The Lallantop
Advertisement

वो कौन सी संकटमोचक रिट्स हैं, जिन्हें लेकर कोई भी सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकता है

जान लीजिए. अधिकार है आपका.

Advertisement
Img The Lallantop
सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल कमेटी बनाने के साथ यह भी साफ कर दिया कि यह कमेटी काम कैसे करेगी.
pic
अभिषेक त्रिपाठी
18 नवंबर 2020 (Updated: 18 नवंबर 2020, 11:56 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
केरल के पत्रकार हैं सिद्दीक़ कप्पन. वही जो यूपी के हाथरस कांड के बाद पीड़िता के घरवालों से मिलने जा रहे थे और पांच अक्टूबर को उन्हें यूपी पुलिस ने हिरासत में ले लिया था. UAPA लगा. उनकी जमानत के लिए केरल यूनियन फ़ॉर वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने याचिका लगाई. यूनियन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल. 16 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में ज़मानत याचिका पर सुनवाई होनी थी, पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की तारीख़ टाल दी. तमाम प्रक्रियाओं के बीच सबसे ख़ास रही CJI एसए बोबड़े की टिप्पणी. उन्होंने कहा कि कोर्ट संविधान के आर्टिकल-32 के तहत आने वाली याचिकाओं को हतोत्साहित करना चाहता है क्योंकि आर्टिकल-32 की बहुत सारी याचिकाएं पहले से ही कोर्ट में पेंडिंग हैं. आर्टिकल-32. इसी पर बात करते हैं. साथ ही बात करेंगे आर्टिकल-226 पर भी, जिसके बिना 32 का ज़िक्र अधूरा रह जाएगा.

संविधान की आत्मा

एक मोटा-माटी बात तो हम सबको पता ही है. संविधान में भारत के सभी नागरिकों को सात मौलिक अधिकार दिए गए हैं.
समता या समानता का अधिकार. स्वतंत्रता का अधिकार. शोषण के विरुद्ध अधिकार. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार. संवैधानिक उपचारों का अधिकार.
नागरिकों के इन मौलिक अधिकारों की हिफ़ाजत होती रहे, इसके लिए संविधान में जोड़ा गया आर्टिकल-32. जिसे डॉ बीआर अंबेडकर ने Heart and Soul of the Constitution कहा था. लेकिन मौलिक अधिकारों के अलावा भी एक नागरिक के तमाम अधिकार होते हैं. जैसे कि- राइट टू वोट, राइट टू मैटरनिटी लीव, सूचना का अधिकार वगैरह. इन अधिकारों की रक्षा के लिए अस्तित्व में आता है- आर्टिकल 226. कुल मिलाकर इन दोनों आर्टिकल का निचोड़ ये है कि –
जब कभी भी हमारे-आपके मौलिक अधिकार या किसी अन्य अधिकार का उल्लंघन हो, तो इन दोनों आर्टिकल के तहत सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में याचिका लगा सकते हैं और अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं.

कब-किस कोर्ट में जाना है?

जब हमें लगे कि हमारे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, तब तो बेझिझक सीधा सुप्रीम कोर्ट जाया जा सकता है. आर्टिकल-32 के तहत. हालांकि हाई कोर्ट भी जाते हैं तो कोई हर्जा नहीं है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट जाने की सहूलियत और अधिकार इस स्थिति में आपके पास है. लेकिन जब मौलिक अधिकारों से इतर किसी अन्य अधिकार का उल्लंघन हो तो इसके लिए जाना होता है हाई कोर्ट. आर्टिकल-226 के तहत. अगर सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे तो वहां पूछा जाएगा कि आप पहले हाई कोर्ट क्यों नहीं गए. संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए तो कहा जाएगा कि पहले हाई कोर्ट जाइए, फिर यहां आइएगा. इसे उदाहरण से समझते हैं.
पहला केस – अगर मेरे राइट टू वोट का उल्लंघन हुआ है, तो मैं कहां जाऊंगा? हाई कोर्ट. आर्टिकल-226 के तहत. क्योंकि राइट टू वोट मेरा अधिकार तो है, लेकिन ये मौलिक अधिकारों में से नहीं है. दूसरा केस – अगर मेरे राइट टू स्पीच का उल्लंघन हुआ है, तो मैं कहां जाऊंगा? इस कंडीशन में मैं सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकता हूं. आर्टिकल-32 के तहत. क्योंकि ये मौलिक अधिकारों में शामिल है.

जब आर्टिकल-32 या 226 के तहत कोई याचिका कोर्ट के सामने पहुंचती है तो कोर्ट क्या करती है? किस तरह से अधिकारों की रक्षा की जाती है? कोर्ट तीन तरह की कार्यवाही कर सकता है.

