‘संजय दत्त ने ऋचा शर्मा के लिए किमी काटकर को धोखा दिया.’
यासिर उस्मान की किताब,'बॉलीवुड का बिगड़ा शहज़ादा: संजय दत्त' की किताब का एक अंश
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फोटो - thelallantop

फ़िल्म 'नाम' का एक सीन
संजय को यह साबित करना था कि नाम की सफलता तुक्के से नहीं आई थी. यह बात सच है कि संजय को कभी भी महान अभिनेता के रूप में नहीं देखा गया लेकिन 1980 के दशक के आखिरी वर्षों और 1990 के दशक के आरंभिक वर्षों के दौरान संजय बड़े स्टार थे और उनके चाहने वाले दर्शकों की बड़ी तादाद हो गई थी, खासकर छोटे शहरों में.
लोग उनके बारे में जानने को लेकर उत्सुक थे, उनकी मां की मृत्यु की त्रासदी, उनके ड्रग एडिक्शन, उनका बेहद सार्वजनिक प्रेम और ब्रेक अप, फिल्मों में उनकी वापसी, जिम में तराशा हुआ उनका मर्दाना शरीर, उनके लंबे बाल, और परदे के बाहर के जीवन में उनकी बदमाशियां. हां, जहां तक परदे से बाहर की दुनिया में नाटकबाज़ी की बात हो तो संजय ने कभी निराश नहीं किया.
'नाम' की शूटिंग के दौरान उनकी मुलाक़ात फिलीपींस की शा नाम की एक एयरहोस्टेस से हुई और उससे उनको प्यार हो गया. लेकिन यह रोमांस बहुत कम दिनों के लिए चला – कहा जाता है कि संजय यह चाहते थे कि शा अपना करियर छोड़ दे और उनके साथ हो जाए लेकिन जल्दी ही शा ने यह फैसला कर लिया कि संजय के साथ उसका कोई भविष्य नहीं था.

किमी काटकर - एडवेंचर्स ऑफ़ टार्ज़न
कुछ ही हफ़्तों में संजय ने अभिनेत्री किमी काटकर की तरफ रुख किया. किमी काटकर की प्रसिद्धि का कारण थी बी श्रेणी की एक फिल्म 'एडवेंचर्स ऑफ़ टार्ज़न' (1985) जिसमें उन्होंने बोल्ड दृश्य दिए थे और अब वह कुछ फिल्मों में संजय दत्त के साथ काम भी कर रही थीं.
जब संजय से पूछा गया कि क्या वे उनको लेकर गंभीर थे तो संजय का जवाब था, ‘एक तरह से, हां.’ उन्होंने आगे कहा, ‘इस समय मैं बहुत मस्ती कर रहा हूं, और यही काफी है. जब मैं किसी लड़की के साथ होता हूं तो उससे मैं यह उम्मीद करता हूं कि वह मेरे साथ डिस्को और रेस्तरां में खुलकर जाए.’
वैसे यह रिश्ता अधिक गंभीर लग रहा था. जैसा कि एक पत्रिका में यह लिखा गया, ‘एक समय ऐसा भी था कि जूनियर दत्त किमी के कोलाबा स्थित फ़्लैट में जाते थे और उन पकवानों का आनंद उठाते थे जिसे टीना काटकर (किमी की मां) खास तौर पर उनके लिए बनाती थीं.’ लेकिन यह रोमांस अचानक तब समाप्त हो गया जब एक नई लड़की का संजय के जीवन में आगमन हुआ. उन दिनों 'मूवी मैगज़ीन' ने कवर स्टोरी की थी: ‘संजय ने ऋचा के लिए किमी को धोखा दिया.’
ऋचा शर्मा का जन्म एक पंजाबी परिवार में 1963 में हुआ था. लेकिन वह जब बच्ची थीं तभी अपने मां-पिता के साथ न्यूयॉर्क चली गई थीं.
1977 में देव आनंद ने फिल्म 'देस परदेस' का प्रीमियर न्यूयॉर्क में आयोजित किया. फिल्मों की जानी मानी हस्तियां और चुनिंदा गणमान्य लोग देव आनंद के आसपास थे, जो उस शाम के स्टार थे. लेकिन देव की आंखें एक लंबी, गोरी 14 साल की लड़की के ऊपर टिकी हुई थीं, जो उस प्रीमियर में एक रंगीन ऑटोग्राफ बुक लेकर आई थी. देव ने उससे नाम पूछा. ‘ऋचा शर्मा,’ उसने जवाब दिया. उन्होंने ऑटोग्राफ बुक में हस्ताक्षर किए और उससे पूछा कि क्या वह फिल्मों में काम करना चाहती थी. उसने कहा, हां. इस बात को सालों गुज़र गए और वह उस बातचीत के बारे में भूल भी गई. लेकिन देव आनंद नहीं भूले.
1984 में एक शाम ऋचा को भारत से एक फोन आया. वह फोन देव आनंद का था. उन्होंने बड़े उत्साह के साथ ज़ोर से कहा, ‘मेरे पास तुम्हारे लिए रोल है. क्या तुम अब भी करना चाहती हो? ऋचा के लिए यह सपने के सच होने जैसा था. देव के बुलावे पर वह जल्दी ही मुंबई आ गई.

