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जम के उगाते हैं लेकिन फिर भी भूखे रह जाते हैं भारतीय, कारण जानकर माथा पकड़ लेंगे

हंगर इंडेक्स में हमेशा पिछड़ते हैं हम

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एक तरफ किसान ज्यादा खाद्यान्न पैदा कर रहा है, तो दूसरी तरफ समस्तीपुर में अपनी ही फसल पर ट्रैक्टर चलाने जैसी तस्वीरें भी सामने आ रही हैं. कृषि उत्पादों की बर्बादी भारत की बड़ी समस्या बन चुका है.
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अमित
24 दिसंबर 2020 (Updated: 24 दिसंबर 2020, 01:51 PM IST) कॉमेंट्स
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जब से किसान आंदोलन शुरू हुआ है, किसानों को अन्नदाता कहकर लोग उनके साथ खड़े हो रहे हैं. कहा जा रहा है कि अपनी पैदा की गई फसल की कीमत के लिए भी किसानों को लड़ाई लड़नी पड़ रही है. दूसरी तरफ एक रिपोर्ट दिखाती है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) में भारत की रैंकिंग 103 रही है. सरकार सस्ता खाद्यान्न बांटने पर हर साल 1.5 लाख करोड़ रुपए खर्च करती है. लेकिन एक चौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि देश में भारी मात्रा में अनाज की बर्बादी होती है. साल 2016 की एक स्टडी बताती है कि हर साल तकरीबन 92,651 करोड़ रुपए का कृषि उत्पाद बर्बाद हो जाता है. ये आंकड़े पीएम मोदी की उस अपील की पुष्टि करते हैं, जिसमें उन्होंने खाद्यान्न स्टोरेज की क्षमता को तेजी से बढ़ाने की बात की है.
बर्बादी पर हर बार एक ही जवाब
जब भी अनाज की बर्बादी की बात आती है तो सरकार के पास एक घिसा-पिटा जवाब होता है.
हमने जितना खरीदा, जितना सुरक्षित रखा और जितना बांटा, उसके मुकाबले ये बर्बादी कुछ नहीं है.
इंडिया टुडे संवाददाता राहुल श्रीवास्तव की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल 20 सितंबर में सरकार ने एक आंकड़ा जारी किया था. अप्रैल में तत्कालीन खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान ने संसद को सूचित किया था कि भारतीय खाद्य निगम (FCI) द्वारा खरीदा गया सिर्फ 0.02 लाख टन अनाज ही बर्बाद हुआ है. लेकिन यह पूरा सच नहीं है. अनाज की बर्बादी के सवाल पर सरकार सिर्फ FCI का जिक्र करती है, जबकि जितने अनाज की बर्बादी होती है, उसमें FCI का योगदान बहुत छोटा है.
बर्बादी: दावा बनाम सच्चाई
तब के कृषि मंत्री रामविलास पासवान ने संसद में कहा था,
'आम लोगों की धारणा है कि FCI के गोदामों में अनाज की भारी बर्बादी होती है, लेकिन हम इसे नियंत्रित करने में सक्षम हैं. बर्बादी को नगण्य कर दिया गया है. 2015-16 में सरकार ने 62.3 मिलियन टन चावल और गेहूं खरीदा था. इसमें से 3,116 टन अनाज बर्बाद हो गया. ये कुल खरीद का सिर्फ 0.005 प्रतिशत है. 2016-17 में 61 मिलियन टन की कुल खरीद में से सिर्फ 0.014 प्रतिशत बर्बाद हुआ. 2017-18 और 2018-19 में अनाज की बर्बादी क्रमशः 0.003 प्रतिशत और 0.006 प्रतिशत रही. 2019-20 में सरकार ने 75.17 मिलियन टन अनाज खरीदा गया. इसमें से 1,930 टन ही बर्बाद हुआ, जो कुल खरीद का 0.002 प्रतिशत है.