पहली कार्यवाही – Writ: सबसे पहली और बड़ी कार्यवाही तो होती है रिट जारी करना. रिट क्या होती है? रिट (Writ) माने फॉर्मल लिखित आदेश, जो न्यायालय की तरफ से जारी किया जाता है. जब कोई याचिका आर्टिकल-32 या आर्टिकल-226 के तहत कोर्ट पहुंचती है तो कोर्ट रिट जारी करता है. रिट पांच तरह की होती है, जिसके बारे में अभी आगे बात करते हैं. दूसरी कार्यवाही – Order: मान लीजिए किसी व्यक्ति के मौलिक, संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है. अब वो आर्टिकल-32 या 226 के तहत कोर्ट जाता है. और माना कि कोर्ट उसे उसका अधिकार वापस दिला भी देता है. लेकिन इस बीच उस व्यक्ति को जो मानसिक पीड़ा पहुंची, जो नुकसान हुए, उसका क्या? इसके लिए कोर्ट दोषी पक्ष को आदेश देती है कि पीड़ित पक्ष को क्षतिपूर्ति करे, हर्जाना दे. तीसरी कार्यवाही - Instruction: कई ऐसे मामले होते हैं, जिनके लिए कोई स्पष्ट कानून नहीं है. लेकिन कोर्ट को इस पर फैसला देना ज़रूरी है. ऐसे में कोर्ट निर्देश जारी करती है. जैसे कि वर्कप्लेस पर सेक्शुअल अब्यूज़ को लेकर जारी किए गए गाइडलाइंस.

पांच तरह की रिट

अभी हमने ऊपर आपसे कहा था कि रिट पांच तरह की होती है, जिसके बारे में आगे बताएंगे. पांच तरह की रिट ही हमारी आज की बात का सबसे अहम हिस्सा है. वो संकटमोचक रिट, जो हमारे-आपके अधिकारों की रक्षा करती हैं. जिन्हें लेकर हम-आप सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट जा सकते हैं. Habeas Corpus (उच्चारण- हेबियस कॉर्पस) (हिंदी नाम- बंदी प्रत्यक्षीकरण) अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि उसे ग़लत वजहों से हिरासत में रखा गया है तो वो Habeas Corpus Writ डाल सकता है. रिट स्वीकार होने पर उस व्यक्ति को न्यायालय के सामने हाज़िर करना होता है. साथ ही कोर्ट हिरासत में रखने वाली अथॉरिटी (जैसे कि पुलिस) से पूछती है कि किस आधार पर हिरासत में रखा गया है. अपराध सिद्ध होने पर हिरासत बढ़ाई जा सकती है. वरना उसे छोड़ दिया जाता है. Mandamus (उच्चारण- मैंडमस) (हिंदी नाम- परमादेश) ये रिट तब लगाई जा सकती है जब अगर कोई सरकारी संस्था या अधिकारी अपना कर्तव्य सही से न निभाए और इसके चलते किसी व्यक्ति के अधिकारों का हनन हुआ हो. संबंधित व्यक्ति से पूछताछ होती है और उसके आधार पर फैसला लिया जाता है. Certiorari (उच्चारण- सर्चरी) (हिंदी नाम- उत्प्रेषण) इसका मतलब होता है प्रमाणित करना या सूचना देना. ये रिट सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट की तरफ से अपने सबऑर्डिनेट कोर्ट्स, ट्रिब्यूनल्स या प्रशासनिक प्राधिकरणों के खिलाफ जारी की जाती है. किसी सरकारी प्रक्रिया से जुड़ी पूछताछ करने के मकसद से. Prohibition (उच्चारण- प्रॉहिबिशन) (हिंदी नाम- प्रतिषेध) प्रॉहिबिशन काफी कुछ सर्चरी की तरह ही है. एक बेसिक अंतर है. सर्चरी तब जारी की जाती है, जब किसी सबऑर्डिनेट कोर्ट्स, ट्रिब्यूनल्स या प्रशासनिक प्राधिकरणों में कोई केस चला हो. उस पर फैसला आ गया हो. लेकिन सुप्रीम या हाई कोर्ट उससे सहमत न हो. तो ये रिट जारी करके उस फैसले को निष्प्रभावी किया जा सकता है.
प्रॉहिबिशन तब जारी की जाती है, जब किसी सबऑर्डिनेट कोर्ट्स, ट्रिब्यूनल्स या प्रशासनिक प्राधिकरणों में कोई केस चल रहा हो. आई रिपीट- चल रहा हो. माने फैसला न आया हो. लेकिन प्रक्रिया के बीच में ही सुप्रीम या हाई कोर्ट दखल देना चाहे तो ये रिट जारी करता है.
Quo warranto (उच्चारण- क्यो वारंटो) (हिंदी नाम- अधिकार पृच्छा) किसी सार्वजनिक कार्यालय को संभालने वाला व्यक्ति उस पद पर बने रहने के योग्य है भी या नहीं? ये क्यो वारंटो रिट से तय होता है. जिसके ख़िलाफ ये रिट लगी है, उसे साबित करना पड़ता है कि वो उस पद के योग्य है. एक ख़ास बात ये है कि ज़रूरी नहीं कि कोई पीड़ित व्यक्ति ही क्यो वारंटो लगाए. कोई भी व्यक्ति जानकारी के लिए ये रिट डाल सकता है.

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement