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अमेरिका जाने के लिए भारतीयों का फेवरेट H-1B वीजा बंद होने वाला है?

रिपब्लिकन पार्टी के प्रेसिडेंशिल कैंडिडेट विवेक ने H-1B बैन करने की बात कही

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Ramaswamy himself has used the visa programme 29 times. (Photo: Reuters/file)
विवेक ने खुद 29 बार इस H-1B विज़े का इस्तेमाल किया है. (फोटो: रॉयटर्स)
18 सितंबर 2023
Updated: 18 सितंबर 2023 19:44 IST
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एक बंदा है. विवेक नाम का. पूरा नाम, विवेक गणपति रामास्वामी. अपनी कंपनी है. अरबों रुपये की. अमेरिका में. पुरखे भारत से गए थे. वहां किस्मत बनाई. अब विवेक राष्ट्रपति पद के लिए दावेदारी पेश कर रहे हैं. डोनाल्ड ट्रंप वाली रिपब्लिकन पार्टी से. उनका दावा है कि अमेरिका संकट में है. मैं उसे फिर से महान बनाऊंगा. इस राह में जो बाधाएं हैं, उन्हें भी हटाऊंगा. मसलन, H-1B वीजा. ये वीजा अमेरिका में काम करने वाले विदेशी नागरिकों को मिलता है. हर साल हज़ारों भारतीय नौकरी के सिलसिले में अमेरिका जाते हैं. विवेक रामास्वामी के ऐलान को चेतावनी की तरह देखा जा रहा है. सबसे दिलचस्प बात, ख़ुद रामास्वामी की कंपनी 29 बार इस वीजा का इस्तेमाल कर चुकी है.

तो, आइए जानते हैं,

- विवेक रामास्वामी कौन हैं?
- वो H-1B वीजा क्यों बंद करना चाहते हैं?
- और, इसका भारतीय लोगों पर क्या असर पड़ेगा?

इस टाइम पर विवेक रामास्वामी का सबसे बड़ा परिचय क्या है?

वो अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के दावेदार हैं. 2024 वाला चुनाव लड़ने के लिए टिकट मांग रहे हैं. रिपब्लिकन पार्टी से. लेकिन सिर्फ मांगने से टिकट नहीं मिल जाता. उसके लिए पार्टी का इंटरनल इलेक्शन लड़ना होता है. इसको प्राइमरी बोलते हैं. उसमें पार्टी के कुछ डेलिगेट्स वोट डालते हैं. रिपब्लिकन पार्टी का प्राइमरी इलेक्शन जून 2024 में होने वाला है. उससे पहले कैंडिडेट्स अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश में जुटे हैं.

प्राइमरी इलेक्शन में विवेक रामास्वामी की टक्कर किससे है? मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अभी तक 290 लोगों ने रिपब्लिकन पार्टी का प्राइमरी लड़ने की इच्छा जताई है. कुछ अहम नाम जान लीजिए.

- नंबर एक. डोनाल्ड ट्रंप. 2017 से 2021 तक राष्ट्रपति रहे. दोबारा चुनाव लड़ना चाहते हैं. प्राइमरी के पोल्स में सबसे आगे हैं.
- नंबर दो. रॉन डि सेंटिस. अमेरिका के फ़्लोरिडा राज्य के गवर्नर हैं.
- नंबर तीन. माइक पेंस. 2017 से 2021 तक अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे. डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में.
- नंबर चार. निक्की हेली. वो भी भारतीय मूल की हैं. 2017 से 2018 के बीच यूनाइटेड नेशंस में अमेरिका की राजदूत रहीं.

जानकार मानते हैं कि रिपब्लिकन पार्टी के प्राइमरी में ट्रंप का जीतना तय है. वहां असली लड़ाई नंबर दो की है. उसमें विवेक रामास्वामी और रॉन डि सेंटिस के बीच कंपटीशन होगा.

खैर, अब आगे चलते हैं.

