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अंतरिक्ष में खाना पका लेंगे, उड़ेगा भी नहीं, साइंटिस्ट्स का ये काम दुनिया बदल देगा!

टेस्ट के लिए २० हजार फीट की ऊंचाई से एयरक्राफ्ट नीचे गिराया गया और फिर...

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french fry cooked in space
टेस्ट करने वाले ESA के वैज्ञानिक और फ्रेंच फ्राई का प्रतीकात्मक चित्र (फोटो सोर्स- ESA और Getty)
8 जून 2023 (Updated: 8 जून 2023, 18:48 IST)
Updated: 8 जून 2023 18:48 IST
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यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) ने एक ऐसा टेस्ट किया है, जिसके बाद एस्ट्रोनॉट्स स्पेस में फ्रेंच फ्राइज पकाकर खा सकेंगे. आप कहेंगे कि ये कौन सा बड़ा काम है. लंबे-लंबे आलू के पीस काटो और फ्रायर में डालो, 2 मिनट में फ्रेंच फ्राइज़ बनकर तैयार. लेकिन स्पेस में ग्रैविटी नहीं होती. कुकिंग ऑयल, आलू के टुकड़े, मसाला, सब कुछ जीरो-ग्रैविटी में उड़ता रहेगा. फ्रेंच फ्राई बनने से रही. लेकिन वैज्ञानिकों ने अब ऐसा करके दिखाया है. कैसे? ये समझते हैं.

एक्सपेरिमेंट कैसे हुआ? 

स्पेस में खाना पकाने की दिशा में ESA का ये प्रयोग सफल बताया जा रहा है. इंडिया टुडे की एक खबर के मुताबिक, रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों ने एक एक्सपेरिमेंट किया. वो ये जानना चाहते थे कि क्या माइक्रोग्रैविटी की कंडीशंस में आलू को खाने लायक पकाया जा सकता है. ये रिसर्च जर्नल फ़ूड रिसर्च एंड इंटरनेशनल में छपी है.

इस एक्सपेरिमेंट के लिए एक एयरक्राफ्ट को ख़ास तौर पर तैयार किया गया. इसने दो उड़ानें भरीं. इन उड़ानों का रास्ता परवलयाकार (पैराबोलिक) था. एयरक्राफ्ट 20 हजार फीट की ऊंचाई तक गया और तेजी से नीचे आया. इस दौरान एयरक्राफ्ट के अंदर करीब 22 सेकंड तक माइक्रोग्रैविटी जैसा माहौल बन गया. माइक्रोग्रैविटी यानी, जब कोई ऊंचा झूला तेजी से नीचे आता है तब उसमें बैठने वालों को जैसी Weightlessness यानी भारहीनता महसूस होती है बिल्कुल वही.

तो इसी 22 सेकंड की माइक्रोग्रैविटी के दौरान साइंटिस्ट्स ने आलू फ्राई किए. इसके लिए भी एक नए तरीके का उपकरण इस्तेमाल किया गया. जब आलुओं को बॉइलिंग ऑयल में डाला गया, उस वक़्त हाई-रिजॉल्यूशन कैमरा से कई चीजें रिकॉर्ड की गईं. जैसे- आलू के पीसेज के फ्राई होते वक़्त उनसे उठने वाले बुलबुलों का ग्रोथ रेट, उनका साइज़, उनके फैलने का पैटर्न और आलू की सतह से उठने की उनकी स्केप वेलोसिटी वगैरह. इसके अलावा आलू पकाने वाले तेल और आलू के अंदर का टेम्परेचर भी मापा गया.

माइक्रोग्रैविटी के चलते किसी भी चीज की सतह पर बायोंसी (उत्प्लावन बल) काम नहीं करता. यानी सतह से कोई चीज ऊपर नहीं उठती. लेकिन एक्सपर्ट्स ने अपने एक्सपेरिमेंट में पाया कि बायोंसी न होने के बावजूद फ्राई करते वक़्त आलू की सतह से बुलबुले उठे. अगर ऐसा नहीं होता, तो इन बुलबुलों की एक सतह आलू के ऊपर बन जाती. और आलू नहीं पक पाता.
वैज्ञानिकों का मानना है कि ये एक्सपेरिमेंट इस बात का सबूत है कि अब स्पेस में भी एस्ट्रोनॉट्स खाना पकाकर खा सकते हैं.

वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तकनीक के और विकसित होने के बाद एस्ट्रोनॉट्स, चांद और मंगल पर ज्यादा दिनों के मिशन के दौरान रिहाइड्रेटेड खाने के अलावा, रेगुलर फ़ूड भी खा सकेंगे. पृथ्वी की सतह से 400 किलोमीटर ऊपर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में भी एस्ट्रोनॉट्स 6 महीने से साल भर तक का लंबा वक़्त गुजारते हैं.

रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों की टीम के एक सदस्य जॉन लिंबस कहते हैं,

“एस्ट्रोनॉट्स के लिए खाने की सुविधा और पोषण के अलावा, स्पेस में फ्राई करने की इस प्रक्रिया की स्टडी से कई और क्षेत्रों में भी कुछ चीजें बेहतर होंगी. जैसे पारंपरिक तौर पर हमारा चीजों को उबालने का तरीका और माइक्रोग्रैविटी में सोलर एनर्जी से हाइड्रोजन बनाना.”

इससे पहले NASA ने कॉफ़ी कप बनाया था

इसके पहले साइंटिस्ट्स ने अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक कप इजाद किया था. जिससे स्पेस के दौरान यात्री जीरो ग्रैविटी में कॉफ़ी पी सकते हैं. कॉफ़ी न गिरेगी, न हवा में तैरती रहेगी. कई सालों से NASA ऐसा कप बनाने की कोशिश कर रहा था. इस कप का ऊपरी हिस्सा बिल्कुल किसी सामान्य कप की तरह खुला है.

इससे पहले तक एस्ट्रोनॉट्स को स्पेसशिप में रहते वक़्त सीलबंद पाउच से बेवेरेज कंज्यूम करने होते थे, सामान्य कप में या स्ट्रॉ डालकर पानी, जूस, कॉफ़ी या कोई भी दूसरी ड्रिंक्स वगैरह लेना मुमकिन नहीं था. कप को बनाने वाले साइंटिस्ट्स कहते हैं कि ये कप सरफेस टेंशन और कप की ज्योमेट्री के चलते ये मुश्किल काम कर पा रहा है. 

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