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सहारनपुर के 3 गुप्ता भाई, जिन्होंने अपनी जेब में पूरे साउथ अफ्रीका को रख लिया

लोगों को लगता, तरक्की तो बस अमेरिका में होती है. मगर जब गुप्ता परिवार ने विदेश जाकर अपने पैर लंबे करने चाहे, तो उन्होंने अमेरिका को नहीं चुना. सबसे बड़ा भाई अजय रूस गया. मंझला अतुल दक्षिण अफ्रीका पहुंचा. और सबसे छोटा राजेश चीन. कहते हैं कि शिव कुमार गुप्ता ने अपने बेटों से कहा था कि साउथ अफ्रीका जाओ. वो अगला अमेरिका होने जा रहा है.

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Gupta Brothers
हिंदुस्तान से गए इन तीनों भाइयों ने दक्षिण अफ्रीका में एक साम्राज्य खड़ा कर लिया. ऐसा एंपायर, जिसमें केवल पैसा नहीं था. बल्कि अकूत ताकत भी थी. इतनी पावर कि देश का राष्ट्रपति भी उनकी जेब में था जैसे.
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स्वाति
15 फ़रवरी 2018 (Updated: 7 जून 2022, 11:19 AM IST) कॉमेंट्स
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2013 का साल था. महीना अप्रैल. सुबह का वक्त था. हल्की धूप खिली थी. जैसी अमूमन ऐसी सुबहों में खिलती है. दक्षिण अफ्रीका की राजधानी प्रिटोरिया में एक एयर बेस है. वॉटरलूफ. एकदम हाई-प्रोफाइल. जब कोई विदेशी राष्ट्राध्यक्ष साउथ अफ्रीका आता, तो उनके विमान को यहीं उतारा जाता. खूब सुरक्षा होती है यहां. इसी एयर बेस पर एक दिन एक एयरबस ए330-2 विमान उतरा. एक भारतीय एयरलाइन्स कंपनी का प्लेन था ये. इसके अंदर करीब 217 लोग थे. सारे के सारे बहुत अमीर लग रहे थे. एक से एक खूबसूरत कपड़े-गहने पहने हुए. ये सारे लोग एक शादी में शरीक होने आए थे. चार दिनों का प्रोग्राम था. सारे मेहमानों के रहने का इंतजाम किया गय़ा था सन सिटी लक्जरी रिसॉर्ट में. उन्हें वहां ले जाने के लिए SUV गाड़ियां खड़ी थीं. यहां तक कि मेहमानों के कारवां के आगे पुलिस की नीली बत्ती वाली गाड़ियां भी चल रही थीं. ये सारे मेहमान एक ऐसे परिवार के थे, जो देश के राष्ट्रपति को अपनी जेब में रखता था.
बीस सालों में क्या हो सकता है? इस सवाल का जवाब आप दर्जनों तरीके से दे सकते हैं. मगर जो जवाब हमारे पास है, वैसी कोई मिसाल शायद आपको खोजे न मिले. दो दशकों के भीतर उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले की छोटी सी फैमिली दक्षिण अफ्रीका का सबसे मजबूत, सबसे ताकतवर परिवार बन गया. कितना ताकतवर, इसकी एक झलकी हमने ऊपर दिखा दी है. 
तस्वीर में बाईं ओर हैं अजय गुप्ता. बीच में राष्ट्रपति जैकब जुमा. दाहिनी ओर अतुल गुप्ता.
तस्वीर में बाईं ओर हैं अजय गुप्ता. बीच में राष्ट्रपति जैकब जुमा. दाहिनी ओर अतुल गुप्ता.

साल 1993: तीन हिंदुस्तानी 
इस साल एक फिल्म आई थी. घर आया मेरा परदेसी. फिल्म यूं आई और यूं दबे पांव चली गई. ऐसी गुमनाम फिल्म पर हम क्यों शब्द खर्च कर रहे हैं? असल में तीन परदेसियों की कहानी है. जो इसी साल अपना मुल्क छोड़कर कहीं और बस गए थे. हम बात कर रहे हैं गुप्ता ब्रदर्स की. सहारनपुर का गुप्ता परिवार. जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका पहुंचकर एक साम्राज्य खड़ा कर लिया. मगर हर चीज की एक एक्सपायरी डेट होती है. सिवाय शहद के. सो गुप्ता फैमिली की ताकत भी एक्सपायरी डेट पर आ गई है. वो शहद जैसे नहीं हो सके.


दक्षिण अफ्रीका का बवंडर, सेंटर में तीन हिंदुस्तानी भाई 
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति हैं जैकब जुमा. हैं को थे पढ़िएगा. मजबूर होकर इस्तीफा देना पड़ा उनको. उनके ऊपर भ्रष्टाचार का केस है. और इस केस के फोकस में हैं गुप्ता परिवार. अजय गुप्ता. अतुल गुप्ता. राजेश उर्फ टोनी गुप्ता. ये मामला क्या है, कितना बड़ा है, ये सब जानने के लिए आपको गुप्ता भाइयों की कहानी सुननी पड़ेगी. उनके सफर पर उल्टे पांव जाना होगा. ताकि उनके निशान तलाश सकें. क्योंकि इस कहानी के हीरो और विलेन, दोनों ये खुद हैं.
जैकब जुमा के बेटे के साथ गुप्ता ब्रदर्स. जैकब के बेटे ने सहारा कंप्यूटर्स में बतौर इंटर्न काम शुरू किया. और फिर कंपनी के डायरेक्टर बन गए.
जैकब जुमा के बेटे के साथ गुप्ता ब्रदर्स. जैकब के बेटे ने सहारा कंप्यूटर्स में बतौर इंटर्न काम शुरू किया. और फिर कंपनी के डायरेक्टर बन गए.

ठिकाना: जिला सहारनपुर 
उत्तर प्रदेश में एक जिला है- सहारनपुर. दिल्ली से निकलकर हिमालय की ओर जाएंगे, तो देहरादून से पहले आएगा सहारनपुर. यहीं पर रहते थे शिव कुमार गुप्ता. छोटा-मोटा धंधा था उनका. सोपस्टोन पाउडर बेचते थे. सिंक, फर्श वगैरह बनाने में इस्तेमाल होता है इसका. शिव कुमार गुप्ता के तीन बेटे थे. अजय, अतुल और राजेश. पिता की मदद करने के अलावा वो दिल्ली में भी एक कंपनी चलाते थे. नाम था- एसकेजी मार्केटिंग. आप इस SKG का विस्तार कीजिए, तो बनेगा- शिव कुमार गुप्ता. ये कंपनी विदेशों से मसाले मंगवाती थी. मैडागास्कर और जंजीबार जैसी जगहों से आता था मसाला. बिजनस के सिलसिले में अक्सर तीनों भाइयों को दिल्ली आना पड़ता.
 

तीन भाई: एक रूस, एक चीन, एक पहुंचा दक्षिण अफ्रीका 
अच्छा-भला था सब. काम, घर-परिवार. मगर गुप्ता परिवार आगे की सोच रहा था. और तरक्की कैसे की जाए? इधर के लोग बहुत आगे जाते थे, तो अमेरिका-कनाडा जाते थे. 'अमेरिकन ड्रीम' बहुत बड़ी बात थी उन दिनों. लोगों को लगता, तरक्की तो बस अमेरिका में होती है. मगर जब गुप्ता परिवार ने विदेश जाकर अपने पैर लंबे करने चाहे, तो उन्होंने अमेरिका को नहीं चुना. सबसे बड़ा भाई अजय रूस गया. मंझला अतुल दक्षिण अफ्रीका पहुंचा. और सबसे छोटा राजेश चीन. कहते हैं कि शिव कुमार गुप्ता ने अपने बेटों से कहा था कि साउथ अफ्रीका जाओ. वो अगला अमेरिका होने जा रहा है.
गुप्ता भाइयों का सबसे करीबी रिश्ता अफ्रीकन नैशनल कांग्रेस के साथ बना. विपक्षी दलों के साथ भी उनके अच्छे ताल्लुकात थे.
गुप्ता भाइयों का सबसे करीबी रिश्ता अफ्रीकन नैशनल कांग्रेस के साथ बना. विपक्षी दलों के साथ भी उनके अच्छे ताल्लुकात थे.

साल 1994: जब साउथ अफ्रीका का कैरेक्टर बदल गया 
हां. दक्षिण अफ्रीका में बड़ी संभावनाएं थीं. लंबे संघर्ष के बाद ये देश आखिरकार रंगभेद से आजाद होने जा रहा था. अश्वेतों को उनके अधिकार मिलने जा रहे थे. मुल्क में बराबरी आने जा रही थी. यानी, एक तरह से गुप्ता परिवार का दक्षिण अफ्रीका जाना और वहां आए बदलाव की उम्र करीब-करीब एक बराबर है. दोनों को हमउम्र ही समझिए. अगले साल, यानी 1994 में दक्षिण अफ्रीका का पहला लोकतांत्रिक चुनाव हुआ. तारीख थी- 27 अप्रैल. इस चुनाव ने दक्षिण अफ्रीका का इतिहास बदल दिया. पहली बार हर नस्ल, हर रंग के लोग साथ मिलकर अपनी सरकार चुनने वाले थे. 19 राजनैतिक पार्टियों ने चुनाव की शिरकत की. तकरीबन दो करोड़ बीस लाख लोगों ने वोट डाला. सब खुशी-खुशी हुआ.


अफ्रीकन नैशनल कांग्रेस: नाम नोट कर लीजिए 

सबसे ज्यादा वोट पाकर जो पार्टी जीती, वो थी- अफ्रीकन नैशनल कांग्रेस. शॉर्ट में, ANC. करीब 62.65 फीसद वोट मिले उसे. इसी पार्टी के नेता थे नेल्सन मंडेला. अश्वेत आंदोलन के नायक मंडेला. महान गांधी के महान शिष्य मंडेला. मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने. उस देश के चुने हुए मुखिया, जिस देश ने गांधी को गांधी बनाने की शुरुआत की थी. इस ANC का नाम नोट करके रख लीजिए कहीं. हमारी इस कहानी में इसका नाम लौटेगा. वो भी बड़े खास मायने में. एक और बात ध्यान रखने की है. उस पहले चुनाव के बाद से दक्षिण अफ्रीका में जितने भी आम चुनाव हुए हैं, सबसे बड़ी पार्टी ANC ही रही है. हर बार उसे करीब 50 फीसद से ज्यादा वोट मिले. यानी, जिसके हाथ में भी ये पार्टी होगी वो दक्षिण अफ्रीका का सबसे ताकतवर इंसान होगा.
अलीट पुलिस यूनिट 'हॉक्स' सबसे गंभीर माने जाने वाले आपराधिक मामलों की जांच करती है.
अलीट पुलिस यूनिट 'हॉक्स' सबसे गंभीर माने जाने वाले आपराधिक मामलों की जांच करती है.

