बाल ब्रह्मचारी हैं. माथे से तेज फूटता है. अगल बगल के हर गांव में सात दिवसीय यज्ञ और भंडारा करा रहे हैं. जगत नरायन ने सोचा गोल्डन चांस है. दो साल की कमाई एक साथ हो जाएगी. बाबा से संपर्क किया. डेट मिल गई. तैयारियां शुरू हो गईं. ट्रैक्टर पर बाबा का झंडा लगा. "बाल ब्रह्मचारी श्री श्री 1008 बाबा सुखरंजन दास जी महाराज. यज्ञ एवं विशाल भंडारा." गांव भर के आदमी उस ट्रैक्टर में भरकर गांव गांव घूमे. पर्चे बांटे. एक लाख से ऊपर चंदा इकट्ठा हो गया. फिर शुरू हुआ प्रवचन. रोज रात को बाबा फुल जोश में बांग देते. उनके फोटो मढ़वा कर लोग घरों में सजाने लगे. ट्रालियों में भर भर कर दस कोस से औरतें प्रवचन सुनने आती थीं. गांव गांव किंवदंतियां मशहूर हो गईं.
संकठा की अम्मा का बीस साल से टीबी रही. बाबा हाथ धरिन. संकठा की अम्मा दउड़ै लागीं.बिनोद की औरत का चुड़ैल दाबे रही. उनका बाबा कहिन आज रात सब ठीक होइ जाई. ठीक होइगा.सत्ते के नौकरी लगवाय दिहिन बाबा.
और लास्ट में भंडारा हुआ. उसमें ये सुनने को मिला कि
पूड़ी छन रही थीं. बीच में डालडा खतम हो गया. बाबा बोले सामने तालाब से भर लाओ. टीन का डिब्बा लेकर गए, पानी भर लाए. कढ़ाई तक लाते लाते वो डालडा हो गया.
लेकिन इस बीच जगत की घरैतिन ने एक भी दिन प्रवचन का नहीं छोड़ा. उनकी बाबा सुखरंजन में ऐसी लौ लगी कि क्या बताएं. यज्ञ का समापन हुआ. भंडारा हुआ. उसी रात बचा हुआ राशन और जगत नरायन की औरत को एक ट्रैक्टर ट्रॉली में बिठाकर बाबा अंतर्ध्यान हो गए. सुबह जब जग्गू को पता चला तो एकदम फायर हो गए. धन तो ले ही गया हरामखोर धरम भी ले गया. चार बच्चे छोड़ गया बस खेलाने के लिए. इनको कौन संभालेगा? इनकी जांघिया बदलने की कूवत नहीं थी जग्गू पाड़े में. हफ्ते भर तक बौखलाए कट्टा लिए घूमते रहे. कि जहां मिल जाएं दोनों को गोली मार दें. इसी क्रम में पता चला कि उन्नाव में ब्रह्मचारी बाबा का पूरा परिवार है. बीवी बच्चे सब. अब एक और बीवी हो गई. हारकर अपने ससुर के पास गए. उनकी दूसरी बेटी यानी उनकी निजी साली यानी ये बीवी जिसका किस्सा शुरू से शुरू किए थे. वो उनको पहले से पसंद थी. किस्मत को कोसते थे कि इससे काहे बियाह न हुआ. लेकिन कोई बात नहीं. भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं. ससुर से कहिन कि "देखौ बप्पा उइ तो गईं. हमहिन का संभारै का है अब. लरिका बच्चा को जियाई? सुसीला का पठाय दियो." बुढ़ऊ की मुराद पूरी हुई. छाती पर का पत्थर हटाने के लिए भगवान जग्गू का अवतार लेकर आ गए. 5 हजार रुपया और कपड़ा लत्ता देकर भेज दिया उनकी साली को बीवी बनाकर. इसके ब्याह के एक साल बाद गायब दीदी आईं. नई टाटा सूमो में बैठकर. अब देह खाई पी लग रही थी. गाल गुलगुला से निकल आए थे. साथ में एक बच्चा भी था गोरा गोरा, गोल गोल. जगत नरायन अपने साढ़ू से बड़े प्यार से मिले थे उस वक्त. पुरानी दुश्मनी भुलाकर. हमारे गांव से और: टोटल तिवारी, जो रुपैया में तीन अठन्नी भुनाते हैंसांवळिंग की 'सऊं-पऊं' बॉल के आगे बड़े-बड़े बॉलर पानी भरते थे

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