जस्टिस कर्णन तो जेल जाएंगे, पर कोर्ट की इन कमियों को कौन दूर करेगा?
ये सारा मामला विवादास्पद जस्टिस कर्णन के मुद्दे से जुड़ा हुआ है.
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फोटो - thelallantop
ये मामला लंबा खिंचा आ रहा है. इस तरह के व्यवहार के लिए कोई संवैधानिक व्यवस्था ना होने की वजह से दिक्कत आ रही थी.
इससे पहले मार्च में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन ने कहा था:
'मैं किसी जज के बारे में पहले से कैसे जान सकता हूं.' इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम में किसी का बैकग्राउंड जानने का कोई तरीका नहीं है. हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जो रिकमेंड करते हैं, वही जाता है. उनके मुताबिक अपने 3 साल के कार्यकाल में उन्होंने 300 जजों का अपॉइंटमेंट किया. तो सबके बारे में हर चीज पता करना मुश्किल है. सुप्रीम कोर्ट में ऐसा कोई मैकेनिज्म नहीं है, जिससे जजों के बारे में पता लगाया जा सके.ये बात जस्टिस कर्णन वाले विवाद के संदर्भ में कही गई. जस्टिस कर्णन के मुद्दे ने भारत की न्याय व्यवस्था की कमियों को उजागर कर दिया है. इनकी नियुक्ति केजी बालकृष्णन ने ही की थी. तो लोग पूछ रहे हैं कि क्या देखकर नियुक्ति की गई थी.

केजी बालकृष्णन
क्या है पूरा मामला
10 मार्च, 2017 को सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने अप्रत्याशित रूप से संभावना जताई कि हाई कोर्ट के एक सिटिंग जज को गिरफ्तार किया जा सकता है. इंडिया के कानूनी इतिहास में ये पहला मौका है. कोर्ट ने कंटेप्ट नोटिस के बावजूद उपस्थित नहीं होने पर जस्टिस कर्णन के खिलाफ बेलेबल वॉरंट जारी कर दिया. इस बेंच के हेड चीफ जस्टिस जेएस खेहर हैं. बेंच ने वेस्ट बंगाल पुलिस को कहा कि 31 मार्च तक का टाइम दिया जाए जस्टिस कर्णन को.
ये कंटेम्प्ट नोटिस इस वजह से दिया गया था कि जज कर्णन पर आचरण खराब होने के आरोप लगे थे. उनसे कहा गया कि कोर्ट में आइए और समझाइए कि क्यों आपने लेटर लिखे जिसमें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के सिटिंग और रिटायर्ड जजों पर करप्शन के आरोप लगाए.
पर इसके बाद जस्टिस कर्णन ने मीडिया से कहा कि ये 7 जज उनकी लाइफ खराब कर रहे हैं, ये अपने मन से कर रहे हैं और उनकी कोई अथॉरिटी नहीं है ऐसा करने की. उन्होंने ये भी कहा कि दलित होने की वजह से उनको टारगेट किया जा रहा है. इनके मुताबिक संविधान में क्लियर दिया हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट का मालिक नहीं है.कहां से शुरू हुआ था ये सब?
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर निकालने के कुछ घंटों बाद ही जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस खेहर समेत 7 जजों और अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी पर एससी-एसटी एक्ट के तहत केस करने का आदेश दे दिया. ये उन्होंने अपने घर से किया.
कहा कि कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट के सेक्शन 2 सी, 12 और 14 और संविधान के आर्टिकल 20 के मुताबिक हाई कोर्ट के एक सिटिंग जज पर सिविल या क्रिमिनल कोई भी कंटेम्प्ट एक्शन नहीं लिया जा सकता. मेरे खिलाफ सिर्फ इंपीचमेंच किया जा सकता है. जजेज इन्क्वायरी एक्ट के मुताबिक जांच होने के बाद पार्लियामेंट में होगा ये. सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट का मालिक नहीं है. मैं नौकर नहीं हूं. मैं नहीं जाऊंगा सुप्रीम कोर्ट में.
2011 में जस्टिस कर्णन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर हाई कोर्ट में अपने साथ काम करने वाले जज पर आरोप लगाए कि वो इनके साथ जातिगत भेदभाव करते हैं और इनको अपने पैर से भी छुआ है. 2015 में वो मद्रास हाई कोर्ट के एक जज के कोर्टरूम में घुस गए और कहने लगे कि मेरी बात भी सुनी जाए. उसी साल उन्होंने अपने मन से मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संजय किशन कौल के खिलाफ कंटेम्प्ट प्रोसीडिंग शुरू कर दी. कहा कि दलित होने की वजह से संजय उनको परेशान कर रहे हैं और बढ़िया काम नहीं देते. फरवरी 2016 में कर्णन ने संजय पर करप्शन के चार्ज भी लगा दिये. फिर सुप्रीम कोर्ट ने उनका ट्रांसफर कर दिया. तो कर्णन ने उस पर स्टे ऑर्डर लगा दिया. फिर सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने जब ये स्टे ऑर्डर हटा दिया तो कर्णन ने चेन्नई पुलिस को ऑर्डर दिया कि दोनों जजों पर एससी-एसटी एक्ट के तहत केस बनाया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने फिर कहा कि अब पानी सिर से गुजर चुका है. तो कर्णन ने माफी मांग ली और कहा कि उनका मेंटल बैलेंस प्रभावित हो गया है. फिर उस वक्त के चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर के साथ बात की. कलकत्ता हाई कोर्ट चले आए. पर फिर कर्णन ने प्रधानमंत्री को लेटर लिखा और एक लिस्ट दी. इसमें हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई सिटिंग और रिटायर्ड जजों पर करप्शन के आरोप लगाए.

टीएस ठाकुर
सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक जो किया है, वो घर की बात घर में रह जाने वाला जैसा ही है. कोर्ट बस कम डैमेज चाहती है क्योंकि कर्णन का केस अद्भुत है. जज पर भ्रष्टाचार का आरोप लगे, आप इम्पीचमेंट के लिए जा सकते हैं. हालांकि वो संसद से हो के गुजरता है. काफी लंबा प्रोसेस है. पर अगर कोई बिना आधार के आरोप लगाने लगे और नित नए आरोप लगाए तो कोर्ट उसे किस आधार पर दंडित करेगी. इसका मैकेनिज्म नहीं मिल रहा. सिर्फ मिसबिहैवियर ही क्राइटेरिया है जज को संसद में डिस्कस करने का. पर अगर संसद डिस्कस करने से मना कर दे तो? या देर करे तो? तो कोर्ट कंटेम्प्ट के लिए जा सकता है जो कि किया भी है. पर अगर ऐसे कई लोग निकल आएं तो कोर्ट क्या करेगा?
जजों की नियुक्ति को लेकर कैसे विवाद रहे हैं?
जजों की नियुक्ति के मामले में 1971 तक चीफ जस्टिस ऑफ सुप्रीम कोर्ट का कहा ही फाइनल होता था. पर इंदिरा गांधी की सरकार ने धीरे-धीरे सरकार का हाथ बढ़ाना शुरू किया इस मामले में. इमरजेंसी के दौरान तो जुडिशियरी भी दब गई थी. पर बाद में खुद को संभाल लिया. 1993 में सुप्रीम कोर्ट का एक जजमेंट आया जिसके हिसाब से सुप्रीम कोर्ट के 5 सबसे सीनियर जजों को ये जिम्मेदारी दी गई कि वो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को चुनेंगे. इसे कॉलेजियम सिस्टम कहा गया. पर इसका तरीका भी हमेशा अंधेरे में रहा. क्योंकि कोई ट्रांसपैरेंसी नहीं है इसमें.
2015 में मोदी सरकार नेशनल जुडिशियल अकाउंटेबिलिटी बिल लेकर आई पर ये समस्या को सुलझा नहीं रहा था. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक ये सरकार का हिस्सा जुडिशियरी में ज्यादा बढ़ा रहा था और असंवैधानिक था. बात सही भी है. अगर सरकार का हिस्सा बढ़े तो कोर्ट एक तरह से सरकार का ही हिस्सा हो जाएगी. तो भविष्य में किसी प्रधानमंत्री का मन डोला तो संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है देश में. पर इस बात से कोर्ट की अपनी समस्याएं नहीं सुलझ जातीं. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पब्लिक से भी राय मांगी कि बताइए क्या किया जाए ताकि जजों की नियुक्ति में ट्रांसपैरेंसी लाई जा सके. अब मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर ऐतराज जता सकती है.

चीफ जस्टिस जेएस खेहर
जस्टिस कर्णन का नाम आगे बढ़ाने वाले जज एके गांगुली मीडिया को ये भी नहीं बता पाए कि किस आधार पर ऐसा किया गया था. अब तो वक्त काफी हो गया, उनको याद नहीं है. पर संविधान के मुताबिक हाई कोर्ट में जज बनने की योग्यता हाई कोर्ट में दस साल की कानून प्रैक्टिस और इंडिया की नागरिकता ही है. और कुछ नहीं है. तो ये पूरी तरह से हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के विवेक पर ही निर्भर करता है.
अगर जस्टिस कर्णन की बात करें तो कलकत्ता हाई कोर्ट की वेबसाइट पर दिया हुआ है कि उन्होंने 1983 में मद्रास लॉ कॉलेज से वकालत की पढ़ाई की. फिर मद्रास हाई कोर्ट में ही सिविल की वकालत की. फिर मेट्रो वाटर के लीगल ए़डवाइजर बने. बाद में सरकारी वकील बने. केंद्र तक भी पहुंचे. पर ऐसा कोई केस नहीं था जिसे बहुत बड़ा बताया जा सके. हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक जस्टिस गांगुली ने कहा था कि जस्टिस कर्णन को इसलिए लाया गया कि एक जाति का प्रतिनिधित्व हो सके.
इंडियन न्याय व्यवस्था में जजों में दलितों का प्रतिनिधित्व काफी विवाद का विषय रहा है. हिंदुस्तान टाइम्स के ही मुताबिक 2002 में सुप्रीम कोर्ट में मात्र एक दलित जज और देश के तमाम हाई कोर्ट के 625 जजों में मात्र 25 दलित जज थे.
सीनियर वकील राम जेठमलानी ने जस्टिस कर्णन को ओपन लेटर लिखा था. कहा कि भ्रष्टाचार से भरे देश में जुडिशियरी है एकमात्र प्रोटेक्शन है. इसको बर्बाद मत करो. कमजोर भी मत करो. जितनी चीजें आपने बोली हैं, सब वापस लीजिए. मैंने पूरी जिंदगी दलित समुदाय के लिए काम किया है. आप जो कर रहे हैं उससे उनका घाटा ही होगा. ये भी कहा कि मैं श्योर हूं आप अपना दिमाग खो चुके हैं.

जस्टिस कर्णन का मुद्दा न्याय व्यवस्था की कई कमियों को उजागर करता है:
1. अगर कोई जज अपना आचरण खराब कर ले तो इंपीचमेंट के अलावा क्या किया जा सकता है.
2. किसी जज का बैकग्राउंड अच्छा है या बुरा है, ये विवेक के अलावा और किन बातों से सुनिश्चित किया जा सकता है.
3. जजों की नियुक्ति का कोई प्रभावी मैकेनिज्म क्यों नहीं बन पाता, जो कि पब्लिक डोमेन में रहता. सबको सारी बातें पता होतीं किसी जज के काम के बारे में.
4. कई वकील अपनी प्रैक्टिस छोड़कर जज बनना स्वीकार नहीं करते. तो आखिर और कौन सा रास्ता है कि ज्यादा जानकार लोगों को सिस्टम में लाया जाए.
5. दलितों और औरतों की हिस्सेदारी बढ़ाने का क्या उपाय है.
6. जजों पर भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कैसे हो. क्योंकि हाल के वर्षों में आवाज तो उठती रही है पर कोई कंक्रीट काम नहीं हुआ है.
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