बैक टू द कहानी: सबसे काबिल निकला मंझला भाई हमारे यहां कहते हैं कि भाई-बहनों में मंझले की बड़ी दुर्गति होती है. वो न इधर का रहता है, न उधर का. मगर इस वाली कहानी का मंझला भाई सबसे काबिल निकला. मंझला, यानी अतुल गुप्ता. इस नए लोकतंत्र में कई खूबियां थीं. यहां का सिस्टम मक्खन था. भारत की तरह लाल फीताशाही का रोग नहीं लगा था इसे. काम करवाने में रुकावटें कम थीं. दक्षिण अफ्रीका को लग रहा था कि उसके शुरुआत बहुत देर से हुई है. कि बाकी की दुनिया से कदमताल मिलाने के लिए उसे जल्दी-जल्दी दौड़ना होगा. इसीलिए उसने एक आसान सिस्टम बनाया. विदेशी निवेश के लिए बांहें फैला दीं.
बाकी दोनों भाई भी बोरिया-बिस्तर समेटकर आ गए अतुल गुप्ता को इसका बहुत फायदा होने जा रहा था. अतुल ने शुरुआत की एक जूते की दुकान से. फिर एक कंपनी शुरू की. सहारा कंप्यूटर्स. वो विदेशों से सस्ते पार्ट्स मंगवाता और उसे असेंबल करके बेचता. वैसा ही जैसा हमारे नेहरू प्लेस वाले करते हैं. ये वक्त साउथ अफ्रीका में बाजार के पनपने का था. अतुल का काम चल निकला. रूस और चीन में बैठे अजय और राजेश का काम कुछ खास नहीं चल पाया था. ऐसे में एक दिन वो भी दक्षिण अफ्रीका आ गए. इस वक्त तक अतुल की काफी पहचान बन चुकी थी. बड़े-बड़े अधिकारियों से. और नेताओं से. सबसे करीबी संबंध बने ANC के साथ. हां, वो ही नेल्सन मंडेला वाली पार्टी. उस वक्त दक्षिण अफ्रीका के उपराष्ट्रपति थे थाबो मबेकी. थाबो और अतुल का बड़ा नजदीकी मामला हो गया था. बड़ी दोस्ती हो गई थी.
थुली मैडोनसेला ने जो जांच रिपोर्ट तैयार की, उसने जुप्ताज के खिलाफ आगे आने वाले मामलों में नींव के पत्थर का काम किया.
थुली मैडोनसेला ने जो जांच रिपोर्ट तैयार की, उसने जुप्ताज के खिलाफ आने वाले मामलों में नींव के पत्थर का काम किया.

बीरबल की नहीं, राजनीति-बिजनस की खिचड़ी कहते हैं कि आप हिंदुस्तान छोड़ दें, लेकिन हिंदुस्तान आपको नहीं छोड़ता. आप गुप्ता परिवार की कहानी पढ़ते वक्त ये बात लगातार महसूस करेंगे. हमारे यहां की फिल्मों में देखिए. कि कैसे नेता और कारोबारी पर्दे के पीछे साल्सा करते हैं. गुप्ता भाइयों ने ये फॉर्म्युला खूब भुनाया. ANC में खूब पहचान बनाई. मगर बाकी पार्टियों में भी उनकी खूब पहचान थी. कारोबारी अमूमन ऐसा ही करते हैं. आज ये है, कल को वो आ सकता है. ये ध्यान में रखते हुए सबसे रिश्ता बनाकर चलते हैं. मगर गुप्ता भाइयों के सबसे क्लोज संबंध बने जैकब जुमा के साथ. अब जैकब पूरे नौ साल तक राष्ट्रपति बने रहे, तो ये बात गुप्ता भाइयों के लिए तो बड़ी अच्छी साबित हुई होगी.
और जैकब राष्ट्रपति बन गए... जून 1999 में नेल्सन मंडेला सत्ता से बाहर चले गए. उनकी जगह राष्ट्रपति बने थाबो मबेकी. तारीख थी- 16 जून, 1999. उपराष्ट्रपति बने जैकब जुमा. वो 1999 से 2005 तक दक्षिण अफ्रीका के उपराष्ट्रपति रहे थे. थाबो का जिक्र हम पहले भी कर चुके हैं. 2005 में थाबो ने जैकब को बर्खास्त कर दिया. उनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. जैकब के सहयोगी को उनके लिए रिश्वत का इंतजाम करते हुए पकड़ा गया था. मगर जैकब की किस्मत अच्छी थी. इतने गंभीर आरोप के बावजूद 2007 में वो ANC के अध्यक्ष बन गए. दक्षिण अफ्रीका की हाई कोर्ट के जज ने थाबो के खिलाफ फैसला सुनाया. कहा गया कि उन्होंने जांच एजेंसी के काम में दखलंदाजी की. जैकब वाले मामले में भी जांच को प्रभावित करने की कोशिश की. इस हो-हल्ले के बीच थाबो को इस्तीफा देना पड़ा. 2009 में आम चुनाव हुए. जैकब के नेतृत्व में ANC ने चुनाव लड़ा. पार्टी जीती. जैकब राष्ट्रपति बने. ये वो ही जैकब हैं, जिन्होंने एक बार एचआईवी पर 'चुटकुला' कहा था. कि अगर एचआईवी से बचना है, तो सेक्स के फौरन बाद नहा लीजिए. और जिन्होंने अपने घर को सजाने-संवारने पर सरकारी रुपये खर्च कर दिए थे. (और बाद में उन्हें ये पैसा चुकाना भी पड़ा था.) और जिनके ऊपर एक बार बलात्कार का भी इल्जाम लगा.
1999 में जब नेल्सन मंडेला ने सत्ता छो़ड़ी, उसके बाद
1999 में जब नेल्सन मंडेला ने सत्ता छो़ड़ी, उसके बाद थाबो मबेकी राष्ट्रपति बने. जुमा तब उपराष्ट्रपति थे.