17 सितंबर 2023 को अमेरिकी मीडिया संस्थान CBS न्यूज़ ने राष्ट्रपति चुनाव पर पोल का रिजल्ट पब्लिश किया. इसमें ट्रंप, मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन से भी आगे चल रहे हैं. बाइडन डेमोक्रेटिक पार्टी के हैं. वो भी अगला चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं. मगर उन्हें भी पहले पार्टी का प्राइमरी इलेक्शन जीतना होगा. डेमोक्रेटिक पार्टी का प्राइमरी इलेक्शन अगस्त 2024 में होगा. बाइडन के अलावा किसने दावेदारी पेश की है? दो और लोग हैं. पहले हैं, रॉबर्ट एफ़ केनेडी जूनियर. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन केनेडी के भतीजे हैं. एंटी-वैक्सीन कैंपेन के ध्वजवाहक माने जाते हैं. पेशे से वकील हैं.
दूसरा नाम मेरियाना विलियम्सन का है. ऑथर और स्पीकर हैं. पेशे से आध्यात्मिक टीचर हैं.

ये तो हुआ प्राइमरी इलेक्शन का तिया-पांचा. अब विवेक रामास्वामी पर लौटें, उससे पहले अमेरिका का पॉलिटिकल सिस्टम समझ लेते हैं. 1789 में अमेरिका का जो संविधान लागू हुआ, उसमें पॉलिटिकल पार्टियों का कोई ज़िक्र नहीं था. पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन मानते थे कि पार्टी बनने से देश बंट जाएगा.
उनका कहना था,

‘पार्टियां हमेशा लोगों के समूहों को विचलित करती हैं और सरकार को कमज़ोर बनाती हैं. ये जनता में ईर्ष्या और फर्ज़ी भय पैदा करती हैं. एक-दूसरे के ख़िलाफ़ उकसाती हैं. अक्सर हिंसा और दंगे के लिए भड़काती हैं.’

जॉर्ज वॉशिंगटन 1799 तक जीवित रहे. उन्होंने कभी किसी पार्टी की मेंबरशिप नहीं ली.
हालांकि, 19वीं सदी आते-आते उनके करीबी लोग दो धड़ों में बंट चुके थे. एक का मानना था कि केंद्र सरकार ताक़तवर होनी चाहिए. उन्हें फ़ेडरलिस्ट कहा गया. इसके अगुआ अलेक्ज़ेंडर हैमिल्टन थे.
दूसरा धड़ा मानता था कि शक्तियों का बंटवारा बराबर होना चाहिए. राज्यों को फ़ैसले लेने का हक़ मिले. उन्हें डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन कहा गया. इस धड़े की अगुआई थॉमस जैफ़रसन कर रहे थे. वो 1801 में राष्ट्रपति बने.

फिर आया 1820 का दशक. डेमोक्रेटिक रिपब्लिकन्स में केंद्र सरकार की शक्तियों को लेकर दो फाड़ हुई. इसमें से डेमोक्रेटिक पार्टी और व्हिग पार्टी निकली. डेमोक्रेटिक पार्टी आज तक चल रही है. उनका चुनाव चिह्न है, खच्चर.

1850 के दशक में दासप्रथा के मुद्दे पर व्हिग पार्टी भंग हो गई. उसके नेताओं ने 1854 में रिपब्लिकन पार्टी की स्थापना की. इसको ग्रैंड ओल्ड पार्टी (GOP) भी कहते हैं.
इसकी बुनियाद डेमोक्रेटिक के 26 बरस बाद रखी गई थी. फिर भी इसे ग्रैंड ओल्ड पार्टी क्यों कहते हैं? ये कहानी भी दिलचस्प है. दरअसल, ग्रैंड ओल्ड वाला नाम पहले-पहल डेमोक्रेट्स ने लिया था. बाद में रिपब्लिकन ने कहा, हम आज़ादी के समय के सिद्धांतों को बचा रहे हैं. इसलिए, हम सबसे पुराने हुए. कालांतर में ये नाम उनकी पहचान का हिस्सा बन गया.

1852 के बाद से इन्हीं दो पार्टियों के नेता राष्ट्रपति बने हैं. अमेरिका यूं तो मल्टी-पार्टी स्टेट है. लेकिन प्रेसिडेंट की कुर्सी डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन के बीच बंटती रही है.
दोनों से कुछ-कुछ नाम बता देते हैं.