इंडिया टुडे की टीमों ने अनाज की बर्बादी का जायजा लेने के लिए कई राज्यों का दौरा किया. मध्य प्रदेश के रीवा जिले में टीम ने पाया कि इस बर्बादी की सबसे अहम वजह खरीद सिस्टम में लापरवाही  है.
# यहां 124 खरीद केंद्रों पर किसानों द्वारा लाए गए 11.4 लाख क्विंटल धान तोला जा चुके था. स्थानीय अधिकारियों का दावा है कि इसमें से 9.5 लाख क्विंटल पहले ही उठाया जा चुका है. लेकिन खरीदा गया धान पूरी तरह से अव्यवस्थित पड़ा था. ये हालात तब हैं, जब इन केंद्रों पर खरीद के लक्ष्य का यह बमुश्किल 50 फीसदी है. इन केंद्रों पर 70,000 किसान पंजीकृत हैं. उनमें से लगभग 59,000 को मैसेज भेजा गया है कि 27 दिसंबर तक अपनी फसल ले आएं. रिकॉर्ड के अनुसार 17 दिसंबर तक सिर्फ 29,000 किसान इन केंद्रों पर पहुंचे थे.
# जितना धान अब तक खरीदा गया है, उसके लिए किसानों को कुल 239 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाना है. लेकिन अब तक उनके खातों में सिर्फ 160 करोड़ रुपये ही पहुंचे हैं. इधर ठंड में पड़ रही ओस से अनाज के बचाव के लिए कोई इंतजाम नहीं है. भंडारण की सुविधाओं और पॉलीथीन शीट की कमी है. इससे खरीदा गया धान खुले में ही पड़ा है. ओस की वजह से उसमें नमी आ रही है. केंद्र के अधिकारी स्वीकार करते हैं कि जब तक ज्यादातर उपज अंदर होगी, तब तक काफी नुकसान हो चुका होगा.
रीवा से करीब 1,340 किलोमीटर दूर गुरदासपुर (पंजाब) में एफसीआई के गोदामों में भी धान की खरीद का जायजा लिया तो देखा कि एक दूसरे के ऊपर रखे गए चावल के कई बोरे फटे हुए हैं, जिनमें से दाने बिखर रहे हैं. केंद्र के मैनेजर महिंदर पाल ने इंडिया टुडे को बताया कि कुछ कमियां हैं. इनके समाधान के लिए उन्होंने केंद्रीय कार्यालय को लिखा है.
लॉकडाउन के दौरान देश के कई राज्यों में किसानों को सही भाव न मिलने के चलते सब्जियों को फेंकना पड़ा. इसी तरह महाराष्ट्र में तिरंगा वायरस के चलते टमाटर खराब हो गए. ऐसे में किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा. (Photo: PTI)
स्टोरेज की अच्छी व्यवस्था न होने की वजह से बहुत सा कृषि उत्पाद बर्बाद हो जाता है.

बर्बादी रोकने किए क्या हो रहा है?
खाद्यान्न के स्टोरेज को लेकर संपदा नाम की 6,000 करोड़ रुपये की परियोजना को सरकारी और प्राइवेट प्लेयर्स की मदद से आगे बढ़ाया जा रहा है. यह कृषि उत्पादों के लिए यूनिफाइड सप्लाई कोल्ड चेन विकसित करने की एक राष्ट्रीय योजना है. FCI का कहना है कि उसके स्टोरेज में हर साल बर्बाद होने वाले अनाज की मात्रा को कम करने की कोशिश की जा रही है. इसके लिए FCI ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से एक अध्ययन करने को कहा है ताकि स्टोरेज सुविधाओं को वैज्ञानिक तरीकों से बेहतर बनाया जा सके. वैज्ञानिक डॉ. एसएन झा की अगुवाई वाली ICAR की टीम ने छह महीने पहले एफसीआई को एक रिपोर्ट सौंपी थी. इस पर एफसीआई राज्यों से बातचीत कर रहा है कि कैसे खेतों से लेकर स्टोर हाउस तक अनाज की बर्बादी रोकी जा सके.