गुप्ता परिवार दौलत का हिमालय बना रहा था गुप्ता परिवार का कारोबार, उनकी दौलत बेतहाशा बढ़ती रही. कंप्यूटरों से शुरू हुआ सफर माइनिंग तक पहुंच गया. फिर मीडिया कंपनियां. 24 घंटे चलने वाला न्यूज चैनल. अखबार. जैसे-जैसे गुप्ता परिवार ने तरक्की की, वैसे-वैसे जैकब जुमा भी अमीर होते गए. 1990 के दशक से अभी तक ऐसा कई बार हुआ जब जैकब के परिवारवाले गुप्ता फैमिली की कंपनियों में बड़ी-बड़ी पोस्ट पर रखे गए. उनका बेटा. उनकी जुड़वा बहन. उनकी चार पत्नियों में से एक पत्नी. (दक्षिण अफ्रीका में एक से ज्यादा शादियां करना कानूनी है.)
सुभाषितानि: स्पीड थ्रिल्स बट किल्स कहते हैं कि अति किसी भी चीज की बुरी होती है. गुप्ता और जुमा फैमिली के रिश्ते भी अपनी रफ्तार से चलते रहते. मगर स्पीड ने मात दे दिया. स्पीड का तो हमेशा से ही रहा है. स्पीड थ्रिल्स, बट किल्स. इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ. दिसंबर 2015 की बात है. साउथ अफ्रीका के वित्तमंत्री थे नाहनला नेने. राष्ट्रपति जैकब जुमा ने नेने को बर्खास्त कर दिया. तारीख थी- 9 दिसंबर, 2015. इस तारीख को दक्षिण अफ्रीकी मीडिया ने 'नेनेगेट' का नाम दिया. अमेरिका के वाटरगेट स्कैंडल की तर्ज पर. ये मामला बहुत बड़ा साबित हुआ. जैकब जुमा और गुप्ता परिवार की सबसे बड़ी चूक. इस कांड का दाग बहुत गहरा था. लोग सवाल करने लगे कि क्या देश के सबसे बड़े पद पर बैठा शख्स भी भरोसेमंद नहीं रहा? कि क्या अपने और अपने कारोबारी दोस्तों के फायदे के लिए वो इस हद तक भी जा सकता है? देश चलाने के लिए पैसा चाहिए होता है. तभी तो वित्त मंत्रालय सबसे अहम विभागों में से एक होता है. अगर ये विभाग भी एक कारोबारी परिवार की मुट्ठी में चला जाएगा, तो देश कैसे चलेगा? दक्षिण अफ्रीका में एक बड़े धड़े को ये सवाल सालने लगा. जैकब जुमा के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गए.
नेनेगेट के बाद देशभर में जैकब जुमा के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे.
नेनेगेट के बाद देशभर में जैकब जुमा के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे. नेने को बर्खास्त करना उनकी सबसे बड़ी चूक साबित हुआ.

गुप्ता परिवार के खिलाफ बयान आने लगे नेने के सहयोगी थे मेकबिसी जोनास. उन्होंने पूछताछ के दौरान गुप्ता परिवार का नाम लिया. कहा कि नेने को बर्खास्त किए जाने से पहले गुप्ता भाइयों ने उन्हें (जोनास को) बुलाया था. जोनास के मुताबिक, गुप्ता फैमिली ने उन्हें एक ऑफर दिया था. कि वो (गुप्ता ब्रदर्स) उन्हें तीन अरब 18 हजार रुपये की रिश्वत देंगे. इसके लिए बस दो शर्तें माननी होंगी. पहली ये कि वित्तमंत्री बनना होगा. दूसरी शर्त ये कि गुप्ताओं की सारी बातें माननी होंगी. आज्ञाकारी होना होगा. जोनास की मानें, तो गुप्ता ब्रदर्स ने उन्हें ये तक कहा कि अगर वो अपने साथ कोई बैग लेकर आए हैं तो हाथ के हाथ करीब 33 लाख रुपये नकद लेकर जा सकते हैं.
गुप्ताओं के फायदे की सोचकर मंत्रियों की पर्ची निकलती थी गुप्ता परिवार ने जोनास के इस बयान को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि उनकी जोनास से कभी कोई मुलाकात नहीं हुई. मगर जब जांच हुई, तो फोन के रेकॉर्ड्स से जोनास की बात सही साबित होती दिखी. खैर. नेने के बाद साउथ अफ्रीका के वित्तमंत्री बने डेविड वैन रुयन. ज्यादातर लोगों ने पहले कभी डेविड का नाम तक नहीं सुना था. न ही उनके पास वित्तीय मामलों का कोई अनुभव ही था. वो केवल तीन दिनों तक इस पद पर रहे. डेविड ने खुद माना था कि वित्तमंत्री बनाए जाने के एक रात पहले वो गुप्ताओं के घर गए थे. डेविड के बाद प्रवीण गोर्धन को फाइनेंस मिनिस्टर बनाया गया. करीब 15 महीने बाद प्रवीण को भी जाना पड़ा.
जब जैकब जुमा विदेशी दौरों पर जाते, तो गुप्ता ब्रदर्स भी उनके साथ होते. एक बार तो इन भाइयों ने डिप्लोमैट पासपोर्ट के लिए भी अप्लाई कर दिया.
जब जैकब जुमा विदेशी दौरों पर जाते, तो गुप्ता ब्रदर्स भी उनके साथ होते. एक बार तो इन भाइयों ने डिप्लोमैट पासपोर्ट के लिए भी अप्लाई कर दिया था.

