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क्या कोई राज्य दूसरे राज्य के किसानों को फ़सल बेचने से रोक सकता है?

पीएम मोदी ने क्या कहा था और अब शिवराज-खट्टर ने क्या कहा?

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21 दिनों से आंदोलन कर रहे किसानों को सड़कों से हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई हैं. अब इस मामले की सुनवाई 17 दिसंबर को होगी. (फोटो-पीटीआई)
किसान आंदोलन (फोटो-पीटीआई)
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सिद्धांत मोहन
5 दिसंबर 2020 (Updated: 5 दिसंबर 2020, 09:39 AM IST) कॉमेंट्स
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दिल्ली और आसपास के इलाक़ों में केंद्र सरकार के कृषि क़ानूनों के विरोध में  प्रदर्शन हो रहे हैं. और ऐसे में दो भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बयान आए हैं. बयान ऐसे जो केंद्र के दावों से उलट जाते हैं. पहला राज्य : हरियाणा सीएम मनोहर लाल खट्टर. उन्होंने 29 सितम्बर को ही ऐलान कर दिया कि हरियाणा सरकार दूसरे राज्यों के किसानों से फ़सल नहीं ख़रीदेगी. उनका वीडियो वायरल हुआ था. ख़बरें भी चली थीं. कुछ दिनों बाद ख़बर आयी कि सरकार ने कहा कि दूसरे राज्यों के किसानों को अपनी फ़सल हरियाणा में बेचने के लिए राज्य के पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना होगा. और आख़िर में 28 नवंबर को मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि बग़ल के राज्य राजस्थान में बाजरा सस्ता है, तो लोग वहां से ख़रीदकर हरियाणा में बेच रहे हैं. राजस्थान का बाजरा हरियाणा में बिकने नहीं दिया जाएगा. दूसरा राज्य : मध्य प्रदेश सीएम शिवराज सिंह चौहान. समाचार एजेंसी ANI ने ट्वीट किया कि शिवराज ने कहा है कि दूसरे राज्यों से कोई बेचने आया तो ट्रक ज़ब्त कर लिया जाएगा, और उसे जेल भेज दिया जाएगा. अब चलिए दो और ट्वीट्स पर नज़र मार लेते हैं. पहला ट्वीट : नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्रीदूसरा ट्वीट : नरेंद्र सिंह तोमर, केंद्रीय कृषि मंत्रीसवाल : जब केंद्र सरकार एक देश और एक मंडी का दावा कर रही है और ये कह रही है कि कोई भी किसान अपना प्रोडक्ट कहीं भी जाकर बेच सकता है, तो इसमें हरियाणा और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के नए ऐलान कैसे कारगर हो सकते हैं? कैसे कोई राज्य किसानों को अपने यहां अनाज बेचने से रोक सकता है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए सबसे पहले क़ानूनों का रूख करें. जून में संसद द्वारा पास किया गया एसेंशियल कमोडिटी एक्ट और सितम्बर में पास किए गए कृषि क़ानूनों में कहीं भी ये प्रावधान नहीं है कि कोई भी राज्य किसी भी किसान को उसका उत्पाद बेचने से रोक सकता है. तो? सबसे पहले हमने जय किसान आंदोलन और स्वराज इंडिया के नेता अविक साहा से बात की. अविक साहा ने कहा,
“ये मूलतः ग़ैरक़ानूनी है. आप किसी किसान को उसका उत्पाद बेचने से रोक नहीं सकते हैं. अगर मध्य प्रदेश या हरियाणा के लोगों को नासिक के अंगूर खाने हों या पहाड़ों में पैदा किए जा रहे सेब खाने हों, और इन राज्यों में उत्पादन ही नहीं है तो आप क्या उगाने लगेंगे? अभी से नहीं, ये बहुत पहले से है कि किसान अपने उत्पाद किसी भी राज्य में जाकर बेच सकते हैं. और इस प्रचारित और विवादित क़ानून के बाद राज्य इससे मना नहीं कर सकते हैं.”
लेकिन बात इतनी ही नहीं है. किसानों के मुद्दों पर गहरी नज़र बनाए वक़ील-विशेषज्ञ कुछ महीन बातें बताते हैं. सबसे पहले चंडीगढ़ हाईकोर्ट में वक़ील राजीव गोदारा कहते हैं,
“देखिए, हो सकता है कि ये MSP वाली फ़सलों के लिए राज्य सरकारें कह रही हों. सारी फ़सलों के लिए नहीं. लेकिन वो किस आधार पर किन फ़सलों की बिक्री रोकेंगी, ये तो उनकी पूरी मंशा सामने आने के बाद ही पता चलेगा. आधे-अधूरे और इतने अस्पष्ट बयान के आधार पर साफ़ नहीं कहा जा सकता है.”
सुप्रीम कोर्ट के वक़ील अनस तनवीर हमसे बातचीत में बताते हैं,
“अभी किसानों की सबसे बड़ी लड़ाई फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP को लेकर है. वो केंद्र से इस बारे में स्पष्टीकरण चाहते हैं.”
अनस तनवीर आगे समझाते हैं,
“देखिए, किसान तो पहले से ही अपनी उपज दूसरे राज्यों में ले जाकर बेचते रहे हैं. अब राज्यों के पास ख़रीद-बिक्री का जो हिसाब होता है, उसके आधार पर राज्य ये तय कर सकते हैं कि वो कौन-सा अनाज कब ख़रीदेंगे. ये उनके अधिकार में है. ये हमेशा से होता आया है कि राज्य अपने गोदामों की क्षमता के अनुसार ख़रीद करते रहे हैं.”
यानी विशेषज्ञों की मानें, तो राज्यों के पास अनाजी फ़सलों को लेकर ये अधिकार हैं कि वो ख़रीद बिक्री को नियंत्रित करें, लेकिन जैसा शिवराज क़ह रहे हैं कि किसानों को जेल में डाल दिया जाएगा, वो मुमकिन है? अनस तनवीर बताते हैं,
“ये अधिकार किसी भी हाल में राज्यों के पास नहीं है. आप ख़रीद-बिक्री ही नियंत्रित कर सकते हैं. नोटिस जारी कर सकते हैं. बहुत हुआ तो किसानों को ख़ाली हाथ लौटा सकते हैं. लेकिन किसानों के पास राइट टू ट्रेड है. यानी बिज़नेस करने का अधिकार. आप उसको क्रिमिनलाइज़ नहीं कर सकते हैं. आप किसी भी हाल में किसानों को जेल में नहीं डाल सकते हैं.”
तो राज्यों को इतनी ताक़त मिलती कैसे है? और उपाय क्या हैं? और इस पूरे झंझावात के पीछे का दांवपेंच क्या है? हमसे बातचीत में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वक़ील प्रशांत भूषण बताते हैं,
“आप ऐसे समझिए. जब इस बिल को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया जाएगा, तो सबसे पहला सवाल यही उठेगा कि इस बिल को बनाने में राज्यों की सहमति क्यों नहीं ली गयी?”
राज्यों की सहमति इसलिए क्योंकि कृषि उत्पादों की ख़रीद-फ़रोख़्त केंद्र नहीं राज्यों के हाथों में है. प्रशांत भूषण आगे कहते हैं,
“राज्य देशव्यापी क़ानून तो नहीं बना सकते हैं, लेकिन राज्यों से विमर्श की बात हो सकती है. जहां तक बात मध्य प्रदेश की है, अगर उन्हें दूसरे किसानों को अपना उत्पाद बेचने से रोकना है, तो उन्हें इसके लिए विधानसभा से क़ानून पारित कराना होगा. तभी आप इसे क़ानूनी तरीक़े से अंजाम दे पाएंगे.”
यानी क्या बात साफ़ हुई? बात ये कि राज्य सारे उत्पादों को प्रतिबंधित नहीं कर सकते हैं. कृषि अधिकतर राज्यों की ज़िम्मेदारी है, और चूंकि केंद्र का क़ानून है तो ये सवाल उठ सकते हैं कि राज्यों से विमर्श क्यों नहीं हुआ और राज्य फ़सलों को रोक तो सकते हैं लेकिन किसानों का आपराधिक ट्रीटमेंट नहीं कर सकते हैं. किसी भी अवस्था के लिए क़ानून ज़रूरी है.

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