भोजन का है पॉलिटिक्स से सीधा कनेक्शन
भारत में भोजन और राजनीति का सीधा कनेक्शन है. इसकी कमी से जनता में गुस्सा पैदा हो जाता है, और तगड़ा सियासी झटका लग सकता है. इसलिए सरकारें इस मामले में बहुत सेफ खेलती हैं. देश में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ा है, लेकिन स्टोरेज उस हिसाब से काफी पीछे रहा है. जब भी अच्छी पैदावार होती है तो कटाई के समय एफसीआई की सिरदर्दी बढ़ जाती है. गेहूं को अच्छी स्टोरेज के साथ 4-5 सालों के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है. लेकिन खराब भंडारण सुविधाओं के कारण बड़ी मात्रा में बर्बादी के डर से एफसीआई ने गेहूं के भंडारण का समय 3 साल और चावल का 2 साल कर दिया है. आइए जानते हैं कि स्टोरेज के हिसाब से गेंहू और चावल के क्या हालात हैं-
गेंहू का हाल 1 फरवरी, 2020 को एफसीआई के पास 103.50 लाख टन गेहूं था, जबकि राज्य की एजेंसियों के पास 197.07 लाख टन गेहूं था. कुल 300.66 लाख टन के गेहूं के स्टॉक में से 4.27 लाख टन का स्टॉक 2016-17 से, 87.45 लाख टन 2017-18 से और 209 लाख टन गेहूं 2018-19 से था.
चावल का हाल चावल का हाल इससे भी बदतर है. सरकार के पास वर्ष 2017-18 से 1.8 लाख टन, 2018-19 से 153.7 लाख टन और 2019-20 से 114.5 लाख टन चावल हैं. 2019 में कुल गेहूं 341 लाख टन और चावल 443 लाख टन था. ये संख्या एफसीआई और राज्यों की भंडारण क्षमता से काफी ज्यादा है.
चावल. सांकेतिक तस्वीर.
देश में चावल की पैदावार के हिसाब से बर्बादी भी बहुत होती है. सांकेतिक तस्वीर.

स्टोरेज का खर्चा और सब्सिडी का बोझ
एफसीआई की कुल स्टोरेज क्षमता 382.27 लाख टन है. राज्यों की एजेंसियों की क्षमता 238.17 लाख टन है. इस 620.44 लाख टन क्षमता के अलावा FCI और राज्यों के पास गेहूं के लिए अतिरिक्त 132 लाख टन अनाज पड़ा है. इसके लिए कोई स्टोरेज सुविधा नहीं है. 2015 में सरकार ने मेटल के बने साइलोज में 100 लाख टन के भंडारण को मंजूरी दी थी. 2020 तक साइलोज की क्षमता मात्र 6 लाख टन से कुछ ज्यादा ही हो सकी है. यूपीए सरकार ने 2008 में प्राइवेट आंत्रप्रेन्योर गारंटी (PEG) स्कीम शुरू की थी, जो बहुत उपयोगी साबित हुई. इसके तहत 142.83 लाख टन क्षमता विकसित की गई थी.
मार्च 2020 में जब एफसीआई और राज्य एजेंसियों ने अनाज की खरीद शुरू की, उस समय 1,500 करोड़ रुपये की कीमत का 18 लाख टन से ज्यादा गेहूं अवैज्ञानिक कैप भंडारण के तहत रखा गया था, जिसके बर्बाद होने की ज्यादा संभावना है. अवैज्ञानिक कैप भंडारण मतलब बिना किसी साइंटिफिक तरीके के रखरखाव, जैसे खुले में किसी बोरे आदि से ढक देना. हालांकि एफसीआई और सरकारी एजेंसियां इतनी ज्यादा मात्रा में अनाज का भंडारण करती हैं तो इनमें से कुछ जो जल्दी खराब होने वाले अनाज हैं, उसे बचाया नहीं जा पाता.
खाद्य मंत्रालय के एक सीनियर अधिकारी ने कहा,
ये विरोधाभासी स्थिति है. सरकार स्टोर किए गए अनाज को तुरंत डंप नहीं कर सकती. अगर ऐसा हो तो बाजार में अनाज की कीमतें गिर जाएंगी और किसान अपनी लागत नहीं वसूल पाएंगे.