न्यूक्लियर डील के लिए जोर लगा रहे थे गुप्ता ब्रदर्स खबरों के मुताबिक, नेने नहीं चाहते थे कि दक्षिण अफ्रीका और रूस के बीच परमाणु समझौता हो. उनकी हिचक के कारण ही उन्हें हटाया गया. प्रवीण भी इस न्यूक्लियर डील से हिचक रहे थे. मगर खेल यहीं था. क्योंकि गुप्ता फैमिली की एक कंपनी ने दक्षिण अफ्रीका के एक सरकारी बैंक से करीब 1 अरब 36 करोड़ रुपये का लोन लिया था. देश के अंदर यूरेनियम की खान खरीदने के लिए. हम आपको बता चुके हैं कि गुप्ता परिवार माइनिंग, यानी खनन की फील्ड में भी था. कई खानें थीं उनके पास. तो खबर ये निकली कि अपने इसी प्रॉजेक्ट के लिए गुप्ता बंधु रूस के साथ न्यूक्लियर डील किए जाने के लिए जोर लगा रहे थे. जैकब जुमा भी उनकी मदद कर रहे थे. इसीलिए किसी ऐसे शख्स को वित्तमंत्री बनाए जाने की कोशिश की जा रही थी, जो इस डील का समर्थन करे.
कहावत है: टेढ़े होकर मूतो, तो मुंह में पड़ता है हमने ऊपर वो शादी का किस्सा सुनाया था. कि कैसे मेहमानों से भरा एक विमान उस वीआईपी एयर बेस पर उतरा. वो सारे लोग गुप्ता परिवार के मेहमान थे. शादी के इंतजाम बहुत आलीशान थे. मगर चर्चा इससे ज्यादा किसी और चीज की थी. ये वो मामला था जब गुप्ता परिवार और जैकब के आपसी रिश्ते एकाएक पारदर्शी लगने लगे. एक कारोबारी को इस एयरबेस पर विमान उतारने की इजाजत कैसे मिली? वो इतना वीआईपी कैसे हो गया? इतना ताकतवर कैसे हो गय़ा? ये सारे सवाल आगे चलकर न केवल गुप्ता परिवार, बल्कि उन्हें इतनी ताकत देने वाले शख्स जैकब जुमा को भी बहुत भारी पड़ने वाले थे. क्योंकि वो ही थे, जिन्होंने नियमों को ठेंगा दिखाकर गुप्ताओं को इतनी ताकत बख्शी थी.
गुप्ता भाइयों की मीडिया कंपनी जैकब जुमा का खूब प्रचार करती. उनके पक्ष में माहौल बनाती.
गुप्ता भाइयों की मीडिया कंपनी जैकब जुमा का खूब प्रचार करती. उनके पक्ष में माहौल बनाती.

नेवर अंडरएस्टिमेट द पावर ऑफ अ ईमानदार ऑफिसर 19 अक्टूबर 2009 से 14 अक्टूबर 2016. इस पूरे वक्त साउथ अफ्रीका की पब्लिक प्रॉटेक्टर थीं थुली मैडोनसेला. ये पोस्ट बहुत स्पेशल है. इसके ऊपर सही-गलत पर नजर रखने की जिम्मेदारी होती है. नेने की बर्खास्तगी के बाद गुप्ता बंधु और जैकब जुमा की सांठगांठ खुलकर सामने आने लगी. अब मैडोनसेला के कार्यकाल का आखिरी कुछ वक्त ही बचा था. उन्होंने फैसला किया कि इस बाकी बचे समय में वो नेने को बर्खास्त किए जाने के मामले की जांच करेंगी. कि नेने को हटाया क्यों गया. जब ये बात पब्लिक हुई, तो मैडोनसेला को जान से मारने की धमकियां मिलने लगी. मगर मैडोनसेला अड़ी रहीं. जिस दिन उनका कार्यकाल खत्म होना था, उसके ठीक एक दिन पहले उन्होंने 355 पन्नों की एक जांच रिपोर्ट दी. ये अक्टूबर 2016 की बात है. जैकब अपनी पूरी ताकत लगाकर इस रिपोर्ट को रोकना चाहते थे. उन्होंने पूरा जोर लगा दिया. मगर नाकाम रहे. मैडोनसेला ने खूब ब्योरे से जांच किया था. गुप्ता भाइयों और उनके सहयोगियों के मोबाइल फोन के रिकॉर्ड्स तक छाने थे.
और इस रिपोर्ट ने 'जुप्ताज' के लिए कोई मौका नहीं छोड़ा ये रिपोर्ट न केवल गुप्ता ब्रदर्स, बल्कि राष्ट्रपति जैकब जुमा के लिए भी बहुत महंगी साबित हुई. जुमा के खिलाफ लगे कई भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच में ये रिपोर्ट बहुत मददगार साबित हुई. इस रिपोर्ट में कई ऐसे सौदों का जिक्र था, जो करप्ट लग रही थीं. मसलन- सरकारी बिजली कंपनी ने गुप्ता की एक कंपनी को कोयले का बहुत बड़ा ऑर्डर दिया. और इसके लिए बाजार की कीमत से कहीं ज्यादा रुपया चुकाया. इस रिपोर्ट में गुप्ता ब्रदर्स का करीब 232 बार जिक्र हुआ था.
दक्षिण अफ्रीकी संसद ने आठ बार कोशिश की. जैकब जुमा को निकालने की. मगर वो हर बार बचकर निकल जाते.
दक्षिण अफ्रीकी संसद ने आठ बार कोशिश की. जैकब जुमा को निकालने की. मगर वो हर बार बचकर निकल जाते.

