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गौरी लंकेश और बाकी तीन हत्याओं में कुछ बातें एक जैसी थीं

क्या और भी क़त्ल होने बाक़ी हैं?

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15 जून 2018 (Updated: 15 जून 2018, 06:30 AM IST) कॉमेंट्स
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यह लेख डेली ओ 
से लिया गया है.   
दी लल्लनटॉप के लिए हिंदी में यहां प्रस्तुत कर रही हैं शिप्रा किरण.



5 सितम्बर 2017 को गौरी लंकेश की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. उनकी हत्या के नौ महीने के बाद उस केस की छानबीन के लिए बनी विशेष जांच-दल ने ये दावा किया है कि जिसने गौरी लंकेश पर गोली चलाई थी, उसे पकड़ लिया गया है.

कई आरोपियों से पूछताछ के बाद और पूरे मामले की छानबीन के बाद परशुराम वाघमोरे को गिरफ्तार किया गया. सभी आरोपी महाराष्ट्र की एक संस्था हिंदू जनजागृति समीति से जुड़े थे. ये संस्था सनातन संस्था  सम्बंधित है. इस हत्या के आरोपी वही लोग हैं जो 2008 के थाने और 2009 के गोवा बम-ब्लास्ट में भी शामिल थे. 5 सितम्बर 2017 को हुई लंकेश की हत्या से पूरा देश सदमे में था. पूरे देश में गुस्से का माहौल था. प्रधानमंत्री मोदी भी इस गुस्से का शिकार बने. क्योंकि वे एक ऐसे आदमी को ट्विटर पर फॉलो कर रहे थे, जो लंकेश की हत्या का जश्न मना रहे थे. (मोदी अब भी निखिल दधीच को फॉलो करते हैं) लंकेश की हत्या को कई तरह के षड्यंत्रों से जोड़कर देखा गया. जिसमें माओवादी से लेकर हिंदुत्ववादी समूह तक पर शक किया गया.


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गौरी लंकेश

गौरी लंकेश की हत्या से पहले इसी तर्ज़ पर तीन और ऐसी ही हत्याएं हो चुकी. 2013 के अगस्त महीने में पुणे में कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर की हत्या, 20 फ़रवरी, 2015 में कोल्हापुर में कम्युनिस्ट पार्टी के नेता गोविन्द पानसरे की हत्या, 30 अगस्त 2015 में धारवाड़, कर्नाटक के प्रोफ़ेसर एम. एम. कलबुर्गी की हत्या, इन सभी हत्यायों की कड़ी एक ही है.

चारों हत्यायों में कुछ सामान सी बातें थीं. वही आरोपी, वही आरोप-प्रत्यारोप, भगवा आतंक से हिंदुत्व के विक्टिमाइजेशन तक की बातें (जैसे वही सॉफ्ट टारगेट हों)  खैर, सारे गड़बड़झालों और भूलभुलैया के बावजूद कुछ बातें तो साफ़ थी. पांच साल के भीतर चार कार्यकर्ताओं, लेखकों की हत्या हो चुकी थी. इन आरोपियों की के चाल-ढाल से ही जाहिर था कि कट्टर हिन्दुत्व के पैरोकार थे. लेकिन अब तक कोई भी केस किसी तार्किक निष्कर्ष तक नहीं पंहुचा.

चारों हत्याओं में कुछ एक जैसी बातें थीं

पानसरे और दाभोलकर की हत्या के दोनों आरोपी-सनातन संस्था के सारंग अकोलकर और विनय पंवार अब तक गिरफ्तार नहीं हुए हैं. लंकेश की हत्या का पहला आरोपी, के. टी. नवीन कुमार हिन्दू युवा सेना की एक शाखा का संस्थापक है. वह हिन्दू जनजागृति समिति की कर्नाटक इकाई के अध्यक्ष मोहन गौड़ा के माध्यम से सनातन संस्था से जुड़ा हुआ था.