जब भी देश में खाद्दान्न की बंपर पैदावार होती है, FCI की टेंशन बढ़ जाती है.
जब भी देश में खाद्दान्न की बंपर पैदावार होती है, FCI की टेंशन बढ़ जाती है.

अनाज की भारी बर्बादी दावों और चुनौतियों के बावजूद भारत अपने कृषि उत्पादन की बड़ी मात्रा में बर्बादी करता है. सरकार खुद पर लगे आरोपों के जवाब में एफसीआई के गोदामों में कम बर्बादी का हवाला देती है, लेकिन नुकसान बहुत ज्यादा है.
# भारत में अनाज का कुल उत्पादन लगभग 30 करोड़ टन है, और एफसीआई सिर्फ 8 करोड़ टन की खरीद करता है. यह भारत के कुल उत्पादन का करीब एक-चौथाई है. बचे हुए खाद्यान्न का ज्यादातर हिस्सा खुले में पड़ा रहता है.
जरा इस विरोधाभास को देखिए
2019-20 में भारत में कुल अनाज उत्पादन 292 मिलियन टन अनुमानित था. जबकि एक साल में देश की कुल जनसंख्या को खिलाने के लिए 225 से 230 मिलियन टन की जरूरत का अनुमान था. फिर भी देश में बड़ी आबादी के लिए खाने का संकट रहता है. भारत इस समस्या से लगातार जूझ रहा है. यूनाइटेड नेशन के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) का अनुमान है कि भारत में जितने खाद्य पदार्थों का उत्पादन होता है, उसका 40 फीसदी से ज्यादा बर्बाद हो जाता है. इसकी लागत हर साल 14 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर हो सकती है.
अपनी तरह की एक खास रिपोर्ट में कृषि उत्पादों की बर्बादी के चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. इसमें 120 जिलों से 45 फसलों और 14 एग्री क्लाइमेट ज़ोन को कवर किया गया है.
# खाद्यान्न, तिलहन और फलों में बर्बादी के आंकड़े कुछ ऐसे हैं. अनाज की औसतन बर्बादी 4.65% से 5.99%, दालों की 6.36% से 8.41%; तिलहन की 3.08% से 9.96% और फल-सब्जियों की बर्बादी 4.58% to 15.88% तक होती है.
# कई बार तो मूंगफली की कुल पैदावार की 12.3 फीसदी तक बर्बादी हुई है.
# पपीते और अमरूद की बर्बादी का प्रतिशत 6.7 से 15.88 तक है.
# हर साल टमाटर महंगे बिकते हैं, कुल उत्पादन का 19 फीसदी तक बर्बाद हो जाता है.
#  प्लांटेशन वाले उत्पाद में नुकसान 1.18% (काली मिर्च) से 7.89% (गन्ना) तक है.
# देश में 7.19 फीसदी अंडा बर्बाद हो जाता है. तालाब या नदी की 5.23% मछली और समंदर की 10.52% मछली बर्बाद हो जाती है.
# बकरी या भेड़ का 2.71 फीसदी मांस और पॉल्ट्री (मुर्गे आदि) का 6.74% मांस बर्बाद हो जाता है.
# बर्बादी ज्यादातर पूर्वी पठार और पहाड़ी इलाकों में देखी गई है. इनमें झारखंड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र का पूर्वी इलाका जहां अनुसूचित जनजाति की बहुलता है. इसके अलावा यह ट्रेंड पूर्वी तट जैसे उड़ीसा, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में भी देखने को मिलता है.
सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए तीन कानून पास किए हैं, जिनमें खरीद और भंडारण में निजी क्षेत्र की भागीदारी भी शामिल है. लेकिन संवाद की विफलता ने हरियाणा और पंजाब जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में किसानों को नाराज कर दिया है. सरकार किसानों से बातचीत की कोशिश कर रही है. अब बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि वह किसानों की मांगों और आशंकाओं को दूर करने के लिए कितनी तैयार है.

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