और एक बदनाम पीआर कंपनी की एंट्री हुई गुप्ता परिवार ने खुद का नाम साफ करने की काफी कोशिश की. मगर कोई तरकीब काम नहीं आई. मैडोनसेला की रिपोर्ट आने के पहले ही उन्होंने ब्रिटेन की एक पीआर फर्म 'बेल पोटिंगर' की सेवा ली. पीआर कंपनियां क्या करती हैं, पता है न. प्रचार करना, अच्छी खबरें प्लांट करना, छवि सुधारने की कोशिश करना. वगैरह वगैरह. इसके अलावा कई बार पीआर कंपनियां अपने क्लाइंट के फायदे के लिए आड़े-तिरछे काम भी करती हैं. जैसा इस मामले में हुआ.
कितनी बदनाम थी ये पीआर कंपनी? लॉर्ड बेल नाम के एक शख्स थे. ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर को मीडिया से जुड़े मामलों में सलाह दिया करते थे. इन्हीं लॉर्ड बेल ने 'बेल पोटिंगर' कंपनी शुरू की. ये कंपनी अपने क्लाइंट्स के लिए लॉबिंग करती थी. भाषण लिखती थी. उनकी छवि बनाती थी. सुधारती थी. आमदनी के हिसाब से ये एक वक्त में ब्रिटेन की सबसे बड़ी पीआर कंपनी थी. कहते हैं कि अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने भी इसी पीआर कंपनी की सेवा ली थी. जब अमेरिका इराक में जंग लड़ने गया था. ताकि इराक के पास परमाणु हथियार हैं, इसके सबूत के तौर पर फर्जी खबरें और विडियो बनाए जाएं. अल-कायदा को निशाना बनाते हुए न्यूज स्टाइल विडियो बनाए जाएं. और फैलाए जाएं. यहां तक कि श्रीलंका के राष्ट्रपति ने लिट्टे पर की गई भीषण सैनिक कार्रवाई के बचाव में संयुक्त राष्ट्र (UN) के अंदर जो भाषण दिया था, वो भी बेल पोटिंगर ने ही लिखा था. इस भाषण में लिट्टे के ऊपर हुई हिंसक कार्रवाई को 'मानवीय' बताया गया था. इस फर्म के ऊपर ब्रिटिश प्रधानमंत्री के फैसलों को प्रभावित करने का भी आरोप लगा.
दक्षिण अफ्रीका में 2019 में आम चुनाव होने हैं. तब तक सायरिल रामाफोसा वहां के कार्यकारी राष्ट्रपति होंगे.
दक्षिण अफ्रीका में 2019 में आम चुनाव होने हैं. तब तक सायरिल रामाफोसा वहां के कार्यकारी राष्ट्रपति होंगे. इस पूरे मामले ने ANC की छवि का भी बंटाधार किया है. तस्वीर में दाहिनी ओर हैं रामाफोसा.

अपने फायदे के लिए ये भी कर डाला! तो बेल पोटिंगर ने गुप्ता ब्रदर्स के लिए क्या किया? एक नैशनल स्कैंडल. दक्षिण अफ्रीका की श्वेत और अश्वेत आबादी के बीच तनाव बढ़ाने की कोशिश. ताकि तनाव भड़काकर गुप्ता परिवार पर उठ रहे सवालों को दबाया जा सके. इसे श्वेत बनाम अश्वेत का मुकाबला बना दिया जाए. इस विवाद ने न केवल बेल पोटिंगर, बल्कि गुप्ता फैमिली और जैकब जुमा की भी बैंड बजा दी. कहां तो फायदे की सोची थी और कहां चीजें इतनी बिगड़ गईं. 12 सितंबर, 2017 को बेल पोटिंगर दिवालिया हो गई. इस कंपनी ने इराक युद्ध में फर्जी खबरें बनाकर अमेरिका की मदद की. मगर गुप्ता ब्रदर्स का रायता साफ करना इसके लिए भी इतना नामुमकिन हो गया. बल्कि उल्टे हाथ जल गए.
जुप्ताज: क्या हैं आरोप गुप्ता ब्रदर्स और जैकब जुमा, इनके बीच इस कदर नजदीकियां थीं कि दक्षिण अफ्रीका वाले इन्हें जमा 'जुप्ताज' कहकर पुकारने लगे थे. जैकब के ऊपर भ्रष्टाचार के बेहद गंभीर आरोप हैं. इन आरोपों के केंद्र में हैं गुप्ता भाई. आरोप है कि राष्ट्रपति जैकब जुमा ने इस परिवार को गैरवाजिब तरीकों से फायदा पहुंचाया. उन्हें देश से जुड़ी संवेदनशील जानकारियां मुहैया कराईं. यहां तक कि कैबिनट के मंत्री भी उनकी पसंद से चुने और हटाए गए. इल्जाम है कि जैकब की मदद से गुप्ताओं की कंपनियों ने सरकारी सौदों और टेंडरों से खूब पैसे कमाए. गुप्ताओं के नाम पर कई कंपनियां हैं. एक तो सहारा कंप्यूटर्स ही है. दूसरी कंपनी है ओकबे. फिर एक है जेआईसी माइनिंग सर्विसेज. शिवा यूरेनियम. टेगेटा एक्सप्लोरेशन ऐंड रिसोर्सेज. ऑप्टिमम कोल माइन. कूर्नफोनटेइन कोल माइन. एस्कॉम. ट्रान्सनेट. ये सारी कंपनियां गुप्ताओं की है. इनके अलावा भी काफी पसरा हुआ है उनका साम्राज्य.
इस ओकबे कंपनी के पास सहारा कंप्यूटर्स का मालिकाना है.
इस ओकबे कंपनी के पास सहारा कंप्यूटर्स का मालिकाना है.