पानसरे और दाभोलकर की हत्या का आरोपी, वीरेंद्र तावड़े भी हिंदू जनजागृति समिति का सदस्य था. जनवरी में पानसरे हत्या केस में उसे बेल मिल गई लेकिन दाभोलकर की हत्या के आरोप में उसे पुणे की यरवदा जेल में रखा गया. सनातन संस्था का ही कार्यकर्ता समीर गायकवाड़ को पानसरे की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया और कलबुर्गी मामले में भी उससे पूछताछ की गई.


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नरेंद्र दाभोलकर

लंकेश की हत्या में इस्तेमाल हुए गोलियों की फोरेंसिक जांच से ये पता चला कि कलबुर्गी की हत्या में भी लगभग वैसी ही गोलियों का इस्तेमाल किया गया था. दोनों ही कोई हत्या में इस्तेमाल हुई बुलेट्स पर एक ही तरह के निशान थे. दाभोलकर और पानसरे की हत्या में भी लगभग एक ही तरह के हथियार का इस्तेमाल किया गया था.


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गोविंद पानसरे

 देशव्यापी धरनों और आन्दोलनों के बावजूद इन तीनों हत्याओं के जांच की गति बहुत धीमी रही है. पूरे मामले की धीमी गति को लेकर जांच एजेंसियों ने कई कारण बताए हैं. कभी कहते हैं कि वे फोरेंसिक रिपोर्ट का इंतज़ार कर रहे हैं तो कभी कि आरोपियों के फोन नंबर और उनके पते बदल गए हैं. इतनी समानताओं के बावजूद दाभोलकर-हत्या की जांच सीबीआई ने की है, पानसरे की सीआईडी ने और कलबुर्गी-हत्या की जांच राज्य पुलिस ने की है.

क्या और भी क़त्ल होने बाक़ी हैं?

लंकेश-हत्या के पहले आरोपी नवीन कुमार ने पुलिस को बताया कि उसने कन्नड़ लेखक के. एस. भगवान के क़त्ल की भी योजना बना रखी थी. पुणे का रहने वाला अमोल काले, जो इस हत्या का दूसरा आरोपी था, उसके पास तो लेखकों की एक पूरी लिस्ट थी जो उनके निशाने पर थे. उसमें मशहूर लेखक और रंगकर्मी गिरीश कर्नाड का भी एक नाम था.

पुलिस के सामने आरोपियों ने जो बयान दिए वे और भी डराने वाले हैं. उन्होंने बताया कि गोवा में 'हिंदू संस्कृति' पर हुए एक कार्यक्रम में नवीन ने भड़काऊ भाषण दिए थे. जिसमें उसने 'हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अस्त्र-शस्त्रों (हथियारों) के इस्तेमाल' पर भाषण भी दिया था.


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एम. एम. कलबुर्गी

यहीं पर उसकी मुलाक़ात कुछ और लोगों से हुई थी. हत्यायों की साजिश भी यहीं बनी थी. यहीं से उन साज़िशों पर कार्यवाई भी हुई थी. ये अलग बात है कि अभी तक इनके खिलाफ कोई मजबूत सबूत नहीं मिल पाएं हैं. इस तरह के समूह धर्म और संस्कृति के नाम पर साम्प्रदायिक्ता, अलगाववाद और हिंसा को बढ़ावा देते है. समाज में ऐसे तत्वों की उपस्थिति चिंताजनक है और गंभीर जांच की मांग करती है. इन हत्यायों की छानबीन कर रही एजेंसियों को भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. और जांच की धीमी गति ये बताती है कि ऐसे लोगों और उन्हें प्रश्रय देने वाली संस्थाओं की पोल धीरे-धीरे खुलने लगी है.

गौरी लंकेश, कलबुर्गी, पानसरे और दाभोलकर की हत्या सिर्फ़ किसी एक व्यक्ति की हत्या नहीं है बल्कि ये तर्कों-विचारों की हत्या है, ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हत्या है, ये हाशिए की आवाज़ की हत्या है. ये पूरे लोकतंत्र की हत्या है.

आज पूरा भारत न्याय की मांग कर रहा है और ये सरकार की जिम्मेवारी है कि वो सबको पूरी सुरक्षा मुहैया कराए.



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