पहले डेमोक्रेटिक पार्टी-

- पहले थे एंड्रूय जैक्सन. 1829 में प्रेसिडेंट बने.
- वुडरो विल्सन - पहले विश्वयुद्ध में अमेरिका को लीड किया.
- फ़्रैंकलिन डि. रूजवेल्ट - दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान राष्ट्रपति रहे.
- हैरी एस. ट्रूमैन - जिनके समय में कोल्ड वॉर शुरू हुआ.
- जॉन एफ़ केनेडी - जिनकी चलती गाड़ी में हत्या हुई.
- बिल क्लिंटन - जिनके कार्यकाल के बीच में भारत ने दूसरा परमाणु परीक्षण किया.
- बराक ओबामा - जो अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने.
- जो बाइडन - मौजूदा राष्ट्रपति हैं.

रिपब्लिकन पार्टी से कौन-कौन यादगार नाम हैं?

- इस पार्टी से पहले राष्ट्रपति थे, अब्राहम लिंकन. 1861 में पद पर बैठे थे. दासप्रथा को खत्म किया. कार्यकाल के बीच में ही हत्या हो गई. 05 डॉलर के नोट पर इनकी फ़ोटो छपती है.
- हर्बर्ट हूवर - उनके समय में ऐतिहासिक मंदी आई थी.
- रिचर्ड निक्सन - जो वाटरगेट स्कैंडल में फंसे. महाभियोग चला. वोटिंग से पहले इस्तीफा दे दिया.
- रोनाल्ड रीगन - ऐक्टर थे. फिर राजनीति में आए. राष्ट्रपति बने तो कोल्ड वॉर के खात्मे की रूपरेखा तैयार की.
- जॉर्ज बुश सीनियर - CIA के डायरेक्टर रहे. उनके समय में इराक़ ने कुवैत पर हमला किया था.
- जॉर्ज बुश जूनियर - बुश सीनियर के बेटे. उनके कार्यकाल में 9/11 का हमला हुआ. फिर अमेरिका ने वॉर ऑन टेरर शुरू किया. 2003 में इराक़ पर हमला कर सद्दाम हुसैन को हटाया.
- इस पार्टी से अभी तक के आख़िरी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप है. 2024 वाले चुनाव में जीत के प्रबल दावेदार हैं.

अब एक और रोचक तथ्य जान लीजिए.

रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक, दोनों के सिद्धांत शुरुआत में बिल्कुल अलग थे. आज के समय में सेंटर-लेफ़्ट दिखने वाली डेमोक्रेटिक पार्टी शुरू में नागरिकों को अधिकार देने के ख़िलाफ़ थी. वो मज़बूत सरकार और पूंजीवाद की वकालत करती थी. कैथोलिक ईसाइयों का वर्चस्व था. आज के समय में ये पार्टी हर धड़े के लोगों को समान अधिकार देने की बात करती है. अधिकांश वोटर्स अश्वेत और आप्रवासी हैं.
इसके बरक्स रिपब्लिकन पार्टी मज़दूरों, मिडिल-क्लास के लोगों और अश्वेत ग़ुलामों को रेप्रजेंट करती थी. धीरे-धीरे इसका चाल और चरित्र बदला. अब ये पार्टी वाइट सुप्रीमेसी और धार्मिक कट्टरता जैसे मुद्दों को बढ़ावा देती है.

अब तक आपको अमेरिका के पॉलिटिकल सिस्टम का बेसिक समझ आ गया होगा. अब विवेक रामास्वामी की कहानी जान लेते हैं. विवेक के पिता वी. गणपति केरल के पलक्कड में पैदा हुए थे. मां गीता की पैदाइश कोच्चि की है. 1970 के दशक में दोनों अमेरिका के ओहायो चले गए. गणपति ने जनरल इलेक्ट्रिक में इंजीनियर की नौकरी शुरू की. गीता साइकियाट्रिक डॉक्टर थीं. उन्हीं के घर अगस्त 1985 में विवेक का जन्म हुआ.