पूरे देश को ही 'जेब' में रख लिया हो जैसे इस सांठगांठ में ऐसी स्थिति हो गई कि इसके लिए वहां 'स्टेट कैप्चर' का नाम इस्तेमाल हो रहा है. मतलब कि कोई इंसान पूरी सरकार को (यानी देश को) ही खरीद ले. अपनी गिरफ्त में कर ले. बंधक बना ले. ये भ्रष्टाचार इतना बड़ा हिमालय बन गया है कि अगर दक्षिण अफ्रीका को करप्शन खत्म करना है, तो उसे गुप्ता फैमिली और जुमा से निपटना ही होगा. स्थितियां इतनी बेकाबू हो गईं कि ANC को जैकब से इस्तीफा मांगना पड़ा. जब इस्तीफा नहीं मिला, तो उनके खिलाफ कार्रवाई की गई. विश्वास प्रस्ताव टाइप. इसके बाद जैकब के पास कोई विकल्प नहीं था. सिवाय इस्तीफा देने के.
गुप्ता ब्रदर्स और राष्ट्रपति जुमा के लिंक्स जैकब और गुप्ता ब्रदर्स के बीच सबसे बड़ा लिंक क्या था? जैकब का बेटा डुडुजेन. जिसने करीब 13 सालों तक गुप्ता भाइयों के लिए काम किया. शुरुआत की सहारा कंप्यूटर्स में बतौर ट्रेनी. बाद में उसे इस कंपनी का डायरेक्टर बना दिया गया. कागजातों के मुताबिक, गुप्ताओं की कम से कम 11 कंपनियों के बोर्ड में डुडुजेन का नाम है. 2016 में जब भ्रष्टाचार के आरोप काफी बढ़ गए, तब डुडुजेन को इस्तीफा देना पड़ा था. जैकब की तीसरी पत्नी- बोंगी नगेमा भी गुप्ताओं की कंपनी 'जेआईसी माइनिंग सर्विसेज' में थीं. बतौर कम्यूनिकेशन्स ऑफिसर. जैकब की एक बेटी डुडुजिले जुमा भी सहारा कंप्यूटर्स में एक डायरेक्टर थीं. 2007 में जैकब ANC के अध्यक्ष बने थे. इसके छह महीने बाद डुडुजिले ने सहारा कंप्यूटर्स में काम करना शुरू किया था.
सहारा कंप्यूटर्स शुरू करने से पहले गुप्ता ब्रदर्स ने एक जूते की दुकान खोली थी. ये कंपनी उनके लिए बड़ी किस्मतवाली साबित हुई.
सहारा कंप्यूटर्स शुरू करने से पहले गुप्ता ब्रदर्स ने एक जूते की दुकान खोली थी. ये कंपनी उनके लिए बड़ी किस्मतवाली साबित हुई.

जैकब जुमा के लिए अखबार खोल दिया द न्यू ऐज. ये नाम है उस अखबार का. जिसके मालिक हैं गुप्ता. और इसमें जैकब जुमा को हीरो बनाया जाता है. ये अखबार 2010 में शुरू किया गया. जैकब के राष्ट्रपति बनने के तकरीबन एक साल बाद. इसके बाद 2013 में गुप्ताओं ने एक 24 घंटे वाला न्यूज चैनल भी शुरू किया. नाम- ANN7. उसकी खबरें भी ऐसी ही होतीं. कहते हैं कि जैकब के राष्ट्रपति बनने से पहले ही उनके और गुप्ता भाइयों के रिश्ते बन चुके थे.
कितने अमीर हैं गुप्ता ब्रदर्स? 2016 में खबरें आई थीं. अतुल गुप्ता दक्षिण अफ्रीका के सबसे अमीर अश्वेत बन गए थे. तब उनकी संपत्ति करीब 55 अरब रुपये बताई जा रही थी. ये बस एक भाई की दौलत है. बाकी दोनों भाइयों का अलग है. मगर संडे टाइम्स का ये अनुमान शायद बहुत कम है. आसार ये हैं कि गुप्ताओं के पास इससे कहीं ज्यादा दौलत है.
बैंक ऑफ बड़ौदा का क्या लिंक है? पिछले साल, यानी 2017 में बैंक ऑफ बड़ौदा ने गुप्ता भाइयों की कंपनी के बैंक खाते बंद कर दिए. ये तब हुआ, जब गुप्ता ब्रदर्स के खिलाफ लग रहे आरोप सिर उठाने लगे थे. विपक्षी पार्टियां, और यहां तक की सत्ता में बैठी ANC के भी कई नेता उनके ऊपर गंभीर आरोप लगा रहे थे. बैंक ऑफ बड़ौदा से पहले दक्षिण अफ्रीका के चार बड़े बैंकों ने भी गुप्ता परिवार से जुड़े खाते बंद कर दिए थे. बैंकों ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग नियमों को ध्यान में रखते हुए ये फैसला लिया गया.
बैंक ऑफ ब़ड़ौदा ने जब गुप्ता फैमिली से जुड़े खाते बंद किए, तो उनके वकीलों ने बैंक पर केस कर दिया.
बैंक ऑफ ब़ड़ौदा ने जब गुप्ता फैमिली से जुड़े खाते बंद किए, तो उनके वकीलों ने बैंक पर केस कर दिया.

