अलमारी के अंदर से एक सुबह श्रीदेवी गायब हो गई
एक कहानी रोज़ में आज पढ़िए, नारायण गौरव की कहानी 'पोस्टर'
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फोटो - thelallantop
यह सिलसिला कईं दिन चलता रहा. एक दिन दीवाने ने सुबह-सुबह अलसाई आंखों से जब अलमारी खोली तो पाया कि अंदर का मौसम बदल चुका है. बसंत के बाद अचानक पतझड़ ने हल्ला बोल दिया है. श्रीदेवी के पोस्टर का कहीं नामोनिशान तक नहीं था. अलमारी फिर से प्राणहीन, बेजान वस्तु में तब्दील हो चुकी थी.घर में पापा के अलावा सबको अलमारी और किशोर के उस अफेयर का पता था. तो शक मोहब्बत के परंपरागत शत्रु अर्थात पापा पर होना स्वाभाविक था. मगर डायरेक्ट पूछने की हिम्मत किसी में न थी. सो फाइनली ममता की देवी यानि मम्मी को तैयार किया गया हुस्न की देवी के लापता पोस्टर का पता लगाने के लिए. मम्मी जिन्होंने सबसे ज्यादा पापा के स्वभाव को झेला था, उन्होंने अपने अनुभव का पासा फेंका और पापा से पूछा.
"क्यों जी! कल जब मैं और तीनों बच्चे बाहर गए थे तो पीछे से कोई आया था क्या?""नहीं तो" पापा ने उत्तर दिया."क्यों क्या हुआ?"पापा ने फौरन काउंटर सवाल दागा."कुछ नहीं, वो तुम्हारा बेटा कह रहा है उसने एक नया पेन खरीदा था, वो मिल नहीं रहा है.""कहां रखा था, अलमारी में?"पापा ने प्रश्न किया तो मम्मी को और छुपकर पूरी बातचीत सुन रहे बेटे को कुछ उम्मीद बंधी."हां"मम्मी ने फौरन उत्तर दिया. बेटे ने भी होंठ भींचकर दरवाज़े के पीछे से ही अपनी गर्दन ऊपर नीचे हिलाई.पापा ने अखबार में गड़ी अपनी नजरें खींचकर बाहर निकाली और मम्मी की तरफ़ निशाना लगाते हुए बोले."अपने बेटे से कहना पेन लिखने के लिए होता है. अलमारी के अंदर छुपाकर चिपकाने के लिए नहीं. अगली बार यदि ऐसा कोई पेन मुझे दिख गया तो पेन की जगह अलमारी में उसे ही चिपका दूंगा."पापा की खरी-खरी छुपकर सुन रहा वह किशोर दरवाज़े से इस तरह चिपक गया जैसे स्वयं एक बेजान पोस्टर हो. किसी तरह स्वयं को उस दरवाज़े से नोचकर, छुड़ाकर, तार तार होकर अपनी सूनी अलमारी के पास पहुंचा और पोस्टर के हटने से खाली हुई जगह पर हाथ फिराकर बुदबुदाया.
"भले ही प्यार के दुश्मनों ने मुझे तुम्हारे पोस्टर से जुदा कर दिया हो पर मेरे दिल पर तुम्हारा जो पोस्टर लगा है, उसे कोई हटा नही सकता."वैसे ठीक ही कहा था उस दीवाने ने, आज वह किशोर अपनी युवावस्था के अंतिम चरण में प्रवेश कर चुका है और बाज़ार में कितने ही नए पोस्टर दीपिकाओं और आलियाओं के रूप में अपना जलवा बिखेर चुके हैं किंतु श्रीदेवी नाम का पोस्टर आज भी जस का तस उसके दिल पर बिल्कुल सुरक्षित लगा हुआ है, जैसे अभी कल ही बाजार से खरीदकर चिपकाया हो.
जाने क्यों वो मंटो का नाम सुनकर जाते-जाते रुक गई