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आज़ाद भारत की पहली फांसी किसे हुई थी? एक अपराधी चर्चित है, दूसरे का नाम याद नहीं होगा

तारीख थी- 15 नवंबर 1949. कुछ याद आया?

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महात्मा गांधी की हत्या साज़िश रचने और साज़िश को अंजाम देने के आरोप में नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया था. इनमें से दो को फांसी की सज़ा हुई, दो को आजीवन कारावास और एक बरी. ये तस्वीर सभी नौ लोगों के कोर्ट में ट्रायल के वक्त की है. सन- 1949. (फाइल फोटो- Aaj Tak)
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अभिषेक त्रिपाठी
20 मार्च 2020 (Updated: 20 मार्च 2020, 07:23 AM IST) कॉमेंट्स
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किसी को फांसी दिए जाने की प्रोसेस कितनी मनहूस होती होगी न! जब एक रात पहले डमी के साथ ट्रायल होता है. लिवर वगैरह चेक कर लिया जाता है. जल्लाद साब को रेडी टू गो रख दिया जाता है. सुबह अपराधी को जगाया जाता है. कहा जाता है कि नहा लो और जिस ईश को मानते हो, उसे याद कर लो. फिर तमाम लिखा-पढ़ी. कागज-पत्तर वाली फॉर्मेलिटी और तमाम चीजें. और ये सब क्यों? एक फांसी के लिए.
ये बात मतों की भिन्नता का सम्मान करने के लिए ठीक है. लेकिन अपराध की सज़ा भी तो ज़रूरी ही होती है. माफी गलती की होती है, गुनाह की नहीं. फिर देश का कानून किसी को फांसी की सज़ा यूं ही तो नहीं दे देता. कोई जघन्यतम अपराध होता है, तभी कैपिटल पनिशमेंट दी जाती है. जैसे कि रंगा-बिल्ला को मिली, जैसे अफज़ल गुरू को मिली, कसाब, याकूब मेमन, निर्भया गैंगरेप के चार दोषी वगैरह.
लेकिन हमारे देश में ये कैपिटल पनिशमेंट यानी फांसी की शुरुआत कहां से हुई? कब पहली बार जज ने कलम तोड़ी? कब पहली बार किसी के अपराध को अदालत ने इतना जघन्य माना कि फैसला लिया- ये व्यक्ति समाज में रहने योग्य ही नहीं है.
बात करेंगे आज़ाद भारत की पहली फांसी की.

15 नवंबर 1949

इस तारीख से कुछ याद आया? नहीं याद आया तो हम याद दिलाते हैं. ले जाते हैं आपको करीब 70 बरस, चार महीने पीछे. तस्वीर बनती है अंबाला जेल की. दो गुनहगार. अभी हफ्ते भर पहले ही 8 तारीख को, 8 नवंबर 1949 को दोनों को सज़ा सुनाई गई थी. सात दिन के भीतर ही दोनों के लिए रस्सी कसी जा रही थी, जल्लाद लिवर की टेस्टिंग कर रहा था. दोनों अपराधियों को फांसी की सज़ा सुनाई गई थी. To Hang till death. आज़ाद भारत के इतिहास में किसी को फांसी की सज़ा सुनाए जाने का ये पहला मौका था.
ये दो लोग हैं कौन, जिनका हम ज़िक्र कर रहे हैं? जिन्हें देश में सबसे पहले फांसी की सज़ा दी गई.
अपराधियों के नाम- नाथूराम गोडसे और नारायण आपटे.
अपराध- मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या
अपराध का दिन- 30 जनवरी, 1948
अपराध का समय- शाम 5 बजकर 47 मिनट
अपराध का स्थान- बिड़ला भवन, दिल्ली
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नाथूराम गोडसे ने पहले भी गांधी की हत्या की साज़िश रची थी. सितंबर 1944 में. ये कोशिश नाकाम रही तो वह अपने दोस्त नारायण आपटे के साथ वापस मुंबई चला गया. दोनों ने वहां दत्तात्रय परचुरे और गंगाधर दंडवते के साथ मिलकर बैरेटा पिस्टल खरीदी. 29 जनवरी 1948 को दोनों दिल्ली लौटे और बापू की हत्या कर दी.

कुल नौ लोगों पर आरोप थे
महात्मा गांधी की हत्या की साज़िश रचने और घटना को अंजाम देने के मामले में कुल नौ लोगों पर आरोप थे. इनमें से सिर्फ एक आरोपी को अदालत ने बरी किया था- विनायक दामोदर सावरकर. बाकी आठ लोगों पर कोई न कोई आरोप सिद्ध हुए थे. इन आठ में से छह लोगों को आजीवन कारावास मिला, बाकी दो को फांसी.
बापू की हत्या का ज़िक्र होते ही ज़ेहन में एक ही नाम ख़ासतौर पर आता है- नाथूराम गोडसे. क्योंकि गोली चलाई गोडसे ने ही थी. लेकिन दूसरा नाम नारायण आपटे का भी है, जिससे शायद कम लोग वाकिफ़ हों. साथ ही कम लोग वाकिफ़ होंगे इस बात से भी इन दोनों की फांसी आज़ाद भारत के इतिहास की पहली फांसी थी.


क्या है भारत में मौत की सज़ा मिलने के बाद फांसी देने की प्रक्रिया?

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