दिसंबर 2022 में प्रतिष्ठित अमेरिकी मैगज़ीन ‘न्यूयॉर्कर’ में विवेक रामास्वामी की लंबी प्रोफ़ाइल पब्लिश हुई है. इसमें शीला कोल्हातकर लिखती हैं,

‘विवेक का बचपन सिनसिनाटी में बीता. उन्होंने ओवरअचीवर की छवि बनाने में कामयाबी हासिल की. वो बेहतरीन पियानो बजाते थे, नेशनल लेवल पर टेनिस खेलते थे, और अपने कॉलेज के सबसे बेहतरीन स्टूडेंट थे. उन्होंने हार्वर्ड से ग्रेजुएशन किया, येल यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री ली. एक हेज़ फ़ंड कंपनी में काम किया. फिर रोविएंट साइंसेज़ नाम से अपनी फ़ार्मास्यूटिकल कंपनी बनाई. उनकी मौजूदा संपत्ति का बड़ा हिस्सा इसी कंपनी की देन है.’

21 अगस्त 2023 में प्रतिष्ठित फ़ोर्ब्स मैगज़ीन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, विवेक रामास्वामी के पास लगभग 08 हज़ार करोड़ रुपये की संपत्ति थी. वो डोनाल्ड ट्रंप के बाद रिपब्लिकन पार्टी के सबसे अमीर प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट हैं. हालांकि, विवेक ने 2021 में ही रोविएंट साइंसेज़ के सीईओ के पद से इस्तीफा दे दिया. पॉलिटिक्स में आए. लेकिन कंपनी के बोर्ड में बने रहे. फ़रवरी 2023 में राष्ट्रपति पद की दावेदारी पेश की. तब बोर्ड से भी हट गए.

पॉलिटिक्स में आने के बाद उन्होंने दो किताबें लिखी हैं. विडंबनाओं की मुखर होकर आलोचना की है. वो कहते हैं, कुछ लोग और कंपनियां एक जगह पर मानवाधिकारों की बात करते हैं, दूसरी जगह पर फायदे के लिए सुर बदल लेते हैं. वो एनजीओ कल्चर को लूट का अड्डा बताते हैं.

और क्या-क्या कहते हैं?

- वोटिंग की उम्र 18 से बढ़ाकर 25 करने की बात कही है.
- उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध में मदद भेजने का विरोध किया है. कहा है कि सरकार को अपने लोगों पर ध्यान देने की ज़रूरत है.
- विवेक पूरे मुल्क में गर्भपात पर प्रतिबंध की मुख़ालफत करते हैं. उनका कहना है कि केंद्र सरकार को इससे अलग रहना चाहिए.
- वो ये भी चाहते हैं कि फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन (FBI) को भंग कर दिया जाए. उन्होंने शिक्षा मंत्रालय, न्युक्लियर रेगुलेटरी कमीशन और इंटरनल रेवेन्यू सर्विस को खत्म करने का प्लान भी पेश किया है.
- विवेक उन कॉन्सपिरेसी थ्योरीज़ में भी यकीन करते हैं, जिनके मुताबिक, 9/11 का हमला सरकार की साज़िश का हिस्सा थी.

विवेक रामास्वामी अभी क्यों चर्चा में हैं?

अभी उन्होंने H-1B वीजा पर रोक लगाने की बात कही है. बोले, लॉटरी सिस्टम मेरिट को खत्म कर रहा है. H-1B वीजा अमेरिकी कंपनियों को विदेशी कामगार हायर करने की इजाज़त देता है. ये वीजा तय समय के लिए मिलता है. कुछ चुनिंदा किस्म के पेशेवर लोगों को इस केटेगरी में अप्लाई करने की इजाज़त होती है. मसलन, टेक्नोलॉजी, फ़ाइनेंस, इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर आदि.

अप्लाई करने के लिए तीन बुनियादी शर्तें हैं-
- विशेष केटेगरी में नौकरी के लिए अमेरिकी कंपनी का ऑफ़र लेटर.
- बैचलर डिग्री या संबंधित फ़ील्ड में अनुभव.
- जॉब देने वाली कंपनी को ये भी साबित करना होता है कि उस रोल के लिए योग्य उम्मीदवारों की कमी है.

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