गुप्ताओं की हालत हलवा टाइट थी पूर्व वित्तमंत्री प्रवीण गोदरा ने भी अदालत में एक याचिका डाली. इस याचिका के साथ दक्षिण अफ्रीका के अंदर वित्तीय मामलों और लेन-देन पर नजर रखने वाली एजेंसी 'फाइनैंशल इंटेलिजेंस सेंटर' की एक लिस्ट भी थी. इसमें 72 ऐसे लेन-देन का जिक्र था, जिनके ऊपर शक था. ये सारे खाते गुप्ताओं से जुड़े थे. गुप्ता बंधुओं की हवा टाइट थी. पैसा अकूत था, मगर हाथ में नहीं आ रहा था. उनकी सारी कंपनियों को मिलाकर करीब 10,000 लोग काम करते थे उनके यहां. इस हलवा टाइट हालत में कर्मचारियों का वेतन देना मुश्किल होने लगा. बिना कैश के बिजनस कैसे होता है? वो भी ऐसा 'दाग अच्छे हैं' वाला बिजनस. इतनी बुरी हालत थी कि गुप्ता भाई कर्ज नहीं चुका पा रहे थे. उनके खाते सील कर दिए गए थे. दिसंबर 2015 से लेकर अप्रैल 2016 के बीच फर्स्टरेंड, स्टैंडर्ड बैंक, नेडबैंक और बारक्लेज अफ्रीका ने गुप्ता भाइयों से जुड़े खाते बंद कर दिए. गुप्ता भाइयों के खिलाफ केस दर्ज हुआ. इन बैंकों का नाम भी इस केस से जुड़ा हुआ है.
बार-बार विवादों में फंसकर बचते रहे जैकब जुमा जैकब नौ साल तक सत्ता में रहे. दक्षिण अफ्रीका की सबसे बड़ी, सबसे ताकतवर पार्टी के मुखिया रहे. राष्ट्रपति रहे. उनके ऊपर बार-बार करप्शन का इल्जाम लगता रहा. गुप्ताओं के साथ उनके रिश्तों पर पिछले लंबे समय से बात हो रही थी. न केवल दक्षिण अफ्रीका में. बल्कि दुनिया भर में. बावजूद इसके जैकब इतने लंबे समय तक बचते रहे. संसद ने आठ बार उन्हें हटाने की कोशिश की. लेकिन जैकब हर बार बच जाते. मगर ये वाला मामला वैसा ही लग रहा है- ताबूत में आखिरी कील जैसा. इस्तीफा देना नहीं चाहते थे. मजबूरी में देना पड़ा. उनकी अपनी पार्टी अब उनसे आजिज आ गई है. ANC के नए मुखिया हैं सायरिल रामाफोसा. उन्होंने साफ कह दिया है कि जैकब का वक्त अब पूरा हुआ. 2019 में आम चुनाव होने हैं. तब तक रामाफोसा वहां के कार्यकारी राष्ट्रपति होंगे.
पूर्व वित्तमंत्री प्रवीण गोर्धन गुप्ता भाइयों के खिलाफ बयान दे चुके हैं.
पूर्व वित्तमंत्री प्रवीण गोर्धन गुप्ता भाइयों के खिलाफ रहे केस में बतौर गवाह बयान दे चुके हैं. उन्हें भी 15 महीने के कार्यकाल के बाद बर्खास्त कर दिया गया था.

अब गुप्ताओं का क्या होगा? गुप्ता ब्रदर्स के खिलाफ फंदा कस चुका है. वो बुरी तरह फंस चुके हैं. उनके खिलाफ कोर्ट केस चल रहा है. जिस जैकब जुमा के सहारे वो इतना बड़ा साम्राज्य बना सके, वो भी गर्दिश में हैं. गुप्ता भाइयों ने 2017 में कहा था कि साल के आखिर तक शायद वो दक्षिण अफ्रीका की अपनी पूरी जायदाद बेचकर निकल जाएं. अब 2018 हो गया है. मगर वो जा नहीं सके हैं. जैसी हालत में हैं, उसमें यूं आसानी से निकल जाना मुमकिन भी नहीं दिखता. दक्षिण अफ्रीका की एलीट पुलिस यूनिट 'हॉक्स' ने उनके घरों पर छापा मारा. ये ठीक उसी दिन हुआ, जिस दिन जैकब ने इस्तीफा दिया. गुप्ता फैमिली का एक सदस्य गिरफ्तार भी किया गया है.
'हम दिल दे चुके सनम' के वनराज ने बहुत जीनियस बात कही थी दक्षिण अफ्रीका में उनके ऊपर जो आरोप लगे हैं, वो साबित हो गए तो कानून से बचना मुमकिन नहीं हो पाएगा उनके लिए. खासकर तब, जब उनके पास सत्ता का सहारा भी नहीं बचा है. ऐसे मामलों में देश के सामने नजीर पेश करनी की चुनौती होती है. और लगता है साउथ अफ्रीका ने फैसला कर लिया है. कि नजीर पेश करने का वक्त आ गया है. 'हम दिल दे चुके सनम' में एक जगह वनराज (अजय देवगन) कहता है- जो सीढ़ियां नीचे से ऊपर जाती हैं, वो ही सीढ़ियां ऊपर से नीचे भी आती हैं. हम सब हंसे थे तब. बेतुकी सी बात लगी थी. मगर अब 'जुप्ताज' की कहानी कहने-सुनने के बाद वनराज बहुत जीनियस लग रहा है. हां, एक और बात कहनी है. 'सहारा' का नाम सुनकर आपको एक कुछ और भी याद आएगा. प्लीज, इस नाम के लिए कोई अंधविश्वास मत पालिएगा.
 



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