ऋचा शर्मा - 'हम नौजवान'
ये फिल्म थी 'हम नौजवान' (1985) और ऋचा को देव आनंद की नई खोज बताया गया; अन्य प्रमुख खोजों में थीं ज़ीनत अमान और टीना मुनीम. देखते ही देखते उसको अनिल कपूर, जैकी श्रॉफ़, शेखर सुमन और संजय दत्त के साथ भूमिकाओं के प्रस्ताव दिए जाने लगे.
तक़रीबन इसी समय उनकी मुलाक़ात संजय दत्त से हुई. संजय ने वो मुलाक़ात याद करते हुए बताया कि किस तरह 1985 में पहली मुलाक़ात में संजय ऋचा के ऊपर मोहित हो गए थे. ‘मैं ऋचा से पहली बार अपनी किसी फिल्म के मुहूर्त पर सी रॉक होटल में मिला था... उसने जींस और बहुरंगी टॉप पहन रखी थी. मैंने पूछा कि वह कौन थी... कुछ दिन बाद मैंने उसको फोन किया और अपने साथ चलने के लिए कहा.’ मुलाकातें होती रहीं और प्यार हो गया.
संजय हमेशा किसी नए रिश्ते की शुरुआत में जोश में रहते थे. हर नए रिश्ते के साथ बड़ी-बड़ी उम्मीदें और बड़ी संभावनाएं जुड़ी होती थीं लेकिन ऐसा लगता था कि उनके रिश्तों का उसी तेज़ी से बिखर जाना तय होता था, जिस तेज़ी से वे शुरू होते. मगर ऋचा के साथ वे अपना भविष्य देख रहे थे: ‘मुझे यह बात जल्दी ही समझ में आ गई कि ऋचा उन लड़कियों से अलग थी जिनको मैं पहले जानता था. वह न तो सोच-समझ कर हिसाब लगाने वाली थी, न ही किसी तरह से मोल-तोल करने वाली, न ही वह पैसों के पीछे थी. वह एक साधारण लड़की थी, एक ऐसी इंसान जिसके ऊपर भरोसा किया जा सकता हो...मैं उसके बिना और नहीं रह सकता था,’ संजय ने उस समय कहा.

ऋचा शर्मा - सड़क छाप में जैकी श्रॉफ के साथ
हालांकि संजय इस बात को जानते थे कि ऋचा न्यूयॉर्क में अपने माता-पिता को इसलिए छोड़कर आई थीं कि हिंदी फिल्मों में काम कर सकें, लेकिन हमेशा की तरह वे यह चाहते थे कि ‘उनकी स्त्री’ उनके लिए अपना काम छोड़ दे.
‘मैंने उससे शादी करने का फैसला किया. मैं यह चाहता था कि वह मेरे लिए, हमारे होने वाले बच्चों और हमारे घर के लिए अपना फ़िल्मी करियर छोड़ दे. वह मान गई; वैसे भी वह कोई ख़ास महत्वाकांक्षी नहीं थी,’ संजय ने बताया. साफ़ था कि शादी के बाद पत्नी को घर बैठाने के मामले में वो पूरी तरह से अपने पापा के बेटे थे.
(यासिर उस्मान की किताब संजय दत्त: बॉलीवुड का बिगड़ा शहजादा के अंश प्रकाशक जगरनॉट बुक्स की अनुमति से प्रकाशित)
किताब का नाम: बॉलीवुड का बिगड़ा शहज़ादा: संजय दत्त
प्रकाशक: जगरनॉट पब्लिकेशन
लेखक: यासिर उस्मान
कीमत: 499 रुपए (ऑनलाइन ये किताब आपको 300 रुपए के आसपास मिल जाएगी)
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