The Lallantop
Advertisement

वायनाड भूस्खलन से केरल के 'Great flood of '99' की याद हुई ताजा, हजार से ज्यादा मौतें हुई थीं

लगभग 650 मिमी बारिश तो एक दिन में दर्ज की गई थी. माने पूरे सीज़न में जितना बरसता है, उसका एक-चौथाई कुछ ही देर में बरस पड़ा.

Advertisement
flood of kerala 1924
केरल में आई सबसे भीषण बाढ़. (फ़ोटो - सोशल/आर्काइव)
pic
सोम शेखर
31 जुलाई 2024 (Published: 12:16 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

केरल के वायनाड में लगातार आए भूस्खलनों में 167 से ज़्यादा लोगों की जान चली गई है. 186 से ज़्यादा लोग बुरी तरह से घायल हैं. केंद्र और राज्य सरकारें राहत कार्य में जुटी हुई हैं. सेना, राष्ट्रीय और राज्य आपदा राहत बल, CRPF की टुकड़ियां लोगों को निकालने और राहत कार्य में लगी हुई हैं.

हाल के सालों में केरल में ऐसी कई आपदाएं हुई हैं. केवल 2015 से 2022 के बीच भारत में सबसे ज़्यादा भूस्खलन केरल में हुए. माने ये पूरा क्षेत्र ही इस तरह की आपदाओं के प्रति संवेदनशील है. लेकिन ये केवल हाल के इतिहास का तथ्य नहीं है. ठीक 100 साल पहले केरल में एक ऐसी बाढ़ आई थी, जिसने राज्य का चेहरा बदल दिया.

केरल की ‘ग्रेट फ़्लड ऑफ़ 99’

जुलाई का महीना और साल था, 1924. मलयाली कैलेंडर के अनुसार, 1099. मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि जून से सितंबर तक में केरल में औसतन 2200-2500 मिलीमीटर बारिश होती है. उस मॉनसून इसकी डेढ़ गुना (3,451 मिमी) बारिश हुई. तीन हफ़्ते तक मूसलाधार बारिश. लगभग 650 मिमी बारिश तो एक दिन में दर्ज की गई थी. माने पूरे सीज़न में जितना बरसता है, उसका एक-चौथाई कुछ देर में बरस पड़ा. राज्य में नदियां उफ़ान पर थीं. पेरियार नदी के जलद्वार को खोलते ही पानी फट पड़ा.

इस समय की तरह ही उस समय का इंफ़्रास्ट्रक्चर भी प्रकृति के प्रकोप के लिए ना'काफ़ी था. इस बाढ़ ने - जिसे स्थानीय लोग ‘ग्रेट फ़्लड्स ऑफ़ 99’ के तौर पर याद करते हैं - गांवों और पहाड़ियों को बहा दिया. त्रावणकोर, कोचीन और मालाबार में फैली रियासतों के कई हिस्से डूब गए. एक हज़ार से ज्यादा जानें गईं, वनस्पति और जीव नष्ट हो गए. सड़कें धुल गईं, पुल ढह गए और लोगों के बसेरे माचिस की तीलियों की तरह बह गए.

ये भी पढ़ें - जब पानी लीटर में नापा जाता है तो बारिश मिलीमीटर और सेंटीमीटर में क्यूं नापी जाती है?

इतिहासकार मनु पिल्लई की किताब ‘द आइवरी थ्रोन: क्रॉनिकल्स ऑफ़ द हाउस ऑफ़ त्रावणकोर’ में इस त्रासदी के बारे में लिखा है, “ऐसा लग रहा था गोया आसमान फट गया हो और पानी लगातार फूट रहा हो. चहुओर तबाही.”

तब भी एक बहुत बड़ा भूस्खलन हुआ था. मुन्नार के पास करिन्थिरी में पूरी पहाड़ी टूट गई थी और मुन्नार की सड़क तहस-नहस हो गई. एक बड़ा नुक़सान और हुआ. मुन्नार के पास कुंडला घाटी रेलवे था. दक्षिण भारत का पहला मोनो-रेल सिस्टम. ऐसा सिस्टम, जिसमें ट्रैक एक ही रेल या बीम से बना होता है. बाढ़ में ये भी बह गया और दुबारा कभी नहीं बनाया गया.

त्रावणकोर सरकार ने राहत कार्य में फ़ुर्ती दिखाई. एक बाढ़ राहत समिति गठित की. मद्रास प्रेसीडेंसी ने सीनियर प्रशासनिक अधिकारी देवन टी राघवैया को कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया, जिन्होंने राहत कार्य में अहम भूमिका निभाई और बाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में संसाधन भेजे. अगस्त की शुरुआत तक हज़ारों शरणार्थियों और विस्थापित परिवारों को अलग-अलग राहत शिविरों में पहुंचा दिया गया.

राज्य के प्रतिनिधियों ने हर प्रभावित इलाक़े का दौरा किया. सुनिश्चित किया कि लोगों को खाना मिलता रहे, लोग महफूज़ रहें. जिन इलाक़ों में कहर ज़्यादा था, सरकार ने उनके लिए उस वित्तीय वर्ष के लिए टैक्स में छूट दी. कृषि ऋण के लिए 4 लाख रुपये अलग रखे गए, क्योंकि खेतों और खेती को भारी नुक़सान हुआ था.

ये भी पढ़ें - दिलो-दिमाग तक महका देने वाली बारिश की पहली खुशबू कैसे बनती है?

1924 का महाप्रलय सिर्फ़ एक ऐतिहासिक घटना नहीं है; ये एक साझी स्मृति है. इस त्रासदी से जुड़ी जीवित रहने, खोने और तन्यकता की कहानियां केरल की पहचान का हिस्सा हैं. इतिहासकार मीनू जैकब ने अपने लेख ‘1924 की त्रावणकोर बाढ़: एक साहित्यिक चित्रण’ में लिखा है कि बाढ़ का असर ऐसा था कि त्रावणकोर के कई पुराने लोगों (जिन्होंने या जिनकी पिछली पीढ़ी ने बाढ़ देखी थी) के लिए आज भी उसकी यादें ताजा हैं.

वीडियो: वायनाड में बारिश, लैंडस्लाइड, क्या है कारण?

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement